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वोजापुर जिला ।
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आठ खड़े आसन जैन मूर्तियां हैं, हरएक पांच फुट ऊंची है। इनमें से चारपर सात फणका सर्पमंडप है । दूसरे चार पर दो सर्पफण फैलाये हैं । हरएक चरणके पास सर्प है ।
(सं० नोट- ये सब श्री पार्श्वनाथकी अपूर्व मूर्तियां हैं ) इनमें कुछ खंडित हैं। मंदिर बिजलीसे नष्ट हो गया है ।
नोट- शायद यह मंदिर तब बना था जब ११ वीं शताब्दीके करीब यहां दिगम्बर जैन बहुत रहते थे ।
(१४) हेब्बल - वागेवाड़ीसे दक्षिण १२ मील । ग्रामसे ३०० गज जाकर वागेवाड़ी नोदगुडी सडक है । झाड़ियोंके पीछे एक ऊंची भीतसे छिपा हुआ एक सुन्दर जैन मंदिर है । जिसमें मंडप, वेदी व कमरा है । कमरे में २२ खंभे हैं व ४ पिलैस्तर हैं 1 चार बीचके खंभे ८ फुट ऊंचे हैं दूसरे ६ फुट ऊंचे हैं। भीतरकी वेदीका मंदिर २५ फुट चौकोर है । इसको भी लिंगमंदिर कर लिया गया है ।
(१५) जैनपुर - बागलकोटसे उत्तर पश्चिम २५ मील । यह बीजापुर, बागलकोटकी सडक पर कृष्ण नदीके वाएं तटपर है । यहां पहले जैन लोग रहते थे इसीलिये जैनपुर प्रसिद्ध है ।
(१६) करड़ीग्राम - हुनगुंडसे उत्तर पूर्व १० मील | यहां तीन मंदिर व तीन पुराने शिलालेख हैं । ये मंदिर मूलमें जैनियोंके दिखते हैं । एक लेख ११५३ व एक १५५३का है । यह दूसरा लेख ग्यारहवें विजयनगर राजा सदाशिवरायका है (१५४२१५७३)