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गुजरातका इतिहास। भतीना तथा कान्यकुब्जके राजा शिलादित्यके लड़केका जमाई था। नाम उसका ध्रुवपद था । यह बौद्ध धर्मको मानता था। इसने बौद्धोंके लिये अर्हतप्रचार नामका मठ बनवादिया था। जहां बोधिसत्त्व साधु गुणमति और स्थिरमति रहते थे। इन्होंने शास्त्र बनाए थे।
वल्लभीके ताम्रपत्र पाए गए हैं। यहां मंदिर व मकान इंटों और लकड़ीके होते थे, परन्तु एक ही मंदिरका यहां पता चला है जो गोपीनाथपर है।
( Eurges Kuthiawur and Kitch 18977.
एक ऐसा लकड़ी व इंटोंका मंदिर शत्रुनय पर्वत व एक मोमनाथपर था ऐसा पता लगा है । कहते हैं कि अनहिलवाड़ाके राजा कुमारपाल सोलंकी ( सन १ १ ४३-१ : ७४) का मंत्री शत्रुञ्जय पर्वतपर श्री आदिनाथजीके जैन मंदिरमें पूजनको आया था तब तक चूहेने दीवेकी बत्तीसे मंदिरमें अग्नि लगा दी और लकड़ीका मंदिर भम्म होगया । तब मंत्रीने पाषाणके मंदिर बनानेका इरादा किया। ( कुमारपाल चरित्र )
सोमनाथमें भद्रकालीका मंदिर पहले लकड़ीका था फिर उसको भीमदेव ( १०२२-१ ०७२ ) ने पाषाणका बनाया, ऐसा लेखसे प्रगट है।
___ वल्लभी वंशके जो ताम्रपत्र हैं उनमें वृषभका चिन्ह है तथा भट्टारक शब्द आता है । ये सब संस्कृतमें हैं। वमी संवत सन् ई० ३१९ में शुरू हुआ है । वल्लभी राजाओंके प्रबंधमें इस भांति नाम प्रसिद्ध थे।
(१) आयुक्तिक या विनियुक्तिक-मुख्य अधिकारी ।