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धरसेन की एक कृति : जोणिपाहुड
-आचार्य नगराज, डी.लिट. आचार्य नगराज वर्तमान में श्वेताम्बर जैन-परम्परा के एक सूक्ष्मचिंतनवाले मनीषी हैं, जो पूर्वाग्रह से रहित होकर निष्पक्ष भाव से तथ्यों का अनुशीलन कर उनकी यथार्थ प्रस्तुति करते हैं। वे भाषाशास्त्र के भी अध्येता विद्वान् हैं तथा गहन अध्ययन उनकी जीवनशैली है। उन्होंने वर्षों पूर्व 'आगम और त्रिपिटक: एक अध्ययन' नामक पुस्तक में दिगम्बर जैन आगमों के बारे में जो लिखा था, उसे यहाँ अविकलरूप से प्रस्तुत किया जा रहा है। भले ही इसके कतिपय विचार-बिन्दुओं से हमारी सहमति नहीं है, फिर भी अधिसंख्य भाग की उपादेयता की दृष्टि से हमने इसे यहाँ ज्यों का त्यों निष्पक्षभाव से प्रस्तुत करना उचित समझा। इसी में आचार्य नगराज जी के वैदुष्य का सम्मान था। -सम्पादक
प्राकृत में मंत्र-तंत्रशास्त्र का जोणिपाहुड' नामक एक प्राचीन ग्रन्थ है। आचार्य धरसेन उसके रचयिता मानते जाते हैं। आचार्य धरसेन द्वारा मंत्र-विद्या-सम्बन्धी ग्रन्थ लिखे जाने की संभावना अस्थानीय नहीं मानी जा सकती। विद्याध्ययन के उद्देश्य से पुष्पदन्त और भूतबलि का आचार्य धरसेन के सान्निध्य में आने का जो प्रसंग आया है, यहाँ यह उल्लेख हुआ ही है कि आचार्य धरसेन ने सभागत मुनियों की अध्ययन-क्षमता जाँचने के लिए उन्हें दो मंत्र-विद्यायें साधने को दी। इससे यह सिद्ध होता है कि धरसेन मंत्र-तंत्र-विज्ञान के निष्णात थे तथा उनका उस ओर झुकाव भी था। यही कारण है, उन्होंने विद्यार्थी श्रमणों के परीक्षण का माध्यम मंत्र-विद्या को बनाया। _ 'जोणिपाहुड' आठ सौ श्लोक-प्रमाण प्राकृत-गाथाओं में है। उल्लेख है कि इसे कूष्माण्डिनी महादेवी से उपलब्ध कर आचार्य धरसेन ने अपने अन्तेवासी पुष्पदन्त और भूतबलि के लिए लिखा। जोणिपाहुड के सम्बन्ध में धवला में भी चर्चा है। वहाँ उसे मंत्र-तंत्र शक्तियों तथा पुद्गलानुभाग का विवेचक ग्रन्थ' बताया है।
वृहट्टिप्पणिका में उल्लेख:-एक श्वेताम्बर जैन मुनि ने विक्रमाशब्द 1556 में वृहट्टिप्पणिका के नाम से श्वेताम्बर एवं दिगम्बर–यथासम्भव सभी जैन विद्वानों के ग्रन्थों की सूची तैयार की। उसमें उन्होंने अपने समय तक के सभी लेखकों की सब विषयों की कृतियों को समाविष्ट करने का प्रयत्न किया है। जोणिपाहुड की भी वहाँ चर्चा है। वृहट्टिप्पणिकाकार ने उसे आचार्य धरसेन द्वारा रचित बताया है तथा उसका रचना-काल वीर-निर्वाण सं० 600 सूचित किया है। वृहट्टिप्पणिका की प्रामाणिकता में सन्देह की कम गुंजाइश है। फिर एक श्वेताम्बर मुनि द्वारा एक दिगम्बर मुनि के ग्रन्थ के सम्बन्ध में किया गया सूचन अपने आप में विशेष महत्त्व रखता है।
'नन्दिसंघ' की प्राकृत-पट्टावली, जिस पर पिछले पृष्ठों में विस्तार से चर्चा की गई
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प्राकृतविद्या+ अक्तूबर-दिसम्बर'98