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मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक ।
थनानुसार ९ मी, १० वी, ११ मी शताब्दीमें यह बुन्देलखण्डमें एक बलवान शाखा चेदीवंशकी थी। उनके वंशका संवत कालाचूरी या चेदी संवत कहलाता है-जो सन् ई० २४९ से चलता है। उनकी राज्यधानी त्रिपुरा पर थी। जो जबलपुरसे पश्चिम ६ मील है । कालाचूरीके त्रिपुरा वंशके लोगोंने बहुत दफे राष्ट्रकूट
और पश्चिमीय चालुक्योंमे विवाह सम्बन्ध किये थे। इसी वंशकी दूसरी शाखा छठी शताब्दीमें कोन्कनमें राज्य करती थी, जहांमे पूर्वीय चालुक्य राजा भंगलीशने-जो पुलकेशी द्वि० (६१०६३४ ) का चाचा था-भगा दिया था। कालाचूरी अपनेको हेय कहते हैं और अपनी उत्पत्ति यदुवंशसे कार्यवीर्य या सहस्रबाहु अर्जुनसे बताते हैं।
पुरातत्व-धाड़वाड़ चालुक्य राजाओंके ढंगसे भरा हुआ है। पुरातत्वके मुख्यम्थान हैं । गड़ग, लाकंही, दम्बल, हावेरी, हांगल, अन्निगेरी, वन्कापुर, चन्ददामपुर, लक्ष्मेश्वर, नारंगल | इन सबोमें बहुत सुन्दर पाषाणके मंदिर हैं जो ० मी ये :2 वीं शताब्दी तकके हैं । इनको जखनाचार्यका ढंग कहते हैं।
जवनाचार्य एक गनकुमार था जिनके हाग अचानक एक ब्राह्मणका वध होगया था। इसके प्रायश्चित्तमें उसने बनारसमे केप कमोरिन तक मंदिर २० वर्षमें बनवाये ।।
लिंगायत-इस जिलेमें चारलाख सतीसहजार हैं ४३७००० । यह वात साधारण रीतिसे मानी जाती है कि लिंगायतोंकी उत्पत्ति १२ बारहवीं शताब्दीने है । जब एक धार्मिक सुधारक हैदरावादके कल्याणीके निवासी बासवने इस जातिकी प्रसिद्धि की और इसके