________________
१६० ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। जैन मंदिर प्रतिमा श्री शांतिनाथनीकी कृष्ण वर्ण ६ फुट ऊंची कोरी हुई है।
(८) तेर-धाराशिवसे ( मील । यहां प्राचीन जैन मंदिर है जिसमें एक पद्मासन मूर्ति श्री महावीरस्वामीकी उन्हींके मूल आकारमें विराजित है अन्य मूर्तियां है व लेख है जो पढ़ा नहीं जाता है । यह ग्राम प्राचीन कालमें तगर नामका नगर था और दक्षिणमें व्यापारका मुख्य स्थान था ऐमा यूनानी लेखकोंने लिखा है पहली शताब्दी तक इस मुख्य नगरका पता है । तथा १० वीं या ११वीं शताब्दीमें भी यह एक बड़ा महत्त्वका स्थान था ऐसा देशी राज्योंके लेखोंसे पता चलता है। यह बारसीसे पूर्व ३० मील है । तर्णा नदीके पश्चिम तटपर है। यहां जो उत्तरेश्वरका मंदिर है वह मूलमें जैन मंदिर था। उसकी कारनिशके नीचे जैन मूर्ति है । यहां बहुत प्राचीन और भी जैन मूर्तियां मिलती हैं। एक पुनारी रहता है। प्रबन्ध धाराशिवके दि० जन पंचोंके आधीन है । मुख्य भाई सेट नानचन्द नेमचन्द वालचन्दनी हैं।
(९) धाराशिव-इसको अब उम्मानाबाद कहते हैं। वारमी लाइनके एडमी स्टेशनमे १४ मीलके करीब । यहां नगरमे २-३ मीलपर बहुत पुरानी ५ गुफाएं हैं। एक गुफा बहुत बड़ी है जिसमें श्री पार्श्वनाथजीकी मूल अवगाहनाकी मूर्ति बटे आसन बहुत सुन्दर सात फणके छत्र सहित विराजमान है। दूसरा गुफामें भी ऐसी ही मूर्ति है । एक गुफामें मूर्ति खंडित होगई है । ये गुफाएं दर्शनीय हैं । इनको राजा करकंडुने बनवाया था। आराधनाकथाकोषमें ११३ वीं कथा राजा करकंडुकी है। उसमें तेर