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भाषाटीका सहिता |
( १५ ) भावकी आरंभसंधि १ ० । १० । २४ । ५ से अंतर किया ०। ६।२९ । ३४ यह ग्रहसंध्यंवर हुआ, इसमें इसी आरंभसंधि १० । १० । २४ । ५ के साथ द्वितीयभाव १० । २७ १९ । ३४ का अंतर किया ० । १६ । ५५ । ३० यह भावसंध्यंतर हुआ इसका भाग दिया भाज्य ग्रहसंध्यंतर, भाजक भावसंध्यंतर दोनों अंशादिक हैं इसलिये इनको सवर्णित किये भाज्यपिंड २३३७४ में भाजक पिंड ६०९३० का भाग दिया लब्ध० शेष २३३७४ को ६० साठ गुणे किये १४०२४४० हुये भाग ६०९३० का दिया लब्ध २३ कला आयी शेष १०५० बचे इनको ६० गुणित किया ६३००० हुए इनमें फिर भाजक भावसंध्यंतर ६०९३३० का भाग दिया लब्ध१ विकला आयी ऐसे फल ३ तीन आये ० | २३|१ ये भावसे यह न्यून हैं अतएव चयसंज्ञक सूर्यके फल हुए इसी प्रकार चंद्रादि ग्रहों के फल जानना - अब विश्वा-आनयन कहते हैं - सूर्य के फल २३ । १ को ३ तीनका भाग दिया लब्ध ७।४० ये विश्वा हुए अथवा फल २३|१ को २०वीस गुणा किया ४६०। २० साठ ६० का भाग दिया लब्ध ७ शेष ४० बचे ये विश्वा आये, प्रकार चंद्रादिकके विश्वा जानना.
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फल.
क्षय चय.
विश्वा.
अथ ग्रहाणामवस्था नयनमाह व्यङ्कटेशः ।
बालाद्यवस्थाः क्रमशो ग्रहाणामोजे समे तद्विपरीतमाहुः । बालः कुमारोऽथ युवा च वृद्धो मृतो लवानामृतुभिः क्रमेण ॥ १० ॥
अब ग्रहोंकी अवस्था लानेकी रीति व्यंकटेश कहते हैं - ग्रहों की बालादिक अवस्था क्रमसे विषम (एकी) राशिमें छःछः अंशोंके क्रमसे बाल १ कुमार २
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