Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 3
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 12
________________ सीधा कोई सम्बन्ध नहीं। वह केवल राजनीतिक भी हो सकती है। फिर भी स्त्री होकर मैं सोचे-विचारे बिना नहीं रह सकती।" इतना कहकर एचलदेवी रुक गयीं। "राजनीनिद हो तो ग हुआ? आपको सोचने का हक है न?" "जब अधिकार था तब भी मैंने उसका उपयोग नहीं किया। अब क्यों, अम्माजी? तुमने सोचा है या नहीं-मैं नहीं कह सकती। मैंने जो सोचा है उसे तो तुमसे कहना ही चाहिए। तुम ही को क्यों, बच्चों को भी मालूम नहीं। हो सकता हैहेगड़ेजी जानते हों। प्रभु को मेरे साथ विवाह करने के बाद, महादेवी नामक एक चोल राजकुमारी से भी विवाह करना पड़ा था। बहुत दिन तक उसके साथ परिवार बस न सका।" ''ऐसे प्रसंग में आपको बहुत मानसिक दुःख का अनुभव हुआ होगा?" "तुरन्त बाद कुछ ऐसा मानसिक दुःख का अनुभव तो हुआ। मन में आया कि प्रभु ने मुझसे एक बार पूछ लिया होता तो अच्छा होता। परन्तु धीरे-धीरे मैंने उस भावना से समझौता कर लिया; क्योंकि मेरे साथ जो व्यवहार पहले से रहा, उसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ। उनका प्रेम और विश्वास जो मुझ पर रहा। वह ज्यों-के-त्यों रहे। महादेवी ने पहली बार गर्भधारण किया 1 उस गर्भस्राव के कारण उसी में उसका देहान्त हो गया। फिर प्रभु ने दूसरे विवाह की बात सोची ही नहीं। चालुक्य राजा ने भी, सुना कि कुछ सुझाया था। प्रभु ने नहीं माना। मेरा सौभाग्य था।" ___ "तो, महादेवीजी आपसे उचित रीति से बरतती तो रहीं न?" "तुम मेरे स्वभाव से अच्छी तरह परिचित हो, अम्माजी। वह प्रसिद्ध चोल राजवंश की थी। मेरा मायका इतना प्रसिद्ध नहीं था। उसे अपने मायके का गर्व था। मैं इन बातों से उदासीन हो रही।" "परन्तु ये पुरुष ऐसा क्यों करते हैं? आत्मसाक्षी से हाथ में हाथ डालकर धर्मबन्धन से बँधकर पाणिग्रहण कर लेने के बाद भी, दूसरे विवाहों के लिए क्यों हाथ पसारते हैं? यह तो गलत है न?" "मानवीयता की दृष्टि से वह गलत है, अम्माजी। परन्तु कुछ सहूलियतों को लेकर ऐसी परिपाटी चल पड़ी है। ऐसी कुछ अनहोनी बातों को भी साथ लेकर यह चली है। राजे-महाराजाओं का बहुपत्नीत्व ऐसी ही एक सहूलियत को लेकर प्रचलित परिपाटी है। इसके लिए पुरुष एक-न-एक समाधान तो दे लेते हैं। हम स्त्रियों के लिए यह उचित नहीं लग सकता है।" ___ "ठीक न लगता हो तो विवाह कैसे हो सकता है ? जबरदस्ती से तो विवाह नहीं हो सकता है न?" "राजनीतिक सहूलियतों को दृष्टि से समाज ने इसे मान लिया है। क्या करें? 14 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन

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