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मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक।
(१) हुली-ग्राम ता. पारसगढ़ । सौन्दत्तीसे पूर्व ५ मील । यहां खास देखने योग्य एक सुन्दर किन्तु ध्वंश मंदिर पंचलिंगदेवका है । यह असलमें जैन मंदिर था भीतर एक लिंगायत मूर्ति नागमूर्ति व गणपति विराजित है । जो शायद दूसरे मंदिरोंसे लाकर बिराजित किये गए हैं । यहां तीन शिला लेख हैं दो पश्चिमी चालुक्य राज्य विक्रमादित्य हि० (१०१८--४८) और सोमेश्वर (१०६९.-७५) को बताते हैं व तीसरा कालाचूरी बजाल (सन् ११५५-११७७) को बताता है।
(५) कोनर-(कोंड नूरु शिलालेखमें) ग्राम ता० गोकाक । घटप्रभा नदीपर गोकाकसे उत्तर पूर्व ५ मील दक्षिणकी तरफ कुछ रेतीली पहाड़ियोंके नीचे ऐसी ही कोठरियां हैं जिसमें पाषाणकी दीवाले व छतें हैं ऐसी कोठरियां दक्षिण है। दराबाद तथा दक्षिणी भारतके अन्य स्थानोंमें पाई जाती हैं । इंग्लैंड में प्राचीन पाषाणके कमरोंसे इनकी सदृशता होती है इससे ये देखने योग्य हैं । ये सब ५० से अधिक एक समुदायमें हैं । लोग इनको पांडवोंके घर कहते हैं । ये बहुत ही प्राचीन हैं । (नोट-ये सब जैन साधुओंके ध्यानके स्थान हैं ) ग्रामके जैन मंदिरमें राट्ट रानाका लेख शाका १००९ का है।
इस शिलालेखका भाव यह है---
इस लेखमें चालुक्य राजा त्रिभुवनमल्ल या विक्रमादित्य द्वि० और उसके पुत्र जयकर्णका वर्णन है। जयकर्णके सिवाय इस लेखमें चामुण्ड दंडाधिप या सेनापतिका भी वर्णन है जो कुन्डी देशका शासन करता था और मण्डलेश्वर राना सेनका भी वर्णन है