Book Title: Prakrit Vidya 1998 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 78
________________ णमो चारणाणं ।। 20।। अर्थ:-'चारणऋद्धि' के धारक जिनेन्द्रों के लिए नमस्कार है। __ णमो पण्हसमणाणं ।। 21 ।। अर्थ:- (असाधारण प्रज्ञाशक्ति के धारक) प्रज्ञाश्रमण जिनेन्द्रों के लिए नमस्कार है। ___णमो आगासगामिणं ।। 22 ।। अर्थ:-'आकाशगामी ऋद्धि' के धारक जिनों के लिए नमस्कार है। ___णमो आसीविसाणं ।। 23।। अर्थ:-'आशीविष' (भयंकर विषयुक्त आहार भी जिनके मुख में जाकर निर्विष हो जाता है, ऐसी) ऋद्धि के धारक जिनेन्द्रों के लिए नमस्कार है। णमो दिट्ठिविसाणं ।। 24।। अर्थ:-'दृष्टिविष' (जिनके देखने मात्र से विषैले प्राणी भी विषरहित हो जाते हैं, ऐसी) ऋद्धि के धारक जिनेन्द्रों के लिए नमस्कार है। णमो उग्गतवाणं ।। 25।। अर्थ:-उग्र तपस्वी जिनेन्द्रों के लिए नमस्कार है। णमो दित्त-तवाणं ।। 26।। अर्थ:-दीप्त तपवाले (घोर तपस्या करने से जिनके शरीर की कांति बढ़ गयी है) जिनेन्द्रों को नमस्कार है। णमो तत्त-तवाणं।। 27।। अर्थ:-तप्त तपश्चरण वाले (तपस्या के कारण जिनका अल्प आहार सूख जाता है, मल आदि रूप में परिणमित नहीं होता) जिनेन्द्रों के लिए नमस्कार है। णमो महातवाणं ।। 28 ।। अर्थ:—महातपस्वी (सिंह-निष्क्रीडित आदि महान् उपवासों के अभ्यस्त) जिनेन्द्रों को नमस्कार है। णमो घोरतवाणं ।। 29 ।। अर्थ:-घोर तपस्वी (शारीरिक व्याधि रहने पर भी कठिन तपश्चरण में लीन एवं श्मसान आदि भयंकर प्रदेशों में रहकर तप करनेवाले) जिनेन्द्रों के लिए नमस्कार है। णमो घोरगुणाणं ।। 30।। अर्थ:–घोर गुणवाले जिनेन्द्रों के लिए नमस्कार है। णमो घोरगुणपरक्कमाणं ।। 31।। अर्थ:-घोर पराक्रम गुणवाले (जिनकी ऋद्धि के कारण सिन्धु-जलशोषण एवं उल्कापात आदि भी संभव होते हैं) जिनेन्द्रों के लिए नमस्कार है। णमोऽघोरगुणबंभचारिणं ।। 32 ।। 9076 प्राकृतविद्या+अक्तूबर-दिसम्बर'98

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