________________
५०२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पक्खोड-पगार पक्खोड सक [शद्] कॅपाना। झाड़कर | पकप्प = प्रकल्प । गिराना।
पगप्पिअ वि [प्रकल्पित] प्ररूपित, कथित । पक्खोड सक [प्र+छादय] ढकना, आच्छादन | पगप्पित्तु वि [प्रकल्पयितृ, प्रकर्तयितु] करना।
काटनेवाला। पक्खोड सक [प्र+स्फोटय] खूब झाड़ना। पगब्भ अक [प्र + गल्भ्] धृष्टता करना । बारम्बार झाड़ना । कँपाना।
समर्थ होना। पक्खोड पुं [प्रस्फोट] प्रमार्जन, प्रतिलेखन की पगब्भ वि [प्रगल्भ] धृष्ट, ढीठ । समर्थ । क्रिया-विशेष ।
| पगब्भ न [प्रागल्भ्य] धृष्टता, ढीठाई। पक्खोभ सक [प्र + क्षोभय] क्षुब्ध करना,
| पगब्भणा स्त्री [प्रगल्भना] प्रगल्भता, धृष्टता। क्षोभ उत्पन्न कर हिला देना।
पगब्भा स्त्री [प्रगल्भा] भगवान् पार्श्वनाथ की पक्खोलण न [शदन] स्खलित होनेवाला । वि.
एक शिष्या।
पगम्भिअ वि [प्रगल्भित] धृष्टता-युक्त । रुष्ट होनेवाला। पखल वि [प्रखर] प्रचण्ड, तीव्र, तेज ।
पगभित्तु वि [प्रगल्भित] काटनेवाला । पखोड देखो पक्खोड = प्रस्फोट ।
पगय न [प्रकृत] प्रस्ताव, प्रसंग । पुं. गाँव का पगइ स्त्री [प्रकृति स्वभाव । प्रस्तुत अर्थ ।
अधिकारी। साधारण जन-समूह । कुम्भकार आदि अठारह
पगय वि [प्रकृत] प्रस्तुत । मनुष्य-जातियाँ। कर्मों का भेद । सत्व, रज और
पगय वि [प्रगत] प्राप्त । जिसने गमन करने
का प्रारम्भ किया हो वह, संगत । न. प्रस्ताव, तम को साम्यावस्था । बलदेव के एक पुत्र का
अधिकार । नाम । °बंध पुं [°बन्ध] कर्म-पुद्गलों में भिन्न-शक्तियों का पैदा होना । देखो पगडि ।
पगय न [दे] पाँव । पगंठ पुं [प्रकण्ठ] पाठ-विशेष । अन्त का
पगर पुं [प्रकर] समूह । अवनत प्रदेश ।
पगरण न [प्रकरण] अधिकार, प्रस्ताव । पगंथ सक [प्र+कथय] निन्दा करना ।
ग्रन्थ-खण्ड-विशेष । किसी एक विषय को लेकर पगड वि [प्रकट] व्यक्त, खुला, स्पष्ट, प्रत्यक्ष । बनाया हुआ छोटा ग्रन्थ । पगड वि [प्रकृत] विनिर्मित ।
पगरिअ वि [प्रगलित] कुष्ठ-विशेष की बीमारीपगड पुं [प्रगत] बड़ा गड्ढा या गड़हा ।
वाला। पगडण न [प्रकटन] प्रकाश करना, खुला | पगारस पुं [प्रकर्ष] उत्कर्ष, श्रेष्ठता । आधिक्य, करना।
अतिशय । पगडि स्त्री [प्रकृति] भेद, प्रकार । देखो | पगल अक [प्र+गल्] झरना, टपकना । पगइ।
पगहिय वि [प्रगृहीत] ग्रहण किया हुआ। पगडीकय वि [प्रकटीकृत] व्यक्त किया हुआ, पगाइय वि [प्रगीत] जिसने गाने का प्रारम्भ स्पष्ट किया हुआ।
किया हो वह । पगड्ढ सक [प्र + कृष्] खींचना । पगाढ वि [प्रगाढ] अत्यन्त गाढ़ । पगप्प देखो पकप्प प्र+कल्पम् ।
पगाम देखो पकाम। पगप्प देखो पकप्प-प्र+क्लुप् । पगामसो अ [प्रकामम] अतिशय । पगप्प वि. [प्रकल्प] उत्पन्न होनेवाला। देखो | पगार पुं [प्रकार] भेद । रीति । वगैरह ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org