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वसि-वहइअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७१७ वसि देखो वसइ।
वसुंधर पुं [वसुन्धर] एक जैन मुनि । वसिअ वि [उषित] रहा हुआ, जिसने वास | वसुंधरा स्त्री [वसुन्धरा] पृथिवी । ईशानेन्द्र किया हो वह । बासी।
की अग्र-महिषी । चमरेन्द्र के सोम आदि वसिट्ठ पुं [वशिष्ठ] भगवान् पार्श्वनाथ का एक | चारों लोकपालों की पटरानी । एक दिक्कूमारी गणधर । एक ऋषि ।
देवी। नववें चक्रवर्ती राजा की पटरानी। वसिटू पुं [वशिष्ट] द्वीपकुमार देवों का उत्तर रावण की पत्नी। एक श्रेष्ठि-पत्नी। वइ दिशा का इन्द्र ।
पुं [°पति] राजा। वसित्त न [वशित्व] योग की एक सिद्धि । वसुधा (शौ) देखो वसुहा। वसिम न [दे] वसतिवाला स्थान । | वसुपुज्ज देखो वासुपुज्ज । वसीकय वि [वशीकृत] वश में किया हुआ। वसुमइ° , स्त्री [वसुमती] पृथिवी । भीम वसीकरण न [वशीकरण] वश में करने के वसुमई ) नामक राक्षसेन्द्र की अग्र-महिषी, लिए किया जाता मन्त्र आदि का प्रयोग। एक इन्द्राणी । °णाह, °नाह पुं [°नाथ] वसीयरणी स्त्री वशीकरणी] वशीकरण
राजा । भवण न [°भवन भूमि-गृह । विद्या ।
°वइ पुं [°पति राजा। वसीहअ वि [वशीभूत] जो अधीन हुआ हो। | वसुल पुंस्त्री [दे. वृषल] निष्ठुरता-बोधक वसु न. धन । संयम, चारित्र । पुं. जिनदेव । आमन्त्रण शब्द । गौरव और कुत्सा-बोधक वीतराग । संयत-साधु । आठ की संख्या। आमन्त्रण शब्द । स्त्री. °ली। धनिष्ठा नक्षत्र का अधिपति देव । एक राजा । | वसुहा स्त्री [ वसुधा ] पृथिवी । हिव पुं एक चतुर्दश-पूर्वी जैन महर्षि । एक छन्द ।। [धिप] राजा। स्त्री. ईशानेन्द्र की पटरानी। न. लोकान्तिक | वसू स्त्री. ईशानेन्द्र की एक पटरानी । देवों का विमान । सुवर्ण । 'गुत्ता स्त्री | वसेरी स्त्री [दे] खोज । ['गुप्ता] ईशानेन्द्र की पटरानी । °देव पुं. | वस्स (शौ) देखो वरिस । श्रीकृष्ण और बलदेव का पिता। नंदय | वस्स वि [वश्य] अधीन, आयत्त । पुं [°नन्दक] एक उत्तम तलवार । पुज्ज | वस्सोक न [दे] एक प्रकार की क्रीड़ा ।
[पूज्य] एक राजा, वासुपूज्य का पिता। वह सक [ वह ] पहुँचना । धारण करना। °बल पुं. इक्ष्वाकु-वंश में उत्पन्न राजा । ले जाना । अक. चलना । °भाग पुं. एक नाम । °भागा स्त्री. ईशा- | वह सक [वध् , हन] मार डालना। नेन्द्र की पटरानी । 'भूइ पुं [भूति] एक | वह सक [व्यथ् ] पीड़ा करना । प्रहार करना। जैन मुनि । °म, "मंत वि [°मत्] श्रीमंत । वह (अप) देखो वरिस = वृष । संयमी, साधु । °मित्ता स्त्री [°मित्रा] | वह पुंस्त्री [वध] हत्या । स्त्री. °हा । °कारी ईशानेन्द्र की अन महिषी । °सद्द [शब्द] | स्त्री [°करी] विद्या-विशेष । छन्द-विशेष । °हारा स्त्री [°धारा] आकाश | वह पं [दे] कन्धे पर का व्रण । व्रण । से देव-कृत सुवर्णवृष्टि । एक श्रेष्ठिनी । वह पुं. वृष-स्कन्ध । पानी का प्रवाह । वसुआ ) अक [ उद + वा ] शुष्क होना। वह पुं [व्यथ] लकुट आदि का प्रहार । वसुआअ ) सूखना।
| वह देखो पह = पथिन् । वसुआअ वि [उद्वात] शुष्क ।
वहइअ बि [दे] पर्याप्त ।
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