________________
८२२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
समोहय-सय कर्म-निर्जरा करना।
[°सप्तति] सतहत्तर। समोहय वि [समुद्धत] जिसने समुद्घात किया
सय अ [सदा] हमेशा । °काल न. हमेशा । हो वह । समोहय वि [समवहत] आघात-प्राप्त ।
सय पुंन [शत] संख्या-विशेष, १०० । सौ की
संख्यावाला। बहुत । अध्ययन, ग्रन्थसम्म अक [श्रम्] खेद पाना । थकना ।
प्रकरण, ग्रन्थांश-विशेष । कंत न [°कान्त] सम्म अक [शम्] शान्त या ठण्ढा होना।
रत्न-विशेष । वि. शतकान्त रत्नों से बना सम्म न [शर्मन्] सुख ।
हुआ। 'कित्ति पुं [ कीर्ति] एक भावी जिनसम्म वि [सम्यश्च] सत्य । अविपरीत । प्रशंस- |
देव । °गुणिअ वि[°गुणित] सौगुना । ग्धी नीय । शोभन । संगत, उचित । न. सम्यग्
स्त्री [°नी] यन्त्र-विशेष, पाषाण-शिलादर्शन । °त्त न [°त्व] समकित, सत्य तत्त्व
विशेष । चक्की, जाँता। °ज्जल न [°ज्वल] पर श्रद्धा। सत्य, परमार्थ। °दिट्टय,
वरुण का विमान । देखो सयंजल । रत्न की °दिट्ठीय वि [°दृष्टिक] सत्य तत्त्व पर श्रद्धा
एक जाति । वि. शतज्वल-रत्नों का बना रखनेवाला । °इंसण न [°दर्शन] सत्य तत्त्व
हुआ। पुन. विद्युत्प्रभ नामक वक्षस्कार पर्वत पर श्रद्धा । 'दिट्ठि वि [ दृष्टि] देखो
का एक शिखर । 'दुवार न [ द्वार] एक °दिट्ठिय । °न्नाण न ['ज्ञान] सत्य ज्ञान ।
नगर । °धणु पुं [°धनुष्] ऐरवत वर्ष में °सुय न [°श्रुत] सत्य शास्त्र । सत्य शास्त्र
होनेवाला एक कुलकर पुरुष । भारतवर्ष में ज्ञान । °मिच्छदिट्टि वि [°मिथ्यादृष्टि]
होनेवाला दसवाँ कुलकर पुरुष । °पई स्त्री मिश्र दृष्टिवाला, सत्य और असत्य तत्त्व पर
[°पदी] क्षुद्र जन्तु की एक जाति । पत्त श्रद्धा रखनेवाला । °वाय पुं [°वाद]अविरुद्ध देखो °वत्त । °पाग न [°पाक] एक सौ वाद । दृष्टिवाद, बारहवाँ जैन अंग-ग्रन्थ ।
औषधिओं से बनता उत्तम तेल । पुप्फा सामायिक ।
स्त्री ["पुष्पा] सोया का गाछ । 'पोर न सम्मइ देखो सम्मुइ = सन्मति, स्वमति । [°पर्वन्] इक्षु । 'बाहु पुं. एक राजर्षि । सम्मइग देखो सामाइय।
°भिसया, 'भिसा स्त्री [भिषज] नक्षत्रसम्म अ [सम्यग्] अच्छी तरह ।
विशेष । 'यम वि [°तम सौवां । °रह पं सम्मुइ स्त्री [सन्मति] संगत मति । विशद [रथ] एक कुलकर पुरुष । °रिसह पुं बुद्धि । पुं. एक कुलकर पुरुष ।
[वृषभ] अहोरात्र का तेईसवाँ मुहूर्त । वई सम्मुइ स्त्री [स्वमति] स्वकीय बुद्धि । देखो °पई। "वत्त न [°पत्र] पद्म, कमल । सम्हरिअ वि [संस्मत] अच्छी तरह याद सौ पत्तीवाला कमल । पुं. पक्षि-विशेष, जिसका किया हुआ।
दक्षिण दिशा में बोलना अपशुकन माना जाता सय अफ [शी, स्वप्] सोना ।
है । "सहस्स पुन [°सहस्र] लाख । सय अक [स्वद्] पचना, माफिक आना। सहस्सइम वि [°सहस्रतम] लाखवां । सय अक [स्र] झरना, टपकना ।
"साहस्स वि [°साहस्र] लाख-संख्या का सय सक [श्रि] सेवा करना ।
परिमाणवाला । लाख रुपया मूल्यवाला । सय देखो स= सत् ।
°साहस्सि वि [°सहस्रिन्] लखपति । सय देखो स = स्व ।
°साहस्सिय वि[°साहस्रिक]देखो साहस्स। सय देखो सग = सप्तन् । हत्तरि स्त्री साहस्सी स्त्री[°सहस्री] लाख । सिक्कर वि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org