Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
बाईसवाँ क्रियापद - अठारह पापों से जीव को लगने वाली क्रियाएं
Pad
d
ddddreatrakar***
*aaadataaka
कारण वे अक्रिय कहलाते हैं। जबकि अशैलेशी प्रतिपन्नकों के योगों का निरोध नहीं होने के कारण वे सक्रिय कहलाते हैं।
अठारह पापों से जीव को लगने वाली क्रियाएं अत्थि णं भंते! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ? हंता गोयमा! अत्थि। कम्हि णं भंते! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ? गोयमा! छसु जीवणिकाएस।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या जीवों को प्राणातिपात के अध्यवसाय से प्राणातिपात क्रिया लगती है?
उत्तर - हाँ गौतम! प्राणातिपात के अध्यवसाय से प्राणातिपात क्रिया लगती है।
प्रश्न - हे भगवन्! किस विषय में जीवों को प्राणातिपात के अध्यवसाय से प्राणातिपात क्रिया लगती है?
उत्तर - हे गौतम! छह जीवनिकायों के विषय में प्राणातिपात के अध्यवसाय से प्राणातिपात क्रिया
लगती है।
विवेचन - जीवों को प्राणातिपात के अध्यवसाय (परिणाम) से प्राणातिपात क्रिया लगती है। यह कथन ऋजुसूत्र नय की दृष्टि से किया गया है। ऋजु सूत्र नय के मत से हिंसा के परिणाम के समय ही प्राणातिपात क्रिया कही जाती है किन्तु अन्य प्रकार के परिणाम हो तब प्राणातिपात क्रिया नहीं कही जाती है क्योंकि पुण्य और पाप कर्म का उपादान (ग्रहण) और अनुपादान (अग्रहण) अध्यवसाय के अनुसार ही होता है। अतः भगवान् ने भी इस का उत्तर ऋजुसूत्र नय की अपेक्षा से ही दिया है कि प्राणातिपात के अध्यवसाय से प्राणातिपात क्रिया होती है। क्योंकि - 'परिणामियं पमाणं निच्छय मवलंबमाणाणं' निश्चय नय का अवलम्बन लेने वालों के लिए परिणाम प्रमाण भूत है - ऐसा आगम वचन है। इसी वचन के अनुसार आवश्यक में भी यह सूत्र है - "आया चेव अहिंसा, आया हिंस त्ति निच्छओ एस" - आत्मा ही अहिंसा है और आत्मा ही हिंसा है - यह निश्चय नय का वचन है। अतः यह कहा गया है कि प्राणातिपात के अध्यवसाय से प्राणातिपात क्रिया होती है। .. प्राणातिपात क्रिया. किस विषय में होती है ? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् फरमाते हैं कि प्राणातिपात क्रिया छह जीव निकाय के विषय में होती है क्योंकि मारने का परिणाम जीव के विषय में ही होता है, अजीव के विषय में नहीं। रस्सी आदि में सर्पादि की बुद्धि से जो मारने का विचार होता है
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org