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१०६ ] मुंबईप्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक ।
(५) पट्टदकल - ता० वादामी, वादामीसे ९ मील। यहां बहुतसे प्राचीन मंदिर जैन और ब्राह्मणोंके हैं, उनमें ७ वीं व ९ वीं शताब्दी के शिलालेख हैं । ये सब मंदिर द्राविड़ शिल्पके नमूने हैं ।
शिव मंदिरके पश्चिममें एक पुराना जैन मंदिर है । द्राविड शिल्प में रचित है । खुला हुआ कमरा है । जिसके ८ स्तम्भ हैं । मंदिरके हरदोओर सवारसहित हाथीका आधा भाग है, दृष्टिके ऊपर ५ फणका सर्प है । भीतर के कमरे में चार चौकोर स्तंभ हैं । इसके भीतरके कमरे में दो गोल व दो चौकोर खंभे हैं। मंदिरजी मूर्तिरहित है । एक कायोत्सर्ग नग्न मूर्ति जिसपर सात फणका सर्प है आगे चट्टानपर घुटनोंसे खंडित विराजित है । (नोट- यही वेदी पर होगी) कमरे की छतपर जानेको एक सीढ़ी है। मंदिर के ऊपर शिषर है । उसमें भी एक कमरा है तथा उसमें प्रदक्षिणा है । मंदिरके बाहर आश्चर्यजनक कारीगरीकी खुदाई है । यह बहुत प्राचीन नगर है । टोलमी, मिश्र भूगोलवेत्ता (सन १५० ) ने इसका नाम पेटिरगाला लिखा है ।
(६) तालीकोटा - ता० मुद्दे विहाल । एक नगर है । यहां जुमामसजिद एक ध्वंश मकान है जिसके खंभे जैनोंके हैं । एक शिवका मंदिर पुराना है । इसमें एक लिंगके सिवाय कुछ जैन मूर्तियां हैं इसके खंभे गोल हैं। उसपर जैन मूर्तियां बनी हैं ।
(७) सलतगी ता० इंडी | इंडीसे दक्षिण पूर्व ६ मील एक पाषाणके खंभे पर देव नागरी अक्षरोंमें एक लेख शाका ८६७ का राष्ट्रकूट वंशका है। इसमें लेख है कि कृष्ण चतुर्थ (९४५ - ९५६ ) ने कर्णपुरी जिलेके पाविट्टगामें एक विद्यालय स्थापित किया ।