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४५८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
दिट्ठि-दिप्प हरण दिया गया हो वह। न. अभिनय- देखो कर। रयणिकरि स्त्री [ रजनिविशेष ।
करी] विद्या-विशेष । °वइ पुं [पति] सूर्य । दिट्ठि स्त्री [दष्टि] आँख, नजर । दर्शन, मत । दिणिंद पुं[दिनेन्द्र] रवि ।। दर्शन, अवलोकन, निरीक्षण। बुद्धि, मति। दिणेस पुं [दिनेश] सूरज । बारह की संख्या । विवेक, विचार। कीव पुं [क्लीब] दिण्ण वि [दत्त]दिया हुआ, वितीर्ण । निवेशित, नपुंसक-विशेष । जुद्ध न [युद्ध] युद्ध-विशेष, स्थापित । पुं. भगवान् पार्श्वनाथ के प्रथम आँख की स्थिरता की लड़ाई । °बंध पुं गणधर । भगवान् श्रेयांसनाथ का पूर्वजन्मीय [°बन्ध] नजर बाँधना । °म, °मंत वि: नाम । भगवान् चन्द्रप्रभ का प्रथम गणधर । [°मत्] प्रशस्त दृष्टिवाला, सम्यग्-दर्शी। भगवान् नमिनाथ को प्रथम भिक्षा देनेवाला °राय पुं[राग] दर्शन-राग, अपने धर्म पर एक गृहस्थ । देखो दिन्न । अनुराग। चाक्षुष-स्नेह । 'ल्ल वि [°मत्] दिण्ण देखो दइन्न । प्रशस्त दृष्टिवाला । वाय पुं[पात] नजर दिण्णेल्लय वि [दत्त] दिया हुआ। डालना । बारहवाँ जैन अंग-ग्रन्थ । °वाय दित्त वि [दीप्त] ज्वलित, प्रकाशित । कान्तिपुं[°वाद] बारहवाँ जन अंग-ग्रन्थ । °विप- युक्त । तीक्ष्णभूत, निशित । उज्ज्वल, चमरिआसिआ स्त्री [विपर्यासिका, सिता] कीला । पुष्ट, परिवृद्ध । प्रसिद्ध । मारनेवाला । मति-भ्रम । 'विस पुं [विष] जिसकी दृष्टि चित्त वि. हर्ष के अतिरेक से जिसको चित्तमें विष हो ऐसा सर्प । °सूल न [°शूल] भ्रम हो गया हो वह । नेत्र का रोग-विशेष ।
दित्त वि [दप्त] गर्वित । मारनेवाला। हानिदिट्ठि स्त्री [दृष्टि] तारा, मित्रा आदि योग- कारक 1 °इत्त वि [°चित्त] जिसके मन में दृष्टि ।
गर्व हो । हर्ष के अतिरेक से जो पागल हो दिट्ठिआ अ [दिष्ट्या] इन अर्थों का सूचक - वह।
अव्यय-मंगल । हर्ष । भाग्य से। दित्ति स्त्री [दीप्ति] कान्ति, तेज, प्रकाश । म दिद्विआ स्त्री [दृष्टिका, °जा क्रिया-विशेष - वि [°मत्] कान्ति-युक्त । दर्शन के लिए गमन । दर्शन से कर्म का दित्ति स्त्री [दीप्ति] उद्दीपन । °ल्ल वि [°मत्] उदय होना।
प्रकाशवाला। दिट्ठीआ स्त्री [दृष्टीया] ऊपर देखो। दिदिवखा । स्त्री [दिदृक्षा] देखने को दिट्ठीवाओबएसिआ स्त्री [दृष्टिवादो. दिदिच्छा , इच्छा। पदेशिकी] संज्ञा-विशेष ।
दिद्ध वि [दिग्ध] लिप्त । दिटेल्लय वि [दृष्ट] देखा हुआ, निरीक्षित । दिन्न देखो दिण्ण । श्री गौतम स्वामी के पास दिड्ढ । देखो दढ ।
पाँच सौ तापसों के साथ जैन-दीक्षा लेनेवाला दिढ ।
एक तापस । एक जैन आचार्य । दिण पुंन [दिन] दिवस । "इंद पुं ["इन्द्र] | दिन्नय पुं [दत्तक] गोद लिया हुआ पुत्र । सर्य । °कय पुं [कृत् ] रवि । कर दिप्प अक [दीप्] चमकना। तेज होना । पुं. सूरज । °नाह पुं [ "नाथ ] सर्य । जलना। °बंधु पुं [°बन्धु] रवि । °मणि पुं. सूर्य । दिप्प अक [तृप्] तृप्त होना, सन्तुष्ट होना । °मुह न [ °मुख ] प्रातःकाल । °यर दिप्प वि [रीप्र] चमकनेवाला, तेजस्वी।
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