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अर्थ:—अघोर ब्रह्मचर्यगुणधारी (जिनके तप के प्रभाव से महामारी, दुर्भिक्ष, बन्धन आदि दर हो जाता है, तथा महायुद्ध आदि का संकट टल जाता है—ऐसे) जिनेन्द्रों को नमस्कार है।
___णमो आमोसहिपत्ताणं ।। 33।। अर्थ:-जिनके निमित्त बनाया गया अपक्व (कच्चा) आहार भी औषधि का कार्य करे अथवा जिनके स्पर्श मात्र से ही रोगी निरोग हो जायें, ऐसे जिनेन्द्रों को नमस्कार है।
णमो खेल्लोसहिपत्ताणं ।। 34।। अर्थ:-जिनका थूक/कफ आदि भी औषधि का कार्य करे, उन जिनेन्द्रों के लिए नमस्कार है।
णमो जल्लोसहिपत्ताणं ।। 35।। अर्थ:-जिनके पसीनेयुक्त धूलि भी औषधि का कार्य करे, ऐसे जलौषधि ऋद्धि धारक जिनेन्द्रों के लिए नमस्कार है।
णमो विट्ठोसहिपत्ताणं ।। 36।। अर्थ:-जिनका मल भी औषधि का कार्य करे, ऐसे जिनेन्द्रों के लिए नमस्कार है।
णमो सव्वोसहिपत्ताणं ।। 37।। अर्थ:-जिनका सर्वांग (नख-केश आदि भी) औषधि का कार्य करें, —ऐसे जिनेन्द्रों को नमस्कार है।
णमो मणोबलीणं ।। 38।। अर्थ:-मनबलीण (अन्र्मुहूर्त में सम्पूर्ण श्रुत के चिंतन में सक्षम) जिनेन्द्रों को नमस्कार है।
णमो वचोबलीणं ।। 39।। अर्थ:-वचनबली (अन्तर्मुहूर्त में सूर्पण श्रुत के उच्चारण में सक्षम) जिनेन्द्रों को नमस्कार है।
णमो कायबलीणं ।। 40।। अर्थ:—कायबली (जिन्हें मासिक, चातुर्मासिक, वार्षिक प्रतिमायोग करते हुये भी थकान न हो, ऐसे) जिनेन्द्रों को नमस्कार है।
णमो खीरसवीणं ।। 41।। अर्थ:-'क्षीरस्रावी ऋद्धि' (नीरस भोजन भी जिनके हाथों में क्षीर-दुग्धयुक्त हो जाता है,) के धारक जिनेन्द्रों के लिए नमस्कार है।
णमो सप्पिसवीणं ।। 42 ।। अर्थ:-'घृतस्रावी ऋद्धि' (रूखा भोजन भी जिनके हाथों में घृतयुक्त हो जाता है) के धारक जिनेन्द्रों को नमस्कार है।
प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर'98
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