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अहर-अहि
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अहर पुं [अधर] होठ। वि. नीचला। °पडिरूव वि [ प्रतिरूप] उचित, योग्य । अधम । दूसरा, अन्य । गइ स्त्री [गति] पवत्त वि [ प्रवृत्त] पूर्व की तरह ही प्रवृत्त, अधोगति, दुर्गति, नीच गति ।
अपरिवत्तित । न. आत्मा का परिणाम-विशेष । अहरिय वि [अधरित] तिरस्कृत ।
पवित्तिकरण न [प्रवृत्तिकरण] आत्मा का अहरी स्त्री [अधरी] पेषण-शिला, जिस पर परिणाम-विशेष । बायर वि [°बादर] मसाला वगैरह पीसा जाता है वह पत्थर, निस्सार । भूय वि [°भूत] तात्त्विक, वास्तसिलवट । °लोट्ठ पुं[लोष्ट] जिससे पीसा विक । राइणिय, रायणिय न [रात्निक] जाता है वह पत्थर, लोढा ।
यथाज्येष्ठ, बड़े के क्रम से। °रिय न [ऋजु] अहरीकय वि [अधरीकृत] तिरस्कृत, अव
सरलता के अनुसार । °रिह न [ह] यथोगणित।
चित । वि. योग्य । °रीय न [रीत] रीति अहरीभूय वि [अधरीभूत] तिरस्कृत । के अनुसार । स्वभाव के माफिक । °लंद पुं अहरुट पुंन [अधरोष्ठ] नीचे का होठ ।
['लन्द] काल का एक परिमाण, पानी से अहरेम देखो अहिरेम।
भीजा हुआ हाथ जितने समय में सूख जाय अहरेमिअ वि [पूरित] पूरा किया हुआ ।
उतना समय । °वगास न [°वकाश] अवकाश अहल वि [अफल] निष्फल, निरर्थक ।
के अनुसार । वच्च वि [°पत्य] पुत्र-स्थानीय। अहलंद न [यथालन्द] पाँच रात का समय ।
संथड वि [ संस्तृत] शयन के योग्य । अहलंदि देखो अहालंदि।।
संविभाग पुं. साधु को दान देना । सच्च अहव देखो अहवा।
न [°सत्य] वास्तविकता, सचाई । °सत्ति न अहवइ (अप) देखो अहवा।
[शक्ति] शक्ति के अनुसार । सुत्त न[सूत्र] अहवण ) अ [अथवा] वाक्यालंकार में
आगम के अनुसार । सुहन[°सुख] इच्छानुसार । अहवा । प्रयुक्त किया जाता अव्यय ।
°सुहुम वि [सूक्ष्म] सारभूत । देखो °अह । या, अथवा।
अहालंद वि [यथालन्द] यथानुज्ञात (काल), अहव्व देखो अभव्व ।
इच्छानुसार (समय)। अहव्वण [अथर्वन्] चौथा वेद-शास्त्र । अहालंदि पुं यथालन्दिन] 'यथालन्द' अनुष्ठान अहव्वा स्त्री [दे] असती, कुलटा स्त्री।
करने वाला मुनि । अहह अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय- अहासंखड वि [दे] निष्कम्प । आमन्त्रण । खेद । आश्चर्य । दुःख । आधिक्य, | अहासल वि [अहास्य] हास्य-रहित । प्रकर्ष ।
अहाह अ [अहाह] देखो अहह । अहा अ [यथा] जैसे, माफिक, अनुसार । | अहि देखो अभि। 'छंद वि [°च्छन्द] स्वच्छन्दी । न. मरजी के अहि अ [अधि] इन अर्थों का सूचक अव्ययअनुसार । जाय वि[जात] प्रावरण-रहित । | आधिक्य, विशेषता । अधिकार, सत्ता । ऐश्वर्य, न. जन्म के अनुसार । जैन साधुओं में दीक्षा काल के परिमाण के अनुसार किया जाता | अहि पुं. साँप । शेषनाग । च्छत्ता स्त्री वन्दन-नमस्कार । णुपुव्वी स्त्री [°नुपूर्वी] | [च्छत्रा]नगरी-विशेष । 'मड पुंन [°मृतक] यथाक्रम, अनुक्रम । तच्च न [ तत्त्व] तत्त्व साँप का मुर्दा । °वइ पुं[पति शेषनाग । के अनुसार । °तच्च न [तथ्य] सत्य-सत्य । विछिअ पुं [वृश्चिक] सर्प के मूत्र से उत्पन्न
ऊँचा, ऊपर।
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