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मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक ।
१ भागको युद्धकी लूट में लेलिया । राह राजाओंने गोआको सन् १२०८ में अधिकार में लिया । राट्टोंका अंतिम राजा लक्ष्मीदास द्वि • हुआ जिसको देवगिरि यादव सिंघन द्वि० के मंत्री और सेनापति वाचनने परास्त किया फिर १३२० में दिल्लीके मुसल्मान बादशाहोंने अधिकार किया ।
जैन मंदिरोंका महत्त्व - जो यहां जखनाचार्य्यके नामसे मंदिर इधरउधर छितरे हुए पाए जाते हैं वे वास्तव में चालुक्य राजाओंके हैं । उनमें से एक बहुत ही सुन्दर देगानवेमें हैं । कोन्नूर में इति - हासके पहले समाधिस्थान हैं। बहुत से मंदिर ११, १२ व १३ शताब्दीके जो इस जिलेमें फैले पड़े हैं वे असल में जैन लोगोंके थे किन्तु उनको लिंग या शिव मंदिरोंमें बदल दिया गया है । उन जैन मंदिरोंमें जो बहुत प्रसिद्ध हैं वे नीचे स्थानोंपर हैं।
(१) बेळगामका किला (२) संपगाव ता० के देगानवे, बाक्कुंड, नेसाग (३) पारसगढ़ ता० केहुली, मनोली, येळम्मा (४) चीकोड़ी ता० शंखेश्वर (५) अथनी ता० के रामतीर्थ और नांदगांव |
जनोंका महत्व - यहां बहुत जैन किसान और मजदूर हैं । जिससे यह विदित होता है कि प्राचीन कालमें इस बम्बई कर्णाटक में जैन धर्मकी बहुत श्रेष्ठता थी—