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१३४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । विश्ववसु संवत्सर, (५) उसीमें, (६) उसीमें शा० १४६५ प्लव सं०, (७-८) उसीके पीछे, (९) शांतेश्वर मंदिरके आंगन में इसमें बहुत सुन्दर विराट क्षेत्रपाल अंकित हैं ऊपर लेख शा० १४६५, (१०) एक छोटा, (११) वहीं दो पत्थर बड़े जो दव गए हैं, (१८) चतुर्मुख बम्तीमें जिसके पत्थरोंको गांववाले उठा ले गए हैं। एक झाड़ीमें एक सुन्दर बडा शासन है जिनमें जैन चिन्ह हैं, (१९) उसीके पास भाट कलसे दक्षिण पश्चिम आध मीलपर एक पाषाणका पुल है जिसको जैन राजकुमारी चन्नभैरवदेवीने १४५० में बनवाया था । पहाडीके ऊपर एक रोशनी घर है जो ८ मीलसे दिखता है।
(३) चितकुल-ग्राम ता० कारबार। यहांसे उत्तर ४ मील यह समुद्र तटपर है । एक बड़ा स्थान रह चुका है। इसका नाम सिंधपुर, चिंतपुर, सिंतबुर सिंतकुल, सिंतकोरस, चित्तीकुल, चितिकुल भी प्रसिद्ध हैं। अरब यात्री मसौदी (९०० के लगभग)से लेकर इंग्रेज भूगोल वेत्ता ओगिलवी (१६६० के लगभग) तक इसका वर्णन करते हैं । ( यहां जैन चिन्होंको तलाश करना चाहिये )।
(४) जरसप्पा नाम-तालु० होनावर । यहांसे पूर्व १८ मील शरावती नदीपर । जरसप्पा झरनेसे भी इतनी दूर है। इस ग्रामसे १॥ मील नगरवस्तीकेरीके बहुत बड़े जीर्ण मकान हैं । यह जरसप्पाके जैन राजाओं (१४०९-१६१०) का राज्य स्थान था । स्थानीय लोग ऐसा विश्वास करते हैं कि अपने महत्वके दिनोंमें यहां १ एक लाख घर तथा ८४ चौरासी मंदिर थे। सबसे बड़े महत्वका मंदिर एक चौमुखा जैन मंदिर है जिसके चार द्वार हैं