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गुजरातका इतिहास।
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गुर्जरवंश-(५८०-८०८) वल्लभी और चालुक्य वंशका जब महत्व गुजरातमें था तब एक छोटा गुर्जर राज्य भरुचके पास राज्य करता था । संस्कृतके ९ ताम्रपत्र मिले हैं Ind. Ant. v. VII. XIII. XVII ). इनकी राज्यधानी नान्दीपुरी या नांदोद थी जो रानपीपला राज्यमें है। भरुचसे पूर्व ३५ मील । इनकी उपाधि " समधिगत पंचमहाशब्द " थी अर्थात् जिन्होंने पांच पद प्राप्त किये थे।
इनका राज्यवंश। (१) दद्दा प्रथम-(सन् ५८०-६०५) (२) जयभट्ट प्रथम-(६०५-६२०) (३) दद्दा हि० -(६२० - ६५०) (४) जयभट्ट हि०-(६५०-६७५) (५) दद्दा ४०-(६७५-७००) (६) जयभट्ट तृ०-(७०४-७३४)
खेडाके दान पात्रोंमें दवा प्रथमके पुत्र जयभट्ट प्रथमको विनयी और धर्मात्मा राना लिखा है तथा उसकी उपाधिमें वीतराग शब्द है । उसके पुत्र दद्दा हि० की उपाधि प्रशांतराग थी इसने दो दान किये थे । (Ini. Ant. III). इन दानोंमें है कि नंबूमर और भरुचके कुछ ब्राह्मगोंको अकृरेश्वर (अंकलेश्वर) तालुकामें सिरोशपदक (या मिमोद्रा) ग्राम दान किया गया था।
७०४-५के दानपत्र (In!. Ant VIII ) में दद्दाके सम्बन्धमें लिखा है कि उसने बल्लभीके राजाकी रक्षा की थी निसको प्रसिद्ध हर्षदेवने हरा दिया था। यह वही हर्ष है जो कन्नो