Book Title: Prachin Jain Smaraka Mumbai
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 184
________________ १६८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । इसके ऊपर एक पद्मासन जिनकी मूर्ति है और भीतके पीछे इन्द्र और इन्द्राणी थे जो अब मिट गए हैं। मंदिर द्वारपर दो जैन द्वारपाल हैं । भीतर सिंहासनपर जिनेन्द्र हैं तीन छत्र व देवोंद्वारा दुभि आदि सहित हैं। तीन कमरोंके ऊपर दीवालके सामने एक कमरा बीचमें है जिसमें एक स्त्री पुरुष कोरे हुए हैं । जिनको सेवामें गुप्प लिये दो छोटी स्त्रियां हैं। बगलमें मकर तोरण लिये हुए हैं। भीतोंकी तरफ हाथी पुष्पोंपर रमते व सार्दूल एक छोटे हाथीपर चढ़ा हुआ है - इसके ऊपर पानीके घड़े हैं । कमरे के ऊपर मालाएं लटक रही हैं । पासमें जो रचना है उसमें कई पशु बने हैं । इसके ऊपर छोटेर मंदिर हैं हरएक मूर्ति है । बीचमें बाई तरफ इन्द्र है. दानी तरफ इन्द्राणी है। शेष आलोंमें श्री गोस्वामी. श्री पार्श्वनाथ तथा दूसरे तीर्थकर हैं । मध्यभागमें एक मकान छरित है जिससे चार झुकती हुई मूर्तियां श्रां हैं। एक तरफ श्री जिनेन्द्रदेव पद्मासन विराजित हैं उसीके उपर एक चैत्यको विकीमें दूसरे जिनेन्द्र हैं । इसके उपर कुछ आगे आकर इसकी रक्षाका उपाय है। I aar alert छतको भनेवाले सभोंमें भिन्न २ प्रकारके मृने हैं तथा भीतोंपर चित्रकारी है। मध्य कमरे में पांच भिन्न २ नमूनोंके सांभ हैं। हरएक बगलकी भीतके मध्यमें जो बड़े कमरे में हैं उनमें सिंहासनपर एक पद्मासन जिन है, सामने चक्र, हाथी व सिंह खुदे हैं, नीचे दो हाथी हैं, भामंडल, छत्र व अशोक वृक्ष व चमरेन्द्र हैं । दूसरे दो स्थानों पर सिंहासनपर दो छोटी जैन मूर्तियां हैं। मंदिरके सामने हरएक खंभेके सामने तथा

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