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केला औषधि भी है ईसा पूर्व 327 में सिकंदर ने भारत की 'सिंधु घाटी' में केले की खेती देखी थी। रोमन इतिहासकार प्लिनी (23-79 ईसवी) कदलीफल का वर्णन करनेवाला सबसे पहला व्यक्ति था। उसने लिखा था कि भारत के ज्ञानी लोग कदलीवक्ष के नीचे बैठकर धर्म-दर्शन की चर्चा करते हैं और प्राय: केले के अतिरिक्त और कुछ नहीं खाते। बाद में 18वीं शताब्दी के वनस्पति-विज्ञानी लाइनेस ने इसका वर्गीकरण कर इसे 'मूसा सोपाइंटम' यानी ज्ञानी चिंतन' नाम दिया था। सातवीं शताब्दी तक यह स्वादिष्ट फल केवल एशिया तक सीमित था। बाद में अरबी व्यापारियों द्वारा 'पश्चिम अफ्रीका' पहुँचा। यहीं से शायद 'बाना', 'अबाना', 'गबाना', 'फुनाना', 'बुनाने' जैसे अफ्रीकी शब्दों से इसके प्रचलित विचित्र नाम बनना शुरू हुये। लगभग इन्हीं दिनों स्पेनी और पुर्तगाली अन्वेषक तथा धर्मप्रचारक इस पौधे को अपने साथ कनेरी द्वीप तथा बाद में मध्य और दक्षिण अमरीका ले गए। एक शताब्दी पहले तक पश्चिमी यूरोप और अमरीका में केला बड़ा दुर्लभ और विदेशी फल समझा जाता था। 19वीं शताब्दी के शुरू में जब मध्य अफ्रीका से केले की पहली खेप अमरीका पहुंची, तो न्यूयार्क और बोस्टन के बंदरगाहों पर उसे देखनेवालों की भीड़ लग गई। लोग इस फल को देखकर चकित रह गए। ___ केला सम्पूर्ण भोजन होने के साथ ही सिरदर्द, खसरा और पेट की कुछ बीमारियों के लिए काम आता है। हाल ही में अध्ययन से पता चला है कि केला अतिसार और आंत के कुछ रोगों के लिए औषधि का काम करता है। केला सादा, वायु न बनाने वाला तथा सुपाच्य होता है। और एकमात्र ऐसा ताजा फल है, जो पेट के 'अलसर' के रोगियों को दिया जाता है। यह सबसे ज्यादा पौष्टिक होता है। उच्चरक्तचाप-नियंत्रण के लिए जरूरी पोटेशियम से समृद्ध केले में विटामिन 'ए', 'बी' और 'सी' भी होते हैं। दूध पीनेवाले शिशु के लिए रोज विटामिन की, नियासीन, राइबोल्फेविन और थायमीन की जितनी मात्रा जरूरी होती है; उसका चौथाई अंश एक केले में मिल जाता है। केले में 'सोडियम' कम होता है। कोलेस्टरॉल' बिल्कुल नहीं होता। इसमें सेब से डेढ़ गुनी अधिक 'शर्करा' होती है। केला चर्बी भी नहीं बढ़ाता, हालाँकि लोग आम तौर पर ऐसा सोचते हैं। सामान्यत: एक इंच के केले में 85 कैलोरी होती है, इतनी ही कैलोरी एक संतरा या सेब में होती है। इस अद्भुत फल का कभी अकाल नहीं पड़ सकता। इस फल को चाहनेवाले इसे हर मौसम में और हर जगह पा सकते हैं।
'अज्ञानतिमिरान्धानां ज्ञानाञ्जनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः।।' -(कातन्त्र, 6) अर्थ:—अज्ञानरूप अन्धकार से अन्धे हुए लोक के चक्षुओं को जिन्होंने सम्यग्ज्ञानरूप | कज्जल-शलाकाओं से उन्मीलित किया, उन सुगुरुओं को मेरा नमस्कार है। **
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प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर 198