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वीजापुर जिला।
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रहा। इस वीरके कार्य सब दुर्लभ कार्योंमें भी अति दुर्लभ थे । वह जल उसके द्वारा क्षोभित होकर जिसमें उसके हाथियोंकी महान सेनाने प्रवेश किया था व जो उसके अनेक युद्धोंमें मारे गए मनुप्योंके रक्तसे लाल वर्णका हो गया था-उस आकाशके समान झलकता था जिसमें मेघोंके मध्यमें सूर्यके द्वारा संध्याका रंग छागया हो ।
अपनी उन सेनाओंसे जोकि निर्दोष चमरोंके हिलानेसे व सैकड़ों पताकाओं व छत्रियोंसे अंधकारमें आगई थीं और जिन्होंने अपने उत्साह और शक्तिसे उन्मत्त उसके शत्रुओंको पीड़ितकर दिया था और जिसमें छःप्रकार शक्तिये थीं उस राजाने अपनी शक्तिसे प्रसिद्ध पल्लवोंके राजाको उसका प्रभाव अपनी सेनाकी रजसे छिपे हुए उसके कांचीपुर नगरके कोटके भीतर ही छिपा दिया था ।
जब उसने चौलोंकी जीतके लिये शीघही तय्यारी की तब उस कावेरी नदीने जो मछलियोंके चंचल नेत्रोंसे भरी हुई थी अपना सम्बन्ध समुद्रसे छोड़ दिया क्योंकि उसके जलका प्रवाह उस राजाके मदोन्मत्त हाथियोंके पुलसे रुक गया था। वहां उसने चोलों, केरलों और गांडयोंको महाऋद्धियुक्त किया परन्तु पल्लवोंकी सेनाके पालेको गलानेके लिये मूर्य सम हो गया।
जब राजा सत्यायने अपने उत्साह, प्रभुत्त्व व मंत्रशक्तिसे सर्व निकटके देशोंको जीत लिया और परास्त राजाओंको विसर्जन कर दिया तथा देव और ब्राह्मणोंको आराधित किया और अपनी वातापी नगरी (वदामी) में प्रवेश किया तब उसने सर्व जगतको ऐसे नगरके समान शासित किया जिसके चारों तरफ नृत्य करते हुए समुद्रके जलसे पूरित नीलखाई बह रही हो ।