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भरुच जिला ।
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भावार्थ- वे मुनि दो पुष्पदन्त और भूतबलि अंकलेश्वर नगरमें आए यहां षडंग शास्त्रकी रचनाकी शास्त्रों में लिखाया व ज्येष्ठ सुदी १ को संघसहित भूतवलिनीने पूजन की । (सिद्धांतसारादि संग्रह माणकचन्द ग्रन्थमाला नं० २१ पत्रे ३१७)
(नोट) - (४) सजोत--अंकलेश्वर स्टेशनसे ६ मील। यह पहले बड़ा नगर होगा। यहां भौरेमें श्री शीतलनाथ भगवानकी दि० जैन मूर्ति पद्मासन २ हाथ ऊंची बहुत ही शांत, मनोज्ञ व ऊंची शिल्प कलाको प्रगट करनेवाली है। इसमें संवत नहीं है इससे बहुत प्राचीन कालकी निर्मापित है । इसकी अतिशय ऐसी है कि सर्व हिंदू जाति दर्शन करने को आती है । यह बात प्रसिद्ध है कि भरुच में एक दफे एक नाविकका जहाज अटक गया उसको स्वप्न हुआ कि तू सजोतमें शीतलनाथके दर्शन कर जहाज चल पडेगा । उसने आके दर्शन किये जहाज ठीक रीतिसे चल पडा । इस मूर्तिका दर्शन करते २ कभी मन तृप्त नहीं होता है । जैसे मैसूर श्रवणबेलगोला में कायोत्सर्ग श्री बाहुबलिकी मूर्ति शिल्पकलामें अद्वितीय है वैसे इसको जानना चाहिये । इसकी पत्थरकी वेदीपर यह लेख है ।
"संवत् १८३५ श्रावण वदी १ श्री मूल संघ हूबड ज्ञातीयसा सोमचन्द भुला तत्पुत्र काहनदास सोमचंद बाई देवकुंवरे तया श्री शीतलनाथस्य प्रतिष्ठापनं करापितं श्रीरस्तु " यह मूर्ति अंकलेश्वरके पश्चिम रामकुण्डको खोदते हुए निकली थी जिस रामकुण्का वर्णन हिंदुओंके संस्कृत नर्बदा पुराण में है । इसी मूर्तिके साथ वह मूर्ति भी निकली थी जो अंकलेश्वरके भौरेमें श्रीपार्श्वनाथ स्वामी की है।