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गुजरातका इतिहास।
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दक्षिणी राज्यधानी सोपारा थी जो वेमीनके पास है । जहाजोंके लिये बंदर है। यह कोंकण व दक्षिण गुजरातका मुख्य व्यापार केन्द्र था।
बौद्ध और जैन लेखोंसे प्रगट है कि अशोकके पीछे उसकी गद्दीपर उसका अंधा पुत्र कुणाल नहीं बैठा था किन्तु उसके दो पोतोंने अर्थात् दशरथ और सम्प्रतिने राज्य किया था। गया निलेके बराबर और नागार्जुन पहाड़ियोंके लेखोंमें दशरथका नाम है । जैन लेखों में सम्प्रतिकी बहुत अधिक प्रशंसा है ( देखो हेमचंद्रकत परिशिष्ट पर्व व मेरुतुंगरुत विचारश्रेणी)। यह कहा जाता है कि करीब २ सब प्राचीन जैन मंदिर राजा सम्प्रतिके बनवाए हुए हैं।
जिनप्रभमूरि जैनाचार्यने पाटलीपुत्र कल्पग्रंथमें पाटलीपुत्रकी कथाएं दी है । उनमें एक स्थानपर है-----
" कुणालमनुत्रिखंडभरताधिपः परमाहतो अनार्यदेशेबपि प्रवर्तितश्रमणविहारः सम्प्रति महाराजाऽसौऽभवत ।"
इसका भाव यह है कि कुणालके पुत्र सम्प्रति थे जो तीन खंड भरतके राजा थे, परम अहंत भक्त जन थे। जिन्होंने अनार्य देशोंमें भी मुनियोंका विहार कराया।
अशोकके पीछे दशरथ तो पूर्व भारतमें व सम्प्रति पश्चिम भारतमें राज्य करते थे, जहां जन जाति अब भी विशेष फैली हुई है। यह संप्रति उनका भी राजा था। इसके पीछे मौर्य राजाका नाम नहीं सुन पड़ता है। सन् ५०० में मौर्य राजाओंका नाम मालवा और उत्तरी कोंकणमें झलकता है।
संपतिने सन् ई० से १९७ वर्ष पूर्व तक राज्य किया।