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— भाषाटीकासहिता।
(५९) अथ स्पष्टरश्मिसाधनमाह । चष्टोचरश्मियोगार्द्ध स्फुटरश्मिः प्रकीयते।
नखोनैक्ये दरिद्री स्यादिशोर्व सम्पदन्वितः ॥ ३३ ॥ अब स्पष्टरश्मिसाधन कहते हैं:-चेष्टारश्मि और उच्चरश्मिका योग करके अर्थ (आधा)करना,जो आवे वह स्पष्टरश्मि कहाती है। उस स्पष्टरश्मिका ऐक्य २०बीससे अल्प आवे तो दरिद्री होता है और२०बीससे अधिक आवे तो सम्पदावान होता है ॥ ३३ ॥
इति रश्मिसाधनम्।
उदाहरण । सूर्य स्पष्ट १० । १६ । ५३ । ३९ में अयनांश २२।२९।० युक्त करनेसे ११।९।२२।३९ सायन सूर्य हुआ। इसकी राशिम ३ तीन युक्त किये तो २। ९ । २२ । ३९ ये सूर्यका चेष्टाकेन्द्र हुआ।एवं चंद्रस्पष्ट ५। २९ । १९ । ९ मेंसे स्पष्ट सूर्य १० । १६ । ५३ । ३९ हीन किया तो ७।१२।२६।१०ये चंद्रका चेष्टाकेंद्र हुआ भौममध्यम ११।१२।३९।४८ भौमस्पष्ट ११।६।१४। ५४ का योग किया वो२२।१८।५४।४२हुआ,इसको अर्ध किया तो११।९।२७। २१ हुआ इसको भौमके चलोच (मध्यमसूर्य) १०।१५।३।२१मेंसे हीन किया वो शेष ११।५।३६।०भौमका चेष्टाकेंद्र हुआ। एवं बुधके मध्यमस्पष्टके योगके अर्थ १०१ १२१५३ । ४९ को बुधके चलोच (बुधशीघकेंद्र ११ । २३ ॥३१॥ ९ में मध्यम सूर्य १०।१५।३।२१ को मिलाया तो १०८।३४।३० यह बुधका शीघोच्च हुआ ) १०८।३४। ३० मेंसे हीन किया तो११।२५।४०४१ बुधका चेष्टाकेंद्र हुआ,इसी प्रकार शेष ग्रहोंका चेष्टाकेंद्र जानना । सूर्यके चेष्टाकेंद्र ९।२२।३९ में राशि युक्त करके अंशादिकोंको द्विगुण किये तो३।३८१४५।१८ सूर्यकी चेष्टाराशि हुई। चंद्रका चेष्टाकेंद्र ७।१२।२६।१० छः राशिसे अधिक है, अतएव १२ बारह राशिमेंसे शोधा शेष ४।१७।३३।५० हुए, इसी राशि ४ में मिलाया और अंशादिकोंको द्विगुण किये तो ५।३५।१४० चंद्रकी चेष्टारश्मि हुई । एवं भौमादिक ग्रहोंकी चेष्टारश्मि समझ लेना ॥
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