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आसंघ-आसस संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष
१२५ अध्यवसाय करना । स्थिर करना, निश्चय | उसके कक्षादि अंगों में जुड़कर सोनेवाला करना।
नपुंसक । आसंघ पुं [दे] श्रद्धा, विश्वास । अध्यवसाय, आसत्ति स्त्री[आसक्ति] अभिष्वङ्ग, तल्लीनता। परिणाम । आशंसा, इच्छा ।
आसत्थ पुं [अश्वत्थ] पीपल का पेड़ । आसंघा स्त्री [दे] इच्छा । आसक्ति । आसत्थ वि [आश्वस्त] आश्वासन-प्राप्त, आसंघिअ वि [दे] अध्यवसित । अवधारित । । स्वस्थ । विश्रान्त । सम्भावित ।
आसम [आश्रम] तापस आदि का निवास आसंजिअ वि [आसक्त] पीछे लगा हुआ। स्थान, तीर्थ स्थान । ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य, बानआसंदय न [आसन्दक] आसन-विशेष । पुन. प्रस्थ और भैक्ष्य (संन्यास) ये चार प्रकार की मञ्च ।
अवस्था। आसंदाण न [आसन्दान] अवष्टम्भन, अव- | आसमपय न [आश्रमपद] तापसों के आश्रम रोध ।
से उपलक्षित स्थान । आसंदिआ स्त्री [आसन्दिका] छोटा मञ्च । । आसमि वि [आश्रमिन्] आश्रम में रहनेवाला, आसंदी स्त्री [आसन्दी] आसन-विशेष, मञ्च । ऋषि, मुनि वगैरह । आसंधी स्त्री [अश्वगन्धी] वनस्पति-विशेष ।। आसय अक [ आस् ] बैठना । आसंबर वि [आशाम्बर] दिगम्बर । जैन का आसय सक [आ + श्री] आश्रय करना, एक मुख्य भेद । उसका अनुयायी।
अवलम्बन करना । ग्रहण करना । आसंसइय वि [असंशयित] संशय-रहित । आसय पुं [आशक] खानेवाला । आसंस न [आशंस्] इच्छा करना, अभिलाषा आसय पुं [आश्रय | अवलम्बन । करना।
आसय पुं [आशय। मन, चित्त, हृदय । अभिआसक्खय पुं [दे] प्रशस्त पक्षि-विशेष, श्रीवद । प्राय। आसग देखो आस = अश्व ।
आसय न [दे] समीप । आसगलिअ वि [दे] आक्रान्त । प्राप्त ।
आसरिअ वि [दे] सम्मुख-आगत । आसज्ज अ [आसाद्य] प्राप्त करके ।
आसव अक [ आ + जु] धीरे-धीरे झरना, आसड पुं. विक्रम की तेरहवीं शताब्दी का
टपकना। स्वनाम-ख्यात एक जैन ग्रन्थकार।
आसव सक [ आ + सु] आना। आसण न [आसन] जिसपर बैठा जाता है वह | आसव पुं [आश्रव] सूक्ष्म छिद्र । कर्मों का चौकी आदि । स्थान, जगह । शय्या । बैठना। प्रवेश-द्वार, जिससे कर्मबन्ध होता है वह हिंसा उपवेशन ।
आदि । वि. श्रोता, गुरु-वचन को सुननेवाला । आसणिय वि [आसनित] आसन पर बैठाया | °सक्कि वि [°सक्तिन्] हिंसादि में आसक्त । हुआ।
आसव पुं. दारू। आसण्ण न [आसन्न] समीप, वि. समीपस्थ । | आसवण न [दे] शय्या-धर । °वत्ति वि [वत्तिन्] नजदीक में रहनेवाला । | आसवाहिया स्त्री [अश्ववाहिका] अश्वआसत्त वि [आसक्त] लीन, तत्पर । नीचे |
क्रीडा। लगा हा । पुं. नपुंसक का एक भेद, वीर्य- आसस अक [ आ + श्वस् ] आश्वासन लेना, पात होने पर भी स्त्री का आलिंगन कर विश्राम लेना।
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