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उत्तर कनड़ा जिला। [१३७ पुराना कनड़ी शिलालेख है जो सड़क किनारे खड़ा है।
(५) मनकी-ग्राम, ता० होनावर, यहां बहुतसे जैन मंदिरोंके अवशेष हैं जो इस बातको बताते हैं कि किसी समय यहां जौनयोंका बडा जोर था ! बहुतसे शिलालेखोंसे यहांका महत्व झलक रहा है।
(६) सोनडा-ग्राम, ता० सिरसी, यहांसे उत्तर १० मील यहांका पुराना किला बडे महत्वका है। यहां स्मार्त, वैष्णव और जैनके मठ हैं। सोंडाके राजा विजय नगरके राजाओंकी शाखा थी जो सोंडामें (१९७०-८०)में वसे। सोंडा प्टेशनसे ३ मील पश्चिम त्रिविक्रमका मंदिर है। सामने लम्बा ध्वजास्तंभ है। यह बात प्रसिद्ध है कि दक्षिण कनड़ाके उड़पी मठके आठ साधुओंमेसे एक श्री वादिराज स्वामी बड़े प्रसिद्ध थे-उन्होंने अपने तपके बलसे नारायण भूतकी सहायतासे इस मंदिरको बद्रिकाश्रमसे सोंडामें उठा मंगाया और आप स्वयं उसमें स्थापित होगए । उनका नाम त्रिविक्रम देव हुआ।
(नोट-यह वादिराजस्वामी अवश्य जैनाचार्य विदित होते है। इस मंदिरको देखकर इस कथाका भाव समझना चाहिये। सं०)
यहां जैनियोंका मठ आठवीं शताब्दीका है । एक पुराने आदीश्वर भगवानके जैन मंदिरमें बहुत ही पुराना शिलालेख है। इसमें यह लेख है कि राजा इमोदी सदाशिवरायने शाका ७२२ व सन् ७९९ में दान दिया। दूसरा लेख सन् ८०४का जैन मठमें था । जो चामुंडराय राजाके राज्यका था, जो चामुंडराय दक्षिणके सब राजाओंका मुख्य था। यह एक जैन राजा था। दानपत्रमें