________________
संभंतिय-संमन्न
संभंतिय वि [ सांभ्रान्तिक] संभ्रम - निर्मित । संभग्ग वि[संभग्न] चूर्णित | संभण सक [सं + भण् ] कहना । संभम अक [ सं + भ्रम् ] करना । अक भय-भीत होना ।
अतिशय
भ्रमण
संभम पुं [संभ्रम] आदर । भय, घबराहट,
क्षोभ । उत्सुकता । संभर सक [सं + करना । संक्षेप या संकोच करना ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
संभर सक [सं + स्मृ] स्मरण करना । संभराविअ वि [संस्मारित] याद कराया
संभाव सक[सं+ भावय् ] संभावना करना । प्रसन्न नजर से देखना |
संभाव अक [ लुभ् ] लोभ करना, आसक्ति
करना ।
संभास सक [ सं + भाष्] बातचीत करना । संभासि वि[संभाष] संभाषण । संभिडण न [संभेदन] आघात |
भृ] धारण करना | पोषण संभिण्ण वि [ संभिन्न ] परिपूर्ण | किंचिद्
न्यून | व्याप्त | बिलकुल भिन्न । खंडित । सोअ वि [श्रोतस्, श्रोतृ] शरीर के कोई भी अंग से शब्द को स्पष्ट रूप से सुनने की लब्धिवाला |
अक.
हुआ । संभल सक [सं + स्मृ] याद करना । संभल सक [ सं + भल् ] सुनना । सम्भलना | सावधान होना । संभली स्त्री [] दूती । कुट्टनी । स्त्री । संभव अक [सं + भू] उत्पन्न होना । संभावना होना, उत्कट संशय होना ।
संभव पुं. उत्पत्ति | संभावना | वर्तमान अवसर्पिणी काल में उत्पन्न तीसरे जिनदेव । एक जैन मुनि, दूसरे वासुदेव के पूर्व जन्म के गुरु । कला-विशेष |
संभव पुं [दे] प्रसूति-जन्य बुढ़ापा । संभव (अप) देखो संभम = संभ्रम | संभव्व देखो संभव = सं + भू ।
Jain Education International
८९७
संभार पुं. समूह, जत्था । शाक आदि में ऊपर डाला जाता मसाला । परिग्रह, द्रव्य-संचय | अवश्यतया कर्म का वेदन | संभारिअवि [संस्मृत] याद किया हुआ । संभारि वि[संस्मारित]याद कराया हुआ । संभाल सक [ सं + भालय् ] संभालना । खोज
करना ।
संभिन्नन [ दे] आघात ।
संभिय वि[संभृत] पुष्ट । संस्कार-युक्त | संभु पुं. [शम्भु ] शिव । रावण का एक सुभट । छन्द-विशेष । 'घरिणी स्त्री [गृहिणी ] गौरी ।
संभूअ वि [संभूत] उत्पन्न । पुं. एक जैन मुनि, प्रथम वासुदेव के पूर्वजन्म के गुरु । एक जैन महर्षि, स्थूलभद्र मुनि के गुरु । व्यक्ति-वाचक नाम | 'विजय पुं. एक जैन महर्षि । संभूइ स्त्री [संभूति] उत्पत्ति । श्रेष्ठ विभूति । संभाणय न [ संभाणक ] गुजरात का एक संभूस सक [ सं + भूष्] अलंकृत करना । संभोअ पुं. देखो संभोग ।
प्राचीन नगर ।
[सं+भुज् ] साथ भोजन करना । एक मण्डली में बैठकर भोजन करना । संभुल्ल वि [दे] दुर्जन ।
संभार सक [सं + भारय् ] मसाला से संस्कृत संभोइअ वि [ सांभोगिक ] समान सामाचारीकरना, वासित करना । क्रियानुष्ठान होने के कारण जिसके साथ खान-पान आदि का व्यवहार हो सके ऐसा साधु ।
संभोग पुं. समान सामाचारीवाले साधुओं का एकत्र भोजनादि - व्यवहार । सुन्दर भोग ।
इस्त्री [संमति] अनुमति । पुं. वायुकाय, पवन । वायुकाय का अधिष्ठाता देव । संमज्ज पुं. [संमार्ज] संमार्जन, साफ करना ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org