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बेलगाम जिला ।
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बाई तरफ एक पद्मासन जिन हैं ऊपर चंद्रमा है । यह लेख ११ लाइन में है पुरानी कनड़ी भाषा है ता० ९८१ सन् है । इसमें कुन्दुर जैन जातिकी और उसके गुरुओंकी बहुत प्रशंसा दी है तथा यह वर्णन है कि चौथे राह राजा शांतने १५० मत्तर भूमि उस जैन मंदिरको दी जो उसने सौंदत्तीमें बनवाया था और उतनी ही भूमि उसी मंदिर को उसकी स्त्री निजिकव्वेने दी । प्रारम्भमें भूमिकी माप है जो राह जिनके मंदिरके लिये अलग की गई थी। इसीमें यह भी आज्ञा है कि प्रत्येक तैल मिलवाला १ मन तैल दीपावली के दिन मंदिर में दीपके लिये देवे । (बम्बई राय ० ए० सी० नं० १०)
पांचवा लेख एक पाषाणमें है जो अब मामलतदारके दफ्तर में है । यह इसी जैन मंदिरके सामने एक आंगनके खोदने से मिला है । इसमें ५३ लाइन हैं। वे ही चिन्ह हैं। इसमें पश्चिमी चालुक्य राजा सोमेश्वर द्वि० ( सं० १०७७ - १०८४ ) के आधीन ९ में राह राजा कार्यवीर्य द्वि० की वंशावली राजा नन्नसे दी है । “ Indian nnbiquary Vol. IV 1. 279-280 " से सौंदत्तीके लेखोंका विशेष वर्णन इस प्रकार और जानना चाहिये
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(१) मैले तीर्थकी कारेय शाखामें आचार्य श्री मूल भट्टारक हुए । उनके शिष्य विद्वान गुणकीर्ति थे । इनके शिष्य इच्छाको जीतनेवाले इंद्रकीर्तिस्वामी थे । इनका शिष्य मेरड़का बड़ा पुत्र राजा पृथ्वी वर्मा था जो श्रीकृष्णराजदेवके आधीन था शाका ७९७ ॥ (२) राजापरग - कन्नकेर प्र० का पुत्र गानविद्यामें निपुण था, (३) कन्नकैरद्वि० के धार्मिक गुरु श्री कनकप्रभ सिद्धांत वे