Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 3
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 11
________________ अम्माजी, मैं तत्काल तुम लोगों से जुदा न होने पर भी ऐसा मत सोचो कि बहुत दिन जिऊँगी। मैं अपने कर्तव्य को पूर्ण करके तृप्त होकर सुख-शान्ति के साथ यहाँ से बिदा होऊंगी। इसलिए किसी को मुझ पर विशेष ध्यान रखने को आवश्यकता नहीं। कोई-न-कोई नौकर-नौकरानी तो रहेंगे हो। इसलिए अब तुम भी जाओ और आराम करो। यात्रा से तुम भी बहुत थकी होगी। हेगड़तीजी जल्दी ही आ जाएंगी।" एचलदेवी ने कहा। "मुझे भी उन्हें देखने का कुतूहल है। उनके आ जाने पर मैं विश्राम करने चली जाऊँगी। यों तो मुझे इतनी थकावट भी नहीं हुई।" "तुम्हारी इच्छा।" एचलदेवी चुप हो गयीं। दोनों थोड़ी देर चुप रहीं। फिर एचलदेवी ने कहा, "अम्माजी, बिट्टियण्णा की पूरी जिम्मेदारी अब तुम ही पर होगी।" "और क्या है? वह छोटी उम्र का होने पर भी बड़ा बुद्धिमान है। सभी योग्य विद्याओं में अच्छी जानकारी उसने प्राप्त कर ली है।" "तुमने दिलचस्पी ली, इसलिए यह सब सम्भव हुआ। वास्तव में तुम उसको पूरी जिम्मेदारी कभी को ले चुकी हो। फिर भी उसकी माँ ने उसे मेरी गोद में डाल दिया था, इसलिए एक बात तुम्हें सूचित कर देना जरूरी है। उसे सबके सामने कहना उचित न होगा। उसके लिए एक योग्य कन्या की खोज करनी है।" "आपकी दृष्टि में कोई योग्य कन्या हो तो उचित समय पर ब्याह किया जा सकता है। "सो तो ठीक है। एक सूचना मेरे मन में है। परन्तु वह योग्य होना भी चाहिए न? वह एक दण्डनाथ का बेटा होने पर भी राजकुमारों जैसे पला है। उसके लिए योग्य, सभी तरह से योग्य कन्या होनी चाहिए। मुझे कुछ मालूम नहीं। एक बार किसी प्रसंग में हमारे सन्धि-विग्रही नागदेव की लड़की को देखा था। वह उसी प्रसंग में...जब नागदेव का स्वर्गवास हो गया था। वह लड़की कैसी है, क्या है कुछ मालूम नहीं। मन्त्री पोचिमय्या की भी एक लड़की है। इनमें कौन योग्य बनेगी, इसे देखकर योग्य समय में उनकी शादी करा देना तुम्हारा काम है।" "दोनों अच्छी हैं। नागदेव की बेटी दोनों में से अधिक होशियार है। मगर शादी के लिए अभी तो जल्दी नहीं है।" "जल्दी की बात नहीं। मेरे मन में जो बात थी उसे तुमसे और अप्पाजी से कह देना चाहिए, इसलिए कहा।" "उक्त सूचना के अनुसार उपयुक्त समय में कर सकते हैं, यही मेरी भावना है। सन्निधान के कहने पर बिट्टियण्णा मान जाएगा, ऐसा मेरा विश्वास है।" "ठीक है। अब यह दायित्व तुम लोगों पर है। एक और बात है। उसका मुझसे पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 13

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