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वीजापुर जिला।
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उल्था श्री भगवान जिनेन्द्र जयवंत हो, जिनके ज्ञानसमुद्र में सर्व जगत एक द्वीपके समान है।....उसके पीछे चालुक्य वंशरूपी समुद्र चिरकाल जयवंत हो, जिसकी महत्ताका परिचय नहीं हो सक्ता । जो पृथ्वीके मुकुटकी मणि है तथा पुरुषरत्नोंकी उत्पत्तिकर्ता है। तथा चिरकाल श्री सत्याश्रय जयवंत हो जो सत्यका आश्रय करनेवाला है तथा जो एक साथ वीर और विद्वानोंको दान और मान देता है । इनके वंशमें बहुतसे राजा हो गए जो विनयके इच्छुक थे व जिनका पृथ्वीवल्लभ नाम सार्थक था ।
इसी चालुक्य वंशमें प्रसिद्ध राजा जयसिंहवल्लभ हो गए हैं जिन्होंने ऐसे युद्ध में अपनी शूरवीरतासे उस लक्ष्मीदेवीको जीत लिया है जो चपलताने भरी हुई है कि जिस युद्धमें उसके सैकड़ों बाणोंसे धबड़ाए हुए अनेक घोड़े पैदल तथा हाथी गिराए गए थे व जहां नाचने हुप व भयमें भरे हुए मस्तकरहित शरीरों की व तलवारोंकी हमारों किरणें चमक रही थीं।
उसका पुत्र देवसम प्रभावशाली व पृथ्वीका एक अकेला स्वामी रणरान नामका था जिसके शरीरकी उत्तमतासे उसकी निद्रावस्थामें भी उसका अद्वितीय मनुप्यपना लोकोमें प्रगट था ।
उसका पुत्र गुलिकेशी PuleKesi 1 था जिसने यद्यपि चंद्रमा की क्रांति पाई थी व जो लक्ष्मीदेवीका प्रिय था तथापि वातापिपुरी नगरीरूपी वधूके वरपनेको प्राप्त था । उसके धर्म, अर्थ, कामरूप तीन वर्गके साधनकी बराबरी पृथ्वीमें कोई नहीं कर सक्ता था । उसके अश्वमेध करनेके पीछे पवित्र भेटसे यह पृथ्वी शोभा