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२०० ] : मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक ।
नोट- प्रसिद्ध नागवर्मनकी कन्या गोविंदको व्याही थी जिसका पुत्र कक्का द्वि० सन् ७४७ में था ।
कक्का प्रथमका पोता दंतिदुर्गा एक बलवान राजा था । उसने माही और नर्मदा मध्यके गुजरातको विजय किया था व लाट तथा मालवाका भी अधिकारी था ।
दक्षिणको लौटते हुए दंतिदुर्गाके पीछे १० वें राजा गोविंद तृ० ने गुजरातदेश अपने छोटे भाई इन्द्रको सौंप दिया । जबसे गुजरातकी शाखा प्रारंभ हुई ।
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इन्द्रको लाटेश्वर भी कहते थे इसने ८०८ से ८१२ तक फिर कर्क प्र० ने ८१२ से ८२१ तक राज्य किया था । इसको सुवर्णवर्ष तथा पातालमल्ल भी कहते थे ।
कर्कका सूरतका दानपत्र मन ८२१का मिला है, जिससे प्रगट है कि कर्कने वेकिक नदी (बलसरके पास बांकी) के तटपर अपने राज्यस्थानसे नौसारीके एक जैन मंदिरको नागसारिक के पास अम्बापातक ग्राम भेट किया। इस दानपत्रका लेखक युद्ध और शांतिका मंत्री नारायण है जो दुर्गाभट्टका पुत्र है । ताप्ती नदी दक्षिण यह पहला ही भूमिदान है जो गुजरात राष्ट्रकूट राजाने किया था । इससे यह पता चलता है कि राजा अमोघवर्षने कर्कके राज्य में उत्तर कोंकणका भाग दे दिया था जो अब ताप्तीके दक्षिण गुजरात कहलाता है। शाका ८३२ व सन् ९१० के ताम्रपत्रसे प्रगट है कि बल्लभ अर्थात् अमोघवर्ष या प्रसिद्ध महास्कंधने एक सेना भेजकर कंथिक (बम्बई और खंभातका तट) को घेर लिया। इस युद्धमें ध्रुव जखमी होकर मर गया । कन्हेरी गुफाका लेख भी