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पज्जण्ण-पज्जाय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५०९ पज्जण्ण पुं [पर्जन्य] बादल।
पज्जलण वि [प्रज्ज्वलन] जलानेवाला । पज्जत वि [पर्याप्त] 'पर्याप्ति' वाला । समर्थ । | पज्जलिअ पुं [प्रज्ज्वलित] तीसरी नरक भूमि लब्ध । यथेष्ट, उतना जितने से काम चल | का एक नरक-स्थान । जाय। न. तृप्ति । सामर्थ्य । निवारण । पज्जलिय वि [प्रज्ज्वलित] जलाया हुआ । योग्यता । जिसके उदय से जीव अपनी अपनी | देवोप्यमान । ‘पर्याप्तियों' से युक्त होता है वह कर्म । °णाम | पज्जलीढ वि [प्रर्यवलोढ] भक्षित । न ['नामन्] अनन्तर उक्त कर्म-विशेष । पज्जव पुं [पर्यव] परिच्छेद, निर्णय । देखो पज्जतर वि [दे] दलित, विदारित।
पज्जाय । कलिण न [कृत्स्न] चतुर्दश पज्जत्त न [पर्याप्त] लगातार चौतीस दिन का पूर्व-ग्रन्थ तक का ज्ञान, श्रुतज्ञान-विशेष । जाय उपवास ।
वि [°जात] भिन्न अवस्था को प्राप्त । ज्ञान पज्जत्तर [दे] देखो पज्जतर ।
आदि गुणोंवाला । न. विषयोपभोग का अनुपज्जत्ति स्त्री [पर्याप्ति] सामर्थ्य । जीव की | ष्ठान । °जाय वि [°यात] ज्ञान प्राप्त । वह शक्ति जिनके द्वारा पुद्गलों को ग्रहण | ट्ठिय पुं [स्थित, आर्थिक, °ास्तिक] नयकरने तथा उनको आहार, शरीर आदि के | विशेष, द्रव्य को छोड़कर केवल पर्यायों को रूप में बदल देने का काम होता है, जीव की ही मुख्य माननेवाला पक्ष । °णय, पुं[°नय] पुद्गलों को ग्रहण करने तथा परिणमाने या | वही अनन्तर उक्त अर्थ । पचाने की शक्ति । पूर्ण प्राप्ति । तृप्ति । पूर्ति, | पज्जवत्थाव सक [पर्यव + स्थापय] अच्छी पूर्णता । अन्त, अवसान ।
अवस्था में रखना । विरोध करना। प्रतिपक्ष पज्जन्न पं. [पर्जन्य] मेघ-विशेष जिसके एक |
के साथ वादक बार बरसने से भूमि में एक हजार वर्ष तक | पज्जवसाण न [पर्यवसान] अन्त, अवसान । चिकनाहट रहती है।
पज्जवसिअ न [पर्यवसित] अवसान, अन्त । पज्जय पुं [दे. प्रार्यक] प्रपितामह ।
पज्जा देखो पण्णा। पज्जय [पर्यय] उत्पत्ति के प्रथम समय में
पज्जा स्त्री [पद्या] रास्ता । सक्षम-निगोद के लब्धिअपर्याप्त जीव को जो पज्जा स्त्री [द सीढ़ी । कुश्रुत का अंश होता है उससे दूसरे समय में
| पज्जा स्त्री [पर्याय] अधिकार, प्रबन्ध-भेद । ज्ञान का जितना अंश बढ़ता है वह श्रुतज्ञान ।
पज्जा देखो पया। देखो पज्जाय । समास पु. श्रुतज्ञान का एक
पज्जाअर पुं [प्रजागर] जागरण, निद्रा का भंद, अनन्तर उक्त पर्यय-श्रुत का समुदाय । ।
अभाव । पज्जयण न [पर्ययन] निश्चय, अवधारण । | पज्जाउल वि [पर्याकुल] व्याकुल । पज्जर सक [कथय] कहना, बोलना । पज्जाभाय सक [पर्या + भाजय] भाग पज्जरय पुं प्रजरक] रत्नप्रभा नामक नरक
करना। पृथिवी का एक नरकावास। मज्झ पुं पज्जाय पुं [पयाय] समान अर्थ का वाचक [°मध्य] एक नरकावास । विट्ट पुं [वर्त] शब्द । पूर्ण प्राप्ति । पदार्थ धर्म, वस्तु-गुण । नरकावास-विशेष । सिट्ठ पुं [वशिष्ट] पदार्थ का सक्षम या स्थूल रूपान्तर । क्रम । नरक-स्थान-विशेष ।
प्रकार, भेद । अवसर । निर्माण । तात्पर्य, पज्जल देखो पजल।
भावार्थ, रहस्य । देखो पज्जय तथा
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