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१२६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । कनड़ी व भाषा संस्कृत है । एकमें है कि महाराजा कादम्ब श्री कृष्णवर्माके राजकुमार पुत्र देववर्माने जैन मंदिरके लिये एक खेत दिया। इसमें यापनीय संघका वर्णन है और है कि श्री कृष्ण कादम्ब वंशका शिरोमणी था तथा युद्धका प्रेमी था । दूसरा लेख कहता है कि काकुष्ठ वंशी श्री शांतिवर्मा के पुत्र कादम्ब महाराज मृगेश्वर वर्माने अपने राज्यके तीसरे वर्ष कार्तिक वदी १० को परलूराके एक जैन मंदिरके लिये खेत दिये । यह दान वैजयन्ती या वनवासीमें किया गया। तीसरा ताम्रपत्र कहता है कि इमी मगेश्वर वर्माने जैन मंदिरों और निग्रन्थ तथा श्वेतपट दो जैन जातियोंके व्यवहारके लिये एक काल वंग नामका ग्राम अर्पण किया।
( Ind. Ant. VII 33 34)
(२६) हत्तीमत्तर-करजगीसे उत्तर ५ मील । यहां एक पाषाण मिला है। पुरानी कनडीमें लेख है। आठवें राष्ट्रकूट राजा इन्द्र चौथे या नित्त्य वर्ष प्रथमके राज्य सन् ९१६ (शा० ८३८) में शायद जैन संस्थाके लिये महा सामन्त लेन्देयरारने कच्छवर कादम्बका वुटवर ग्राम दान किया। यह सामन्त पुरीगेरी या लक्षमेश्वर ३०० का स्वामी व पल्टिय मल्टयूरका महानन था। यह इस ग्रामका पुराना नाम था ।
(२७) निदगुन्डी-बंकापुरसे पश्चिम ५ मील । यहां ५ शिलालेख हैं । उनमें से एक चौथे गष्ट्रकूट राना अमोघवर्ष प्रथम (८५१-८७७) के राज्यमें उसके आधीन चिलकेतन वंशके वंकेरायोंके आधीन वनवासी (१२०००), वेलवाला ( ३००)