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१६६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। कमरेमें श्री महावीरस्वामी है, भीतोंमे कई कमरे हैं। इस कमरेके वाई तरफ श्री पार्श्वनाथ भगवान और दाहनी तरफ श्री गोम्मटस्वामी पूर्व ओरके समान विरामित है।
यहां नो चार मध्यके खंभे हैं उनमें खुदाई बहुत महीन है।
इस पहाड़ी चट्टानके दाहने आधेमें दो खन हैं जब कि बाई तरफ एक खन है। दाहने दो खनोंमेंसे ऊपरके खन और बाई तरफके खनके मध्यमें बढ़िया खुदाई है। नीचली तरफ एक युद्धका चित्र है जिसमें तीन लेटे हुए शरीगेंके उपर चार शरीर पडे लड़ रहे हैं । इसके ऊपर एक आला है जिसमें एक चबुतरेकी बाई तरफ दो स्त्रियां और दाहनी तरफ दो पुरुष घुटनोंकेबल झुके हुए हैं तथा इसके उपर श्री पार्श्वनाथकी मूर्ति पद्मासन मिहामनपर है । सामने चक्र है। दाहनी तरफ एक पूजक है। हरतरफ मुकुट सहित चमरेन्द्र हैं । पीछे मात फणका मप छत्र किये हुए है । उपर बाई तरफ एक चित्र मंदिरका है । दाहनी तरफ जो मबसे नीचेका खन है वह हालमें ही मट्टीसे साफ किया गया है जिसमें सामने दो स्वच्छ खंभे हैं। दीवालके पीछे इन्द्र और अम्बिकाकी मूर्तिये हैं जो बहन मुन्दर व सुरक्षित हैं। इसमें बाई तरफ श्री पार्श्वनाथ और दाहनी तरफ श्री गोमट्टस्वामी हैं जिनके चरणोंपर हिरण और कुत्ते बैठे हुए हैं और पीछे जाकर पद्मासन तीर्थंकर बिराजमान हैं। भीतर वेदीमें श्री महावीरस्वामी चमरेन्द्र छत्र तीन, और अशोक वृक्ष महित हैं । इमके आगे एक दूसरा कमरा है जिसमें श्री पार्श्वनाथ बाई तरफ व दाहनी तरफके आधे ऊपरके भागमें दो छोटी पद्मासन मूर्तियां है। मंदिर द्वारके हरतरफ