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७८८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
संजूह-संडेल्ल संजूह पुं[संयूथ] उचित समूह । सामान्य। संझाअ सक [सं+ध्यै] ख्याल करना, संक्षेप, समास । ग्रन्थरचना । दृष्टिवाद के चिन्तन करना, ध्यान करना। अठासी सूत्रों में एक सूत्र ।
संझाअ अक [ संध्याय ] संध्या की तरह संजोअ सक [सं + योजय] संयुक्त करना, आचरण करना। सम्बर करना, मिश्रण करना ।
संटंक पुं [संटङ्क] अन्वय, सम्बन्ध । संजोअ सक [सं+दृश] निरीक्षण करना। संठ वि [शठधूर्त, मायावी । संजोअ पुं [संयोग] सम्बन्ध, मेल-मिलाप, | । संठ (चूपै) देखो संढ। मिश्रण।
संठप्प ) सक [ सं + स्थापय् ] रखना, संजोअण न [संयोजन] जोड़ना। वि. | संठव ) स्थापना करना । आश्वासन देना। जोड़नेवाला। कषाय-विशेष, अनन्तानुबन्धि उद्वेग-रहित करना। नामक क्रोधादि-चतुष्क । °धिकरणिया स्त्री | संठा अक [सं + स्था] रहना, अवस्थान [°ाधिकरणिकी] खड्ग आदि को उसकी | करना । स्थिति करना । मूठ आदि से जोड़ने की क्रिया।
संठाण न [संस्थान] आकृति । जिसके उदय संजोअणा स्त्री [संयोजना] मिलान । भिक्षा से शरीर का शुभ या अशुभ आकार होता है का एक दोष, स्वाद के लिए भिक्षा-प्राप्त वह कर्म । संनिवेश, रचना । चीजों को आपस में मिलाना ।
संठाव देखो संठव। संजोग देखो संजोअ = संयोग ।
संठिअ वि [संस्थित] रहा हुआ, सम्यक् संजोगेत्तु वि [संयोजयितु] जोड़नेवाला।
स्थित । न. आकार। संजोत्त (अप) देखो संजोअ = सं+ योजय ।। | संठिइ स्त्री [संस्थिति] व्यवस्था । अवस्था । संझ° नीचे देखो। °च्छेयावरण वि स्थिति । [°च्छेदावरण] सन्ध्याविभाग का आवारक। संड पुं [शण्ड, षण्ड] वृषभ । पुन. पद्म आदि पुं. चन्द्र । °प्पभ पुन [प्रभ] शक्र के सोम
का समूह, वृक्ष आदि को निबिड़ता। पुं. लोकपाल का विमान ।
नपुंसक । संझा स्त्री [सन्ध्या ] साँझ । दिन और रात्रि संडास पुन, [संदंश] यन्त्र-विशेष, सँड़सी,
का संधि-काल । नदी-विशेष । ब्रह्मा की एक चिमटा । जाँघ और ऊरु के बीच का भाग । पत्नी। मध्याह्नकाल । °गय न [गत] तोंड पुं [°तुण्ड] सँड़सी की तरह मुखवाला जिस नक्षत्र में सूर्य अनन्तर काल में रहने- | | पाँखी। वाला हो वह नक्षत्र । सूर्य जिसमें हो उससे संडिज्झ । न [दे] बालकों का क्रीड़ा-स्थान । चौदहवां या पनरहवां नक्षत्र । जिसके उदय | संडिब्भ । होने पर सूर्य उदित हो वह नक्षत्र । सूर्य के | संडिल्ल पुं [शाण्डिल्य] देश-विशेष । एक पीछे के या आगे के नक्षत्र के बाद का नक्षत्र । जैन मुनि । एक ब्राह्मण का नाम । देखो °छेयावरण देखो संझ-च्छेयावरण । संडेल्ल। °णुराग पुं [°नुराग] सांझ के बादल का संडी स्त्री [दे] वल्गा, लगाम । रंग । °वली स्त्री. एक विद्याधर-कन्या। संडेय पुं [षाण्डेय] षंढ-पुत्र, षंढ, नपुंसक । 'विगम पुं. रात्रि । विराग पुं. साँझ का | संडेल्ल न [शाण्डिल्य] गोत्र-विशेष । पुंस्त्री. समय ।
उस गोत्र में उत्पन्न । देखो संडिल्ल।
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