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५९२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पुरिल्ला-पुरे पुरिल्ला अ [पुरा] निरन्तर क्रिया-करण । । एक अन्तकृद् महर्षि, जो वासुदेव के अन्यतम प्राचीन । पुराने समय में । भावी । निकट, पुत्र थे । भगवान् महावीर के पास दीक्षा सन्निहित । इतिहास, पुरावृत्त ।
लेकर अनुत्तर विमान में उत्पन्न होनेवाले एक पुरिल्ला अ [पुरस्] आगे, अग्रतः ।
मुनि, जो राजा श्रोणिक के पुत्र थे ।
'दाणिअ, दाणीय पुं [°ादानीय] उपापरिस पूनापुरुष]मर्द । जीव । ईश्वर । शकु, देय पुरुष, आप्त पुरुष । छाया नापने का काष्ठादि-निर्मित कीलक । |
| पुरिसकारिआ स्त्री [पुरुषकारिका, ता] पुरुष-शरारा कार, कार, गार पु पुरुषार्थ, प्रयत्न । [°कार] पुरुषपन, पुरुष-चेष्टा, पुरुष-प्रयत्न । पुरिसाअ अक [पुरुषाय] विपरीत मैथुन पुरुषत्व का अभिमान । °जाय पुं [°जात]
करना। पुरुष । पुरुष-जातीय । °जुग न [ युग] क्रम
पुरिसुत्तम । पुं [पुरुषोत्तम] उत्तम पुरुष । स्थित पुरुष । °जेट पं [ज्येष्ठ] प्रशस्त
पुरिसोत्तम । जिन-देव । चतुर्थ वासुदेव । पुरुष । °त्त, °त्तण न ["त्व] पौरुष । 'त्थ
भगवान् अनन्तनाथ का प्रथम श्रावक । पुं [°ार्थ] धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूप
श्रीकृष्ण । प्रयोजन । °पुंडरीअ पुं [°पुण्डरीक] इस अवसर्पिणी काल में उत्पन्न षष्ठ वासुदेव ।।
| पुरी स्त्री. नगरी । 'नाह पं [°नाथ] नगरी प्पणीय वि [प्रणीत] ईश्वर-निर्मित ।
___ का अधिपति, राजा। जोव-रचित । °मेह पुं |°मेध] जिसमें पुरुष | पुरीस पुंन [पुरोष] विष्ठा । का होम किया जाय वह यज्ञ । °यार देखो | पुरु पुं. एक राजा । वि. प्रचुर । कार । लक्खण न [ लक्षण] पुरुष के | पुरुपुरिआ स्त्री [दे] उत्कण्ठा । शुभाशुभ चिह्न पहचानने की एक सामुद्रिक | पुरुम देखो पुरिम। कला । °लिंग न [°लिङ्ग] पुरुष-चिह्न । | पुरुव । देखो पुव्व = पूर्व । लिंगसिद्ध पुं [°लिङ्गसिद्ध] पुरुष-शरीर से | पुरुव्व । जो मुक्त हुआ हो । वयण न [वचन] पुरुस (शौ) देखो पुरिस । पुंलिग शब्द । °वर पुं.श्रेष्ठ पुरुष । °वरगंध- पुरुसोत्तम (शौ) देखो पुरिसोत्तम । हत्थि पुं [°वरगन्धहस्तिन्] पुरुषों में श्रेष्ठ | पुरुहूअ पुं [दे] घूक, उल्लू । गन्धहस्ती के तुल्य । जिन-देव । वरपुंडरीय | पुरुहूअ पुं [पुरुहूत] इन्द्र । पुं [°वरपुण्डरीक] पुरुषों में श्रेष्ठ पद्म के | पुरुरव पुं [पुरूरवस्] चन्द्र-वंशीय राजा। समान । जिन-देव । °विजय पुं [°विचय, | पुरे देखो परं। कड वि [कृत] आगे या विजय] ज्ञान-विशेष । °वेय पुं [ वेद] | पूर्व में किया हुआ। "कम्म न [कर्मन्] स्त्री-सम्भोग की इच्छा होती है वह कर्म ।। पहले करने का काम या क्रिया। क्कार पुं स्त्री-भोग की अभिलाषा । सिंह, °सीह पुं [°कार] सम्मान । °क्खड देखो कड। [सिंह] पुरुषों में सिंह के समान, श्रेष्ठ °वाय पुं [°वात] सस्नेह वायु । पूर्व दिशा पुरुष । पुं. जिनदेव । भगवान् धर्मनाथ का का पवन : संखडि स्त्री [दे. संस्कृति] प्रथम श्रावक । इस अवसर्पिणी काल में उत्पन्न | पहले ही किया जाता भोजनोत्सव । °संथुय पाँचवाँ वासुदेव । 'सेण पुं [°सेन] भगवान् | वि [°संस्तुत] पूर्व-परिचित । स्व-पक्ष का नेमिनाथ के पास दीक्षा लेकर मोक्ष पानेवाला । सगा।
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