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वर्षपदीपकम् । नवांशाः प्राग्वत् ॥४२॥ नवांशके स्वामी प्रथम कह चुके हैं उसके समान करना ॥ ४२ ॥ यस्य ग्रहस्य दशांशैकादशांशो कर्तव्यौ तदीयभादौ दशैकादशगुणिते तदशांशादिभादिस्फुटः॥४३॥ जिस ग्रहके दशांश तथा एकादशांश करना हो उस (ग्रह) की राशि अंश कला विकलाको दशांशमै १० दशगुणा, एकादशांशमें ११ इग्यारह गुणा करना, क्रमसे कलामें ६० साठका भाग देना, लब्ध ऊपरके अंशमें युक्त करना, अंशमें ३० तीसका भाग देना और लब्ध राशिमे मिलाना फिर राशिमें १२ बारहका भाग देना जो शेष बचे वह दशांश एकादशांशके राश्यादि स्पष्ट होता है, इस स्पष्टको राशिके स्वामी दशांश एकादशांशके स्वामी होते हैं। ४३॥
स्वभादकांशाः॥४४॥
अपनी राशिसे जितनी संख्याके द्वादशांशमें ग्रह हो उतनी संख्यापर्यन्त गिननेसे जो राशि आवे उसका स्वामी द्वादशांशका स्वामी होता है ॥ ४४ ॥
स्वमित्रोच्चशुभवर्गाः शुभा अन्येऽधमाः ॥ ४५ ॥
स्व, मित्र, उच्च और शुभग्रहके वर्ग शुभ अन्य ( शत्रु सम) नीच और पाप आदिकके वर्ग अधम (नेष्ट ) होते हैं-अर्थात् जिस ग्रहके द्वादशवर्गमें शुभ ग्रहोंका स्वराशिस्थ, मित्रराशिस्थ उच्चराशिस्थ ग्रहोंका वर्ग अधिक हो वह ग्रह शुभफल देगा और जिसके द्वादशवर्गमें पापग्रहोंका शत्रुराशिस्थ ग्रहोंका नीचगवग्रहोंका वर्ग अधिक हो वह ग्रह श्रेष्ठ हो तो भी नेष्ट फल देगा ॥ ४५ ॥
१ एक राशिके १२ भागको कहते हैं-एक द्वादशांश २ अंश ३० कला ( ढाई अंशका होता है ।
द्वादशांशविभाग.
विभागसंख्या.
अंश. कळा.
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