________________
उत्तर कनड़ा जिला ।
[ १३५
व उनमें चार प्रतिमाएं हैं। पांच और जीर्ण जैन मंदिर हैं जिनमें मूर्तियें व शिलालेख हैं । श्री वर्द्धमान या महावीरस्वामीके मंदिरमें एक सुन्दर कृष्ण पाषाणकी मूर्ति श्री महावीरस्वामी चौबीसवें तीर्थंकरकी है । इसमें ४ शिलालेख हैं । यह किम्वदन्ती है के विजयनगरके राजाओं (१३३६-१९६१) ने जरसप्पाके जैन वंशको कनड़ामें उन्नत किया । बुचानन साहब कहते हैं कि हरिहर के वंशके राजा प्रतापदेवराय त्रिलोचियाकी आज्ञासे जरसप्पाके सरदार इचप्पा बौदियारु प्रतिनीने सन् १४०९ में मनकीके पास गुणवंतीके जैन मंदिरको दान किया था । इचप्पा सरदारकी पोती विजयनगर राजाओंसे करीब २ स्वतंत्र हो गई । तबसे यहांका राजत्व प्रायः स्त्रियों के हाथमें रहा है, क्योंकि करीब २ सर्व ही १६ वीं व १७ वीं शताब्दीके प्रथम भागके लेखक जरसप्पा या भटकल की महारानीका नाम लेते हैं । १७ वीं शताब्दीके शुरू में जरसप्पाकी अंतिम महारानी भैरवदेवी पर वेदनूरके राजा वेंकटप्पा नायकने हमला किया और हरा दिया । स्थानीय समाचारके अनुसार वह सन् १६०८ में मरी । सन् १६२३ में इटलीका यात्री डेलावैले Dellavalle इस स्थानको प्रसिद्ध नगर लिखता है । तथा उस समय नगर व राजमहल ध्वंश हो गया था, उनपर वृक्ष उग आए थे । यह नगर काली मिर्च pepper के लिये इतना प्रसिद्ध था कि पुर्तगालोंने जरसप्पाकी रानीको "Rainbada Pirnanta' अर्थात् pepper queen लिखा है ।
ऊपर लिखित चर्तुमुख मंदिरका विशेष वर्णन यह है कि यह बाहरके द्वारसे भीतरके द्वारतक ६३ फुट लम्बा है। मंदिर २२ फुट