________________
८]
मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक।
जैन शिल्पकला खूब फैली हुई थी। इसी समय उ-हिलवाड़ा नगर भी बहुत समृद्धिशाली था जो मंदिरोंसे व दूसरी बड़ी २ इमारतोंसे पूर्ण था।
इतिस-यह है कि यह करणवती नगरी ग्यारहवीं शताब्दीमें स्थापित हुई थी। वल्लभीका राजा शिवरादित्य था जिसने पांचवीं शताब्दीमें जैनधर्म धारण किया । जैन लोग बौद्धोंसे पहले की एक बहुत प्राचीन जाति है । इन्होंने अपना सिक्का गुजरात और मैसूरमें अच्छी तरह जमाए रक्खा । अब भी इन लोगोंके हाथमें भारतका बहुत व्यापार व बहुत धन है । अपने मंदिरोंकी सुन्दरता व मूल्यताके लिये ये लोग प्रसिद्ध हैं । मैसूर और धाड़वाड़में भी इनकी बहुत संख्या है । वल्लभीके पतन होनेपर पंचामृरके राजा जयशेष को दक्षिणके सोलंकी राजपूतोंने हरा दिया तब उसने अपनी गर्भस्था स्त्री रूपसुन्दरीको उसके भाई सूरपालके साथ जंगलमें भेज दिया । वहां उसके पुत्र हुआ जिसको उसकी माता एक जैन साधुके पास लेगई। साधुने बालकको भाग्यवान जाना तब उसका नाम वनगज रखा गया । सन ७४६ में जब वह ५० वर्षका हुआ तब उसने सोलंकीको भगा दिया और उनहिल.वाडा नगरकी नींव डाली। उसका मुख्य मंत्री चम्पा हुआ। ६०० वर्ष तक गुजरातका राज्यस्थान उनहिलवाड़ा रहा। वनराजने आफ्रिका व अरबसे व्यापार चलाया व इसने बहुतसे मंदिर बनवाए। इसके पीछे इसके पुत्र योगराज, फिर खेमराज, भोगराज, श्री वैरसिंहने राज्य किया, फिर रत्नादित्य राजा हुआ, फिर सामंतसिंह हुए । इसने मूलराज सोलंकीको गोद लिया जो सन् ई० ९४२