Book Title: Prakrit Hindi kosha
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 872
________________ सोह-सुअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ८५३ लिंगत्रोटन । °पुच्छिय वि ["पुच्छित]जिसका | सीहलिपासग पुंन [दे] ऊन का बना कंकण, पुरुष-चिह्न तोड़ दिया गया हो वह । जिसकी जो वेणी बांधने के काम आता है। कृकाटिका से लेकर पुत-प्रदेश-नितम्ब तक | सीही स्त्री [सिंही] स्त्री-सिंह। की चमड़ी उखाड़ कर सिंह के पुच्छ के तुल्य | सीह पुन [सी] मद्य । मद्य-विशेष । की जाय वह । °पुरा, पुरी स्त्री. विजय सु अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-प्रशंसा, क्षेत्र की एक राजधानी । “मुख पुं [°मुख] श्लाघा । अतिशय । समीचीनता । अतिशयअन्तर्वीप-विशेष । उसकी मनुष्य-जाति । योग्यता । पूजा । कष्ट । अनुमति । समृद्धि । रव पुं. सिंह-गर्जना । °रह पुं [प्रथ] अनायास । निम्न अर्थों का बोध करानेवाला गन्धार देश के पुंड्रवर्धन नगर का एक राजा। उपसर्ग-उत्तम, सुन्दर, अच्छा, भला, वाह पुं. विद्याधर-वंशीय राजा । °वाहण पुं अच्छी तरह, सुख से, शुभ, प्रशस्त, अति, [°वाहन] राक्षस-वंशीय राजा । वाहणा स्त्री बहुत, अत्यन्त, दृढ़, बिलकुल । [°वाहना] अम्बिका देवी । °विक्कमगइ पुं| विक्कमगइ पु | सुअ अक [स्वप्] सोना । [विक्रमगति] अमितगति तथा अमितवाहन | सुअ सक [श्रु] सुनना। इन्द्र का एक-एक लोकपाल । वीअ [°वीत] सुअ पुं [सुत] पुत्र । एक देव-विमान । °सेण पुं [°सेन] चौदहवें सुअ पुं [शुक| तोता। रावण का मन्त्री । जिनदेव का पिता, एक राजा । भ० अजितनाथ रावणाधीन एक सामंत राजा। एक परिका एक गणधर । राजा श्रेणिक का एक व्राजक । एक अनार्य देश । पुत्र। राजा महासेन का एक पुत्र । ऐरवत क्षेत्र में उत्पन्न एक जिनदेव । सुअ वि [श्रुत] सुना हुआ । न. ज्ञान-विशेष, शब्द-ज्ञान, शास्त्र-ज्ञान । शब्द, ध्वनि । °सोआ स्त्री. [स्रोता] एक नदी । क्षयोपशम, श्रुतज्ञान के आवरक कर्मों का °वलोइअ न [°ावलोकित] सिंहावलोकन, नाश-विशेष । आत्मा। आगम, शास्त्र, सिंह की तरह चलते हुए पीछे की तरफ सिद्धान्त । अध्ययन, स्वाध्याय । श्रवण । देखना । सण न [°ासन] सिंहाकार °केवलि पुं [ केवलिन्] चौदह पूर्व-ग्रन्थों का आसन, सिंहाङ्कित आसन, राजासन । देखो सिंह। जानकार मुनि । °क्खंध, खंध पुं[°स्कन्ध] सीह वि सैंह] सिंह-संबन्धी । स्त्री. °हा । अंगग्रन्थ का अव्ययन-समूहात्मक महान् अंश । °सीह पुं [ सिंह] श्रेष्ठ । बारह अंग-ग्रन्थों का समूह । बारहवाँ अंगसीहंडय पुं [दे] मछली। ग्रन्थ, दृष्टिवाद। णाण देखो °नाण । सीहणही स्त्री [दे] करौंदी का गाछ । °णाणि वि [°ज्ञानिन्] शास्त्र-ज्ञान-संपन्न । सीहपुर वि [सैंहपुर] सिहपुर-संबन्धी । ‘णिस्सिय न "निश्रित] मति-ज्ञान का एक सीहर देखो सीअर। भेद । °तिहि स्त्री [तिथि] शुक्ल पंचमी सीहरय पुं [दे] आसार, जोर की वृष्टि । तिथि । 'थेर पु [स्थविर] तृतीय और सीहल देखो सिंहल। चतुर्थ अंग-ग्रन्थ का जानकार मुनि । °देवया सीहलय [दे] वस्त्र आदि को धूप देने का | स्त्री [°देवता] । °देवी स्त्री. जैनशास्त्रों की यन्त्र । अधिष्ठात्री देवी । 'धम्म पुं [°धर्म] जैनसीहलिआ स्त्री[दे]शिखा, चोटी । नवमालिका, | अंग-ग्रंथ । शास्त्र-ज्ञान । आगमों का अध्ययन । नवारी का गाछ। °धर वि. शास्त्रज्ञ । 'नाण पुंन [ज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910