Book Title: Patrimarg Pradipika
Author(s): Mahadev Sharma, Shreenivas Sharma
Publisher: Kshemraj Krishnadas

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Page 152
________________ भाषाटीकासहितम् । (१५१) ( वार इष्ट घटी पल) में पंक्ति ( अवधि ) के सूर्य से मासप्रवेशका सूर्य अधिक हो तो युक्त करना और अवधिक सूर्यसे मासप्रवेशका सूर्य न्यून हो तो आये हुए दिनादि फलपंक्तिके वारादिकमेंसे हीन करनेपर सो मासप्रवेशका वारादिक समय होता है ॥ ३ ॥ उदाहरण । द्वितीय मासप्रवेशका सूर्य ११ । १६ । ५३ । ३९ इसके समीपकी पंक्ति (अवधि ) का सूर्य ११ । १४ । ५९ । ३० इनका अन्तर किया १ । ५४ ९ हुए इसकी कला ११४ । ९ के अवधिक सूर्यकी गति ५९ । २३ का भाग दिया-भाज्यभाजक कलादिक हैं, अतः इनको सवर्णित किये भाज्यपिंड ६८४९ भाजकपिंड ३५६३ हुआ । भाज्यमें भाजकका भाग दिया लब्ध १ दिन आया-शेष ३२८६ बचे इनको ६० साठ गुणे किये १९७१६० हुए, इनमें ३५६३ का भाग दिया लब्ध ५५ घटी आयी शेष ११९५ को ६० साठगुणे किये ७१७०० हुए, इनमें फिर ३५६३ का भाग दिया लब्ध २० पल आये । ऐसे दिन,घटी,पलादिक फल १॥ ५५ । २० लब्ध आये, इनको पंक्तिके सूर्यसे मासप्रवेशका सूर्य अधिक है इसलिये अवधिके वार इष्टघटी पल ४ । २२ । १ में युक्त किये तो ६ । १७। २१ हुए, यह द्वितीय मासप्रवेशका इष्टसमय हुआ-अर्थात् पूर्णिमांत चैत्रकृष्ण ३० अमावास्या शुक्रवारके दिन इष्टघटी १७ पल २१ से मास द्वितीय प्रवेश होगा। ऐसे ही दिनप्रवेशका उदाहरण समझना। एवं दिनप्रवेशकालः ॥४॥ मासप्रवेशकालकी जो रीति कही है उसी प्रकार दिनप्रवेशकाल लाना अर्थात् दिनप्रवेशका सूर्य और उसकी समीपकी पंक्तिका सूर्य इन दोनोंके अन्तरकी कला करना पंक्ति के सूर्यको गतिका भाग देके दिनादिक फल ३ लाना उनको पंक्तिके वारादिकमें पंक्तिके सूर्यसे दिनप्रवेशका सूर्य अधिक हो तो मिलाना, न्यून हो तो हीन करना, तब दिनप्रवेशकाल होगा ॥ ४ ॥ उभयत्र स्पष्टाः खगा भावादयश्च कार्याः ॥५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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