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धाड़वाड़ जिला ।
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गिनाते हैं और खासकर लिखते हैं कि जैन मंदिरोंके लिये ग्राम और भूमिदान किये गए ।
(Fleets' Canarese dynasties 7-10.)
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धारवाड़ में प्राचीन चालुक्य राज्यका सबसे प्राचीन लेख हांगलसे पूर्व १० मील आदुरमें एक पाषाणपर पाया गया है । इसमें लेख है कि छठे पूर्वीय चालुक्य राजा कीर्तिवर्मा प्रथम ( ता० ५६७) ने जैन मंदिरको दान किया जिसको एक नगरसेठने बनवाया था । कादम्वराज्य के मध्य में इस लेखका मिलना इस बातको पुष्ट करता है कि कीर्तिवर्माने कादम्बोंको हरा दिया । जो बात ऐहोलके प्रसिद्ध लेख में है । वंकापुरमे २० मील लखमेश्वर में जो तीन लेख ता॰ ६८७, ७२९ व ७३ ४ के राजा विनयदित्त्य (६८० - ६९७), विजयदित्त्य ( ६९७ ७३३), राजा विक्रमादित्य द्वि० (७३३–७४७) के शासन कालके मिले हैं उनमें भी जैन मंदिरों और गुरुओंको दानका वर्णन है ।
कलचूरी (११६१-११८४), यद्यपि कलचूरी लोग जैन थे, परन्तु बालको शैवधर्मपर प्रेम होगया । उसका मंत्री वासव था, उसने ऐसा अवसर पाकर लिंगायत पंथ चलाया और बहुत अनुयायी बनाकर बज्जालको गद्दीसे उतारकर आप राजा होगया । जैनियोंके कथनानुसार वज्जालके पुत्र सोमेश्वरसे भय खाकर बासव उत्तर कनड़ाके उलबीमें भाग गया और सोमेश्वर राजा हुआ । कलचूरी या कालाचूर्य - इनकी उपाधि कालंजर - परवाराधीश्वर है । इनकी उत्पत्ति कालंजर नगरसे है । जो अब बुन्देलखंड में एक पहाड़ी किला है । कर्निकघम साहब ( A. R. IX)
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