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मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक।
(३) एक देराशर भूमिके भीतर उंडी बखारमें । (४) श्री मालपोलमें मंदिर जिसमें मूर्ति संवत १६६४ की है। (५) श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर जो १८४९ में बना । (६) श्री आदिश्वर जैन मंदिर जो संवत १४४३ में बना ।
भरुच भारतके सबसे प्राचीन बंदरोंमेंसे एक है। १८०० वर्ष हुए यह व्यापारका मुख्य स्थान था । तब भारतसे और पश्चिमीय एसियाके बंदरोंसे व्यापार चलता था । इतने कालके पीछे भी इसने अपना गौरव बनाए रक्खा । १७ सत्रहवीं शताब्दीमें यहांसे जहाज पूर्वमें जावा सुमात्राको और पश्चिममें अदन और लाल समुद्रको जाते थे।
कपड़ा-प्राचीनकालमें यहांसे मुख्य बाहर जानेवाली वस्तुओंमें कपड़ा था। सत्रहवीं शताब्दीमें जब पहले पहले इंग्रेज और डच लोग गुजरातमें बसे तब यहांके कपड़ा बनानेवालोंकी प्रसिद्धिके कारण उन लोगोंने भरुचमें अपनी कोठियें स्थापित की। यहांकी तनजेबें प्रसिद्ध थीं। सत्रहवीं शदीके मध्यमें यहां इतना बढ़िया महीन सूतका कपड़ा बनता था जैसा दुनियांके किसी हिस्सेमें नहीं बनता था बंगालको भी मात कर दिया था।
(about middle of any in Century district is said to have produced more manufactures of those of the finest fabrics than the same extent of country in any part of the world 1ot cxcepting Bengal.)
यहां पर श्री नेमिनाथनीके दि. जैन मंदिरमें गोलश्रृंगार वंशधारी दि० जैन ब्रह्मचारी अजितने संस्कृत हनूमान चरित्र रचा श्लोक २००० सर्ग ११ इसकी एक प्राचीन प्रति लिखित