Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 3 Author(s): C K Nagraj Rao Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 9
________________ 1 2 ने आकर मेरे इस दुःसाध्य प्रयत्न के भार को कम कर दिया, यही काफी है। अब जाकर तुम सब आराम करो।" एचलदेवी ने भावविभोर होकर कहा। उनमें अचानक ही एक तीव्र भर एक नयी थी। "मैं यहाँ रहूँगी। बाकी सब जाकर आराम करें। पण्डितजी इधर आइए।" शान्तलदेवी ने कहा । पण्डितजी धीरे से महामातृश्री के पलंग के पास आये। "देखिए पण्डितजी, नब्ज की क्या गति है ? हमारी अम्माजी को सन्तोष हो इसलिए हाथ आगे कर रही हूँ। वही आइन्दा इस राष्ट्र की माता के सदृश होगी। उसकी इच्छा को मानना चाहिए।" कहकर एचलदेवी ने बायाँ हाथ आगे बढ़ा दिया। सोमनाथ पण्डित ने नब्ज देखी। आँखों के पलक उठाकर देखा। दो कदम पीछे हटकर खड़े हो गये । शान्तलदेवी ने पूछा, "अब आपके पास जो चूरण और छुट्टियाँ हैं, उन्हीं से काम चलेगा या कुछ नयी दवा बनानी होगी ?" "फिलहाल एक चूर्ण दूँगा। सुबह तक दूसरी दवा तैयार कर लूँगा।" पण्डितजी बोले । "वही कीजिएगा।" शान्तलदेवी बोलीं। और कुछ ब्यौरा नहीं पूछा। चूर्ण देकर पण्डितजी चले गये। राजलदेवी और बम्मलदेवी दोनों भी चली गयीं। "रेविमध्या, तुम सन्निधान को विश्राम कक्ष में ले चलो। माँ के आने तक मैं यहीं रहूँगी। मेरे साथ चट्टलदेवी रहेंगी। हाँ, जल्दी करो, जाओ।" शान्तलदेवी ने जैसे निर्णय सुना दिया | "हाँ, छोटे अप्पाजी, अम्माजी का कहना ठीक है। तुम्हें पूर्ण विश्रान्ति चाहिए। तुम राष्ट्र के लिए सबके प्रधान हो।" एचलदेवी ने कहा । "माँ, मेरे लिए तुम सबसे ज्यादा मुख्य हो ।" महाराज बोले । " हर बेटे को अपनी माँ वैसे ही प्रधान हैं जैसे तुम्हें। फिर भी तुम विवेकी हो इसलिए मेरी बातों का युक्तार्थ ग्रहण करो। तुम यहाँ रहकर करोगे क्या ? यहाँ रहने से तुम्हारी थकावट और बढ़ जाएगी। उठो । रेविमय्या, अब देर मत करो।" एचलदेवी ने कहा । बिट्टिदेव के उठने के लक्षण नजर नहीं आये। "रेविमय्या, सन्निधान जब यहाँ पधारे, तब वे अपने मनोबल के कारण सशक्त थे। अब वे खुद उठ नहीं सकेंगे। आओ, मैं भी साथ दूँगी। उन्हें उठकर खड़े होने में मदद मिल जाएगी।" कहती हुई शान्तलदेवी पलंग पर से उतरकर बिट्टिदेव के निकट पहुँची । उदयादित्य "मैं साथ दूंगा" कहता हुआ उठ खड़ा हुआ और बोला, "यह पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन 11Page Navigation
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