Book Title: Prakrit Hindi kosha
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad

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Page 900
________________ हम्मीर-हरि संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ८८१ हम्मीर पुं. एक मुसलमान राजा। | हरपच्चुअ वि [दे] स्मृत । नाम के उद्देश्य से हय वि [हत] जो मारा गया हो। °माकोड | दिया हुआ। पु[°मत्कोट] एक विद्याधर-नरेश । °ास हरय पु [ह्रद] बड़ा जलाशय, द्रह । वि [°श] निराश । हरहरा स्त्री [दे] युक्त प्रसंग, उचित प्रस्ताव । हथ पुं. अश्व । कंठ पु [°कण्ठ] अश्व के | हरहराइय न [हरहरायित] 'हर-हर' कंठ जितना बड़ा रत्न । कण्ण, °कन्न पु आवाज । [°कणं]एक अन्तर्वीप । वि. उसका निवासी।। हराविअ वि [हारित] हराया हुआ । एक अनायं देश । °मुह पु [°मुख] एक हरि पु [दे] शुक । अनार्य देश । हरि पुं. विद्युत्कुमार-देवों की दक्षिण दिशा का हय देखो हिअ = हत । इन्द्र । एक महाग्रह । इन्द्र । विष्णु, श्रीकृष्ण । हय देखो हर = द्रह । °पोंडरीय पु [पण्ड- रामचन्द्र । सिंह । वानर । अश्व । भरत के रीक] पक्षि-विशेष । साथ जैन दीक्षा लेनेवाला एक राजा । °हय देखो भय । ज्योतिषशास्त्र का एक योग । एक छन्द । हयमार पु[दे.हतमार] कणेर का गाछ । । सर्प । मण्डूक । चन्द्र । सूर्य । वायु । यम । हर सक [ह] हरण करना, छीनना । प्रसन्न महादेव । ब्रह्मा । किरण । वर्ष-विशेष । करना। मयूर । कोकिल । भर्तृहरि । पीला । पिंगल । हर सक [ग्रह,] ग्रहण करना, लेना। हरा रंग । वि. पीत या पिंगल । हरा वर्ण हर अक [ह्रद्] आवाज करना । वाला । पुन. महाहिमवंत पर्वत या विद्युत्प्रभ हर पुं. महादेव । छन्द-विशेष । °मेहल न | पर्वत या निषध पर्वत का एक शिखर । हरि[मेखल] कला-विशेष । 'वल्लहा स्त्री वर्ष-क्षेत्र का मनुष्य-विशेष । °अंद [°वल्लभा] गौरी । ["श्चन्द्र] एक राजा । अंदण न [°चन्दन] हर पुह्रद] द्रह, बड़ा जलाशय । चन्दन की एक जाति । पुं. एक कल्प-वृक्ष । हर देखो घर = गृह । देखो °चंदण। अण्ण देखो अंद । आल हर देखो धर =धृ। पुंन [°ताल] पीत वर्णवाली उपधातु-विशेष, हर देखो भर = भर । हरताल । पुं. पक्षि-विशेष । देखो ताल । हर वि. हरण-कर्ता। °एस पुं [केश चंडाल । एक चण्डाल मुनि । हर विधर] धारण करनेवाला। °एसबल पु [केशबल] चण्डालकुलोत्पन्न हरअई । स्त्री [हरीतकी] हरे का गाछ । । एक मुनि । °एसिज्ज वि [°केशीय] हरड़ई ) फल-विशेष, हरें । चण्डाल-संबन्धी। हरिकेशबल मुनि का। हरण न. छीनना । वि. छीननेवाला । कखि न [काङ्क्षिन्] नगर-विशेष । हरण न [ग्रहण] स्वीकार । कंत पु[कान्त] विद्युत्कुमार देवों की हरण न [स्मरण] स्मृति दक्षिण दिशा का इन्द्र । कंतपवाय, कंतहरण देखो भरण। प्पवाय पु [‘कान्ताप्रपात] एक द्रह । हरतणु पु [हरतनु] खेत में बोये हुए गेहूँ, कंता स्त्री ! कान्ता ] एक महानदी । जौ आदि की बालों पर होता जल-बिन्दु । महाहिमवान् पर्वत का एक शिखर । केलि हरद देखो हरय । पु. भारतीय देश-विशेष । 'केसबल देखो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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