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गुजरातका इतिहास ।
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वर्ष पहले तक भारतकीं लकड़ी तथा सिंधुमें अर्थात् भारतीय तन्जेवोंमें पश्चिमीय भारत और युफ्रटीज नदीके मुख तकके देशसे व्यापार होता था । द्राविड़ भाषा बोलनेवाले सुमरी लोगोंका संबंध सिनाई और मिश्रसे था, जिनका सम्बन्ध पश्चिम भारतसे ६००० वर्ष सन्के पूर्व तक था ( Compare Hibbert lectures J. R. AS XXI 326 ) हिन्दू धर्म शास्त्रोंमें गुजरातको म्लेच्छ देश लिखा है और मना किया है कि गुजरात में न जाना चाहिये । ( देखो महाभारत अनुशासन पर्व २११८-९ व अ० सात ७२ व विष्णुपुराण अ० द्वि० ३७) । भारतके पश्चिममें यवनों का निवास बताया है (JBRJS IV 468 )
प्रबोधचंद्रोदयका ८७ वां लोक कहता है कि जो कोई यात्राके सिवाय अंग, बंग, कलिंग, सौराष्ट्र तथा मगध में जायगा उसको प्रायश्चित लेकर शुद्ध होना होगा ।
(स० नोट - ऐसा समझमें आता है कि इन देशोंमें जैन राजा थे व जैन धर्मका बहुत प्रभाव था इसीलिये ब्राह्मणोंने मना किया होगा ।) मौके अधिकारके समय से गुजरातका इतिहास ब्राह्मण, बौद्ध तथा जैन लेखों में मिलता है ।
मौर्य लोग बड़े उदार शासक थे, और इनकी प्रतिष्ठित मित्रता यूनान व मिश्र देशके राजाओंसे व अन्योंसे थी ।
(Mauryas were beneficent rulers and had also honorable alliances with Gitek and Egyptian Kings etc.)
इन कारणोंसे मौर्य वंश एक बड़ा बलवान व चिरस्मरणीय वंश था । शिलालेखोंसे यह बात विश्वास की जाती है कि मौर्य
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