Book Title: Patrimarg Pradipika Author(s): Mahadev Sharma, Shreenivas Sharma Publisher: Kshemraj Krishnadas Catalog link: https://jainqq.org/explore/034576/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध २२70 मोतिष cmco કુની વહ૫૧ ૨ya ?' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीः । पत्रीभार्गप्रदीपिका वर्षदीपकं च । दैवज्ञवय्यश्रीमन्महादेवशर्मविरचिते, तदात्मज - रत्नललाम ( रतलाम ) नगरनिवासि - पाठकोपाइौदुम्बर न्यौ० श्रीनिवासशर्मकृतभाषाटीकासहिते । ७५ खेमराज - श्रीकृष्णदासेन मुम्बय्याम स्वीये “श्रीवेङ्कटेश्वर” ( स्टीम् ) मुद्रणयन्त्रालये मुद्रयित्वा प्राकाश्यं नीते । संवत् १९८६, शके १८५१. LEVEL Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुद्रक और प्रकाशकखेमराज श्रीकृष्णदास, मालिक - "श्रीवेङ्कटेश्वर" स्टीम् - प्रेस, बम्बई. पुनर्मुद्रणादि सर्वाधिकार “श्रीवेङ्कटेश्वर " मुद्रणयन्त्रालयाध्यक्षाधीन है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका। 10 पाठक महाशयो!जिस सर्वमान्य वेदचक्षु ज्योतिषशास्त्रके द्वारा मनुष्योंका भूत, भविष्य, वर्तमान शुभाशुभ फलज्ञान, जन्मपत्र द्वारा होता है, उसी जन्मपत्रके गणितके प्राचीन तथा अर्वाचीन अनेक ग्रन्थ प्रस्तुत हैं परन्तु विशेष परिश्रम व परिज्ञान विना उन ग्रन्थों सर्व साधारण तथा विशेषकर बालकोंसे भलीभांति सुगमतापूर्वक गणित नहीं हो सकता, यही सोचकर मेरे परमपूज्यपाद पिताजी श्री श्री ६ श्रीदैवज्ञवर्य, श्रीमहादेवजी महाराजने अनेक प्राचीन ग्रन्थोंका सारांश लेके थोड़े ही परिश्रमसे भलीभांति जन्मपत्रका गणित बनानेके योग्य हो जाय ऐसा यह "पत्रीमार्गप्रदीपिका" नामक छोटासा ग्रन्थ निर्माण कर अपने द्रव्यसे मुद्रित कराकर विना मूल्य विद्वज्जनोंकी सेवामें समर्पण किया था किंतु ईश्वरकी कृपासे थोड़े ही दिनोंमें इसका इतना आदर जनसमुदायमें हुआ कि कई यन्वाधीश उपयोगी समझ छापनेके लिये आग्रह करने लगे परंतु मेरे पूज्यपाद पिताजीने श्रीमान् खेमराजजी सेठसे अधिक स्नेह होनेके कारण उन्हींको छापनका स्वत्व दिया, जिसकी आजतक कई आवृत्तियां छप चुकी हैं सो पाठकोंको विदित ही है. इस ग्रंथकी भाषाटीका करने बावत मेरे कई मित्रोंका कितने ही दिनोंस इस प्रकारका आग्रह था कि यदि ऐसे उपयोगी ग्रन्थकी पूर्ण रीतिसं भाषाटीका बनायी जाकर इसमें अन्यान्य आवश्यक विषयोंका समावेश भी किया जाय तो यह ग्रंथ बालकोंको विशेष उपयोगी होगा,एसी २ कई प्रकारकी उत्तम उत्तेजनाओंसे उत्तेजित हो आज मैं ( अल्पज्ञ) इसीकी सरल हिन्दीभाषाटीका तथा उदाहरण तथा आवश्यक आवश्यक स्थानोंकी टिप्पणी, और भी जिन जो उपयोगी विशेष कोष्ठकोंकी इसमें आवश्यकता थी उनका भी समावेश करके आप लोगोंके दृष्टिगोचर करानेको उद्यत हुआ हूं। सो, इसमें कहीं दृष्टिदोषसे वा लेख प्रमादसे किसी प्रकारकी त्रुटि रही हो तो विद्वज्जन कृपादृष्टिसे सुधारके अशुद्धियोंमें हास्य न करते शुद्धार्थ से संतुष्ट हो मेरे परिश्रमको सफल करेंगे यही सविनय निवेदन है। इस ग्रन्थका समग्र अधिकार मैं प्रसन्नतापूर्वक श्रीमान् मान्यवर सेठ श्रीकृष्णदासात्मज-खेमराजजी "श्रीवेङ्कटेश्वर' 'स्टीम् प्रेसाध्यक्षको देता हूं कि जिन्होंने इस ग्रन्थको परम प्रसन्नतासे सुन्दर छापनेका आग्रह दिखाके मेरा उत्साह बढ़ानेकी उदारता दिखायी, इसका मैं उन्हें धन्यवाद भी देता हूं। भवदीय-- ज्यौ० श्रीनिवास मदादेवजी शर्मा रतलाम. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीगणेशाय नमः । अथ पत्रीमार्गप्रदीपिका । सोदाहरणभाषाटीकासहिता । DAM अथ मंगलाचरणम्. नवा श्रीशिवशारदा गणपतिब्रह्मार्क मुख्यग्रहान् पत्रीमार्गप्रदीपिकां स्फुटतरां कुर्वे महादेव वित् । यत्पक्षे हि घटन्ति शुद्धखचराः कार्यास्तु तत्पक्षका स्वव्यक्षोदययोः खरामविहृतौ प्राप्ताः पलादिध्रुवाः ॥ १ ॥ नत्व श्रीगुरुपत्कजं गजमुखं साम्यं शिवं चाच्युतं पत्रीमार्गप्रदीपिका सुविवृतिं कुर्वे सतां प्रीतये | पाराशर्य्यकुलाभिजात गणकोऽहं श्रीनिवासाभिधो विद्वन्मण्डितरत्न पूर्वसतिकृच्छ्रीपाठकोपाह्वयः ॥ १ ॥ निर्विघ्नता से ग्रन्थ समाप्त होनेके अर्थ ग्रंथकर्त्ता प्रथम गुरु गणेशादिदेवोंको नमस्काररूप मंगलाचरण शार्दूलविक्रीडितवृत्तके पूर्वार्द्धसे करके ग्रन्थारम्भ करते हैं · श्रीशिवजीको, सरस्वतीजीको, गणपतिजीको, ब्रह्माजी और सूर्यको आदि ले नवग्रहों को नमस्कार करके महादेव ज्योतिर्विद अत्यंत सरल पत्रीमार्गप्रदीपिका ( जन्मपत्रीके मार्गको प्रकाशित करनेकी प्रदीपिका ) नाम ग्रन्थको करता है, आर्यब्रह्मसौ दिपक्षों से अपने देशमें जिस पक्षके स्पष्ट यह वेध करनेसे दृक्तुल्य होते हों उसी पक्षके स्पष्ट ग्रह करना, स्वदेशोदेय और लंकोदयोंक ३० 키 १ भाषाकार विघ्नविच्छेदार्थ मंगलाचरणरूप गुरु गणपतिको प्रणामपूर्वक भाषारचनाका प्रयोजन तथा अपना गोत्र और निवासस्थान कहता है श्री ( शोभायुक्त ) निजगुरु ( महादेवजी ) के चरणकमल और गजमुख (गणपति) पार्वतीसहित शङ्कर और लक्ष्मीसहित विष्णुभगवान्को नमस्कार करके पराशरकुलमें उत्पन्न हुआ (पराशरगोत्र ) पाटक ऐसे उपनामसे प्रसिद्ध विद्वन्मंडलीकरके सुशोभित रत्नपुर ( रतलाम शहर ) में निवास करनेवाला नैं श्रीनिवासगणक ( ज्योतिर्विद् ) सज्जनोंके प्रसन्न होनेके अर्थ पत्रीमार्गप्रदीपिका की भाषाटीका करता हूँ ॥ १ ॥ २ गणेशदैवज्ञः- “लकोदया विघटिका गजमानि गोङ्कदखास्त्रिपक्षदहनाः क्रमगोत्क्रमस्थाः । हीनान्विताश्वरदलैः कमगोत्क्रमस्थैमेषादितो घटत उत्क्रमतस्त्विमे स्युः " ॥ १ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लंकोदयाः रतलाम। चरखंडा: रनरस्यदत्रोदया: पत्रीमार्गप्रदीपिका। तीसका भाग देना, लब्ध आवे वह पलादिक ध्रुव जानना (स्वदेशोदयको ३० तीसका भाग देनेसे स्वदेशोदयका पलादि ध्रुव और लंकोदयको ३० का भाग देनेसे लंकोदयका पलादि हो) उदाहरण। रवलामशहरके मेषराशिके स्वदेशो- म. २७८ मी. ५१ मे. २२० मी. दयपल २२७ के ३० तीसका भाग मि. ३२३ म. १५ मि. ३०६ म. दिया लब्ध ७ । ३४ आया यह मेष क. ३२३ ध. क. ३४० घ. राशिका स्वदेशोदयका पलादि ध्रुव हुआ सिं. २९७ . ४१ किं. ३४० व. .२७८ ५१ कि. ३२९ तु.. इसी प्रकार मेषराशिके लंकोदयपल २७८ के ३०तीसका भाग दिया,लब्ध९।१६ आये, यह मेषराशिका लंकोदयका पलादिक ध्रुव हुआ, इसीतरह स्वदेशोदय और लंकोदयको बारह ही राशियोंके पलादिक ध्रुव जानना ॥ १ ॥ वृ. २५८ अथ लगदशमपत्रसाधनमाह - स्थापयेत्खं क्रियारंभे ततः स्वध्रुवकान्वितम् । निरयनं भवेत्पत्रं लग्नस्य दशमस्य च ॥२॥ . अब लग्नपत्र दशमपत्र बनानेकी रीति कहते हैं-मेषराशिके आरंभमें (मेषराशिके० शून्य अंशके नीचे ) तीन शून्य लिखना,अनंतर स्वदेशोदय और लंकोदयकी मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, आदिक राशियोंके पलादिक ध्रुव क्रमसे युक्त करना सो निरयनलमपत्र दशमपत्र हो (स्वदेशोदयकी मेषादिक राशियोंके पलादिक ध्रुव युक्त करनेसे लमपत्र और लंकोदयकी मेषादिक राशियोंके पलादिक ध्रुव युक्त करनेसे दशमपत्र होता है ) ॥ २॥ उदाहरण। नीचे लिखे हुए चक्रमें मेषराशिके आरंभमें तीन शून्य लिखके रत्नपुर ( रत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकास हिता। (७) लाम) के स्वदेशोदयका मेषादिक राशियोंका पलादिक ध्रुव क्रमसे युक्त किया इसलिये यह रतलामका लमपत्र हुआ, इसी प्रकार जिस ग्रामका लनपत्र करना हो उस ग्रामके स्वदेशोदयके पलादि ध्रुवके युक्त करनेसे उस ग्रामका लनपत्र हो जायगा और लकोदयका पलादिक ध्रुव युक्त करनेसे सर्वदेशका दशमपत्र हुआ। इयं रत्नपुरे लग्नपत्रनिरयनपलभा ५।८ चरखंडा ५११४१।१७ - २२/५/३/01/20/29/१२|१३|३४ १५ १६/१७३४१२/२०/२१/२२/२३/२४, २५/२६ २७ २८/२१/ : او او او او او او او اور १२/२२/२/२/२२/२/३३३ [१५/२२३०३७४५/५२०/०१५२३३०३८४५५३१/१६२३३१४६५/०९/१६२४३१३९ ३/४२१६५०२४२०३३/६/०५४४८२२५६३०४३८१२४६२०५४२८२३६१०/४४ .IM- - - - - - - - मि | 1 m - - - - ---- - -- - - - - - - - - - - . * રવિ ર૦૪૭): * १३२१३०३०/४०,५६४१३२१३०१९७५६.३२२०१९४७५३ .३६१२८२४/०३६१२ ०३६१२४८२४०३६१२४८२०३६१२४८/ १०३६१२४८२४ ६ १२१०२°°१२६१५.११TTIN - - - - - - 1010101010/९/ ९/१९१०१०१०१०१०१०११,११११११११११,१२,१२ १२ १२ १२ ११. ५१५२५३५४५५६ ६ १६२६१६४७५७७ १७२७३८४८५८/०१८२९३९४९५९ १ २०३०४० २३६४८० १२२४३६४८० १२२४३६४८० १२२४३६४८-१२२४३३४८० २२४१६४८१२ १३/१३/१३१४१४१४/१४१४१५१५१५१५१५१६१६१६१६१६१६/१७१७१७१७१७/१८/०८/०८/१०/. ४६/५६/०१९३०/४१५३/४ १५२७३८४९१/१२२३३५/४६५७९ २०३३५४५१७२०३९/19 ४० • ६२०/४०० २०/४० • २०४० २०४० ० २०४० ० २०४० • २०४० ० २०/४० • j२०४०२० १९१९/२०/२०/२०२०/२०/२०२१२१२१२१२२२२२२२२,२२,२३२३३२३२३२३/२४२४० १०/२१३३/४४५५७१८३९४१५२/३ १५,२६३७४९०११२३३४५५७/८ १९११॥ २०/४० 0 |२०/४०० २०/४०/ २०४०/० २०४० • २०४० • ३०/४०/- २०/४०२० ર૪ર૪રરરરરરર રરરર રર ર ર રર૮૨૮૨૦ ર૦ર૮રરર રરરર | ||३४२/५३/३/१४२५३६/४७/५२०३१५:४३ ४ १५/२६|30/6९/१०/२१३२४३५४५/१६/२७/१८/९/201: 1०५८५६५६५२५०/४८/४६/४४४२४०३८३६३४३२३०३९२६२४२२२०/१०१०१११२१०/८/४/२५८० ३०३०३०३०३०३०३३३३१३२३२३२३२३२३२३३३३३३३३३३३damadamarp५३५/-1. २१३२४३५४/५/०६/२५३८४९०११२२३३४४५५६ १७२८३९५०११२२३/३/०५/५६/१८१. ०५८/५६५४५२५०४८/४|४|४२४०३१६३४३२३०२०२६२४२२२०१६/१४/१२१०/०६/१५८ ३६३७३७१७३७३७३३३३३३३३९३९४०/४० ५९११२२,३३,४५५६१९३०४१५३४ १५/२०१४ • २०/30/0/20/800 २०४० २०४० ०२०/४०/०२०:४० ०२० ----- - - ------ Jaxs४४५:४५४५४५,४५/६/ral २१३०४४५५/०१८२९४१५२/02 |100/0/100 २०/४००२०/४०/०२०/४० ०/२०४०० २०४०/०२०४०/०२०/४० १४७/४८/४८४८/४/xc/sc/४९/6९४९,४९४९४९/५०/५०५०५०५०५०५१५१ १९२९४०५०/० |१०|२०३१४१५१/१,११२२३२४२५२/ २ /१३२३३३४३५३/४/४/२४ ३६/४८/०/१२/२४३६४८/० १२२४३६८० /१२२४३६/४८/०१२२४३६४८० ||५१५२/५२,५२/५२५२५२५२५३५३५३/५३/५३५३,५३,५४५४५४५४५४५४५१५५ ५.५५५५/५५५५ १२२०/२ /६/५५.२ १२२१२०३८४६५५ ४ १२२१२९१८४७५५.४१२२१३०३४० 1०३६/१२/४८/२४.३६/१२ ४८२१/ ० /१६/१२/४८२६०३६/१२४८/२४/ ०३६१२४८/२४.३६ २५ पी।५६५६५६५६५६/५६/५६५७५७५७५७५७५७५७५७५८५८/५८५८५८५८५८५८५९५९५९५९५१५९५९ १३,२०२८३५/७३,५०५०/५१३२१२८३६४३५१५८६ १४२१२९३६४४५१५९७१४२२२९३७५२. ||•|४||४२/१६/५०२४/५८/३२/680/१४४८२२५६३०/४३८१२४६२०५४२८२१६१०४४१८५२/16rt . ३४३.४३.४३ 1.55. -SI. -- - २ - - - - - --- - - - - II Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्रीमार्गप्रदीपिका। अथ निरयनदशमपत्रचक्रम् । ५६/७/८/९/२०,२१,१२,१३,१४,१५/१६, १७ १८ १९ २० २१ २२ २३ २४ २५ २६ २७ २८ २९१७ . [१] . |४|१४२३३२३४५१०९ १९२८३७४६५६५१४२३३२/५०/२४४०५६/१२/२०४४ १६,३२/४८४२०३६५२ _ _ सिं. २०२०२०/२०/२०/०२/२०/२०/२२२२२२२२२२२२२२/२३२२ २३ २३.२.२.२. २ २ /- 1 - - ३०/४०५७/०७०२७३०४७ ३७४७५७७१७२७३७४७/५७० ०५८:५६/५७/५२५०४८४६ ४०३३३३४३२३० २८/२६२४२२२०१६ ११११११/१२/१२/१२/१२१२,१३, १३ १३/१३१३3३१४ ३०५०/२०३०४१५२ ૧૩૨૪૩૪૬૫૬ ૧૮ર૪૦૦ ૧) ૨૨૨૩૩૪૪ ૨૨૦ 10/15३२१४४५०३६/२२ ५४४०२६/१२/५८४४३०/१६/२/४८३४२०६५२३२६१० १५१५१५/१५,१५,१५:१६/१६/१६१६,१६१६/१७१७१७१७१७१८१/acncae18/१९ ००२१३२४३५३१५/२६.३६४७५०/५१९३० ४१५२ १३ १३२४३५४६५६-१८ •४६३२१०५०३६ २२८१४४०२६/१२/४८३४३०६/२४८३४२०६५२३८२४/१०५६/४२ २०२०२०२०२११४ २१२१:२१२१२२२२२२२२२२२२२३/२३/२३२३२३२३२४/२४/२४/२५ २३३२४२५२/२/१२२२३२४२५२/२/१२/२२३२४२५२/२/१२२२३२४२५२२ १२२२३२ ०५८/५६/५४४५२,५०/४८/४६/४/४२४०३८३६३४३२३०२०२६२४२२२०/१०/१६१४/१२१०/१६|| - - - - - - - - २५२५२५२५२५,२६२६२६२६२६२६ २७ २०२७२७२७२०२७ २८ २८२०२०२०२०२९२९२९२९२९२९ ४०/४९५९८१७२६३६४५५४३/१३२२३१४१५०५९८१८२७३६४५५५/४/३२२३२१५० • १६३२४८४२०३६५२ ८२४४०५६१२१८/४४.१६३२४८/४/२०३६५२/८/२४/४०/५६/१२२८/४४१६ - - - - - ३०३०३०३०३०३१३39 ३१३१३२३२३२३२३२३२३२२३३१२२ ३२३२३३३३३३३३३३३३३४ २०३०४६५५१४२३ ४१५१/०९:१९२८३७६६५६५१४२३३३४२५१०१०१९२८ "/२०१६५२८२४४०५६१२२००४४ ० १६३२४८४२०३६५२ ८२४४०५६/१२२८ ३५३५/३५३५३५३६३६३६३६३६३६३७३३७३७३३३३३३३३ ४७५७१७२०३७४७५७-१७२०३७४७५७७१७२७३७४७५७/०/१७२७३७ ०५८/५६५४५२५०/४८४६/४/४२४०३३९४२३०३८२६२४२२२०१८१६७४१२१०| - - - - - -- - - - -- ३३९३९४०४०४०४०४०४१४१४१४१४१४१४२४२४२४२४२४३४३३३३३ersar ४७५२०३०४१ २२३/१३,२४३५४६५६१०२९४०५०४१२२३,३३४५५ २२८५४४०२६१२५८४४३०१६२/४८३४२०६५२३२०५६४२२८/४/४६ ४६/४६४६,४६४६ ४६/४७४७४७४७४७४८४८ ४८xcisexc४९४९४९/५/४९५०५० |४|१५२६३६४७५८/९/१९३०४१५२३ १३२४३५.४६५६१०२९१/० १२ १४४५०३६२२८५४.४० २० १२५८४४३०१६ २५८३४ २०६५२३८२४/०५६/१२२०१६ - - - - - - - - - - - -- - ५०/५०/५०५१५१५१५१५१५१,५२५२५२५२५२५२५३५३५३५३५३.५३५४५४५४५४५४५४५५,५५० २३३२४२५२२/१२२२३२४२५२२ १२२२३२४२५२२ १२२२३२४२५२/२/१२२२१२४२५२/१२/९ |-५८/५६५४५२/५०/४८/४६४४४२४०३८३६३४३२३०२८ २६ २४ २२२०१८/१६५४१२०६ ५ ८ ५५५५५५/५५५५/५६५६/५६५६५६५६५७५७५७५७५७५७५७५८,५८५८५८५८/५८५९५५५५५५ २२३१४०४१५९/१७२६३६४५५४३३२२३१४१५०५९/०१८२७३६४५५५२२१२१५० || - ૧૬૨૪૮ ૨૦૬ દર ૮૨૪૫૫૬૬૨૨૮૪૪ ૧ર૮ ૪ રરકાર -ર૦૧૬/૦ર૮૬ Mm . . ५ अथ लग्नदशमसाधनमाह । तत्र दशमेष्टसाधनमाहउदयादिष्टकालेषु युदलं हि प्रपातयेत् । दशमस्य भवेदिष्टं सारी खागौ सुखांगने ॥ ३ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। (९) अब लग्न दशमसाधन कहते हैं-जिसमें प्रथम दशमका इष्टसाधन कहते हैं। सूर्योदयसे-घट्यादिक इष्टमेंसे दिनाई हीन करना (निकालना ) शेष बचे वह दशमभावका इष्ट हो । दशमभाव और लग्नमें छः राशि युक्त करनेसे सुखभाव 'और सप्तमभाव होते हैं (दशमभावमें छः राशि युक्त करनेसे चतुर्थभाव और लग्नमें छः राशि युक्त करनेसे सप्तमभाव हो) ॥३॥ भांशजौ सायनार्कस्य खागांको स्वेष्टयुक्कृतौ। कलाद्यास्तध्रुवघ्नाः स्युर्विपलायास्तु संयुताः ॥४॥ तदल्पकोष्ठजौ भांशी ग्राह्यौ लिप्तादिका वियत् । अल्पेष्टविवरात्पार्थान्तराप्तांशादिसंयुतौ ॥५॥ अयनांशादिवियुताल्लग्नं मध्यं स्फुटं भवेत् । । सायनसूर्यकी राशिअंशके समान दशमपत्र और लगपत्रके कोष्ठकमें अपना अपना घट्यादिक इष्ट युक्त करना ( दशमपत्रके कोष्ठकमें दशमका इष्ट लग्नपत्रके कोष्ठकमें जन्मसमयका इष्ट मिलाना) तदनन्तर सूर्यकी कलाविकलाको सायन सूर्यकी राशिके ध्रुवसे गुणा करना; गुणन करके आये हुए अंकोंको इष्टयुक्त किये हुए कोष्ठकके विपलमें युक्त करना ॥ ४ ॥ उस इष्टयुक्त किये हुए कोष्ठकसे अल्प ( न्यून ) कोष्ठक जिस राशिअंशमें हो वह राशिअंश लेना, उसके नीचे कला विकला शून्य शून्य लिखना, तदनंतर इष्टयुक्त कोष्ठक और अल्पकोष्ठकका अंतर करना, शेष अंतरमें अल्पकोष्ठक और उसके आगेके ( ऐष्य ) कोष्ठकके अंतरका भाग देना, लब्ध आवे वह अंश जानना शेष बचे उनको साठ गुणा करना फिर अंतरका भाग देना, लब्ध कला आवे फिर शेषको ६० साठगुणा करके अंतरका भाग देना, लब्ध विकला आवे, ऐसे आये हुए अंशादि तीन फलोंको इष्टयुक्त कोष्ठकसे अल्पकोष्ठकके आये हुए राशि अंशादिकमें युक्त करना ॥ ५ ॥ अयनांश हीन करना सो लग और दशमभाव स्पष्ट हो । उदाहरण। श्रीगणेशाय नमः ॥ स्वस्ति श्रीसंवत् १९२८ शके १७९३ प्रवर्तमाने अमांत-माघकृष्ण,पूणिमांव-फाल्गुनकृष्ण३तृतीयायां भौमवासरे घ. २५५४९ १ शकमेंसे ४४४ चारसे चुम्मालीस हीन करनेसे अयनांश होते हैं । अयनांशोंको स्पष्टसूर्यमें मिलानेसे सायन सूर्य होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) पत्रीमार्गप्रदीपिका। परं ४ चतुझं हस्तनक्षत्रे व. २९ । ९ परं चित्रानक्षत्रे गण्डयोगे, व.४४।५ बालवकरणे एवं पञ्चाङ्गशुद्धावत्र दिवसे श्रीमन्मार्कण्डमण्डलाोदयादिष्टघटी ५६ पल ४८ विपल १८ स्पष्टार्क १० ॥ १६॥५३॥३९ लग्न ९।२३ समये ज्यो. श्रीनिवासशर्मणो जन्मसमयः । दिनमानम् २८१५० अयनांशाः २२।२९।० 10 अथ जन्माङ्गम्. रतलाममें तथा रतलामके समीपके ग्रामोंमें सौर कम्प क्षके स्पष्टग्रह ग्रहवेधसे दृक्तुल्य मिलते हैं इसवास्ते सौर पक्षके स्पष्टग्रह ग्रहलाघवाख्य करणग्रंथसे किये ग्रंथगताब्दाः ३५१ चक्र ३१ अधिकमास ६ मासगण १३६ ऊनाह ६४ अहर्गण ४०३९. मच सटाःसटाः .. ... .. : 5:00 " ... . . . . . | . . | रा. के. २२३ " ३८| |४|४६ ३९ १५४ १८ Mms/RAT | |२३ ३॥ ३॥ 2 ..|३| लगसाधनका उदाहरण । स्पष्टसूर्य १०।१६।५३।३९ में अयनांश २२।२९।० युक्त किया ११ । ९।२२।३९ यह सायनसूर्य हुआ,इसकी राशि ११ अंश ९ के समानलमपत्रका कोष्ठक ५७१२१६ में जन्मसमयका घटयादिक इष्ट ५६१४८।१८ युक्त किया ५४।९।२४ हुए इसकी विपलके २४ अंकमें सूर्यकी कला विकला २२॥३९ को सायनसूर्यकी ११ राशिके ध्रुव ७३४ से गुणन करके आये हुए १७१ अंक युक्त किये ५४।९।१९५ हुए विपल ६०साठसे अधिक हैं इसलिये साठका भाग दिया लब्ध ३ आये ये ऊपरकी पलके अंक ९ में युक्त किये ५४ । १२॥ १५॥ यह इष्टकोष्ठक हुआ ॥ इससे अल्पकोष्ठक लमपत्रमें ५४।४।० दश(१०) राशि १५ अंशके कोष्ठकमें मिलता है इसवास्ते १० राशि १५ अंश लिये इसके नीचे कलाविकला •० शून्य शून्य लिखनेसे १०१५ ०० हुए तदनंतर अल्पकोष्ठक ५४।४। और इष्टयुक्त कोष्ठक ५४।१२।१५ के अंदर किया ०८।१५शेष बचे इसमें अल्पकोष्ठक ५४।४।० और इसके आगेका (ऐष्य) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषारीकासहिता। (११) कोष्ठक ५४।१२।३६को अंवर ०८।३६ का भाग दिया परंतु भाज्य ८।१५ भाजक ८३६ हैं इसलिये इनको सवर्णित करके भाग दिया भाज्य पिंड४९५ भाजकपिंड ५१६ हुए भाज्यपिंड ४९५ में भाजकपिंड ५१६ का भाग दिया लब्ध अंश आया शेष ४९५ को ६० साठगुणा किये २९७० ० हुए इनमें भाजक ५१६ का भाग दिया लब्ध५७कला आयी शेष२८८ बचे इनको ६० साठ गुणे किये १७२८० हुए इनमें भाजक ५९६ का भाग दिया लब्ध ३५ विकला आयी ऐसे अंशादिक फल तीन ०।५७।३५ आये इनको १०।१५०० में युक्त किये १०।१५।५७।३५ हुए इसमेंसे अयनांश २२।२९।० हीन किये शेष९।२३।२८।३५ बचे यह स्पष्टलन हुआ इसमेसे६छ राशि मिलानेसे ३।२३। २८॥३५ सप्तमभाव हुआ इसीप्रकार १० दशम भावका साधन किया. उसका उदाहरण भी नीचे लिखा है-प्रथम दशमभावके इष्टका उदाहरण-सूर्योदयसे घटयादिक इष्ट ५६।४८१८ दिनार्ध १४॥२५॥० दिनार्धको सूर्योदयसे इष्टमेंसे हीन किया शेष ४२।२३।१८ बचे, यह दशमका इष्ट आया-तदनंतर सायनसूर्य १३॥९॥२२॥३९ की राशि ११ अंश ९ के समान दशमपत्रका कोष्ठक ५६।४५।२४ में दशमका इष्ट ४२।२३।१८ युक्त किया ३९।८।४२ हुए इसकी विपरके अंक ४२ में सूर्यकी कला २२ विकला ३९ को सूर्यको राशि ११ के ध्रुव ९।१६ से गुणन करके आये हुए २०९ अंकको युक्त किये ३९।८।२५१ विपलमें ६० का भाग दिया लब्ध ४ को पलके अंक ८ में मिलाये ३९।१२।११ यह इष्टयुक्त कोष्ठक हुआ इससे अल्पकोष्ठक ३९७१६ राशि ७ अंश २७ के कोष्ठकमें मिलते हैं इसलिये७राशि २७ अंश लिये, नीचे कला विकला० शून्य लिखी ७।२७०० हुए-तदनंतर अल्पकोष्ठक ३९। ७।६ और इष्ट कोष्ठक ३९।१२।११ का अंतर किया ०।५।५ शेष बचे इनसे अल्पकोष्ठक ३९४६ और इसके आगेका (ऐष्य ) कोष्ठक ३९।१७।४ के अंतर ९।५८ का भाग दिया परंतु भाज्य भाजक दोनो पलादिक अंकके हैं इसलिये भाज्य भाजकको सवर्णित करके भाज्यपिंड ३०५ में भाजक ५९८ का भाग दिया लब्ध० अंश आया शेष ३०५ को ६० साठ गुणा किया १८३०० हुए इनमें भाजकर्पिड ५९८ का भाग दिया लब्ध ३० कला आयी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) पत्रीमार्गप्रदीपिका। शेष ३६० बचे इनको ६० साठ गुणे किये ३१६०० हुए इनमें भाजक ५९८ का भाग दिया लब्ध ३६ विकला आयी ऐसे अंशादिक फल ०३०३६ आये इनको ७।२७०० में मिलाये ७।२७:३०।३६ हुए इसमेंसे अयनांश २२।२९/० घटाये ७।५।१३६ शेष बचे, यह दशमभाव स्पष्ट हुआ इसकी राशिम ६ छः राशि युक्त करनेसे १॥५१३६ चतुर्थभाव हुआ ॥ अथ भावसंधितचक्रसाधनमाहलग्नं तुर्यात्सप्तमातुर्यभावं शोध्यं राशिः पञ्चभिस्ताडितोंऽशाः । अंशायाश्चेदिग्घताः स्युः कलाद्या लग्ने तुर्ये पञ्चवारं प्रदद्यात् ॥६॥ तन्वाद्याः संधिसहिता भावाः षट्पड्युताः परे । यदत्यारंभयोः संध्योरन्तस्थस्तद्गतो ग्रहः ॥७॥ अब भावसंधि और चलितचक्रका साधन कहते हैं-लमको चतुर्थ भावमेंसे चतुर्थ भावको सप्तमभावमेंसे शोधना ( हीन करना) शेष राशिको ५ पांच गुणी करना अंश होवे और जो अंश कला विकलाको दशगुणा करे सो कलादिक हो, ऐसे अंशादिकको लगमें और चतुर्थभावमें (चतुर्थभावमसे लगको हीन किया हो तो लममें, सप्तमभावमेंसे चतुर्थभाव हीन किया हो वो चतुर्थभावमें) पांचवार युक्त करना ॥६॥ सो लगको आदि ले संधिसहितक्ष्छः भाव हों। इन ६ छःभावोंमें छः छः राशि युक्त करनेसे शेष छःभाव हों। जिस भावकी अंत्य (आगेकी) और आरंभ (पीछेकी ) संधियोंके मध्यमें (बीचमें) यह हो वे उसी भावमें स्थित जानना । अर्थाद ग्रह जिस भावमें स्थित हो उस भावकी आरंभ (पीछेकी) संधिसे न्यून हो तो गवभावमें स्थित हो और अंत्य (आगेकी ) संघिसे अधिक हो तो आगेके भावमें स्थित होगा ॥ यदि इन दोनों संधियोंके बीचमें हो (आरंभसंधिसे अधिक और विरामसंघिसे न्यून हो) बो उसी भावमें ग्रह स्थित जानना ॥ ७ ॥ उदाहरण। लग्न ९ । २३ । २८ । ३५ को चतुर्थभाव १ । ५। । ३६ मेसे हीन किया शेष ३।११।३३।१ बचे इसकी राशिके अंक ३ को ५ गुणे करनेसे १५ हुए ये अंश हुए । अंशादिक ११॥३३॥१ को दशगुणे किये ११०१३३०१० ये कला विकला प्रविविकलादिक हुए परंतु ये कला Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। दिक ६० साठसे अधिक हैं इसलिये साठका भाग विकला ३३० में दिया शेष ३० विकला रही, लब्ध ९ कलाके ११० अंकमें युक्त किया ११५ कला हुई इसमें भाग ६० साठका दिया शेष ५५ कला रही लब्ध १ अंश १५ में युक्त किया अंश १६ हुए इस प्रकार राशिको ५ गुणी अंशादिकोंको १० दशगुणे करनेसे अंश १६ कला ५५ विकला ३० प्रतिविकला १० आयी इनको लग्न ९ । २३ । २८ । ३५ में युक्त किये १० । १० २४ । ५। १० ये दूसरे भावकी आरंभसंधि हुई इसमें फिर १६ । ५५।३०। १० अंशादिक युक्त किये १० । २७ । १९ । ३५। २० यह धनभाव हुआ धनभावमें अंशादिक १६ । ५५ । ३० । १० युक्त किये ११ । १४ । १५।५। ३० यह तृतीयभावकी आरंभसंधि हुई. इसमें अंशादिक १६ । ५५ । ३० । १० मिलाये ०।१।१०।३५ । ४० यह तृतीयभाव हुआ. तृतीय भावमें १६ । ५५ । ३० । १० युक्त किये । १८।६।५। ५० यह चतुर्थ भावकी आरंभसंधि हुई. इसमें अंशादिक १६ । ५५। ३० । १० मिलाये १।५।१ । ३६ । • यह चतुर्थभाव हुआ-इसी प्रकार चतुर्थ भाव ३।५।। ३६ को सप्तमभाव ३ । २३।२८।३५ मेंसे हीन किया २।१८।२६।५९ शेष बचे इसकी राशि २ को ५ पांचगुणी और अंशादिक १८।२६।५९। को१० दशगुणे करनेसे १३ । ४ । २९१५० अंशादिक हुए. इनको चतुर्थ भावमें पांच बार युक्त किये सो चतुर्थको आदि ले सप्तमभावपर्यंत संधिसहित भाव हुए, ऐसे लगादिक संधिसहित ६ छः भाव हुए, इन संधिसहित ६ छही भावोंकी राशिमें छः छः राशि युक्त करनेसे शेष सप्तमभावको आदिले संधिसहित ६ भाव हुए-- अथ ससंघयादादशभावाः । । सं। २ । सं । ३ । सं । ४ | सं । ५ । सं | ६ । सं । । ६ । सं १० | सं | ११ | १२ تو اس به । ८ १४ -१८ ५ | १८ १४ १५ १५ १९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११मंच (१४) पत्रीमार्गप्रदीपिका। जन्मकुंडलीमें सूर्य २ द्वितीयभावमें स्थित है ,द्वितीयभावकी आरंभसंधि १० १० से सूर्य १०।१६ अधिक है और द्वितीयभावकी विराम (आमकी) सांध ११ । १४ से न्यून है इसलिये यह सूर्य अंत्य आरंभसंधिके बीच हुआ, इससे द्वितीय भावमें ही स्थित रहा. मंगल ११ १६ यह तृतीयभावकी आरंभसंधि ११ । १४से न्यून है इससे मंगल द्वितीयभावमें स्थित जानना; ऐसे ही गुरु ३। ० है यह सप्तमभावकी आरंभसंधि ३ । ९ से अल्प है इसकारण ६ छठे भावमें स्थित हुआ, इसीमकार शेष सर्व ग्रह भावोद्भव (चलित)चक्रमें जानना । || अथ चलितचक्रम् । _अथ क्षय-चय-फल-विश्वानयनमाहभावतुल्ये ग्रहे रूपं संधितुल्ये तु निष्फलम् । | भावसंध्यंतरेणाप्तं खेटसंध्यंतरं च यत् ॥८॥ भावान्न्यूनाधिके खेटे फलं वृद्धिक्षयाभिधम् । फलस्यान्यंशको विश्वा यदा विंशहतं फलम्९॥ अब क्षय चय फल विश्वाआनयनकी रीति कहते हैं-भावके अंश कला विकलाके समान ( बरोबर ) ग्रह हो तो पूर्णफल होता है, उस ग्रहका (१०० फल जानना ) और संधिक अंश कला विकलाके तुल्य (बरोबर) ग्रहके हों तो निष्फल होता है ( उस ग्रहका ०1०1० फल जानना) न्यूनाधिक हो तो भावसंधिके अंदरका भाग देना ग्रहसंधिके अंतरमें (ग्रह जिस भावमें स्थित हो उस भावसे न्यून हो तो उस भावकी आरंभसंधिसे ग्रह भावका अंतर करना और भावसे ग्रह अधिक हो तो विराम (आगेकी ) संधिके साथ ग्रहभावका अंतर करना) जो फल लब्ध आवे वह ॥ ८॥ भावसे यह न्यून हो वो वृद्धि (चय) और भावसे यह अधिक हो तो क्षयसंज्ञक फल जानना, फलका तृतीयांश (फलके तीनका भाग देना) विश्वा जानना अथवा आये हुए फलको बीस गुणा करना सो विश्वा हो ॥ ९ ॥ उदाहरण । सूर्य १० । १६ । ५३ । ३२ यह द्वितीय भावसे न्यून है अतएव द्वितीय १ घरणीधरः-" न्यूनसंधिग्रहाद्भावाच्छोध्यो भावाल्पके खगे ॥ तदग्रिमाच्च संशोध्यो प्रहो भावस्तथाधिके ॥” इति ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीका सहिता | ( १५ ) भावकी आरंभसंधि १ ० । १० । २४ । ५ से अंतर किया ०। ६।२९ । ३४ यह ग्रहसंध्यंवर हुआ, इसमें इसी आरंभसंधि १० । १० । २४ । ५ के साथ द्वितीयभाव १० । २७ १९ । ३४ का अंतर किया ० । १६ । ५५ । ३० यह भावसंध्यंतर हुआ इसका भाग दिया भाज्य ग्रहसंध्यंतर, भाजक भावसंध्यंतर दोनों अंशादिक हैं इसलिये इनको सवर्णित किये भाज्यपिंड २३३७४ में भाजक पिंड ६०९३० का भाग दिया लब्ध० शेष २३३७४ को ६० साठ गुणे किये १४०२४४० हुये भाग ६०९३० का दिया लब्ध २३ कला आयी शेष १०५० बचे इनको ६० गुणित किया ६३००० हुए इनमें फिर भाजक भावसंध्यंतर ६०९३३० का भाग दिया लब्ध१ विकला आयी ऐसे फल ३ तीन आये ० | २३|१ ये भावसे यह न्यून हैं अतएव चयसंज्ञक सूर्यके फल हुए इसी प्रकार चंद्रादि ग्रहों के फल जानना - अब विश्वा-आनयन कहते हैं - सूर्य के फल २३ । १ को ३ तीनका भाग दिया लब्ध ७।४० ये विश्वा हुए अथवा फल २३|१ को २०वीस गुणा किया ४६०। २० साठ ६० का भाग दिया लब्ध ७ शेष ४० बचे ये विश्वा आये, प्रकार चंद्रादिकके विश्वा जानना. इसी र. • २३ , चय ❤ ४० 4. मं. · . १३ २८ २७ २२ चय चय १ ४७ २७ ४० २० अय क्षयचक्रफलविश्वाचकम् J. 3. उ. घ. रा. • • • • · ४८ ८० ૪૮ * २३ " २० ४५ पय चय चय ३ ६ ४० , 11 वय • २३ ४० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १६ १३ ४० १६ ७ ४० १३ ३५ ० फल. क्षय चय. विश्वा. अथ ग्रहाणामवस्था नयनमाह व्यङ्कटेशः । बालाद्यवस्थाः क्रमशो ग्रहाणामोजे समे तद्विपरीतमाहुः । बालः कुमारोऽथ युवा च वृद्धो मृतो लवानामृतुभिः क्रमेण ॥ १० ॥ अब ग्रहोंकी अवस्था लानेकी रीति व्यंकटेश कहते हैं - ग्रहों की बालादिक अवस्था क्रमसे विषम (एकी) राशिमें छःछः अंशोंके क्रमसे बाल १ कुमार २ www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) पत्रीमार्गप्रदीपिका | युवा ३ वृद्ध ४ मृत ५ कही है और सम ( बेकी) राशिमें वह बालादि अवस्था विपरीतक्रमसे ( मृत १ वृद्ध २ युवा ३ कुमार ४ बाल ५ ) कही है ॥ १० ॥ बालाद्यवस्थासारणीचक्रम्. ६ बाल १२ कुमार युवा वृद्ध मृत वृद्ध १८ २४ ३० मृत युवा कुमार बाळ समर राशी मंश: विधम रानी सू. युवा अंशके क्रमसे तीसरे विभाग में है अतएव तीसरी युवा अवस्था में हुआ. इसी प्रकार शेष चंद्रादि ग्रहकी अवस्था जानना || उदाहरण । सूर्य १० | १६ | ५३/३९ यह विषमराशिका है और छः छः अथ बालाद्यवस्थाचक्रम् चं. मं. बु. गु. शु. श. रा. बाळ वृद्ध कुमार | मृत | युवा | मृत | बाल अथ दृष्टिसाधनमाह धरणीधरः । दृष्ट्रा विहीन दृश्यस्य क्रमादेकादिभे दृशः । भागाईं तिथियुग्भागा भागाद्दनशराब्धयः || ११| भोग्यभागाद्विनिघ्नांशाः क्रमात्षड्भाधिके ग्रहे । दिग्भ्यः शुद्धे लवाद्धं च ज्ञेया लिप्तादिका दृशः ॥ १२ ॥ अब धरणीधर दृष्टिसाधन कहते हैं- देष्टाग्रहको हीन करना दृश्य ग्रहमेंसे क्रमसे एकको आदि ले शेष राशियोंकी दृष्टि जानना || एक राशि शेष बचे तो राशि विना अंशोंको अर्द्ध (आधे) करना, यदि दो राशि शेष रहें तो राशि विना अंशोंमें १५ पंद्रह युक्त करना और तीन राशि शेष बच्चे तो अंशोंको अर्द्ध ( आधे ) करना और ४५ पैतालीसमें से शोधना ॥ ११ ॥ चार ४ राशि शेष बचे तो भोग्यांश (राशि विना अंशों को ३० तीस से हीन करना ) यदि ५ पांच राशि शेष बचे तो राशि बिना अंशको द्विगुण करना और क्रमसे छः ६ सात ७ आठ ८ नव ९ राशि शेष बचे तो शेष राश्यादिकों को १० दश राशिमेंसे शोधना - शेष बचे उसके अंश करके अर्ध ( आधे ) करना, जो आवे वह कलादिक दृष्टि जाननी ॥ १२ ॥ १ यस्य ग्रहस्य दृष्टिरानीयते बसौ द्रा-जिस ग्रहकी दृष्टि लाना हो वह द्रष्टा । २ यं प्रहं प्रत्यानीयते असौ दृश्य :- जिस ग्रहपर दृष्टि लाना हो वह दृश्य होता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। (१७) अथ भौमस्य विशषदृष्टिमाहपञ्चेन्दुयुक्ताः खलु सार्द्धभागा द्विभेडगभे षष्टिकलास्तथैव । भागोनषष्टिर्भवतीह दृष्टिलिभेऽद्रिभे भूमिसुतो न दृश्ये ॥ १३ ॥ अब मंगलकी विशेष दृष्टि कहते हैं-मंगलको हीन करे दृश्यमेंसे और यदि दो२ राशि शेष बचे तो राशि विना अंशोंको डेढे ( अंशादिकके २ का भाग देके जो आवे वह उन्ही अंशांदिमें युक्त करना) करना और १५ पंदर युक्त करना कलादिक दृष्टि हो और छः राशि शेष बचे तो ६० साठ कला दृष्टि जानना वैसे ही यदि वीन राशि ७ सात राशि शेष बचे तो राशि विना अंशादिकोंको ६० साठमेंसे शोधना सो कलादिक भौमकी विशेष दृष्टि होवे उक्तराशियोंके अतिरिक्त राशि शेष बचे उसकी श्लोक ११ । १२ के अनुसार दृष्टि करना ॥१३॥ अथ जीवस्य विशेषदृष्टिमाहजीवोनदृश्यस्य तु वेदभे स्याद्विघ्नांशकोना खलु षष्टिरेव ॥ साांशकोना गजभे तु षष्टिस्त्रिभेऽष्टिभेशाधयुतेषुवेदाः ॥१४॥ अब गुरुकी विशेष दृष्टि कहते हैं-गुरुको हीन करे दृश्योंसे और यदि ४ चार राशि शेष बचे तो राशि विना अंशादिकोंको २ द्विगुण करके ६० साठभेसे हीन करना दृष्टि होवे और ८ आठ राशि शेष बचे वो अंशोंको डेढे (अंशोंको आधे करके उन्ही अंशोंमें मिला ) करके साठ ६० मेंसे शोधना (हीन करना) शेष बचे वह दृष्टि जानना इसी प्रकार यदि तीन ३ राशि या सात ७ राशि शेष बचे वो अंशोंको अर्ध ( आधे ) करके ४५ पैंतालीस युक्त. करना सो कलादिक गुरुकी विशेष दृष्टि होवे ॥ १४ ॥ अथ मंदस्य विशेषदृष्टिमाहद्विनिघ्नभागा विधुभेन्तरे स्याद्धिभे तु भागाधविहीनषष्टिः॥ द्विघ्नांशकोना नवभे तु षष्टिस्त्रिंशद्युतातगजभेऽर्कजस्य ॥ १५॥ अब शनिकी विशेष दृष्टि कहते हैं:-शनिको हीन करे दृश्यमेंसे यदि एक राशि शेष बचें तो राशि विना अंशादिकको द्विगण करनेसे कलादिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८) पत्रीमार्गप्रदीपिका । दृष्टि होती है और यदि २ दो राशि शेष बचे तो अंशोंको अर्थ (आध) करके साठमेसे हीन करना इसी प्रकार ९ नव राशि शेष बचे तो राशिविना अंशोंको द्विगुण करके साठमें शोधनसे दृष्टि होती है और ८ आठ राशी शेष बचे दो राशी विना अंशोंमें ३० तीस युक्त करना शनिकी विशेष दृष्टि होवे ।। १५॥ सर्वेषांहरिसाधनकोषक. I भामविशेषदृष्टि गुरुविकेपदृष्टिकोष्टक. १२ | ३ | ४ । ५। ६ | ७ | ८.९२ | ३ | ६ | ७| ३ | ४ | ७ | ८ अंशा अंशा अंशा अंत्रा अंशा अंधा अंशा अंशा अंशा अंशा अंशा. अंश अंशा |x कळा|x युक्ताxxगुणा Bx &x शनिविशेषहाटे. शा अंशा अंश अंशा २६.३०६० उदाहरण । सूर्य १० । १६१५३ । ३९ मेंसे द्रष्टा चंद्र ५।२९।१९।४९ हीन क्रिया। १७॥३३॥५० हुए शेष चार राशि बची हैं इसकारण इसके अंशादिक १७॥३३॥ ५० को ३० तीसमें से हीन किये १२।२६ शेष बचे ये सूर्यपर चन्द्रको दृष्टिहुइ इसीप्रकार दृश्य सूर्यमेंसे भौम ११ । ६ । १४।५४ को हीन किया ११ ॥१०॥ ३८ । ४५ हुए शेष ग्यारा राशि हैं इसकी दृष्टि नहीं है इसकारण सूर्यपर भौम की दृष्टी ०/० सूर्य दृश्यमेंसे द्रष्टा बुध १०।१०।४४।१८को हीन किया शेष ६।९।२१ बने शून्यराशिकी दृष्टि उक्त नहीं है इसलिये सूर्यपर बुधकी दृष्टि 01. हुई सूर्यमसे द्रष्टा गुरु ३। ०१४३॥ १ हीन किया शेष ७।१६।१०।३८ बचे साद राशिशेष हैं इसलिये गुरुकी विशेष दृष्टि श्लोकमें कहे अनुसार अंशाको आधे किये ८।५।हुए इनमें ४५ युक्त किये ५३ । ५ ये सूर्यपर गुरु की विशेष दृाष्ट हुई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0 र. • १२ २६ .. ५३ ५ • २ १३ · चे ४४ , ० • ३२ ५६ • ० पं. • ३८ ४६ • • ve ३७ O २४ - ४३ ३६ .... 629 25..........• • · orno... ० २ * SONG.~~.。。。 ३१ महापरिग्रहाणांदृष्टिचक्रं. गु. मं. २६ १३ ५० ५४ જર્ | ४५ ४४ ११ ५४ • • ५९ ४ xxxw •**•*• १० 6.41 ૩૪ ૪૬ ............... •~~~~~~~....~~•~ ......] ३३ ३५ १८ ૧૪ ५० T ५० ३१ १० ५८ १७ ५० २ दृश्यपर ग्रह इष्टा की दृष्टि जानना - इति ॥ ३३ १० ० ४२ ० १४ ० २२ १३ १७ O · ३२ ० ३३ ३५ २३ १८ .~...~~.~20% 23. ~*~...~* • ३९ ५८ ४१ १९ ५७ ४९ ફ ३२ ? १० ३२ ३६ २ v ४२ पु. 1 10。。。。 ३७ २७ २८ ५२ २८ ५ ० ० • ५४ ४८ ८ ५२ ● २४ ११ ५ ६ ७ ३४ भाषाटीकासहिता | ४७ ૩૮ ४० ... ४३ X.00 0. ....... १९ घ. ३४ १६ ३८ ५५ २९ १६- | ४६ • १२ ५८ ४५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat मावोपरिग्रहाणांदृष्टिचक्रं. •*•*.*.**.. • • १३ २ सू. ० (१९) दृश्य सूर्यमेंसे शुक्र ९ । १२ । २६ । ८ को हीन किया शेष १ । ४ । २७ ३१ बचे शेष एक राशि है 4. इसलिये अंश ४।२७।३२ को आधे किये २ । १३ ये सूर्यपर शुक्रकी म. दृष्टि आयो फिर दृश्य सूर्यमेंसे द्रष्टा शनि ८।२४।४८।२३ हीन किया ङ. १।२२/५/१६शेष एक राशि बची इसवास्ते शनीकी विशेष दृष्टि श्लोक १५ में कहे अनुसार अंशादिक २२| ५ को द्विगुण किये ४४ । ३० ये सूर्यपर शनीकी दृष्टि हुई इसीप्रकार • शेष ग्रहोंपर ग्रहों की दृष्टि तथा भाव १९६ ૪૬ ० ३३ १० २८ १२ ૪૨ २५ • गु. ५४ २९ ८ ९ १० ४५ ~~~~~~······· | 1⁄2 £ • ** • ३७ २० ५२ ...~。。。 22.5.2 १ • ३४ ४७ ० ४५ १४ २० ४० • ३२ ४७ ४० ३१ १६ •~•~•~• 25 • 5 x • ~ ~ • Four 2 ~· · · * २ ५६ ५१ ० ३१ १३ ५१ ५१ ० १७ ५१ " १२ भावा: ३ ४२ ७ • • ० ४ ५१ ४७ • १६ ० २४ ५४ १७ ३२ २७ ० ... ● ..... • ० 。。。。.... ० ० १२ सू. ० ● मं. ५३ गु. لمه J. O छ. www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्रीमार्गप्रदीपिका | अथ राशीनां स्वामिनः । उक्तं च व्यंकटेशेन । भौमा च्छविञ्चन्द्ररविज्ञशुक्रवक्रेज्यमंदार्कसुतामरेज्याः । मेषादिभानामधिपाः क्रमेण तदंशकानामपि ते भवेयुः ॥ १६ ॥ ( २० ) अब राशियों के स्वामी व्यंकटेश कहते हैं - भौम ( मंगल १ ) अच्छ ( शुक्र २) वित् ( बुध ३ ) चंद्र ( चंद्र ४ ) रवि (सूर्य ५ ) ज्ञ ( बुध ६ ) शुक्र ( शुक्र ७ ) वक्र ( भौम ८ ) इज्य ( गुरु ९) मंद ( शनि १० ) अर्कसुत ( शनि ११ ) अमरेज्य गुरु १२ क्रमसे मेषादिक राशियों के स्वामी जानना, और मेषादिक राशियोंके अंशादिकोंके ( द्रेष्काण सप्तमांश नवमांश द्वादशांश आदि ) भी क्रमसे येही स्वामी होते हैं ॥ १६ ॥ अथ नैसर्गमैत्रीमा विश्वनाथः । इन्द्रीज्य क्षितिजारत्रीन्दुतनयौ सूर्येन्दुजीवाः क्रमाद् भृग्वक शशिसूर्यभूमितनया ज्ञार्की ज्ञशुकौ मताः ॥ सूर्यादेः सुहृदः समाः शशिसुताः सर्वेऽपि मंदास्फुजिन्मंदाचार्यकुजाः शनिः कुजगुरू जीवः परे वैरिणः ॥ १७ ॥ अब स्थिरमैत्री विश्वनाथ कहते हैं- चंद्र गुरु भौम १, सूर्य बुध २, सूर्य चंद्र गुरु ३, शुक्र सूर्य ४, चंद्र सूर्य भौम ५, बुध शनि ६, बुध शुक्र ७, कमसे सूर्यादिक ग्रहोंके मित्र कहे हैं और बुध १, सर्व ग्रह२ ( मं० गु० शु० श० ) शनि शुक्र ३, शनि गुरु भौम ४, शनि ५, भौम गुरु ६. गुरु७, कमसे सूर्यादिक ग्रहों के सम कहे हैं शेष (मित्रसमसे बाकी रहे वह ) शत्रु जानना ॥ १७ ॥ सिगमैत्री, ६. पं. मं. बु. चं. गु. मं. र. बु. र. चं. मु. सू. सु. मं.गु.शु. क्र. व. शु. .गु. मं. चं. बु. J.T. ० गु. र. चं मं. झ. J.J. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat घ. बु.. इ. बु. श. . मं. गु. सू. चं. र. चं. मं. मिश्र. सम. शत्रु अथ तात्कालिक पंचधामैत्री साधनमाह - सोमदेवज्ञः । ग्रहतोऽर्थ र तृतीय ३ तोय खा१०ssय व्यय १२ संस्थः सुहृदो नभश्वराः । इतरालयगा द्विषो मुनीन्द्रैरिति तत्कालजमित्रशत्रवः स्युः ॥ १८ ॥ www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता । ( २१ ) अब तात्कालिक पंचधा मैत्री ज्ञान सोमदैवज्ञ कहते हैं--जिस ग्रह से २।३।४। १० । ११ । १२ वें स्थान में जो ग्रह स्थित हो वह मित्र जानना, शेष १|| ५६/७/८/९ स्थानमें गये हुए यह शत्रु जानना इसप्रकार मुनिलोगोंने तात्कालिक मित्र शत्रु कहे हैं ॥ १८ ॥ र. चं म. बु. र. बु. मं शु. शु. श. श. र. वं. म शु. श. चं. बु. र. म. श. गु. ० अथ पञ्चधा मैत्रीचक्रम् | र. मं. बु. चं. मं. • र. चं. गु. खु. श. O च. र.मं. बु.चं. गु. बु शु. गु. गु. शु. श. गु. गु. हुए इसीप्रकार चंद्रादि सर्व ग्रहोंके तात्कालिक मित्र शत्रु जानना इति । अधिमित्रसमत्वमेति मित्रं समखेटस्तु सुहृद्विपुत्वमेति । रिपुरेति समाधिशत्रुभावं खलु तत्कालजमित्रशत्रुभावात् ॥१९॥ नैसर्गमैत्रीका मित्र ग्रह तात्कालिक मैत्रीमें मित्र हो तो अधिभित्र और शत्रु हो तो समत्वभावको प्राप्त होता है ( मित्रमित्र - अधिमित्र, मित्रशत्रुसम होता है) और नैसर्गमैत्रीका समग्रह तात्कालिक मैत्रीमें मित्र हो तो मित्र, शत्रु हो तो शत्रुभावको प्राप्त होता है ( सममित्र--मित्र, समशत्रु - शत्रु होता है, एवं नैसर्गमैत्रीका शत्रु ग्रह तात्कालिक मैत्री में मित्र हो तो सम और शत्रु हो तो अधिशत्रुभावको प्राप्त होता है ( शत्रु मित्र-सम, सम शत्रु - अधिशत्रु होता है ।। १९ ॥ ॥ उदाहरण | यहाँ नैसर्गमैत्री में सूर्य के चंद्र गुरु मित्र हैं ये चंद्र गुरु तात्कालिक अ. सु. बु. शु. धि मि मैत्री सूर्य के शत्रु हैं अतः चंद्र शु. श. मं. मित्र र. मं. र. गुरु पंचधामैत्री में सूर्यके सम हु एवं नैसर्गमैत्री भौम सूर्यका मित्र ह तात्कालिक मैत्री में भी मित्र है इस वु अ. मं. तात्कालिक मैत्रीचक्रम् | गु. शु. र. बु. र. शु. बु. च. मं. श. म. चं. . श.गु. शु. श. श. मं. चं. गु. र. बु. बु. · र. गु. चं. • · गु. श. गु. •। पं. बु. छ. घ. उदाहरण | सूर्य से २ भौम ११ शनि १२ श. शुक्र स्थित हैं इस कारण ये सूर्यके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat र. चं मं. गु. मित्र मित्र हुए और १ बुध ६ गुरु ८ शत्र चंद्रमा स्थित हैं ये सूर्यके शत्रु सम. शत्रु लियं भौम सूर्यके अधिमित्र हुआ, पंचवामैत्री में और नैसर्गमैत्री में सूर्य के बुध सन यह बुध तात्कालिक मैत्री में सूर्यके शत्रु है अतः शत्रुभावको बुध प्राप्त हुआ, www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) पत्रीमार्गपदीपिका। इसीप्रकार नैसर्गमैत्रीमें सूर्यके शुक्र, शनि शत्रु है ये तात्कालिक मैत्रीमें मित्र हैं इसलिये सूर्यके शनि, शुक्र पंचधा मैत्रीमें सम हुए ऐसेही शेष ग्रहोंको अधिमित्रादि जानना इति. अथ षड्वर्गसाधनमाह केशवः। भेशोऽथान्दुहोरे अयुजि युजि शशिबध्नयोः स्वात्मजांकक्षैशाख्यंशा नवांशा अजमकरतुलाकर्कितोकांशकाः स्यात् । भौमार्कीज्यज्ञशुका अयुजि शर५शरा ५ टायद्विपंचांशनाथास्त्रिंशायुग्मे विलोमाः क्रमबलिन इमे षट् शुभैः सद्युगोर्चेः२०॥ अब केशवदैवज्ञका कहा हुआ षड्वर्गसाधन कहते हैं-राशियोंक स्वामी प्रथम श्लोक १६ में कहे हैं वे जानना। तदनंतर विषमराशिमें प्रथम विभागमें सूर्यकी, द्वितीयविभागमें चंद्रकी होरा जानना और सम राशिके प्रथम १५/१० । अन विभागमें चंद्रकी, दूसरे विभागमें सूर्यकी होरा जानना, प्रथम १ [. चं. विषम . बि. स. सम पचपनवम९ राशिके स्वामी द्रेष्काणके स्वामी होते हैं (ग्रह प्रथम विभागमें १० अंशमें) हो तो अपनी राशिका स्वामी द्रेष्काणका स्वामी जानना--और ग्रह दूसरे विभागमें ( १० अंशसे अधिक २० अंशपर्यंत--) हो तो यह जिस राशिका हो उस राशिसे पांचों राशिका स्वामी द्रेष्काणका स्वामी होता है एवं ग्रह तृतीय द्रेष्काणमें (२० अंशसे अधिक ३० अंशपर्यंत) हो तो ग्रह जिस राशिका हो उस राशिसे ९ नवमराशिका स्वामी द्रेष्काणका स्वामी जानना । मेषमकर १०तुला७और कर्क४से नवांश जानना अर्थात् ग्रह मेषका हो तो मेषराशिसे, वृषभराशिका हो तो मकरराशिसे मिथुन राशिका हो तो तुलाराशिसे,कर्कराशिका हो तो कर्कराशिसे इसी प्रकार सिंहादि सर्व राशियों में जितनी संख्याके नवांशविभागमें यह होवें उतनी संख्यापर्यंत गिननेसे जो १ होराका एक विभाग १५ पंद्रह अंशका होता है। २ एक द्रेष्काणका विभाग दश १० अंशका होता है । ३ तीस अंशके ९ नवमें हिस्सेको नवांश कहते हैं, एक नवांश विभाग ३ अंश २० कलाका होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीका सहिता । ( २३ ) कर्क 2 ३ ४ राशि आवे उसका स्वामी नवांशका स्वामी होता है [ मेष | मकर | तुला द्वादशांशके स्वामी लपनी राशि से जानना ( ग्रह जिस राशि का हो उसी राशिसे जितनी संख्याके द्वादशांशविभाग में ग्रह हों उतनी संख्यापर्यंत गिननेसे जो राशि आवे उसका स्वामी ७ ઢ ११ १२ T ५ । ५। ८ । ७ । ५ त्रिंशांश के स्वामी कहे हैं स्वामी जानना ऐसे ही इसके आगेके ८ अंश द्वादशांशका स्वामी होता है ) | और विषमराशिमें इन अंशोंके मंगल, शनी, गुरु, बुध, शुक्र, क्रमसे अर्थात् विषम राशिम ५ अंशपर्यंत भौम त्रिंशांशका इन ५ अंशों के आगेके ५ अंशका स्वामी शनी नवांशविभाग | द्वादशविभाग | १ |२| ३ | ४ |५|६ / ७ ८ ९ ३ | ४ | ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२ ३ ६ १० १३ १६ २० २३ २६ ३० २ ५ ७ १० १२ १५ १७ २० २२ २५ २७३२० ४०० २० ४०० २० ४० ० ३०] ० ३०० १३०० |३०|० ० ३०० १ २ ५ ९ ५ ५ ८ ७५ अंशाः उ. मं. अ. गु. व शु. विषमराशी. ञ. बु. गु. झ. मं. समराशी में ५७ ८ ५५ अंशाः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ६ १० का स्वामी गुरु फिर इसके आगेके ८ अंशका स्वामी बुध इसके आगेके ५ अंशका स्वामी शुक्र त्रिंशांशका स्वामी जानना, और समराशिमें उक्त त्रिंशांशके स्वामी विलोम (उलटे ) कहे हैं ( ५ शु० ७ बु० ८ गु० ५ श ० ५ मं० ) ये छही वर्ग कमसे उत्तरोत्तर बलवान जानना ( ग्रहसे होरा बलवान होरासे द्रेष्काण द्रेष्काणसे नवांश नवांशसे द्वादशांश, द्वादशांश से त्रिशांश अधिक बलवान्न जानना ) चार ४ से अधिक वर्ग शुभग्रहके आवे तो शुभ समझना ॥ २० ॥ अथ सप्तवर्गसाधनमाह नगांपास्त्वोजगृहे तदीशाद्युग्मे गृहे सप्तमराशिपात्तु ॥ पूर्वोक्तवगैः सहितो नगांशः स्युः सप्तवर्गा सुनिभिः प्रदिष्टाः ॥ २१ ॥ अब सप्तवर्गसाधन कहते हैं - विषमराशिमें अपनी राशिके स्वामीसे सप्तमांश के स्वामी जानना और समराशिमें अपनी राशिसे सप्तम राशि ( सातवी १ तीस अंशके १२ भांगको द्वादशांश कहते हैं एक द्वादशांशविभाग अढाई औडका होता है । www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) पत्रीमार्गप्रदीपिका। राशि)के स्वामीसे सप्तमांशके स्वामी जानना ॥ ( यह विषम राशिका हो तो जिस राशिका है उसी राशिसे और समराशिका हो तो जिस राशिका ग्रह हो उस राशिसे जो सातमी राशि है उससे जितनी संख्याके सप्तमांशविभागमें ग्रह स्थित हो उतनी संख्यापर्यंत मिरनेसे जो राशि आवे उसका स्वामी सप्तमांशका स्वामी समझना) पूर्वोक्तषड्डोंमें ये सप्तमांश युक्त करनेसे सप्तवग होते हैं ऐसा मुनि लोगोंने कहा है ॥ २१ ॥ उदाहरण । सूर्य१०।१६।५३॥३९ यह कुंभराशिका है इसका स्वामी शनिगृहके स्वामी स्वामी जुआ-होरा, सूर्य होराके दूसरे विभाममें है और विषमराशिका है इस कारण सूर्यकी होराका स्वामी चंद्र हुआ. द्रेष्काण सर्प दूसरे द्रेष्काणविभागमें है इसलिये सूर्यकी राशि ११ कुंभसे पांचमी राशि ३ मिथुनका स्वामी बुध आया यह द्रेष्काणका स्वामी हुआ.सप्तमांश सूर्य विषम राशिका है और सप्तमांश विभागमें ये चार ४ संख्याक विभागमें है अतः सूर्यकी राशि २१ कुंभसे चारपर्यंत गिननेसे चौथी राशिरवृषभ आयी इसका स्वामी शुक्र सप्तमांशका स्वामी हुआ नवांश-सूर्य ६ छः संख्याके नवांशविभागमें है और कुंभराशिका है अतः तुलाराशीसे ६ छह संख्यातक गिननेसे १२ मीन राशि आयी इसका स्वामी गुरु है यह सूर्यके नवांशका स्वामी हुआ, द्वादशांश-सूर्य ७ सातसंख्याके द्वादशांश विभागमें है इसलिये अपनी राशि कुंभसे गिननेसे सातमी ७ राशि५सिंह आयी इसका स्वामी सूर्य द्वादशांशका स्वामी हुआ त्रिंशांश-सूर्य विषमराशिका है और १६ अंशका है इस लिये त्रिशांश विभागमें तीसरेटअंशके तमांश्वविमाग.. विभागमें है इसकारण विषमराशिके तीसरे विभागका स्वामी ८ २२१०२१।२५।३० गुरु सूर्यके त्रिंशांशका स्वामी हुआ,इसीप्रकार शेष चंद्रादि सर्वग्रहोंके सप्तवर्ग जानना, इति. . . ७३४/५१८/५२/ १एक सप्तमांश विमाग ४ अंश १७ कलाका होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। (२५) - होरा - - अथ महा सक्षपचा । | ५. | च. म. बु. गु. । . . . ११६ १२ गु ११४ चं. स_ स | | उमिमि . मह बा ५ र ४५ स स ।मि | 5 | स २२२ गु३ बु४२७ प शन स । स्व |ऽमि । स्व । १२ च । ६ व ७ शु १ १०१.६बु २ शु स | स | मि | मि सपामांच मि | मि १२ गु६ बु.] ५ र १.१४ १मा ८.मं नवनाश स । स ऽमि | मिऽमि मि | स 1५ र ५ २ २ | ३ बु | ४ च २५ ६ बु दादशांश रा। स ! मि | स्व ऽमि | स्व ऽमि | ९ गु८ मं६ बु | ९गु २ १२ गु३ बु | शामि शुभयोग २ ३ । । । ४ । १।२ । २ । ४ । कप:य । विना परिश्रम शीघ्र सुगमरीतिसे सप्तवर्गज्ञान होनेके लिये आगे सतवर्गसारणीचक्र मेषादि राशियोंके लिखे हैं-- उनमें ग्रह जिस राशिका हो उस राशिके कोष्ठकमें जितने अंशका हो उतने अंशके नीचे पंक्तिमें जो सप्तवर्गके स्वामी राशिसहित लिखे हैं वे उस ग्रहके सप्तवर्गके स्वामी होंगे और षष्ठयेशका स्वामी भी उसीके नीचे पंक्तिमें लिखा है वह जानना ॥ उदाहरण। जैसे यहां सूर्य १०॥१६॥५३॥३९॥ है इसलिये कुंभराशिके कोष्ठकमें १७ अंशके नीचे पंक्तिमें लिखे सप्तवर्गके स्वामी और षष्ठवंशका स्वामी आये। गृ. प. हो. प. २. प. स. प. न. प. दा. प. त्रिं. प. प. प. ११श ४ चं ३ बु २ शु १२ गु ५ र ९ गु ८ मं. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६ ) यह the सप्त नय. ा. ง 50 31.0 ~2.5M <4.4 4. WE N AN ~!· 20 NEW JEG T SM ?? 4. WTF 1·15 o ·15 ~·15 a ≈ 4. 10 • 30 me 4. 3 О ·B G & M t 44.66α^ 16152014. I. 1. 2. 3. A HHH. H. H.SA 24.04.24.21.21.21.A 11134.0 24.0 24.0 24.0 4.5 M HUGE 2.2. 4. B "" · ~ من و 10641 ·B ~ ~ 4.5 MA 10g av buy m 3010 4 .. W99 N • G 0 D 4. O О 0 RM •F N 24. AUG ~H. ~ 3 पत्रीमार्गप्रदीपिका | षष्टथंशोपेतमेषराक्षिसप्तवर्गपतिचक्रम् । ૩ ३० ३० Ha SM & M RAW 60 ?? 195 W 5595 ~ -~14. 59 #G WTECHN 4. O AY B GE 37 SEY 5 MG SMS M w Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat と AY ~ 40 ·Bσw S W 50'> 1645 M 99 18 A मेषराशि सप्तवर्गषतिचक्रम् | 7 5595 ~4.0α ५५ 14.4. ~ GWT 25.106 SM गु 64 4.4. V 10 11 93 ૪ 3. AV ㄓㄨ 45σ S M 4.SA १ DAY. X ► 4.68 M 12~ 101.45 No 64. ~ Ga F ~H. 14.. とり 6 W Y WY om 5.16 ~ 4. 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W553 गुमं KA. 4 if v。 6 M 4 ~ Get لم || 62 80 ~..~64 64 ሉ · سی N624 5 20 2x5 4SA ?0 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat EUWS १८ १९ ~ m 1.15 an NCE ~ 62 64 640664646 MY ~ ~SA ~64 5 M H. ele 109 w ∴ えと N GA 10 621 6064 106464 645 #7 ~ W N 62 wo W 3 FKF V 6 629 १९ N བཿ 」 • } 」 • ། བཿ २० | २० | २१ शुशुशु 90 MY ~~~ と 646410664m GAISM Wy २८ NAY • 444 GAGA SM 1644440 444 6 NES ANGE ~H~11.6.01 0 كه م と 13 AY V 624 1799 V 4. ~4~~ ~ #SMN AY to 179 N ~ 2x श 0454 ~30 ~ •F ~ & ✔ o ar と 174 45 M ~H~H. Gal~62 H.HANGE गु ( २९ ) ?? १२. २२ 44.~NGLY α1.H. 199 ३० 灞||電 30/30/30 20 0 १० १० ال له गुच्च 4 1. ~°~ ९ १० AY + N GE S M ~1.1.4. Gal श १० ་ अंश ग्रह हो.. 2. 5. नव. is द Fi. षष्टभ www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रिंशां. दाद. | دی ماه ها سا ہم ماهو ساءه (३०) 64-2064664/064064 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 4 .1--064G64064 FAGARANGA mea-4.64 GHavinaveen 64SAlwa 664-2064 D 1- An64 -2 40640 २० मिथुनराशिसप्तवर्गपतिचकम् । 4-04 ا م ا ا و ا و م 669 पष्ट,शोषेतमिथुनराशिसप्तवर्गपतिचक्रम् । 44664AGA. पत्रीमार्गप्रदीपिका । 44.IN. ANGA - 24 1664SM064/ SAJA4. 264/04/Alwa. * " 6626 . mootaAawlal www.umaragyanbhandar.com 4064 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। (३१) . MARREARRRRRRRE 4 . 16aj 1601064/04.m64. 6464/6606464 60/04 1 २४ | ३४।२५/२५ २६। २८ २८ २९ । २९ R 2.. . 4. | मं । मं मं ग्रह - .. 1 च ४ । | 21064 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ anie-as E」 होरा (be) | m 64 64 mm ah.ne-n : |||||| 只x 6 na。 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 一只ka 一只x.ne」。 {GE 只白.nex :: h在一左一只只白。 xen exe。 24.24-x 4 2 HL (左一只4:只 x .. 2h.nexe 1 x 40 M th/3 AP-2H-G在 || {nux上,只 ne:xx कर्कराशिसप्तवर्गपत्रिचक्रम् । षष्टयंशेपेत कर्कराशिसप्तवर्गपतिचक्रम् । पत्रीमार्गप्रदीपिका। STATESTEIF w Golf Ge2 > 日 vs C || r | piwory | « 1m 4m 4 nx 4.x 4x43 www.umaragyanbhandar.com ||| ? A: k7kxe به وه اس 9 سن و “ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। (३३) | दात. . | चिंचो. एका २६ र १ ...] | गु १२ १२ १२ १२ | १२ १२ व 2. मह ARREARN में में में में में बिना. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (8) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 6460541SALA श 120646454SASA: PM |F |HD| | 1१०/ - ها ی م | هه م له سه م م د م ا ي ه : | م م षष्टयशापत सिंहगशिसप्तवर्गचक्रम। FEADRIPHSEBEEM पशोपेतसिंहराशिसप्तवर्गचक्रम् । पत्रीमार्गप्रदीपिका । 2114 |PECIPEGA||SMA107 ma|PE PalacularAPRILALA|om ، الله» ای ها در ماوى 6 هو ام م م م ا م ا INT|MTIENTIFIEDMIRM 2.o-TH TIE1-10-12/20 www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। (३३५.) मक स स मरस पर मान में काम कर - - - - A मानक का कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "L T مه || - . د | م 15 ات 6 ( 36 ) ، م دهنده : : ع و Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat . ها به م ده ها به مواد و F9 | ج | به ماه ها به ما د د له م ولم » 3 ]F9 षष्टचंशोपेतंकन्याराभिसप्तवर्गचक्रम् । पष्टघंशापेतं कन्याराशिसंप्तवर्गचक्रम् । لهن لله पत्रीमार्गप्रदीपिका । و انا و . س ( م کی 6 ای سما پا س بھی ماه لديه ( لا) الف) سم •ال و له مه » s | | 2 | | و ابھی امام کی به ماه ها به م . ه ا ه م . ماهی ماهی م بهی م .له » | بهی ماه) م www.umaragyanbhandar.com الله ما بق) م . . صدایی به ۳ ما لقي M | ۵ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होरा هم دی ماه 2 : الهه ۸۰ هي م وہ ہم ماه) س ( ہم : Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ماہم تمر ) | م : k yF | کس 9 ) هم کم کم به م | ہم م بهی م | . هل لدي ام و ماوی भाषाटीकासहिता। | کس | by ہلاک 2 | و .له ها به سم و مایه او الهه م له » . 8 اهم م م م م الف م ( A ماہیے م، م | بهم ماه می له د وا ماله، و / کا نهی مہم کا س الهی هی ا م کی اه اه اه ما www.umaragyanbhandar.com Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८) पत्रीमार्गपदीपिका। पष्टचंशोपेततुलाराशिसप्तवर्गचक्रम् । || L A TE://: विका में ROMAM H पष्टयंशोपेतं तुलराशिसप्तवर्गचक्रम् । ERE::::::::::: :] मंत्र. 14166464 44/34--16a Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com އ . चर dlo 40 6.0 ন(AN 6.41 ११ १२ १ 6 640 6.0 9 G 641641 民国 11. 6 又捡 11.10 642 NG NAG FOR डुचं ५० षष्टयं 26.04 NGE 64 ws 99 2 ... 69 64 6 44. 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G4 Mu0624064 १२ | गु गु | गु १२ । १२ | १२१२ षष्टयं. ११ १२ १ । २ । । १० ११ १२ १ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। (४१) ग्रह Our) 40.. - - - - - - aan dan ka 34fan da| Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) पत्रीमार्गप्रदीपिका। षष्टयंशोपेतधनराशिसप्तवर्गपतिचक्रम् । .] - Ener/- sacrawal षष्टयशोपेतं धनराशिसप्तवर्गपतिचक्रम् । ५ . स रकार र सरकार द्वारा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com 6410646664 ~ 14.146.4444 GANGA64 A عه | ده - 1646666 ~ 11.6644 66 4 6669 ¿ AVAI A6A #99 AV 6.0 6 6 6 6 पष्ट m 641 664 66 لله O AU (13) 6666 H.NGES A fi 6 RR? 74. ~.~62 SMK 4. P ~H. 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Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) पत्रीमार्गप्रदीपिका । षष्टयंशोपेतकुंभराशिसप्तवर्गपतिचक्रम् । पष्टयशोपेतं कुंभराशिसप्तवर्गपतिचक्रम् । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Hai. المللی Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat .له ها به سه | مه هه م و م | مهه م .له ها بهی سه | م ا م م م و م م ه 7a | مع آمدم ز م.د ه مدام ما مراد وقایع مهم ه | بهی سه | ای نه م م ا و م ا ی من اعه | مع مع. م ه | مه سه له سه | د ع | هي ما ہ م | مع 8 भाषाटीकासहिता। عماله ه ه له په لاندي سر امر هام مه..ه ه | بهه سابقه سه ای به هه م وه له سه | لقه های الهی | یقه سه &A | هابي هابهی سا مال ما بهم سه ه ه ه م . ه م ه هه ه ه م م 6 ه ا به مه . ه ا م ه ا له .و ما بين 6 | اهي سهام عمه ها مدام به اسم ه ه ه ع م ا ع م | هی سه | لفن هم مدل ه ع ه الله هو مها www.umaragyanbhandar.com Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (28) पत्रीमार्गप्रदीपिका । षष्टयंशोपेतं मीनराशिसप्तवर्गपतिचक्रम् । | मंत्र [.:.:.:. .: .:. 2 6 .17 |Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। (४९) : देष्का | Daila| Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) पत्रीमार्गप्रदीपिका । दशांशसारणीचक्रम् । ।।२।।। ४ ५ ६ ७ ८ | ९ | १० राधी | स. [१०] ७ १२ २ ११ | ४ ।। ६ । ३ । ८ । ५ । ३० । १० चरराशि मेष राशिको आदि ले, स्थिरमें सिंहको आदि ले, द्विस्वभावमें धन राशिको आदि ले जितनी संख्याक विभागमें हो उतनी संख्यापर्यव गिननेसे जो राशि आवे उस राशिका स्वामी षोडशांशका स्वामी होता है । पोडशाशविभाग (पाये.) |६| ७ | ८ | ९ |10|1|१२| PRI |१४|१५|१६| अब दशवर्ग बनानेकी रीति कहते हैं:सप्तवर्गमें दशांश षोडशांश षष्टयंश मिलानेसे दशवर्ग होते हैं । अथाष्टवर्गनयनमाह टुंढिराजः । स्वान्मंदात्कुजतो रविम॒तितपोलाभार्थकेंद्रस्थितः शुक्रादस्तरिपुव्ययेषु च गुरोर्धारिपुत्राप्तिषु ॥ चन्द्रात्प्राप्तिरिपुत्रिखेषुशशिजातपंचत्रिनन्दव्ययारिप्राप्त्यभ्रगतस्तनोस्त्रिखसुखोपांत्यारिरिःफे शुभः ॥ २२॥ अब अष्टवर्ग बनानेकी रीति टुंढिराज कहते हैं:प्रथम सूर्याष्टवर्ग कहते हैं:-सूर्य अपने स्थानसे और भौमसे और शनिसे था। ११ . में स्थानमें शुभ फल देवा है और शुकसे ७६।१२, गुरुसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। (५१) ९।६।५।११, चंद्रसे ११।६।३।१०, बुधसे ५।३।९।१२।६।११।१०,लमसे ३॥ १०।४।११।६।१२ स्थानमेशुभफल देता है। इन शुभफलपदस्थानों में रेखा दे और शेष स्थानों में बिंदु (शून्य) देनेपर सूर्यका अष्टवर्ग होता है ॥२२॥ अयरवेरष्टवर्गाकाः ४८. ||में | बु गु शु श ल. GeOA my -14 2006 LEnews अथ चंद्रस्याष्टवर्गः। भौमाद्ग्लौनवधीधनोपचयगः षट्च्याप्तिधीस्थोऽर्कजालग्नाच्चोपचये रखेरुपचयाष्टास्तेषु शस्तो बुधात् । धीरंधेशचतुष्टयं त्रिषु गुरोः केंद्राष्टलाभव्यये स्वादेकोपचयास्तगत्रिखभवास्तांबुत्रिकोणे भृगो ॥२३॥ चंद्राष्टवर्ग कहते हैं:--चंद्रमा भौमसे ९।५।२।३।६।१०।११, शनिसे ६।३।११।५, लग्नस ३।६।१०।११,सूर्यसे ३।६।१०।११८ ७, बुधसे ५।८।११।१।४।७।१०।३, गुरुसे १।४ । ७ । १० 101 ११ । १२, चंद्रसे १।३।६।१०।११।७, भृगुसे ३ । १०।११।७।४। ९.५ में स्थानमें शुभफल देता है। इन स्थानोंमें रेखा दे और शेष स्थानोंमें शून्य देनेसे चंद्रका अष्टवर्ग होता है ॥ २३ ॥ अथ भौमस्याष्टवर्गमाह । स्वाद्भौमोऽष्टचतुष्टयायधनगो जीवात्पडायांत्यखे चन्द्रादायरिपुत्रिगो भृगुसुतादष्टांत्यलाभारिगः । ज्ञापंचायरिपुत्रिगोऽर्कतनयात्केंद्राष्टधर्मायगः सूर्याचोपचयात्मजेषु तनुतस्त्र्यायारिखाये शुभः ॥ २४ ॥ अब भौमका अष्टवर्ग कहते हैं:-भौम अपने स्थानसे ८।१।४। ७१०१११२, गुरुसे ६ । १३ । १२ । १०, चंद्रसे ११।६।३, शुक्रसे ८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) पत्रीमार्गप्रदीपिका । १२ । ११ । ६. बुधस ५। ११ । ६ । ३, शनिने १।४।७।१०।८।९।११, सर्यसे ३।६।१०।११।५,लग्नस३।११।६।१०।१स्थानमें शुफभल देता है,इन शुभ फलपदस्थानमें रेखा देना और शेष स्थानमें शून्य देनेसे भौमका अष्टवर्ग होता है२४ अथ चंद्रस्याष्टवर्गाकाः ४९. अथ भौमस्याष्टवर्गाकाः ३९ रचं में बु गु शु श ल. र च में। बु गु शु श ल. रचं में तु गु शु श GmWA ६१ amrwai w งงะ 0925 ८७ ११११११० Smwwब अथ बुधस्याष्टवर्गमाह । शुक्रादासुतधर्मलाभमृतिगः सौम्यः कुजास्तपःकेंद्रायाष्टधने स्वतोऽप्युपचयान्त्येकत्रिकोणे शुभः। कोणान्त्यारिभवे खे रिपुभवाष्टान्त्ये गुरोरिन्दुतः खायाष्टारिसुखार्थगः स्वखभवाष्टकांबुषट्मूदयात् ॥२५॥ अब बुधका अष्टवर्ग कहते हैं:-- शुक्रसे बुध १।२।३ । ४ । ५।९। ११८ वें स्थानमें शुभ फल देता है और मंगल शानसे ९।१।४।७।१०।११ ८१२, बुधसे ३।६।१०।११ । १२॥ १।९।५,सर्यसे ९।५।१२।६। ११, गुरुसे ६।११। ८। १२, चंद्रसे १०।१३। ८।६।४।२, लग्नस २।१०।११।८।१।४ । ६ स्थानमें शुभफल देता है । इन उक्त स्थानोंमें रेखा देना और शेषस्थानमें बिंदु देनेसे बुधका अष्टवर्ग होता है ॥२५॥ __ अथ जीवस्याष्टवर्गमाह। स्वात्स्वायाष्टविकेंद्रे स्वनवदशभवारातिधीस्थश्च शुक्रालनाकेन्द्रायधीषट्स्वनवसु च कुजात्स्वाष्टकेंद्राय इज्यः। इन्दोर्चुनार्थकोणाप्तिषु सहजनवाष्टायकेन्द्रार्थगोऽर्काज्ज्ञात्कोणयायखायाम्बुधिरिपुषु शनेल्यंत्यधीपदसशस्त:२६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिवा। (५३) अब गुरुका अष्टवर्ग कहते हैं:-गुरु अपने स्थानसे २।११।८।३१ ४७ । १० वे स्थानमें, शुक्रसे २।९।१०।११। ६ । ५, लमसे १ । ४। ७ । १०।११।५।६।२।९, भौमसे २।८।१।४। ७ । १०११, चंद्रसे ७।२।९।५।११, सयस ३।९। ८।११ | १।४।७।१०।२, बधसे ९ । ५ । २। ११ । १० । । ४ । ६, शनिसे ३ । १२ ५।६ स्थानमें शुभफल देता है । इन स्थानोंमें रेखा देनेसे गुरुका अष्टवर्ग होता है ॥ २६ ॥ भय बुधस्याष्टवर्गाकाः ५४. अथ गुरोरष्टवर्गाका५५. و ا م | www ||-mrspx nor orm a sus Rav23 2:00Geo 20man ::00Gemu-4 | Par204 Goat. Snsna porn.rai Isrry م س ۷ و ۸ همه : अथ शुक्रस्याष्टवर्गमाह । खास्तान्त्याऽहितवर्जितेषु तनुतः शुक्रो विनास्तारिखं चन्द्रात्स्वान्मदनव्ययारिरहितेष्वर्काद्वययाष्टाप्तिषु। मन्दावयेकरिपुव्ययास्तरहितेष्वीज्यानवायाष्टधी खे ज्ञात्कोणभव विषदसु भवधीत्र्यन्त्यारिधर्मे कुजात् ॥ २७ ॥ अब शुकका अष्टवर्ग कहते हैं:-शुक्र-लमसे १० । ७ । १२ । ६ स्थान विना और स्थान ( १।२।३।४।५। ८।९।११ । )में शुभफल देता है और शुक्रसे ७ । ६ । १० । वें स्थान विना अन्य स्थानमें (१। २ । ३ । ४ । ५।८।९।११ । १२ । ),चंद्रसे ७ । १२।६ । स्थान विना अन्य स्थानमें ( १ ।२।३।४। ५। ८।९।१०। ११), सूर्यसे १२।८। ११ स्थानमें, शनिसे २ । १ । ६ । १२ । ७ वें स्थान विना शेष स्थानमें (३।४।५।८।९।१०।११), गुरुसे ९ । १३ । ८।५। १० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) पत्रीमार्गप्रदीपिका। में, बुधसे ९।५।११।३।६, मंगलसे ११॥ ५।३। १२॥ ६।९ स्थानमें शुभफल देता है । इन शुभफलद स्थानोंमें रेखा देनेसे शुक्रका अष्टवर्ग होता है ॥ २७ ॥ अथ मन्दस्याष्टवर्गमाह । स्वान्मंदस्त्रिषडायधीषु रवितोऽष्टायद्विकेन्द्रे शुभो भौमात्खायषडन्त्यधीत्रिषु तनोः खायाम्बुषट्च्येकगः । ज्ञादायारिनवांत्यखाष्टसु भृगोरन्त्यायषसंस्थितश्चन्द्रादायरिपुत्रिगः सुरगुरोरन्त्यायधीशत्रुगः ॥२८॥ अब शनिका अष्टवर्ग कहते हैं:-शनि अपनी राशिसे ३।६।११। ५ स्थानमें, सूर्यसे ८ । ११ ।२ । । ४ । ७। १० में, भौमसे १० । ११ । ६। १२ । ५। ३, लग्नसे १० । ११ । ४।६।३।१, बुधसे ११।६। ९।१२।१०। ८, शकसे १२ । ११ । ६, चन्द्रसे १३ । ६। ३,गुरुसे १२॥ ११॥ ५॥ ६ स्थानमें शुभफल देता है । इन स्थानोंमें रेखा देना और अन्यत्र बिंदु देनेसे शनिका अष्टवर्ग होता है ॥ २८ ॥ अथ शुक्रस्याष्टवर्गाकाः५२ अथ शनेरष्टवर्गाकाः ३९ रचं में दुशुशल र|चं में बु गु शु शल م |३|२०६५ Porrmy |mra on/mruri SEWA * N may v |mr. م س Gen. 36.ca ९.९/१०४/५/४/७/ १०१०१२ १३ ه م Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीका सहिता | शम्भुहोरा प्रकाशादिग्रन्थों में लग्नाष्टवर्ग भी विशेष कहा है I र ३ maca ww ६ १० १० १२ १२ अथ लग्नस्थाष्टवर्गीकाः ४९. मं गु | शु १ mw a av १० ११ बु १ of ve ११ ত- ৬ট ১o g d १० ११ १ ANS CAM. श १ ३ ४ O ११ ल or w १० ११ ( ५५ ) स्थानानि यान्युक्तानि तेषु रेखा अन्यत्र बिन्दुः ||२९॥ इति रेखाष्टकम् । प्रथम जिस ग्रहका अष्टवर्ग करना हो वह ग्रह जिस राशि में स्थित हो उस राशिको आदि ले जन्मकुंडली ग्रहसहित लिखना, तदनंतर अपने अपने अष्टवर्ग जो जो स्थान शुभफलप्रद कहे हैं उन उन स्थानोंमें रेखा लिखना और अन्य स्थानों में बिंदु (शून्य) लिखना । इस प्रकार सूर्य से लग्नपर्यंत आठ ही ग्रहोंके अष्टवर्ग बनाना, फिर बारहों राशियोंकी अष्टवर्गकी रेखाका योग पृथक् पृथक् करके अपनी अपनी रेखाका योग कुण्डली में लिखने से समुदायाष्टवर्ग होगा । तदनंतर इस समुदायाष्टवर्ग में मीने मेष वृषभ मिथुन राशिमें जितनी जितनी रेखा हों उन सब रेखाओंका योग करना । ये योग १२० एक सौ बीससे अधिक आवे तो प्रथम वयमें सौख्यार्थ विशेष प्राप्त होगा। एवं कर्क सिंह कन्या तुला राशिकी सब रेखाका योग १२० एक सौ बीस से अधिक आवे तो तरुण अवस्था में सुख अर्थप्राप्ति आदि विशेष होगा । इसीप्रकार वृश्विक धन मकर कुंभ राशियोंकी सब रेखाका योग १२० एकसौ बीससे अधिक आवे तो उत्तर वयमें सुख अर्थ प्राप्ति आदि शुभफल विशेष होगा और १२० एक सौ बीससे अल्परेखैक्य जिस अवस्थामें आवे उस अवस्थामें मध्यम फल होगा ऐसा जानना ॥ २९ ॥ १ शभुहोरा प्रकाशे - " मीनाद्यं मिथुनांतकं प्रथमकं प्रोक्तं वयः प्राक्तनैः कर्काद्यं वणिजांतकं तरुणता संज्ञञ्च मध्यं बुधैः । कुंभान्तं स्थविरांतकं च बहुभिर्यत्सत्फलैः संयुतं तत्सौख्यार्थविशेषदं बलयुते नेदं विशेषाच्छुभम् ॥ ११ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) पत्रीमार्गप्रदीपिका। उदाहरण । सूर्यरेखाष्टक करना है-यहाँ सूर्य कुंभराशिका है, अतएव कुंभराशिको आदि ले जन्म कुंडली ग्रहसहित लिखके श्लोक २२ के अनुसार शुभफलप्रद स्थानोंम रेखा, अन्यस्थानोंमें शून्य लिखी सब रेखाका योग किया तो ४८ हुआ। यह सूर्यका अष्टवर्ग हुआ । इसी प्रकार शेष ग्रहोंके अष्टवर्ग जानना। रेखाष्टकचक्रम् गु| चं शभुलरम ७ /८/९१०/११ ॐ ३३५/६/७/३/२/५४८ सूर्याष्टवगैक्य ४८ m /sin ४|१|७ |३| | 1००००००००० 1/ ८ 1911००, ५७/५३४५ Lo००००० गु४ ५३|४|४|५३ ५ ३|६|२ ३|४|३|३|६|५ સાબરર રરરર રરર ૧૦ ન समुदायाष्टवर्ग-उदाहरण। जैसे मेषराशिके सूर्याष्टवर्गमें रेखा ३, चंद्राष्टवर्गमें ६, भौमाष्टवर्गमें ४, बुधाष्टवर्गमें ५, गुरुके अष्टवर्गमें ५, शुक्राष्टवर्गमें ६, शनिके अष्टवर्गमें २, लग्राष्टवर्गमें रेखा ३ है। इन आठ ही वगाँकी मेषराशिकी रेखाका योग किया दो ३४ हुए, इसी प्रकार बारहों राशियोंके अष्टवर्गकी रेखाका योग किया, इसको समुदायाष्टवर्ग जानना । इस समुदायाष्टवर्गमें मीनराशिम रेखा ३०, मेषमें ३४, वृषभ, ३२, मिथुनमें ३५ रेखा हैं, इनका योग किया १३१ आये । ये १२० से अधिक हैं, अतः प्रथमवयमें सुखार्थ वृदयादि श्रेष्ठ फल होगा । एवं कर्कमें ३३, सिंहमें २२, कन्या, २७, तुलामें ३४ रेखा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषा टीका सहिता । ( ५७ ) हैं, इनका योग किया तो ११४ आये, ये १२० से अल्प हैं, इसलिये मध्यवय में मध्यम फल होगा। इसी प्रकार वृश्चिक ३८, धन ३९, मकर २९ कुंभ ३५ राशियोंकी रेखाका योग किया तो १४१ आये, ये १२० से अधिक हैं, इसलिये अन्त्य वयमें सौख्यार्थप्राप्त्यादि श्रेष्ठ फल होगा, ऐसे ही सबमें जान लेना । इति रेखाष्टकम् । समुदायाष्टवर्ग कुंडली. आद्यावस्था १३१ श्रष्ठ. ३३ ११३) ३९श९ स ३५ शु१० ल २९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १ ३४ X 3 ३१ ३५ ३४ ११४ ५ २२ शुभाशुभफलचक्रम् | मध्यावस्था နု २७ मध्यम अन्त्यावस्था १४१ श्रेष्ठ. अथ राश्मिसाधनमाह । सत्रिभं सायनार्क सूर्यस्य व्यकेंन्दु चन्द्रस्य मध्यस्पष्टयोयोंगाईं चलोच्चे हीनं भौमादिकानां चेष्टाकेंद्रम् ॥ तद्वसोर्ध्व मिनभा च्छुद्धं शेषर्क्षे सैकम् अंशाद्या द्विघ्ना चेष्टारश्मिः ॥ ३० ॥ अब रश्मिसाधन कहते हैं: - अयनांशयुक्त किये हुए स्पष्ट सूर्य में तीन राशि युक्त करे तो सूर्यका चेष्टा केंद्र होता है और स्पष्टचंद्रमेंसे स्पष्ट सूर्य हीन करने से चंद्रका चेष्टा केन्द्र होता है और भौमादिक ( भौम, बुध, गुरु, शुक्र, शनि ) मध्यम ग्रहका और स्पष्टग्रहका योग करके अर्ध (आंधे) करना और अपने अपने चलोच (शीघ्रोच्च) में हीन करना ( सोचना ), सो भौमादि पंचताराग्रहों का चेष्टा १ सोमदैवज्ञः -- " मध्यमार्कसहितं चलकेन्द्र स्यादूबुधस्य च सितस्य चलोच्चम् । मेदिनीतनयजीवशनीनां मध्यमार्क उदितं च चलोच्चम् ॥ " अर्थात् बुध शुक्र के मध्यम शीघ्र केंद्र में मध्यमसूर्यको मिलानेसे बुध शुक्रका शीघ्रोच होता है और मंगल गुरु शनिका मध्यम सूर्य शीघ्रोच होता है । www.umaragyanbhandar.com Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (सप यहाँकी उचनीयस्त नीचाः ॥ ३० भिणिकुभिः (५८) पत्रीमार्गप्रदीपिका । केन्द्र होता है वह चेष्टाकेन्द्र ६ राशिसे अधिक हो तो १२ बारा राशियों से शोधना (निकालना); शेष बचे उसकी राशि एक मिलाना और अंशादिकको द्विगुण करे तो चेष्टारश्मि होती है ॥ ३० ॥ ____ अथ ग्रहाणामुञ्चनीचराशीनाह । सूर्यात्स्युरुच्चाः क्रियगो२ मृगस्त्रीक्ष्किळ ४ ऽन्त्य१२ जूका ७ दशभि १० हुताशः ३ गजाश्वि-२८ भिबोणकुभिः १५शरैमैं २७ नखै-२० लवैरस्तगतास्तु नीचाः ॥ ३१ ॥ ___ अब ग्रहोंकी उच्चनीच राशिय कहते हैं:-मेष १ राशिके १० अंश पर्यव (सूर्य), वृषभ २ राशिके ३ अंशपर्यंत (चन्द्र), मकर १० राशिके २८ अंशपर्यंत (भौम), कन्या ६ राशिके १५ अंशपर्यंत (बुध), कर्क ४ राशिके ५ अंशपर्यंत (गुरु), मीन १२ राशिके २७ अंशपर्यंत (शुक्र), तुला ७ राशिके २० अंशपर्यंत (शनि)। सूर्यको आदिले ग्रह क्रमसे उच्चराशियोंके होते हैं और अपनी उच्चराशिसे सातमी राशिमें गये हुए नीचके होते हैं ॥ ३१ ॥ . उच्चनीचराशिचक्रम. | र । चं | मं बु | गु_ शु, । श। __ ३ १ । ९ ५ | ३ | ११ | ६ । । उच्चराशि |१०| ३ | २८ १५| ५ | २७ ! २० परमोच्चअंश.. नीचराशि. |१०! ३ | २८ | १५, ५ | २७२० परमनीचअंश.) - - अथ उच्चरश्मिसाधनमाह । ग्रहनीचांतरं कार्य षड्भादूनं यथा तथा । द्विघ्नोंशादिः सरूपं भमुच्चरश्मिरयं स्मृतः ॥ ३२ ॥ अब उच्चरश्मि करनेकी रीति कहते हैं:-जैसे छह राशिसे अल्पशेष रहते हो वैसे ही ग्रह और नीचके अंतर करना(ग्रहमेसे नीच हीन करनेसे ६ से अल्प रहे तो ग्रहमेसे नीच (हीन)करना और यदि नीचमेसे ग्रहहीन करनेसे ६ राशिसे अल्पशेष रहते हो तो नीचमेंसे ग्रहको हीन करना) शेष बचे राश्यादिककी राशिके अंकमे १ मिलाना और अंशादिकको द्विगुण करनेपर उच्चरश्मि होती है ॥ ३२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ — भाषाटीकासहिता। (५९) अथ स्पष्टरश्मिसाधनमाह । चष्टोचरश्मियोगार्द्ध स्फुटरश्मिः प्रकीयते। नखोनैक्ये दरिद्री स्यादिशोर्व सम्पदन्वितः ॥ ३३ ॥ अब स्पष्टरश्मिसाधन कहते हैं:-चेष्टारश्मि और उच्चरश्मिका योग करके अर्थ (आधा)करना,जो आवे वह स्पष्टरश्मि कहाती है। उस स्पष्टरश्मिका ऐक्य २०बीससे अल्प आवे तो दरिद्री होता है और२०बीससे अधिक आवे तो सम्पदावान होता है ॥ ३३ ॥ इति रश्मिसाधनम्। उदाहरण । सूर्य स्पष्ट १० । १६ । ५३ । ३९ में अयनांश २२।२९।० युक्त करनेसे ११।९।२२।३९ सायन सूर्य हुआ। इसकी राशिम ३ तीन युक्त किये तो २। ९ । २२ । ३९ ये सूर्यका चेष्टाकेन्द्र हुआ।एवं चंद्रस्पष्ट ५। २९ । १९ । ९ मेंसे स्पष्ट सूर्य १० । १६ । ५३ । ३९ हीन किया तो ७।१२।२६।१०ये चंद्रका चेष्टाकेंद्र हुआ भौममध्यम ११।१२।३९।४८ भौमस्पष्ट ११।६।१४। ५४ का योग किया वो२२।१८।५४।४२हुआ,इसको अर्ध किया तो११।९।२७। २१ हुआ इसको भौमके चलोच (मध्यमसूर्य) १०।१५।३।२१मेंसे हीन किया वो शेष ११।५।३६।०भौमका चेष्टाकेंद्र हुआ। एवं बुधके मध्यमस्पष्टके योगके अर्थ १०१ १२१५३ । ४९ को बुधके चलोच (बुधशीघकेंद्र ११ । २३ ॥३१॥ ९ में मध्यम सूर्य १०।१५।३।२१ को मिलाया तो १०८।३४।३० यह बुधका शीघोच्च हुआ ) १०८।३४। ३० मेंसे हीन किया तो११।२५।४०४१ बुधका चेष्टाकेंद्र हुआ,इसी प्रकार शेष ग्रहोंका चेष्टाकेंद्र जानना । सूर्यके चेष्टाकेंद्र ९।२२।३९ में राशि युक्त करके अंशादिकोंको द्विगुण किये तो३।३८१४५।१८ सूर्यकी चेष्टाराशि हुई। चंद्रका चेष्टाकेंद्र ७।१२।२६।१० छः राशिसे अधिक है, अतएव १२ बारह राशिमेंसे शोधा शेष ४।१७।३३।५० हुए, इसी राशि ४ में मिलाया और अंशादिकोंको द्विगुण किये तो ५।३५।१४० चंद्रकी चेष्टारश्मि हुई । एवं भौमादिक ग्रहोंकी चेष्टारश्मि समझ लेना ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ๕๕๕ ๕ .(६०) पत्रीमार्गप्रदीपिका। उच्चराश्मिसाधन उदाहरण. अथ चेष्टारश्मिचक्रम् । सूर्य १० । १६ । ५३ ॥३९ सूर्य| बु. गु. शु. श. की नीचराशि ६।१०।०। . सूर्यमेंसे नीचको हीन करनेसे ६ | २ १५/२३ मध्यम छःराशिसे अल्पशेष बचता है, इसवास्ते सूर्यमेंसे नीचको हीन किया ४।६। ५३ । ३९ इसकी राशि ४ में एक मिलाया और अंशादिकोंको दोगुणे किये वो ५।१३१४७१८ मूर्यकी उच्चरश्मि हुई। इसी प्रकार शेषग्रहोंकी उच्चरश्मि जाननी चाहिये । | w : : : : : : s)ะ: m * * * * * * * * | 6 ๕ vะ * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * मध्य स्पष्ट योगार्ध. चलोच्च 22* : : m- 8ะ ๆ • 1 * * १८/१०/०३८/२०२४३४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिवा। (६१) - उच्चराश्मिचक्रम्। __ स्पष्टरश्मि-उदाहरण। र. | चं. मं. बु. गु. शु. श. (ऐ. सूर्यको चेष्टारश्मि ३।१८।४५। |१८, सूर्यकी उच्चरश्मि ५ । १३। ४७। ४७/२०/३०३१/२६ |१८ का योग किया तो ८॥ ३२॥ ३२॥ १८/२२/१२२४२ ३६ हुए, इसको आधा किया तो४।१६। १६१८ आये । यह सूर्यकी स्पष्टरश्मि हुई । इसीप्रकार शेष ग्रहोंकी स्पष्टरश्मि जानना । स्पष्टरश्मिका योग २० से अधिक है इस कारण संपदावान होगा ऐसा फल समझना ॥ इति रश्मिसाधनम् ॥ अथ स्पष्टरश्मिचक्रम् । १६/५१/४६/३८/१२/५३/४५ १८| १ | ६ | १ ११५०२४५१ अथायुर्दायानयनमाह । कलीकृत्य ग्रहं तत्र द्विशताप्तेऽर्कशेषकाः। समाः शेषात्तु मासाद्याद्वादशादिहतैः क्रमाव ॥३४॥ अब आयुर्दाय आनयनकी रीति कहते हैं:-ग्रहकी कला करके उसमें २०० दोसौका भाग देना, जो लब्ध आवे उसमें १२ बारहका भाग देना,शेष बचे वह वर्ष जानना । तदनंतर कलाके दोसौका भाग देनेसे जो शेष बचे उनको क्रमसे १२। ३० । ६० से गुणा करके २०० दोसौका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उसे मासादिक जानना अर्थात् शेषको प्रथम १२ बारहगुणा करना, २००का भाग देना जो लब्ध आवे उसे ही मास जानना और जो शेष बचे उनको ३०तीससे गुणा करना,२००का भाग देनेसे जो लब्ध आवे वही दिन होता है । फिर जो शेष बचे उनको ६० साठसे गुणा करना, २०० का भाग देने पर जो लब्ध आवे वही घटी होती है । फिर शेषको ६० साठसे गुणा करना और २०० का भाग देना जो लब्ध आवे उसे पल जानना चाहिये । ऐसे कमसे जो वर्षमासादिक १-राशिको३०तीसगुणी भरके भंश मिलाना फिर उसको६०साठ गुणा करके कला मिलानेसे होती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६२) पत्रीमार्गप्रदीपिका। आवे वह ग्रहकी वर्ष मास दिन घटी पल विपलात्मक मध्यायु समझना ॥३४ ॥ इसप्रकार उनसहित सुर्यादिग्रहोंकी मध्यायुसाधन करके स्पष्टायुसाधनके संस्कार आगे कहते हैं स्थिरारिभे हरेज्यशं वक्रचारं विना ग्रहः। शुक्रार्कजान्यस्त्वस्तस्य यद नीचदंगे दलम् ॥ ३५ ॥ वक्रगति ग्रहके विना जो ग्रह स्थिरमैत्रीमें (नैसर्ग-मैत्रीमें ) शत्रु राशिका हो उस ग्रहकी आयी हुई वर्षादि आयुमेंसे तृतीयांश ( अपना वीसरा हिस्सा) हीन करना और शुक्र शनिके विना अन्य (दूसरा ) ग्रह अस्तकाहो तो उसकी आयुको आधा करना, नीच राशिका ग्रह हो तो उसकी आयी हुई आयुका दल ( अई) करना ॥ ३५॥ वक्रोच्चगे तत्रिगुणं द्विनिघ्नं वर्गोत्तमस्वांशकभत्रिभागे । द्वित्रिप्रतायां त्रिगुणं सकृद्ध द्विव्यंशकोने द्विलवोनमायुः ॥३६॥ वक्रगति ग्रह हो वा उच्चराशिका हो वो उस ग्रहकी वर्षादि आयुको त्रिगुण (३ तीनगुणी) करना और वोचमी हो वा स्वनवांशका हो वा स्वराशिका हो वा स्वरेष्काणका यह हो तो आयी हुई वर्षादि आयुको द्विगुण (दोगुणी) करना और यदि जिस ग्रहकी वर्षादि आयुको द्विगुण करनेका और त्रिगुण करनेका दोनों योग आवे तो उस ग्रहकी आयुको पृकुक् पृथक् २ दोगुणी और ३तीनगुणी नहीं करना केवल १ एक ही बार त्रिगुण (तीनगुणी) करना । एवं ग्रहकी वर्षादि आयुर्मेसे द्वितीयांश और तृतीयांश दोनों घटानेके योग आवें वो वर्षादिक आयुमेंसे केवल एक ही बार द्वितीयांश ( अपना अर्धभाग) हीन करना ॥३६॥ वामं व्ययात सर्वदलत्रिपादं पंचाङ्गभागानशुभा हरन्ति । संतोऽर्द्धमई सबलम्बहूनामेकक्षगानामिति सत्यवाक्यम्॥३७॥ लमसे बारहमें १२ स्थानको आदि ले सप्तम स्थानपर्यंत उलटे १-आगे श्लोक ३९ में कह है कि जिस राशिका ग्रह हो उसी राशिके नवांशमें आवे तो उसे बगोतनी जानना। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। (१२।११।१०।९।८।७) स्थानोंमें अशुभ (पाप)यह स्थित हो तो यथाक्रम आयी हुई आयुर्दायमेंसे १२ सर्व (पूरी आयु) ११ आधी १० तृतीयांश९ चतुर्थांश ८ पंचमांश ७ षष्ठांश हीन करना । अर्थात् लनसे बारहमें स्थानमें जो अशुभ (पाप) ग्रह स्थित हो उसकी जो वर्षादिक आयु आयी है वह सर्व हीन करना ( उस ग्रहकी आयु००शून्य शून्य लिखाना) और ११ एकादश स्थानमें जो पापग्रह स्थिव हो उसकी आयु जो वर्षादिक आयी है उसको आधी करना, एवं दशम १० स्थानमें जो पापग्रह स्थित हो उस ग्रहको वर्षादि आयुमेंसे तृतीयांश (अपना तीसरा भाग) हीन करना और ९ नवम स्थानमें पापग्रह स्थित हो तो उसकी वर्षादि आयुमेंसे चतुर्थांश(अपनी वर्षादि आयुको चारका भाग देके जो आवे वह) हीन करना, एवं ८ अष्टम स्थानमें जो पापग्रह स्थित हो उस ग्रहकी वर्षादि आयुमेसे पंचमांश ( अपनी वर्षादि आयुके पांचका भाग देनेसे आया हुआ जो पांचवा हिस्सा वह) हीन करना । इसी प्रकार सप्तम स्थानमें जो पापग्रह स्थित हो उसकी आयुमेंसे षष्ठांश ( अपना छठा हिस्सा ) हीन करना और इन व्ययादि १२।११।१०।९।८।७ । स्थानोंमें शुभ ग्रह स्थित हो वो जो जो भाग अशुभ ग्रहकी आयुमेंसे हीन करनको कहा है उसका आधा आधा भाग हीन करना अर्थात् बारहवें स्थानमें शुभ ग्रह स्थित हो तो उसकी वर्षादि आयुको आधी करना और ११ ग्यारहमें स्थानमें स्थित हो तो उसकी वर्षादि आयुमेंसे चतुर्थाश (चौथा हिस्सा) हीन करना । एवं १० दशम स्थानमें स्थित हो तो उसकी आयुमेंसे षष्ठांश (छठा हिस्सा) हीन करना और ९ नवम स्थानमें स्थित हो तो उसकी आयुमेंसे अष्टमांश (आठवा हिस्सा) हीन करना। इसी प्रकार ८ अष्टम स्थानमें जो शुभ ग्रह स्थित हो उसकी वर्षादि आयुमेंसे दशम भाग (वर्षादि आयुके १० दशका भाग देके जो दशांश आवे वह ) हीन करना । एवं सप्तम स्थानमें जो स्थिव हो उसकी वर्षादि आयुमेंसे द्वादशांश(अपना बारहवां हिस्सा ) हीन करना और इन्हीं व्ययादिक उक्त स्थानोंमें यदि एक राशिमें दो ग्रह स्थित हों वा बहुत ग्रह स्थित हों तो उनमेंसे जो ग्रह आधिक बलवान् हो उसी एक ग्रहकी वर्षादि आयुगेसे जिस स्थानमें स्थितका जो भाग हीन करनेको पूर्व कहा है वह हीन करना, शेष ग्रहोंकी आयुमेंसे उस स्थानका भाग हीन नहीं करना, ऐसा सत्याचार्यका वचन है ॥ ३७ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) पत्रीमार्गप्रदीपिका। लग्ने बलाढये सहितं च वस्तुल्यैर्विलग्नस्य गृहविधेयम् । भागादिना भास्करसंगुणेन युक्तं दिनाथं भवति स्फुटं तत् ॥३८॥ लंग्न बलवान हो वो लग्नकी वर्षादि मध्यायुके वर्षके अंकमें लगकी राशिकी संख्याक समान (लग्न • राशिका हो तो • शून्य ९ राशिका हो तो ९ नव ऐसे जिस राशिका हो उतने ही) वर्ष युक्त करना और लपके अंशादिक ( अंश कला विकला) को १२ बारहसे गुणा करके उसी वर्षादि मध्यायुके दिनादिकमें युक्त करना, वह लगकी स्पष्टायु होगी और लग्न बलवान् नहीं हो वो जो मध्यायु आवे वही स्पष्टायु समझना ॥ ३८॥ चरभवनेष्वायशाःस्थिरेषु मध्या द्विस्वभावेष्वन्त्याः वर्गोत्तमाः॥३९॥ ___ अब वर्गोत्तमराशि कहते हैं:-चर(१।४।७।१०)राशियोंमें आय (प्रथम ३ ।२०) नवांशके अंश स्थिर (२।५।८ । ११) राशियोंमें मध्य (पांचवां१६। ४०) नवांशके अंश द्विस्वभाव (३।६।९। १२) राशियोंमें अंत्य ( नववां ३० । .) नवमांशके अंश वर्गोतमांश होते हैं, अर्थात् चरराशिका ग्रह प्रथम नवांशमें हो तो वर्गोत्तमी होवा है । एवं स्थिर राशिका ग्रह पांचवे नवांश १६६४० में हो तो वर्गोत्तमांशमें होता है और द्विस्वभाव राशिका ग्रह अंत्य नवांशमें ( २६१४० के उपरान्त ३०० पर्यंत नवम नवांशमें ) हो तो वह वर्गोत्तमांशमें होता है ।। ३९ ॥ स्वर्भकेंद्रोत्तमांशस्थाः स्वांशमित्रांशकान्विताः। परिपूर्णबलैर्युक्ताः स्वोच्चमूलत्रिकोणगाः ॥ ४० ॥ अब ग्रहोंका बल कहते हैं:-स्वराशिमें स्थित केंद्र (१।४।७।१०) स्थानमें स्थित, शुभग्रहोंके नवांशमें स्थित, स्वनवांशमें स्थित, मित्रनवांशयुक्त और अपनी उच्चराशि (श्लोक ३१ में कही है) स्थिव और मूलत्रिकोणराशिमें स्थित ग्रह परिपूर्ण बलवान होता है ॥ ४ ॥ १-आगे श्लोक ११ में कहा है। २-सारावल्याम्-"विंशतिरशाः सिंहे त्रिकोणमरे स्वभवनमर्कस्य । उच्च भागत्रितयं वृष इन्दोः स्पात्रिकोणमपरेऽसाः ॥१॥ द्वादशभागा मधे विकोणमपरे स्वभं तु भोमस्य । उचमयो पल्यापां बुषस्य. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता । (६५) स्वामिगुरुज्ञवीक्षितयुता होरा बलोत्कटा भवति ॥ ४१ ॥ अब लग्नका बल कहते हैं-लग्न अपने स्वामीसे अथवा बुधगुरुसे युक्त हो वा दृष्ट हो तो बलवान् होता है ॥ ४१ ॥ लोमशोक्त सप्तवर्गबल सारणी चक्र समाप्तिमें दिया है उससे भी ग्रहों का सप्तवर्ग बल जानना ॥ इत्यायुर्दायः ॥ उदाहरण | सूर्य १० । १६ । ५३ । ३९ की कला १९०१३ | ३९ में २०० दो सौका भाग दिया लब्ध ९५ आये, इनमें १२ बारहका भाग दिया शेष ११ रहे ये वर्ष हुए कलाके २०० का भाग देनेसे शेष १३ । ३९ बचे इनको १२ बारहगुणे किये १६३ । ४८ हुए इनमें २०० का भाग दिया लब्धशून्य मास आये शेष १६३ । ४८ को तीसगुणे किये ४९१४ । ० फिर २०० का भाग दिया लब्ध २४ दिन आये शेष ११४ ।० बचे इनको ६० साठगुणे किये ५८४० । ० हुए इनमें २०० का भाग दिया लब्ध ३४ त्रुटी आयी वं १ मं यु गु मे ध. ० ८ मू २० ४३ मू. १२ स्व १० मू २७ स्व १८ क. ५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat उ. १५ मू. ५ स्व १० शु श मू १० मू १५ स्व २० | स्व १५ राशयः १० मू २०/ स्ब १० अशाः परत: । -तुंगांशकैः सदा चिन्त्यम् 11 २ ॥ परत त्रिकोणजातं पञ्चभिरंशैः स्वराशिजं दशभिर्भागैर्जीवस्य त्रिकोणं धनुषि तत्परं स्वगृहम् ॥ ३ ॥ शुक्रस्य च तिथयोंऽशास्त्रिकोण मपरं स्वमं तुलायां तु । कुम्भे त्रिकोणं स्वगृहे रविजस्य रवेर्यथा सिंहे ॥ ४ ॥" अर्थात् सूर्य सिंहराशिके २० बीस अंशपर्यंत मूलत्रिकोणका २० अंशके उपरांत शेष १० अंशमें स्वगृही होता है । चन्द्र वृषभके तीन ३ अंश पर्यंत उच्चका ३ तीन अंशके अनन्तर शेष अंशमें मूल त्रिकोणका होता हैं, भौम मेषराशिके १२ अंशपर्यंत मूलत्रिकोणका १२ के अनन्तर शेष अंश में स्वराशिका होता है, बुध कन्याराशिके १९ पंदरह अंशपर्यंत उच्चका १५ पंदरह अंशके अनंतर ५ पांच अंशपर्यंत मूलत्रिकोणका ५ पांच अंशके अनंतर शेष अंशमें (२० अंशके अनंतर ) स्वराशिका होता है, गुरु धनराशिके १० अंशपर्यंत मूलत्रिकोणका १० दश अंशके अनंतर शेष अंशमें स्वराशिका होता है, १५ अंशपर्यत मूलत्रिकोणका १५ पंदरह अंशके अनंतर शेष अंशमें स्वराशिका राशिके २० 'बीस अंशपर्यत मूल त्रिकोणराशिका २० अंशके अनन्तर शेष जानना । इति ॥ एवं शुक्र तुला राशिके होता है, शनि कुंभ१० अंशमें स्वराशिका ५ www.umaragyanbhandar.com Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ alo viral '. 352 . . ० रश्मा (६६) पत्रीमार्गप्रदीपिका । शेप ४० । • बचे इनको फिर ६० गुणे किये २४००। ० हुए, इनमें २०० का भाग दिया लब्ध १२ पल आये ऐसे कससे ११ । ०।२४ । ३४ १२ वर्षादि सूर्यकी मध्यायु आयी। इसी प्रकार शेष चंद्रादि ग्रहकी और लमकी वर्षादि आयु जानना-अब इसमें श्लोक ३५के अनुसार सूर्य स्थिरमैत्रीमें शत्रुकी राशिका है इसकारण सूर्यको वर्षादि ११ । । २४ । ३४ । १२ आयुमध्यायुचक्रम् । मेसे अपना तृतीयां (तीन का भाग देके)३।८। म-११ ।२४ । घटाया ७४ १६ । २२ । ४८ सूर्यको स्पष्टायु हुई। चंद्रमा वर्गोत्तमी संस्का है इसकारण श्लोक ३६ के - ३५ अनुसार इसकी आयु ५। रुप/। १७ । ४० । १२ को द्विगुण की ११ । ७ ५।२० । २४ । हुए इनमेंसे श्लो श्लोक ३७ के अनुसार चंद्र ९ नवम स्थानमें स्थित टा-है इसलिये ४ चतुर्थांश || १० हीन करना परंतु ये शुभ यह हैं इस कारण वर्षादि आयुके आठका भाग देके १।५।११ । ५५ । ३ आये हुए अष्टमांशको हीन किया १०। १ । २३ । २५ । २१ ये वर्षादि चंद्रकी स्पष्टायु आयी । भौमके श्लोक ३५। ३६ । ३७ के अनुसार कोई संस्कारका योग नहीं है इसकारण जो मध्यायु१०१०।१४।४९।१२ है यही स्पष्टायु जानना।बुध अस्तका है इसलिये बुधकी आयु ९। २। १९ । ४४ । २४ को आधी करके श्लोक ३६ के अनुसार ये स्वद्रेष्काणका है इसवास्वे दोगुणी की ९।२।१९।१४ । २१ ये बुधकी सष्टायु आयी. वक इम वगान EE • | । ० सप्तमे ६षष्टां ०००००० / ४८] २१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। एवं गुरु वक्रगति है इसकी आयुको श्लोक ३६ के अनुसार ३ तीनगुणी करनेका और उच्चराशिका है इस कारण फिर ३ तीनगुणी करनेका और यही गुरु वर्गोत्तमांशका है इसलिये फिर२ गुणी करनेका योग३ तीन प्राप्त हुए, हैं अवएव "द्वित्रिघ्नवायां त्रिगुणं सकदै " इसके अनुसार गुरुकी वर्षादि आयु ३।२।१७ । २५॥ ४८ को एक ही बार ३ गुणी की ९ । ७ । २२। १७ । २४ हुई परंतु गुरु शुभग्रह है और ७ सप्तम स्थानमें स्थित है इसकारण इसमेंसे अपना बारहवाँ हिस्सा ०।९। १९ । २१ । २७ हीन किया ८।१०।२। ५५॥ ५७ ये गुरुकी स्पष्टायु हुई और शुक्र स्वद्रेष्काणका है इसलिये शुक्रकी आयु. ८ । २३ । २ । २४ को श्लोक ३६ के अनुसार द्विगुण करनेसे १।५। १६ । ३।४८ आये ये शुक्रकी स्पष्टायु हुई। एवं शनि बारहमें स्थानमें स्थित है और यह अशुभ ग्रह है इसलिये इसकी आयु ५।९ । ५! २४ । मेंसे सर्व (पूरी) आयु हीन की शेष ० । । । । • यह शनिकी स्पष्टायु हुई। वा लग बलवान् है इसलिये उनकी वर्षादि आयु ४ । । १५। २७ । ० के वर्षके ४ अंकमें लग्नकी राशिके समान वर्ष ९ युक्त किये १३ वर्ष हुए, शेषमासादिक • ।१५। २७ । ० में लग्नके अंशादिक २३ । २८ । ३५ । को बारह गुणाकरके आये हुए मासादि ९।११। ४३ । • युक्त किये १३॥ ९ । २७ । १० । • ये वर्षादिक लग्नकी स्पष्टायु हुई ॥ इत्यायुर्दायः ॥ स्पष्टायुयोग ६१।९।। ३२३० ॥ अथ स्पष्टांशायुचक्रम् । र. चं. | मं. | बु. गु. | शु.|श. | ल. ए. 23 GAI ४/१/१०/२/१०/५ १८/२१/१२/२१/ a दशासाधनमाहतत्रादौ ६विंशोतरी दशा। रखेः षडिन्दोर्दश १० सप्त ७ भूभुवो । गजेंदवो-१८ऽगोर्धिषणस्य षोडश १६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६८) पत्रीमार्गप्रदीपिका। शनेनवाब्जा १९ नगभूमिता १७ विदो नगा ७ स्तु केतोरनलानखाः २० कवेः॥४२॥ अब दशासाधन कहते हैं, जिसमें प्रथम विंशोत्तरी कहते हैं:-कृत्तिका नक्षत्रको आदिले क्रमसे प्रथम सूर्यकी ६ छह वर्षकी दशा, फिर चंद्रकी १० वर्षकी, मंगलकी ७ वर्षकी, राहुकी १८वर्षकी,गुरुकी १६वर्षकी, शनिकी १९ वर्षकी,बुधकी १७वर्षकी,केतुकीवर्षकी, शुक्रकी,२० वर्षकी दशा जानना॥४२॥ र च । म | १६ | १६ । १० । के । २० | अ भ. अष्टोत्तरीदशा। खेः ६षडिन्दोस्तिथयो १५ ऽष्ट भूभुवो नगेन्दवो १७ ज्ञस्य शनेर्दिशो १०गुरोः । नवेन्दवो १९ ऽगो रवयः १२ समाः सिते धराश्विनो २१ वेदहुताशमे शिवात् ॥४३॥ अष्टोत्तरीदशाके वर्षादि मान कहते हैं-आनिक्षत्रको आदि ले क्रमसे प्रथम चार नक्षत्र (आ० पु० पु. आ.)की, सूर्यकी ६वर्षकी दशा, फिर तीन नक्षत्र (म. पू. उ.) की चंद्रकी १५ वर्षकी, फिर चार नक्षत्र (ह.चि.स्वा. वि.) की भौमकी ८ वर्षकी, फिर तीन नक्षत्र (अ. ज्ये. म.) बुधकी १७ वर्षकी, फिर चार नक्षत्र (पू. उ. भि. श्र.) की शनिकी १० वर्षकी, फिर तीन नक्षत्र (ध. श. पू.) की गुरुकी १९ वर्षकी, तदनंतर चार नक्षत्र (उ. रे. अ. भ.) की राहुकी १२ वर्षकी, तदनंतर तीन नक्षत्र (क. रो. म.) की शुक्रकी पर्षकी भष्टोत्तरी दशा मानना ॥ १३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। (६९) अष्टोत्तरीदशा. र. | चं. | मं । बु. | श. | गु. | रा. |६१५८ १७ | १० शु. مهم مو به Masti आ. | अथ योगिनी दशा। जनुर्भे त्रियुक्तेऽष्टतष्टे दशा मंगला पिंगला धान्यका भ्रामरी च । ततोभद्रिकोल्का च सिद्धा क्रमात्संकटासन्निषिद्धाःसमैकैकवृद्धाः४४॥ अब योगिनी दशा कहते हैं-जन्म नक्षत्रकी संख्या तीन मिलाना आठका भाग देना एकको आदि ले शेष बचे सो क्रमसे १ मंगल २ पिंगला ३ धान्या४ भामरी भद्रिका ६ उल्का ७ सिद्धा ८संकटा दशा एक एक वर्ष बढ़ती हुई एक श्रेष्ठ एक नेष्ट इस क्रम से जानना । अर्थात् मंगला एक १ वर्षकी श्रेष्ठ, पिंगला २ वर्षकी नष्ट, धान्या ३ वर्षकी श्रेष्ठ, नामरी ४ वर्षकी नेष्ट, भद्रिका ५ वर्षकी श्रेष्ठ, उल्का ६ वर्षकी नेष्ट, सिद्धा ७ वर्षकी श्रेष्ठ, संकटा ८ वर्षकी नेष्ट जानना ॥ ४४ ॥ मं. पि. । धा. |चं. र. गु. योगिनीदशा. भ्रा. भ. | उ. | सि. | सं. । म. | बु. | श. | शु. रा. आ.पु. पु. अ. | भ. | भ. | कृ. | रो. म. चि. स्वा. वि. अनु. म. म. | पू. उ. ह. ज्ये. मू. पू.षा. उ.षा.। उ.भा.रे. शक्लेगेऽर्कस्य होरायां दिवा विंशोत्तरी दशा। कृष्ण चन्द्रस्य होरायां रात्रावष्टोत्तरी मता ॥४५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) पत्रीमार्गप्रदीपिका । अन्यथा योगिनी कार्या सदा कार्या महादशा । अब दशाके योग कहते हैं-शुक्लपक्षका जन्म हो और उनमें सूर्यको होरा दिनमें जन्म हो तो विंशोत्तरी दशा करना. एवं कृष्णपक्षमें. जन्म और लममें चंद्रकी होरा हो रात्रिसमयमें जन्म हुआ हो वो अष्टोत्तरी दशा करना ॥ ४५॥ इन दोनों योगोका संभव नहीं हो तो योगिनी दशा करना और महादशा सदा ( सर्वदा ) करना ॥ ___ अथ दशाभुक्तभोग्यानयनमाह । चन्द्रस्य लिप्ताः खाभ्रेभै ८०० लब्धाः स्युर्गततारकाः॥४६॥ शेषा हताः स्वपाकाब्दैर्हारेणाप्ताः समादिकाः । गता दशा सा पाकाब्दे उनिता भोग्यसंज्ञिता ॥१७॥ अब दशाके भुक्त भोग्य लानेकी रीति कहते हैं-चंद्रमाकी कला करना आठसौका ८०० भाग देना, जो लब्ध आवे वह गतनक्षत्र जानना. शेष रहे कला उसको अपनी दशाके वर्षसे ( विंशोत्तरीके भुक्त भोग्य करना हो तो श्लोक ४२ के अनुसार कृत्तिकाको आदि ले गिननेसे जन्मनक्षत्र जिस ग्रहकी दशामें आया हो उस दशामें जन्म हुआ ऐसा जानना. जिस ग्रहकी दशामें जन्म हुआ उसके दशाके वर्ष जितने हों उतने वर्षसे और योगिनीके भुक्त भोग्य करना हो तो श्लोक ४४ के अनुसार जिस दशामें जन्म हुआ हो उसके वर्षसे, अष्टोत्तरी करना हो तो श्लोक ४३ के अनुसार जिस ग्रहकी दशामें जन्म हो उसकी जितने वर्षकी दशा हो उतने वर्षसे ) गुणी करना. हार ८०० का भाग देना. जोलब्ध आवे वह वर्ष जानना शेष बचे उनको१२बारह गुणे करना और८०० आठसौका भाग देना लब्ध मासआवे शेषको३० वीस गुणे करना ८०० आठसौका भाग देना लब्ध दिन आवे,शेष बचे उनको६०साठ गुणे करना फिर८०० आठसौका भाग देनाजो लब्ध आवेवह घटी जानना।शेष बचे उसको फिर६०साठ गुणा करना८००का भाग देना लब्ध आवे वह दल जानना। ऐसे आवे जो वर्षादिक वह गवदशा ( भुक्तदशा) हो उस भुक्तदशाको दशाके वर्षसे हीन करना (सोधना ) शेष बचे वह भोग्य दशा समझना ॥ ४६ ॥ ४७ ॥ १-विंशोत्तरी और योगिनीसे कुछ भिन्न रीति है इस कारण अष्टोत्तरीके भुक्तभोग्य लानेकी रीति अलग आगे लिखी है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। विंशोत्तरी दशाका उदाहरण । (७१) स्पष्ट चन्द्रमा ५। २९ । १९॥ ४९ इसकी कला १०७५९ । ४९ इसके ८०० आठसौका भाग दिया लब्धः१३ आये यह गवनक्षत्र हस्त हुआ शेषकला ३५९ । ४९बची इसको श्लोक ४२ के अनुसार कत्तिकाको आदि ले गिननेसे जन्मनक्षत्र चित्रा भौमकी दशामें आया इसलिये भौमके दशाके वर्ष ७ सातसे गुणे किये २५१८ । ४३ हुए इनमें ८०० आठसौका भाग दिया लब्ध ३ वर्ष आये, शेष ११८१४३ बचे इनको १२ बारह गुणे किये १४२४। ३६ हुए, इनमें ८०० आठसौका भाग दिया लब्ध एक मास आया शेष ६२४॥३६ को ३० तीसगुणे किये १८७३८ । • हुए८०० आठसौका भाग दिया लब्ध२३ दिन आये शेष ३३८ । • बचे इनको ६० साठगुणे किये २०२८० । • हुए इनमें ८०० आठसौका भाग दिया लब्ध २५ घटी आयी शेष २८०० को ६० साठगुणे किये १६८००। • हुए, फिर इनमें८०० आठसौका भाग दिया लब्ध २१ पल आयी शेष० शून्य बची। इसप्रकार वर्षादि३।१।२३।२५।२१ भौमकी भुक्त दशा आयी,इसको दशाके वर्ष ७ मेंसे घटायी शेष३।१०।६५३४। ३९ बची यह भौमकी भोग्य दशा हुई। विंशोत्तरीदशायन्त्रम. भो भो. रा. गु. | श. | १८ | १६ | १९ बु. | १७ वयोग तवर्षादि, संवत २८१९३२/१९५०१९६६१९८५ २७१८१५/१८३११८५० शक. उत्तीणोंक. ३९ । १८ । ८ १८ - - - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७२) पत्रीमार्गपदीपिका। योगिनी दशाका उदाहरण । जन्म नक्षत्रकी संख्या १४ में तीन मिलाये १७ हुए आठका भाग दिया शेष १ बचा इसलिय १ पहली मंगला दशा वर्षकी में जन्म हुआ, इसके वर्ष १ एकसे चंद्रमाकी कला १०७५९ । ४९ के आठसौका भाग देनेसे शेष बचे ३५९ । ४९ इनको गुणे किये ३५९ । ४९ हुए, इनमें ८०० आठसौका भाग दिया लब्ध • शून्य वर्ष आया, शेष ३५९ । ४९ को क्रमसे १२ । ३० ६० । ६०गुणे करके ८००का भाग देके विंशोत्तरीवत् मासादिक लाये यह योगिनी मंगलाकी भुक्त दशा हुई ० ।५। ११ । ५५। ३ इसको मंगलाके वर्ष १ मेंसे हीन किया शेष ०। ६।१८। ४ । ५७ यह भोग्य दशा हुई। योगिनीदशाचक्रम्. मं.मो. पि. | धा. | भ्रः. | भ. । र. ग. | म. ब. ] पयो. गतवर्षा. १९२८/१९०९/१९३११९३४१९३८१९४३/१९४९/१९५६१९६४| संपत् १७९३ १७९४ १७९६ १७९९ १८०३ १८०८/१८१४ १८२१ १८२९ |शक. ४ ५८ उत्तीना. ५८ | ५८ । ५८ . ५८ | ५८ । ५८ | |श्रे. | ने. | श्रे. | ने. | श्रे. | ने. | श्रे. ने. फलम् अष्टोत्तरीदशा बनानकी रीति कहत हैंप्रथम चंद्रमाकी कला करना उसमें८०० आठसौका भाग देना, जो लब्ध आवे वह गत नक्षत्र जानना, शेष कला बचे उसको श्लो० ४३ के अनुसार जिस ग्रहकी दशामें जन्म हुआ हो उस ग्रहके दशाके वर्षोंसे गुणन करके आठसौ ८०० का भाग देके विंशोत्तरी दशावत् वर्षादिभुक्त दशा लाना । तदनंवर उस भुक्त दशामें जितने नक्षत्रकी दशा हो उतनेका (चार नक्षत्रकी हो तो ४ चारका तीन ३ की हो वो ३ तीनका ) भाग देके वर्षादिक ५ फल लाना. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - भाषाटीकासहिता। (७३) जो आवेवह एक नक्षत्रकी भुक्तदशा समझना फिर जितने नक्षत्रकी दशा हो उसमेंसे जितनी संख्याके नक्षत्र गत हो उतनी संख्यासे (१एकगत हो तो १ से दो हो तोर दोसे३होतो३तीनसे) जितने वर्षकी दशा हो उन वर्षोंको गुणे करना और उसमें चार नक्षत्रकी दशा हो तो ४ का, तीनकी हो ३ तीनका भाग देना जो आवे वह वर्ष मास ऊपर आयी हुई एक नक्षत्रको भुक्तदशाके वर्षमासमें मिलाना सो स्पष्ट भुक्त दशा होवे उस भुक्तदशाको दशाके वर्षसे हीन करना भोग्य दशा होवे परंतु चन्द्रमाकी कला १५२०० पंदरा हजार दोसौस अधिक हो तो चंद्रमाकी कलामेंसे १५२००पंदरा हजार दोसौ घटादेना शेष कला बचे । शनिदशानक्षत्रभुवखंडाचकः । उसमस क्रमसे नीचे लिखे हुए कोष्ठकमें जो नक्षत्रोंके - पा.उ. पा. भि. श्रव. नक्षत्र ध्रुवके खंड हैं वे शोधना ( हीन करना ) जितने खंड निकले उतने निकालना, जो खंड नहीं निकले वह | | | २० | ४० डॉका अशद्ध खण्ड समझनाशेिषबचे कला उसको ३० ती. २ व.२ व. २२.२व. दशा. (६ मा. ६ मा. ६मा.मा. मा. । सगुणी करना और अशुद्ध खण्डका भाग देके मास दिन घड़ी पलात्मक चारफल लाना । यदि मास १२ बारासे अधिक हो तो मासमें १२बाराका भाग देना लब्ध आवे वह वर्ष शेष मासादि समझना।ऐसे आये हुए वर्षादिकमें जितनी संख्याक खण्ड निकले हो उतनी ही प्रत्येक संख्याके२वर्ष ६ मास मिलाना(अर्थात् एक खण्ड निकला हो तो२वर्षमास,दो खण्ड निकला हो तो ५ वर्ष,तीन खण्ड निकले हों तो७वर्ष६मास.)आवे वह शनिकी भुक्तदशा समझना, उसको अपने दशाके वर्ष १० मेंसे घटानेसे भोग्यदशा होवेगी, यह रीति केवल चन्द्रमाकी कला१५२००पन्दरा हजार दोसौसे १७६०० सतरा हजार छः सौ पर्यंत हो वहांतक ही करना शेषमें नहीं करना, अष्टोत्तरीदशाके भुक्त भोग्य होंगे इति । 1८००६००/५५३७४६ ध्रुवखाप ITIOणा सा नहा अष्टोत्तरीदशा-उदाहरण. स्पष्ट चंद्रमा ५॥ २९, १९ । ४९ इसकी कला १०७५९ । ४९ हुई इसमें ८०० आठसौका भाग दिया लब्ध १३ गत नक्षत्र आया शेष ३५९।४९ बचे इनको श्लोक४३के अनुसार हस्तको आदि ले चार नक्षत्रकी भौमकी दशामें जन्म नक्षत्र चित्रा मिलता है इसलिये भौमकी दशाके वर्ष८आठसे गुणे किये२८१७८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) पत्रीमार्गप्रदीपिका। ३२ हुए। इनमें ८०० आठसौका भाग देके विंशोत्तरीदशावत वर्षादि ३७) ५ २५।२४। लाये इनमें भौमदशा ४ नक्षत्रकी है इसलिये चारका भाग दिया लब्ध वर्षादि०।१०।२३॥५१२१आये यह एक नक्षत्रकी भुक्त दशा हुई, तदनंतर यह चार नक्षत्रकी दशा है इसमेंसे १ हस्त नक्षत्र गत है इसकारण १ एकसे दशाके वर्ष ८ को गुणे किये ८ हुए इनमें चारका भाग दिया लब्ध २ वर्ष आये ये एक नक्षत्रकी ऊपरकी आयी हुई भुक्तदशा०।१०२३॥५१॥२१॥के वर्ष में युक्त किया सो वर्षादिक २।१०।२३।५१।२१ मौमकी स्पष्ट भुक्त दशा दुई । इसको भौमके दशाके वर्ष ८ मेंसे घटाये शेष ५।१।६।८।३९ भोग्यदशा हुई। शनिकी दशाका कल्पित उदाहरण. शनिकी अष्टोत्तरीदशासाधन आभजिन्नक्षत्र होनेके कारण भिन्नरीतिसे किया जाता है उसके बनानेकी युक्ति प्रथम कही ही है परंतु बालकोंके सुबोधार्थ उसका एक कल्पित उदाहरण कहते हैं.--स्पष्टचन्द्र ९।१६।४० ० इसकी कला१७२०० सवरह हजार दो सौ है यह कला पन्दरा हजार दोसौ१५२००० से अधिक है इसकारण चंद्रकी कला १७२००मेंसे १५२००।०पन्दराहजार दोसौ घटा दियेशेष२००००कला बची इसमेंसे पूर्वाषाढाकेध्रुवक खंडके अंक८००० आठसौ घटाये शेष१२००००बचे इसमें से फेर उत्तराषाढाके खंडके अंक६०० छसौ घटाये शेष ६०००बचे इसमेंसे फेर अभिजितके खंडके अंक२५३।२० घटाये३४६ । ४० शेष बचे इसमेंसे ४ चतुर्थ खंड श्रवणके अंक७४६ । ४० नहीं निकलते हैं, इसलिये ये अशुद्धखंड हुआ शेष कला३४६१४०को३०वीस गुणा करनेसे १०४००० हुए इनमें अशुद्ध खंड ७४६१४० का भाग देके मासादि चार फल लाना है परंतु ये दोनूं भाज्य भाजक है कलादिक है इसलिये सवर्णित किये भाज्य ६२४००० भाजक ४४८०० सवर्णित हुए भाज्य ६२४००० में भाजक ४४८०० का भाग देके मास दिन घटी पठात्मक चार फल लाये १३ । २७ । ५१ । २५ आये-मास १३ बारासे आधिक हैं इसकारण १३ में, बाराका भाग दिया लब्ध १ वर्ष शेष १ मास हुआ । ऐसे वर्षादिक ॥१॥ २७ ॥ ५१ । २५ आये इनमें पूर्वाषाढा उत्तराषाढा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिवा। (७५). और अभिजित् इन तीन नक्षत्रोंके ध्रुवखंड कलामेंसे सुधे हैं इसलिये ७ सातवर्ष ६छ:मास मिलाये सो वर्षादि ८।७।२७।५१।२५। शनिकी भुक्तदशा आयी इसको दशाके वर्ष १० मेंसे हीन की शेष १।४।२।८।३५वर्षादि भोग्य दशा हुई ॥ इति अष्टोत्तरीदशोदाहरणम् ॥ - - अष्टोत्तरीदशाचक्रम. मं. भु.। मं..। मु. | श. | गु. । रा. । ८ । ८ । १७ । १० । १९ । १२ । | २२ ! ३२ | ५१ । ६३ वयोग तवर्षादि । ३९ ३९ ९३३/१९५०१९६० १९७९ १९९१ १७९८ ८१८१५१८२५१८४४|१८५६ संवत् शक. २३ उत्तीर्णाकं. १८।१८। अथान्तर्दशासाधनमाह। दशा दशाहता कार्या स्वस्वमानेन भाजिता। लब्धमन्तर्दशा ज्ञेया वर्षाद्याः क्रमशो बुधैः॥१८॥ अब अंतर्दशा बनानेकी युक्ति कहते हैं-दशाके वर्षको दशाके वर्षसे गुणन करना और अपनी अपनी दशाके मानका भाग देना लब्ध वर्षमासादिक आवे वह क्रमसे अपनी अपनी दशामें पंडित लोगोंने अंतर्दशा जानना, अर्थात् विंशोत्तरी महादशामें जिस ग्रहमें अंतर्दशाचक्र बनाना हो उस ग्रहके दशाके वर्षको विंशोत्तरीके ९ नव ही ग्रहोंके दशाके. वर्षसे कमसे गुणन करना और विंशोत्तरी महादशाके मानका ( १२० एकसौ वीसका) भाग देना । एवं अष्टोत्तरीमें जिस ग्रहमें अन्तर्दशाचक्र बनाना हो उस ग्रहके दशाके वर्षको अष्टोत्तरीके आठ ही ग्रहोंके दशाके वर्षसे क्रमसे गुणन करना और अष्टोत्तरीके मानका ( १०८ एकसौ आठका ) भाग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) पत्रीमार्गप्रदीपिका। देना । ऐसे ही योगिनी दशामें जिस दशामें अंतर्दशाचक्र बनाना हो उस दशाके वर्षको योगिनीके आठ ही दशाके वर्षके क्रमसे गुणन करना और योगिनी दशाके मानका (३६ छत्तीसका ) भाग देना । ऐसे जिस दशामें अंतर्दशा करना हो उसका जो मान हो उसीका भाग देके क्रमसे वर्ष मासादि लाना जो आवे वह अपनी अपनी दशामें अपनी अपनी अंतर्दशा जानना ॥ ४८ ॥ उदाहरण । जसे विंशोत्तरी सूर्यमहादशामें अंतर्दशाचक्र बनाना है सूर्यमहादशाके वर्षद है इस महादशाके वर्ष ६ को सूर्य दशाके वर्ष ६ से गुणन किये ३६ हुए, इनमें विंशोत्तरी दशाके मान १२० का भाग दिया लब्ध • वर्ष शेष ३६ को १२ बारागुणे किये ४३२ हुए १२० का भाग दिया लब्ध ३ मास आये शेष ७२ बचे इनको ३० तीस गुणे किये २१६० हुए, इनमें फिर १२० का भागदिया लब्ध १८ दिन आये शेष बची इसको ६० गुणा करके १२० का भाग दिया लब्ध ० १ ० घटी पल आये, एसे वर्षादिक०।३।१८।। ० सूर्य महादशामें सूर्यकी अंतर्दशा आयी। फिर सूर्य दशाके वर्ष६ को चंद्रमहादशाके वर्ष१० से गुणे किये ६० हुए इनमें १२० एकसौ बीसका भाग देके वर्षादिक कमसे लाये ० । ६ । । । ये सूर्य महादशामें चंद्रकी अंतर्दशा आयो-एवं दशाके वर्ष ६ को भौमदशाके वर्ष ७ सातसे गुणे किये० २ हुए १२० एकसौ बीसका भाग देके वर्षादिक लाये । ४।६।। • सूर्यमें भौमकी अंतदेशा आयी। ऐसे ही फिर सूर्य महादशाके वर्ष ६ को राहुदशाके वर्ष १८ अठरासे गुणन करनेसे १२८ आये इनमें दशाके मान १२० का भाग दिया लब्ध १० । २४ । । । ० । सूर्य महादशामें राहुको अंतर्दशामें आयो । इसीप्रकार दशाके वर्ष ६ को गुरुदशाके वर्ष १६ से गुणके १२०का भाग देनेसे०९।०८। ०१०। वर्षादिक सूर्यमें गुरुको वथा शनिके वर्ष १९ स दशाके वर्ष ६ को गुणन करके दशाके मान १२० का भाग देनेसे वर्षादि० । ११ । १२ । ० । ० शनिकी अंतर्दशा तथा बुधके वर्ष १७ से दशाके वर्ष ६ को गुणन करके १२० का भाग देनसे०। १०६ । । ० सूर्यमें बुधको अंतर्दशा तथा दशाके वा ६ को केतुकी दशाक वर्ष ७ से गुणके १२० का भाग देनेसे ० ।४।६।० । केतुकी ऐसे ही दशाक वर्षको शुक् महादशाके वर्ष२० से गुणन करके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। (७७.) दशाके मान १२० का भाग देनसे १ । । । । । वर्षादिक मर्यमहादशामें शुककी अंतर्दशा आयी । इसीप्रकार विंशोसरीमें चंद्रादि शष ग्रहोंकी तथा अष्टोत्तरीयोगिनी आदि दशा अंतर्दशा जानना ॥ इति ॥ (अथ विंशोत्तरीमध्ये अंतर्दशाचक्राणि) सूर्यमध्येतर्दशा. चंद्रमध्येतर्दशा. र | चं| मं | रा | गु | श | बु | के | शु चं| म | रा| गु श बु के शु | र । ० ० ० ० | ००००० ००० ०००० ००००० ००००० ००60 ० ० ० ००००० ००० OOom o A भीममध्यतर्दशा. रामध्यंतर्दशा म | रा गुशबु के शु | चं|रागुशबु | केशरच में १] ३ wr... ०००० ००० |३७/१८६ ९/२७/२७/ ०६ ०२४/३४६१८/१८/ ० ० ० • ० ० ० ० ० ० | ० ० ० ० ० ० गुरुमध्येतदेशा. शनिमध्येंतर्दशा. गु | 7 | बु | के | शु | र | च में | राश । बु | के । शु। र । चं | म २ ० २ ० १ ० mamro० १२/६ |mr. ०१८ ० |or0००० ००० ६ ०० ००० ०० ०० ००० 10.6ersal ०४:30 बुधमध्येतर्दशा. केतुमध्येंतर्दशा. शु गु । नाक | शुर।चं में | रा|गु | श राशर ६ ३८४ २७/१८/६९२७ ० ६ ०३७/१८६ | Ka ०.com |० ०० ००० 1०० ००००० ०० शुक्रमध्येन्तर्दशा. 1 शाव ० ० ० CIA . T०००। SalN.०० .. ००० . - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७८) पत्रीमार्गप्रदीपिका। (अष्टोत्तरीमहादशामध्येंतर्दशाचक्राणि) । सूर्यमध्येंतर्दशा. चंद्रमध्येतर्दशा. रचं | में । बु | श | गु | रा | शु चं | में | बु | श | गु |रा | शु। र । ० ० ० ० ० 100% ० - F0 0 ० ० ० ००० ००० ०/१०/१०/२०/२०० |००००० ००० ०० ०० भौममध्यतदशा. बुधमध्यतदशा. गु | रा| शु शरचं ।। ० 0:06 02 |Mr vm: ० ० ००० गुरुमध्येंतर्दशा. शनिमध्येतर्दशा. श गुरा | शुरचं | म | बु । | में। 0:00 604 1068mmolan " ० jivar o T orri० Pomm: ०० م م س م ه | : | राहुमध्येंतर्दशा. که همه ००० ० ० ० ८ »AI AAVAT ००० ००० ००० samvo०० योगिनी महादशामध्येतर्दशाचक्राणि. मंगलामध्येतदशा. पिंगलामध्येतर्दशा. । उ । सि | सं |पि 072. ।१०।२०॥ | ०१० 1०००० . धान्यामध्यदशा. सि | सं । म । भ्रामरीमध्येर्दशा. |उ सि उ ०००० ०० ०० ०० ०० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। भद्रिकामध्येंतर्दशा. उल्कामध्येंतर्दशा. भ. ४. सि.सं. म. पि.धा.भ्रा. उ. सि.सं. म. पिं. धा. भा. भ.| १०/११/१३ | १| | ५ ०२०१०/२०१०|| . 2:०० . ००० सिद्धामध्येंतर्दशा. | संकटामध्येतर्दशा. | सं| मं. पिं. धा.भा. भ. १६ १८ २१७९११ १४/२१ २ 4 ००० -:०० ... ००० अथांतर्दशामध्ये विदशानयनप्रकारमाह । अन्तर्दशाया दिवसाः स्वस्ववर्षेः क्रमाद्धताः। स्वमानाब्दैढताः प्राप्ता विदशा दिवसादिकाः ॥ १९ ॥ अब विंशोत्तर्यादि दशाकी अंतर्दशामें दिदशा करनेका प्रकार कहते हैं। अंतर्दशाके दिनोंको अपने २ वर्षोंसे (विंशोचरीकी अंतर्दशाके दिनोंकी विंशोतरीके सूर्यादि ग्रहोंके वर्षसे अष्टोत्तरीकी अंतर्दशाके दिनोंको अष्टोत्तरीके सर्यादिग्रहोंके वर्षसे योगिनीकी अंतर्दशाके दिनोंको योगिनीकी मंगलादिदशाके वर्षोंसे) क्रमसे गुणन करना और अपने अपने दशामानके वर्षोंका(विंशोत्तरीकी अंतर्दशामें विदशासाधनमें विंशोत्तरीके मानके १२० एकसौ बीसका, एवं अष्टोतरीमें१०८का योगिनीमें ३६ का) भाग देना, जो लब्ध आवे वह दिवसादिक (दिनादिक) विदशा जानना ॥ ४९ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८०) पत्रीमार्गप्रदीपिका। उदाहरण। जैसे विंशोत्तरी सूर्य महादशामें सूर्यकी अंतर्दशा मास ३ दिन १८ की है इसमें विदशा करना है इसलिये इसके दिन किये १०८ हुए इनको विंशोत्तरी दशाके सूर्यके वर्ष ६ से गुणन किये ६४८ हुए इनमें विंशोत्तरी दशाके मानके वर्ष १२० एकसौ बीसका भाग दिया लब्ध५ दिन आये शेष ४८ बचे इनको ६० साठगुणे किये २८८० हुष इनमें १२० एकसौ बीसका भाग दिया लब्ध २४ वटी आयी शेष बची ६० साठ गुणा करके १२० का भाग देने से १ पल आयी यह सूर्यको अन्तर्दशामें ५ दिन २४ घटीकी सूर्यको विदशा हुई । ऐसे ही सूर्यकी अंतर्दशाके दिन १०८ को चंद्रादिकके वासे क्रमसे गुणन करके १२० दशामानका भाग देने से दिनादिक सूर्यकी अन्तर्दशामें विदशा हुई । इसी प्रकार विंशोत्तरी दशाकी शेष चंद्रादि ग्रहोंकी अंतर्दशामें तथा अष्टोत्तरी योगिनीकी अंदर्दशामें विदशा दिनादिक जानना ॥ सर्यमध्येसूर्यातरतन्मध्येविदशा सूर्यमध्येचंद्रातरतन्मध्येविदशा. # |om 12.० •०० ००० ००० .४० ००००० 1010101060.001010101010101010/प. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० गु १ सूर्यमध्ये भीमांवर तन्मध्ये विदशा. य शु | र P २१ ५०७८ ५७ ५१ २१ ● ० O O O श १ १ ८ १५ १० २४ ३६ ४८ श २ • मं || • बु के | शु र् चं मं १ ० १ ० ० १३ १७ २१ १५ २५ २१ ५१ ० | १८ | ३० ० • भाषाटीकास हिता । सूरमध्ये गुतरं तन्मध्ये विदशा. के । श य चं! मं 0 १ ० १४ १६ १८ ४८ ० ० ० १० ० २४ र ० १ २१ ० रा शु श | पु १२ १ १५ ३० ० ० ० O २४ ० ० सूर्यमध्ये युधांतरं तन्मध्ये विदशा. १ १८ १८ ३० ३६ ० ० ० ० ० रा गु श] के O १ १ १ · १० १८७ १७ १५ ५१ ५४ ४८. २७ २१ ० ० ० ० ० ० О O ० Q १६ ४८ | १२४९ ० ० ० चंद्रमध्ये भौमांतरं तन्मध्ये विदशा. के O १ ० ० २८ | ३ | ३९ | १२ १५ ४५ | १५ ० ० ० चंद्रमध्ये गुर्वतरं तन्मध्ये विदशा. रा । गु श १ २४ शुर १ ५ ० ० सूर्यमध्ये राद्वंतरं तन्मध्ये बिदशा. श | बु | के | शु | रघं | मं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १ १ १ ० १३ १२ ० २१ १५ १८ २४ १८ ५४ ५४ ● ० ० ० ० सूर्यमध्ये शन्यं तरं तन्मध्ये विदशा. चं मं |रा| गु ० ० १ १ मा. १९ २१ १५ ५७ १८ ३६ घ. | शु ० २१ ० | शुर १ O १ ० १८ १९ २७ १७ २७ ५७ ० ६ ० ० ०.० ० ० ० ० सूर्यमध्ये केत्वंतरं तन्मध्ये विदशा. चं मं रा गु श बु ० ० र ० ६ १०७ १८ ३० २१ ० ० सूर्यमध्ये भृग्वंतरं तन्मध्ये विदशा. चंद्रमध्ये चंद्रांतरं तन्मध्ये विदशा. प्वं मं | रा गु | श | बु के चं मं रा गु श | बुं | के | शु / र । ० १ १ १ १ ० ० २१ | २४ १८ २७ २१ २२ २५ १७ ० १ १ १८ ० १५ १० ० ० 0 ० ० ० ० ० ० ० ० ० . 0 ० ० ० 0 ३० ० ०।० ० चंद्रमध्ये राहूंतरं तन्मध्ये विदशा. ० O २८ ३० चरा गु ० ० २ २ २ २ १ १ १० १७०२१ | १२ | २५ १६ ३० ३०० ० ३०/३० ३० ० ० ० ( ८१ ) O ० ० मा. १६ २७ १८ दि. १२ ० ५४ घ. ० ० प. १ १ ० ० ० ० म १८ १६ १९ १७ दि ५४ ४८ ५७ ५१ घ. O ० ० ० प. जगु श | इ | के । शु र २ २ ० २ ० १ ० २ ३ २ १ ४ १६ ८ २८ २० २४ । १० ० ० ० ० • ० ० ० ० ० ० C ० ० ० १ ० मा १७ १२ १७ २० १५ ३० ३० ३० ० ० घ. ० ० ० 0 ० ०५. श | बु | के | श र ० ० ० ०० ० ० O १ १ मा. २७ १५१ दि. ० ० ३० घ. ००प. ० चंद्रमध्ये शन्यंतरं तन्मध्ये विदशा. चं मं रा ] श | बु | के | शु | र चं मं रा शु. ० १ १ २ २ मा. २८ १२ ० २० ३ ५ २८ १७३ २५ १६ ४५ १५ · ३० ३० १५३०० ० ० .१५ O ० O ० ० • · ० O www.umaragyanbhandar.com Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८२) पत्रीमार्गप्रदीपिका । चंद्रमध्ये बुधांतरं तन्मध्ये विदशा। | चंद्रमध्ये केत्वंतरं सन्मध्ये विदशा। |बु । के । शु | र| चं| में | रा| गु श | के | शु | २ | चं| मं; रा | गु श दु । १२/२९ ३५ २५/१२/२२ १५४५/०३०|३०|४५ |१३| ५ |१०१७/१२ १ २८३९ दि. १५.३०/३०/१५:०/०१५/४५ 2 चंद्रमध्ये सूर्यातरं तन्मध्ये विदशा. चंद्रमध्ये शुक्रांतरं तन्मध्ये विदशा. | शरचं| | रा| गु| शबु | के | | | | . r . d . भौममध्ये भौमांतरं तन्मध्ये विदशा। | भीममध्ये रावरं तन्मध्ये विदशा। | रा| गुश | के । शु। र च रा गु| | | के | शु ०००।११।१।१।० ८|२२|१९/२३/२०/८/२४७ १९५०२२२३३२.. १२/२६/२०१९/२३/२४ ३४३३६/१६/४९ |३४|३०|२१|१५|१२|२४|५१/३३३.५५३० |. .1010/प. so भौममध्ये गुर्वतरं तन्मध्ये विदशा। , भौममध्ये शन्यंतरं तन्मध्ये विदशा। गु| श|5| के | शुर| मं | राश |बु के शुर| मरा . | |४|१०/३१ /१६ 010 भीममध्ये बुधांतरं वन्मध्ये विदशा। | भीममध्ये केत्वंतर तन्मण्ये विदशा। के शुर| मं] रा| शु श के | शु) र) मंरा गुशबु १०१.०.११ .९३३२ ३४ाक्ष ०३० प. भौममध्ये शुक्रांतर तन्मध्ये विदशा। | भीममध्ये सातर तन्मध्य विदशा। घर में रा गु| शबु के रचं मरा गु शके शु ३.३०१९१७/२९२०३३१७ ५११५४९३३ |२३ १७/२६/ १४।३०२११५॥ ६१६४९ १।०३।१।३1 . F १० २६/१९/१७/७२१ दि. 27. .26.1 ००० . . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। (८३) - . . ३ . . भौममध्ये चंद्रावरं तन्मध्ये विदशा। रादुमध्ये राइंतरं तन्मध्ये विदशा । चं | में | ग गुशबु | के पुर | श। । के | | र | चं| में । ००० ५५ ५४१५१ १७/१३ १।२८ ९३१७/३६ |१३ १८२१२६/दि. ३०/१५/३०/० १८|३६ ५४|४२ ४३] .३६/०४२घ. . . . .10. प. राहुमध्ये गुर्वतरं तन्मध्ये विदशा। राहमध्ये शन्यंतरं तन्मध्ये विदशा । गु | श| | के | रा| श | के | शु| र | चं! # १६/२२०/२४/१३ | १२/२०/९/१२/२५/२९/२१/०१/२५/२९/३/१६ दि. ०२४ | ३६.२७/२१ ५१/०१८ ३०/५१५४/४८ घ. O!o lololg. राहुमध्ये बुधातरं तन्मध्ये विदशा। | राहुमध्ये केत्वंतरं सन्मध्ये विदशा। छ । के || रचं| मैं रा गुग के | शु | रवं मं रा गुशबु | RAMA | १२ / १८ २४ २५ . १५१६ १७ ३५ ००० |१८|११३२ २६/२०१९२३ |३०३ ४३ २४ ५१३३ ०/० ०/०10/01 ___ गहुमध्ये शुक्रांवर तन्मध्ये विदशा. | रामध्ये सूर्यावरं तन्मध्ये विदशा. शुर| चं| मैं | रा|गु श केर मेरा गु| केश - ३३१०१५ म . राहुमध्ये चंद्रातरं तन्मध्ये विदमा. | राहमध्ये भौमातरं तन्मध्ये विदशा. च में | रा | गु श | | के | | २ | रा| गु| श| बु | के | पुर| मा. १५/११/१२/२५/१६/ १० २३३६/२०|२९२३|२२३ ३ १८१ दि. |३००.३०/३० .. १२।४।५१३३ ro । गुरुमध्ये गुर्वतरं तम्मध्ये विदशा. | गुरुमध्ये शन्यंतरं सन्मध्ये विदशा. गु | श| बु | के| शु| र|चं मं | राश| | केशर चं| मैं|यस) | मा.. ३। ४ ।३ १ !. . 10/01.) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८४ ) के शुर ४ १ ३ २५ | १७ १६ १० ८ १७ ३६ / ३६ ४८ ० ३६ ० ० ० ० ० O गुरुमध्ये बुधांतरं तम्मध्ये विदशा. चं व मं पत्रीमार्गप्रदीपिका । रा बु | के | शु | र ४ १ ५ १ १७ २६ ११ १८ १६ ३१ ३० २७ ३० | ३० गु श १ ४ ३ गुरुमध्ये भृग्वंतरं तन्मध्ये विदशा. शुर चं। मं रा | गुशबु | के | र २ 1 ४ ४ ५ १ १० १८ २० २६ २४ ८ ० ० ● ० ० ० 0 ० ० ० ० ० ६ १ ३ १० २७ ५ ६ ० Co ० · Co ० ० २ १८ २४ | ४८ ० ० ० ० गुरुमध्ये चंद्रांतरं तन्मध्ये विदशा मं रा गु | श २ २ २ ० ટ્ | १० | २८ १२ ४ १६ ८ २८ २० १ ० ० ० ० ० ० ०।० ० ०|० ० ० ० ० ० गुरुमध्ये राहूंतरं तन्मध्ये रा गु शबु | के | शु ३ ४ २ १ ४ ९ २५ १६ ४ २० २४ ३६ १२ ४८ २४ २४ ० ५ २१ ३० О ० ५ २ ० ९ १२ बु | के | शु र गुरुमध्ये रव्यंतरं तन्मध्ये विदशा. च म ५ ४ १ ० ० ० २ १६ २६ १४ २४ १६ ० ० ० २४ ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० शनिमध्ये बुधांतरं तन्मध्ये विदशा विदशा र प्वं मं १ २ १ १३ १२ २० १२ ० २४ ५ च मं रा गु श २ १ ४ ४ २० २६ २५ ९ ४५ ३१ २१ १२ ० ० ० ३० ० ० गुरुमध्ये भौमांतरं तन्मध्ये विदशा के | शु | र | चं ० मंरा गु श | डु ० १ १ १ १ ० १ ० ० मा. २४ १९ २० १४ २३ | १७१९ २६ ९६ २८ दि. ३६ २४ | ४८ | १२ ३६ ३६ ० ४८० घ. ० ० ० ० ० ० ० ० ० प. ० ० • शनिमध्ये शुक्रांतरं तन्मध्ये विदशा. शुर वं । मं रागु श बु ६ ५ २ O ११ ६ ३० ३० ३० ० ० ० ० केशु | र ० १ ० १९ २६ ३६ • ० गुरुमध्ये केत्वंतरं तन्मध्ये विदशा. चामं रा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ० ० १ १९ २० ० ३६ २४ ० ० ० ० ०० प. १६ २८ ४८ ० के । शु ० २ २३ ६ १६ ३० २५ ३० | ३० ० रा गु १ १३८ ४८ १२ २४ ० ० ० ० ० ० ० ० गु श षु | १ १२ मा. १४ २३ १७ दि. ४८ १२ ३६ प. शबुक शु १ ० १ मा. १५ | १० | १६ १८ त्रि. ३६ ४८ ४८ | घ, प. शनिमध्येशन्यंतरं तन्मध्ये विदशा तं मं । रागु श बु क शु ५ ५ / ४ मा. ५ ५ २ ६ २१ ३ १८ २५ ० ३ १२२४ दि. १० ३० ९ १५ १० २७२४ घ. ३० ३० ३० ० 0 ० ३० ० ० प. शनिमध्ये केत्वत तन्मध्ये विदशा र | चं | मं ० ० १९ ३ २३ ५७ १५ ० र १ ३ २४ ० र ० ० ० १७ १८ १९ २१ ३० ५७ १८ ६ ० • ० रागु | शबु | १ १ २ १ मा. २९ १६ ५१ २३ ३ २६ दि. १२ १० ३१ घ. ० ३० O ० ३०|३०| प. शमिमध्ये सूर्यावर्तन्मध्ये विदशा.. पं मं यश | श के शु १ ० १ मा. १ २ १५ २४ १८ १९ २७ दि. ३६ ९ २७ ५७० घ. ० ० ० प. ० ० ० www.umaragyanbhandar.com Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शनिमध्ये चंद्रांतरं यन्मध्ये विदशा. | चं मं । ग गु श १ २ २ १७ ३ २५ ३० | १५ | ३० O ० ० १६ ० ० १५ ४५ ० ३ १६ १२ २५ ५४ ४८ २७ २१ ५१ २९ ० ० O • ० शनिमध्य रातरं तन्मध्ये विदशा. भाषाटीकासहिता । बु क २ २० ३ १५ ० ० श के हा र चं ४ १ ४ १ २ २० २४ १३ ४९४ ३० २१ २० | २० याशु | छा ब के शु T च म ५ ४ ५ ४ १ ५ १ २ १ २१ २१ २५ २९ ० १८ ३० ५१ ० O ० ० ० २ १२ १५ शुर मं ३ ० ० ५ ५ |२८|२३ २९ ० ३० १६ ५१ ० ३० ० ० न १ Q ३ २ २ १२ २९ १६ ८ २० ३० ४५ ३० ● ४५ ० • · बुधमध्ये बुधांतरं तन्मध्ये विदशा । मं । रा के १ ४ ३ २० २० १० २५ १७ २० २९ ३४ | ३ ३६ ३६ ४९ ३० ० ० O ३० ० ० ३० ३० ० C grमध्ये शुक्रांवर तन्मध्ये विदशा. गु श बुधमध्ये केत्वंतरं तन्मध्ये विदशा । शु | र चं । मं रा १ ० ० ० १ १७ २९ २० २३ ५१४५ ४९ ३३ ० ० ३० ० बुधमध्ये सूर्यातदं तन्मध्ये विदशः रा गु श नु क र | मं रा I श | खु के शु | ४ ५ ४ १ ० ० ० १ १ १ १ ० १ मा. २० २१ २५ २९ ३ | १३ | ११ / २४ १९१५/२५ | १७ | 6 ३० ३० | ३० १८ ३० ५१ हा । र । व्दं । मं ५ १. २ ५ १५ | १० | ५४ | ४८ १८| १३ | १७ २१ दि. O · ० ५० २७ २१ ५१ ० प. ० · ० ० ००० ० O ० बुधमध्ये चंद्रांवरं तन्मध्ये विदशा । मं रा गु श बु | के | शुर 1 ० ० २२ २५ २५ २५ १५ ४५ ० ३० ० गु ४. १ ३६ शनिमध्ये भौमांतरं तन्मध्ये विदशा. रागु | | बु शुर चं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat | शनिमध्ये गुर्वतरं तन्मध्ये विदशा. शका | र । खं | मं | रा ४ ४ १ ५ १ २ १ ४ मा. २४ ९ २३ २ १५ १६ २४ १२ १२ ० ३६ ० ० ० ० ० ० ० १ २ १ ० २ ०१ मा. २३ ३ २६ २३ ६ १९ ३ दि. १२ १० ३२. १६ ३० ५७ १५ घ ० ३०३०३० ० ० ० प. ( ८५ ) दुधमध्ये राहतरं वन्मध्ये विदया। झु | के | शु | र ! वं मं । रागु ! | क ०१ १ १ १ ० १ २०/२३ ४९ ३३ ३० २० २९ १७ | २६ : २० ३६ ३१ | ३४ Q ० १३०३०/३० ४९ ३० ० मं रा शुभ्र ४ ४ ४ ४ ५ ५ २ १ मा. | १५ १६२३ दि. १७ २२५ | १० | २३ | ४२ २४ २१ | ३ | ३३ · ३ ५४ ३० | ३३ | घ. 6 ० • · ० ० ० प. १३ १६ दि. १२ ४८ घ. ०|०|प. ु ० ० ० great भौमांतरं तन्मध्ये विदशा । शू | र | गु ा वु १ १/१ | मा. १७ २६२० दि. ३६ ३१३४ घ. ० ३०|३०| प. SEA | ० ० मा. १७५९ दि. ५१ ४५ थ. ००प. www.umaragyanbhandar.com Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८६) पनीमार्गप्रदीपिका। -- - - - बुधमध्ये गुर्वतरं वामध्ये विदशा. बुधमध्य भन्यंतरंजन्मध्ये विदशा. | गु| श। के र || मरा| के शुर| चं मंरागु D २५/१७/१३/१०॥ ३६६।०४८० १७/ ३/१५ रद . १६३१ loBolo13 ० । ० / ० केतुमय कत्वंतरंतन्मध्ये विदशा. | केतुमध्ये शुक्रांतरंतन्मध्ये विदशा. के | शुर में रागु शकु शु ०००। ८२२] १९२३ |२१| ५|२४| १३४/३०/२१ JAM 208 الامر س |moon IMro०॥ 1080 .. 60 | HD ५४४८।१४। -~la | 0 | 000| केतुमध्ये रब्यंतरं तन्मध्ये विदशा. | केतुमध्ये चंद्रातरंतन्मध्ये विदशा. र |चं | मैं रा गुशबु के शुचं | मं | रागु | श | बु. के शुर ૭) ૨૮ ૨૨ ૨૭ | १८१३०१२१५४ केतुमध्ये भौमांतरतम्मध्ये विदशा. | केतुमध्ये राखंतरं तन्मध्ये विदशा. मरा| गु| शपु के। शु र चं| रा गु| श | | ||0||२|१ ८२३|१९|२३|२०८|२४| ७/१२/२६|२०|२९|२३|२२|३|१८|१ ३०|२१/१५/४२|२४|५१ | ३३ ३ 1010101010 बेतुमध्ये गुर्वतरंतन्मध्ये विदशा. केतुमध्ये शन्यंतरंतन्मध्ये विदशा. गुश के सुर में राशबु | के | शु| र| चं| में रागु ०|१|२|१| | २ १ | | १६/२८/१९२०३/२६/२३/६/१९ |३६२४२०३११६/३०/५७ 1.113010111. केतुमध्ये सौम्यांवरसम्मम्ये विदशा. | शुक्रमध्ये शुक्रांतरंतन्मध्ये विदशा. || केशर में रा! गुश शुर| चं| ३० ३०००।३०३० ०० AAD |-027. १०/१० ००० : Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। (८७) शुक्रमप्ये रम्पतरं तन्मध्ये विदशा। । शुक्रमध्ये चंद्रांतरं तन्मध्ये विदशा । रचं | मैं | रा गु| श] छ | के | शु | चं| मैं रा गु श ! बु | के १८०२१|२४|१८|२७|२१|२१| ०२० -५०० ००० my०० Im:०० ०००० . .]. . . . . शुझमध्य भोमांतरं तन्मध्ये विदशा। शुक्रमय रावतरं तन्मध्ये विदशा। में | ग| गु| श बु | कं | शु | र| चंरा | गु| श| बु | 5 | शु| र च. Pro २४३ २६६२९|२४|१०|२२| ५.१.२४॥२२॥ २० ० ०|३०|३०३० ०००००। ००० Nar.० के शुभ ११ शुक्रमध्य गुर्वतरं तन्मध्ये विदशा। । शुक्रमध्येशन्यंतरं तन्मध्ये विदशा। गु श बु | के | शु | २ | चं में राश बु ! के | शु | चं मं_राग । ३ . ५/५:मा. ८ २ | १६ २६/१०/१८/२०२६/२४०।११।। ० ० ० ० ० | i. शुक्रमध्ये सौम्यांतरं तन्मय विदशा। । शुममध्य कत्वंतरं तन्मध्ये विदशा। |बु । के | शुरचं | मरा! गु| श के | शु | २ | चं । मैं रा | गु | श बु । : ००० ४०० . २१/२५/३९ २०३१ ५ |३ २६६ इति विंशोत्तरीमध्ये सर्वेषां ग्रहाणामंतर्दशामध्ये विदशा-एवमष्टोत्तयादीनामपिज्ञया । ऊवं स्थाप्यो जन्मशाकः शकाधो जन्मोत्पन्नः पद्मिनीप्राणनाथः। तद्वर्षायंतर्दशाब्दादियुक्तं तस्मिशाके स्पष्टसूर्यो दशांते ॥५०॥ अब भुक्त भोग्यदशा अंतर्दशा विदशामें जन्मका शक और स्पष्टसूर्य जोड़नेकी रीति कहते हैं:-ऊपर जन्मका शक लिखना और शकके नीचे जन्मसमयका स्पष्टसूर्य लिखना, उसमें वर्षादिक भोग्यदशा युक्त करनेसे भोग्यदशाके उत्तीर्ण समयका शक और सूर्य होता है। ऐसे ही दशाके आरंभका शक और सूर्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८८) पत्रीमार्गप्रदीपिका। अंतर्दशामें युक्त करनेसे अंतर्दशाके उत्तीर्ण समयका शक और सूर्य होता है और अन्तर्दशाके आरम्भका शक और सूर्य विदशामें युक्त करनेसे विदशाके उत्तीर्ण समयका शक और सूर्य होता है ॥ ५० ॥ उदाहरण। स्पष्ट है, विंशोत्तरी योगिनी अष्टोत्तरी दशाके चक्रमें शक और सूर्य युक्त किया है उन चक्रोंसे समझना । इति दशांतर्दशाविदशानयनप्रकारः। अथागाम्यब्दसाधनम् । सौरवर्षदिनायेन हतेताब्दाः कतुल्यजः। जन्मोत्थागणेनाव्या इज्याद्वर्षमुखे गणः॥५१॥ अब आगामि वर्ष साधन कहते हैं:-दिनादिक सौरवर्ष ३६५।१५।३१।३० से गतवर्षोंको गुणन करना और उसमें जन्मसमयका ब्रह्मतुल्यका सार्वयव अहर्गण युक्त करना, गुरुवारको आदि ले वर्षके आरम्भसमयका सावयव(वर्षप्रवेशकी इष्टपटी पल विपल सहित ) अहर्गण होगा ॥ विश्वनाथः। गणोधस्त्रियुक् स्वाक्षिगोंगांशयुक्तस्त्रिषदभक्त आप्तावमैर्युक्तऊर्ध्वाखरामैर्हता सैकशेष तिथिः स्यात्फलं मासवृन्दं ततोऽधो द्विनिघ्नात् ॥५२॥ रसागान्वितस्वेभनेत्रांक ९२८ लब्धा विहीनादगाङ्गा ६७ प्तभागोन ऊर्ध्वः ॥ हृतो भानुभिः १२: शेषकं यातमासा गताब्दाः फलं सेषुखेशः ११०५ शकः स्यात् ॥ ५३॥ अहर्गणको नीचे लिखके उसमें ३ तीन मिलाना और २ दो जगे लिखना, एक जगे स्थापन किये उसमें ६९२ छः सौ बानवेका भाग देना,लब्ध १ ब्रह्मतुल्यका अहर्नण बनानेकी युक्ति आगे श्लोक ५४ में कही है। २ जन्मसमयकी इष्टघटी पल विपल सहित । ३ अहर्गणके सातका भाग देना शेष बचे तो गुरुवार ? बचे तो शुक्रवार २ बचे तो शनिवार इसक्रमसे गुरुवारको आदिले शेष बचे उसपर्यंत गिननेसे वर्षप्रवेशका बार होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहिता। (८९) आवे वह दूसरी नगे लिखे हैं उसमें युक्त करना और उसके ६३ तिरसठका भाग देना लब्ध आवे वह ऊनाह जानना । ऊनाहकों उपर लिखे हुए अहर्गणमें युक्त करना और ३० तीसका भाग देना शेष बचे उनमै १ एक मिलाना सो शुक्ल प्रतिपदाको आदि ले वर्षप्रवेशकी तिथि हो और लब्ध आवे वह मासगण जानना-फिर मासगणको नीचे लिखना। और उसको दोरगुणा करना, फिर उसमें ६६ छासठ मिलाके दो जगे लिखना एक जगे ९२८ नौसो अहाईसका भाग देना लब्ध आवे वह दूसरी जगे लिखे हुएमेंसे हीन करना शेष बचे उसके ६७ सतसठका भाग देना लब्ध आवे वह ऊपर लिखे हुए मासगणमेसे निकालना और उसमें १२ बारहका भाग देना शेष बचे यह चैत्र शुक्ल प्रतिपदाको आदि ले गतमास जानना और लब्ध आवे वह मवाब्द समूह जानना । उन गताब्द समूहमें ११०५ ग्यारहसौ पांच मिलानेसे वर्ष प्रवेशका शालिवाहन शक होता है ॥ ५२ ॥ ५३ ॥ गणेशदैवज्ञः। विश्वंद्वग्न्यरुणैर्युक्तो १२३११३ ग्रहलाघवजो गणः। चक्रघ्नं नृपखाब्ध्याव्यं ४०१६ब्रह्मतुल्यो गणो भवेत् ॥५४॥ - इत्यागाम्यब्दप्रवेशः । अब ग्रहलाघवके अहर्गणपर ब्रह्मतुल्यका अहर्गण साधन करनेकी युक्ति गणेशदैवज्ञ कहते हैं:-ग्रहलाघवके अहर्गणमें १२३११३ मिलाके फिर उसमें चक्रसे ४०१६ को गुणन करके मिलाना सो ब्रह्मतुल्यका अहर्गण होगा ॥५४॥ उदाहरण । ग्रहलाघवका अहर्गण ४०३९ में १२३१.१३ मिलाये १२७१५२ हुए, इनमें ४०१६ को चक्र ३१ से गुणन करनेसे १२४४९६ आये इनको युक्त किये २५१६४८ हुए यह ब्रह्मतुल्यका अहसण हुआ। इसके नीचे जन्मसमयकी इष्टघटी ५६ पल ४८ विपल १८ लिखनेसे २५१६४८॥५६॥ ४८१८सावयवब्रह्मतुल्यका अहर्गण हुआ।ऐसे प्रथम ब्रह्मतुल्यका अहर्गण साधन किया । अब आगामि वर्ष३१मा साधन करना है उसका उदाहरण यह है दिना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्रीमार्गप्रदीपिका । दिक सौर वर्ष ३६५।१५॥३१॥३० ने गजाब्दसंख्या ३० को मुणन किये १०९५७ । ४५५४५।० हुए इनमें जन्मसमयका सावयव अक्षतुल्यका अहर्गण २५१६४८।११।४८१८ युक्त किया २६२६०६।४२।३३।१४ ये वर्षारम्भसमयका सावयव अहर्गण हुआ। अहर्गण २६२६०६ में ७ सातका भाग दिया शेष १ एक बचा, गुरुवारको आदिले गिननेसे शुक्रवार आया, इसलिये शुक्रवारके दिन इष्ट घटी ४२ पल ३३ विपल १८ से वर्ष ३१ इकतीसवां प्रवेश होगा परन्तु किस शकके कौनसे मासकी कौन तिथिमें प्रवेश होगा इसका निश्चय होनेके वास्ते आगे उदाहरण श्लोक ५२।५३ का लिखने हैं___ अहर्गण २६२६०६ को नीचे लिखा २६२६०६ इसमें ३ तीन मिलावे २६२६०९ हुए इनको दो जगे लिखे २६२६०९ इसमें ६९२ छःसौ ब्यानवेका भाग दिया लब्ध ३७९ आये इनको दूसरी जगे लिखे हुए२६२६०९में युक्त किये २६२९८८ हुए इनमें ६३ तिरसठका भाग दिया लब्ध ४१७४ ऊनाह आये । इनको अहर्गण२६२६०६में युक्त किये तो२६६७८० हुए इसमें ३० तीसका भाग दिया शेष २० बचे इनमें १ एक युक्त किया २१ हुए यह वर्षप्रवेशकी विथी हुई अर्थात् २१ इकईसमी तिथिके दिन वर्षप्रवेश होगा २१ इकईसमी तिथि शुक्ल प्रतिपदाको आदिढे गिननेसे कृष्णपक्षकी ६ षष्ठीको आती है इसलिये कृष्णपक्षकी छठके दिन वर्षप्रवेश होगा । और ३० का भाग देनेसे लब्ध ८८९२ आये ये मात्रगण हुआ इस मीचे लिखा ८८९२को दो गुणा किया १७७८४ इसमें छाछठ मिठाये १७४५० हुए इनको दो जगे लिखे १७८५० इसमें ९२८नौ सो अढाईसका भाम दिया लब्ध १९आये ये दूसरी जगे लिखे १७८५० मेंसे हीन किये शेष १७८३१ बचे इनको ६७ सतसठका भाग दिया लब्ध २६६ आये इनको मासगण ८८९२ में से घटाये शेष ८६२६ बचे, इसमें १२ बारहका भाग दिया शेष १० बचे इसलिये चैत्र शुक्ल १ प्रक्पिदाको आदिले मिननेसे माघ शुक्ल प्रविषदातक गत १० मास हुए और माघशुक्ल प्रतिपदाके आगे ११ माघमाख वर्षप्रवेशका मास हुभा और उन्ध बारहका भाम देनसे आये ७१८ उनमें ११.५ युक्त किये १८२३ यह वर्षप्रषेशका शालिवाहनशक हुआ-अर्थात् शक १८२३ में अमांत माष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासाहवा । (९१) कृष्ण ६ षष्ठी शुक्रवारको श्रीस्याश्यसे इष्टयरचादि ४२ । ३३ । १० से ३१ इकतीसमा वर्षप्रवेश होगा. ऐसे ही अभीष्ट गवाब्दके सर्व आगामिवर्ष साधन करना । इत्यागाम्यब्दप्रवेशः॥ अथ लोमशोक्तं सप्तवर्गबलचक्रम्. गृह. . . होरा. द्रेष्का. सप्त. नयां. त्रिंशा. - - - दशवर्गसंज्ञा. उत्तम | गोपुर सिंहासन पाराषतांश देवलोकांश देवलोकांश ऐराषत वैशिषीक चरकारकाः। - - - आम सर्व ग्रहोंमें भधिक मंशका हो यह मालकारक उससे अल्पभल्ल शके कमेले कारक जामना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९२) पत्रीमार्गप्रदीपिका। विद्यालये मालवसंझदेश रत्नावतीरम्यनिवासवासी । औदुंबरः पाठकवंशजातः सुपूज्य विद्यान्वितनंदरामः ॥५६॥ तत्पौत्रमन्त्रशास्त्रज्ञरेवाशंकरसूनुना। महादेवेन रचिता पत्रीमार्गप्रदीपिका ॥५६॥ माघस्य शुक्लपञ्चम्यां शाके माझछकैमिते ॥ संपूर्णा भार्गवे वारे पत्रीमार्गप्रदीपिका ॥१७॥ इति श्रीमहादेवकतपत्रीमार्गप्रदीपिका संपूर्णा । विद्याका स्थान ऐसे मालवसंज्ञक देशमें अविरमणीय रत्नावती नगरी ( रतलाम शहर)में निवास करनेवाले औदुम्बर ज्ञावीय पाठकवंशमें उत्पन्न उत्तम विद्यायुक्त नन्दरामजी हुए ।। ५५ ॥ उनके पौत्र मोतीरामजीके पुत्र मंत्रशास्त्रके जाननेवाले रेवाशंकरजी हुए, उनके पुत्र महादेव ज्योतिर्विदने पत्रीमार्गप्रदीपिका नाम ग्रन्थ बनाया ॥ ५६ ॥ वह पत्रीमार्गप्रदीपिका शालिवाहन शक १७९५ सतरासौ पंचानवेमें माघ शुक्ल पंचमी भृगुवारके दिन संपूर्ण हुई ॥५७॥ मार्गशीर्षसिते पक्षे द्वादश्यां गुरुवासरे ॥ कक्ष्यष्टभूमिवे शाके कतेऽयं विवृविर्मया ॥१॥ इति श्रीज्योतिर्विद्वरश्रीमन्महादेवकतपत्रीमार्गप्रदीपिकायां वदात्मनश्रीनिवासज्योतिर्विद्विरचिवा सोदाहरणभाषाटीका समाप्तिमयमत् ॥ इति पत्रीमार्गप्रदीपिका समासा । १ "कटपयवर्गभवैरिहपिण्डांत्यैरक्षररकाः ॥ ननि च ज्ञयं शून्यं तथा स्वरे केवले कथितम् ॥ १ ॥" इस प्राचीन कारिकाके वचनानुसार म-के ५ झ के ९ छ-के ७ क-के १ ऐसे मा झ छ क के अंकोंका अंकानां वामतो गतिः इस क्रमसे १७९५ सतरासौ पञ्चानवे होते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीगणेशाय नमः। श्रीमन्महादेवदैवज्ञविरचितं वर्षदीपकम् भाषाटीकासहितम् । - - - - नत्वा गुरुपदाम्भोज हेरम्बं शिवशारदाम् ॥ वर्षदीपकग्रन्थस्य नृभाषाविवृति लघुम् ॥ १॥ कुर्वे वै श्रीनिवासोऽहं बालानां सुखहेतवे ॥ यदत्रोनं ममाज्ञानाद्विबुधाश्च क्षमन्तु तत् ॥२॥ भाषाकार, विघ्नविनाशार्थ मुरु गणपतिको नमस्काररूप मंगलाचरण करके भाषारचनाके प्रयोजनपूर्वक क्षमापन मांगता है। श्रीगुरु ( महादेवजी) के चरणकमलको, हेरम्ब (गजानन) को, शंकर और शारदा' (सरस्वती) को नमस्कार करके मैं श्रीनिवासशर्मा वर्षदीपकग्रंथकी बालकोंको सुखसे बोध होनेके लिये लघु (छोटीसी) भाषाटीका करता हूँ, इसमें यदि मेरे अज्ञानसे जो कुछ क्षति रही हो उसे पंडितलोग वारंवार क्षमा करें यह प्रार्थना है ॥ १ ॥२॥ प्रथम शिष्टाचारपरिपालनार्थ और निर्विघ्नवासे ग्रन्थपरिसमाप्त्यर्थ ग्रन्थकर्ता स्वष्टदेवको नमस्काररूप मंगलाचरण करते हैं । श्रीगणेश गुरुं नत्वा शुद्धां श्रीभुवनेश्वरीम् ॥ महादेवं महादेवः कुरुते वर्षदीपकम् ॥१॥ श्रीगणेशजीको, गुरुजीको, शुद्धस्फटिकसहश निर्मलस्वरूपा श्रीभुवनेश्वरीजीको और शंकरको नमस्कार करके महादेव ज्योतिर्विद वर्षदीपक ( वर्षके गणितमार्गका प्रकाश करनेवाला दीपक ) नाम अंथ करते हैं ॥ १ ॥. प्रतिवर्ष जन्मग्रहोदयात्पूर्व जानीयात् ॥२॥ वर्षवर्षमें जन्मके इष्ट वार ग्रह उमादि प्रथम जानना (हरवर्ष बनानेके समय जन्माक्षरमें लिखे हुए जन्मका कर इष्टपटी स्पष्टसूर्य लग्न आदि पहले जानके वर्षके गणितका आरम्भ करना) ॥२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९४) वर्षदीपकम् । सौरवर्षारंभाच्छकप्रवृत्तिवेदितव्या ॥३॥ सौरवर्षके आरम्भसे ( मेषसंक्रांति जिस दिन प्रवेश हो उस दिनसे) शककी प्रवृत्ति जानना ॥ तात्पर्य यह है कि चैत्रशुद्ध प्रतिपदासे "मधोः सितादेर्दिनमासवर्षयुगादिकानां युगपत्सवृत्तिः” इत्यादि वचनोंसे जो भी संवत् शककी प्रवृत्ति होती है तथापि “ वर्षायन युगपूर्वकमत्र सौरात् " इस वचनसे जबतक मेषसंक्रांति प्रवेश न हो तबतक शकप्रवेश नहीं होता, इस कारण मेषसंक्रांतिके प्रवेशके प्रथम और चैत्रशुद्ध १ प्रतिपदाके अनंतरका वर्ष करना हो वो पिछाडीके शकसे करना । जैसे संवत् १९५५ में मेषसंक्रांति वैशाखरुष्ण ६ षष्ठी भौमवारके दिन प्रवेश हुई है उसी दिनसे १८२० का शक प्रवेश हुआ इसलिये वर्षसाधनमें वैशाखकष्ण ६ षष्ठीके पहिले शक १८१९ ही मानके वर्ष करना ॥ ३ ॥ ___ इष्टशके जनुः शकहीं गताब्दाः ॥४॥ अभीष्टशकमेंसे (जिस शकका वर्ष करवा हो उस शकमेंसे) जन्मसमयका शक हीन करनेसे शेष बचे वह गताब्द (गववर्ष) हो ॥ ४ ॥ जन्मार्कतुल्योऽर्को यत्समये वर्षप्रवेशस्तत्रैव ॥५॥ जन्मसमयके सूर्यके समान ( बराबरं ) सूर्य जिस दिन जिस समय आवे उस दिन उस समय ही वर्षप्रवेश होता है ॥५॥ याताब्दाः सत्ताधिकसहस्रहताः खानेभाप्ता जन्मवारादियुता वर्षप्रवेशवारादिबोधकाः॥६॥ गवान्दोको ( गववर्षोंको) १००७ एकहजार सावसे गुणे करना ८०० आठसौका भाग देना लब्ध आये हुए वार घटी पल विपलात्मक चार फलमें जन्म समयके वारादिक (वार इष्ट घटी पल विपल ) युक्त करना वर्षप्रवेशके वारादिक ( वार इष्ट घटी पल विपल ) का बोध हो अर्थात् (गत वर्षोंको१००७एकहजार सात गुणे करके८००आठसौका भाग देना लब्ध आवे वह वार जानना शेष बचे उनको६० साठ गुणे करना और८००का भाग देना लब्ध घटी आवे शेष बचे उनको६० साठ गुणे करना ८००का भाग देना, १ सिद्धान्तशिरोमगौ-वैश्चक्रमोगोऽवर्ष प्रदिष्टमिति ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AMERA भाषाटीकासहितम् । लब्ध पल आवें शेष बचे उसको ६० साठ गुणे करना और ८०० आठसौका भाग देना लन्थ विषठ आवें ऐसे ८००का भाग देके वार घटी पलविपलात्मक चार फल लाना उनमें जन्मसमयके वार इष्टपटी पल विपलादिक असे करना वर्ष प्रवेशके वारादिक हों)॥६॥ शिवना मताब्दाः स्वखाहीन्दुलवाव्या जन्मतिथ्यन्वित तास्तेषु खाग्निशेषेऽन्दवेशतिथिः ॥७॥ ग्यारह गुणे किये हुए गवाब्दोंमें अपना १७० एकसो ससरवां भाग युक्त करना और जन्मतिथि मिलामा तीस ३० का भाग देना शेष बचे वह वर्षप्रवेशकी तिथि नानना ( मसान्दोको ११ गुणे करके २ जगे लिखना एक जगे १७० का भाग देना उन्ध भावे वह दूसरी जगे युक्त करना उसमें शुक्लपविपदाको आदि ले जन्मतिथिकी संख्या मिलाना ३० वीसका भाग देना शेष बचे वह शुक्ल प्रतिपदाको आदि ले वर्ष प्रवेशकी तिथि हो)॥ ७ ॥ कचिद्भूने भूयुते वा ॥ ८॥ कोई समय गणितसे लायी हुई वर्षप्रवेशको तिथिके दिन वर्ष प्रवेशका वार नहीं मिले तो आयी हुई तिथिमें एक घटा देना वा एक युक्त कर देना (विथिसे वर्षप्रवेशका वार पछि हो तो १ घटा देना आगे हो तो , मिला देना)॥८॥ जन्माकौशादियुग्वारतोऽन्दप्रवेशनिर्णयः॥ ९॥ इत्यब्दप्रवेशाध्यायः ॥२॥ अन्मसमयके स्पष्टसूर्य की राशि अंशके समान राशि और अंश और वर्षप्रवेशके वारसे वर्षप्रवेशका निर्णय नानना ( जन्मके सूर्यके राशि अंश और वर्षप्रवेशका वार ये तीनों जिस दिन मिळें उस दिन वर्षप्रवेश होगा) ॥९॥ उदाहरण। स्वस्तिश्रीसंवत् १९२८ शके १७९३ प्रवर्तमाने अमांतमाघकृष्ण ३ द्वतीया परं ४ चतुर्ध्या भौमवासरे चित्रानक्षत्रे श्रीसूर्योदयादिष्टघटयादि ५६ । ४८ । १८ स्पष्टार्क १० । १६ । ५३ ॥ ३९ । ल० ९ । २३, २८ ॥२९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्षदीपकम् । अयजन्मानम्. रा१र/ शर चंद्र ५ । २९ । १९ । ४९ । समये ज्योतिर्विच्छ्रीनिवासशर्मणो जन्म। इस जन्मपत्रका वर्णपत्र अभीष्ट सक१८२१ का करना है इसलिये शके १८२१ मेंसे जन्मशक १७९३ घटाया २८ शेष बचे गताब्द हुए इनको १००७ से गुणे किये २८१९६ हुए इनमें ८०० आठसौका भाग दिया लब्ध ३५ वार आये शेष १९६ वचे इनको ६० साठ मुणे किये ११७६० हुए। फिर इनमें ८०० आठसौका भाग दिया लब्ध१४ घटी आयी शेष ५५० बचे इनको फिर ६० साठ गुणे किये ३३६००हुए ८०० का भाग दिया लब्ध पल ४२ आयी शेष • बची इसको ६० गुणी करनेसे • हुई ८०० का भाग दिया लब्ध ० शून्य विपल आयी । ऐसे आठसौका भाग देके लब्ध वार ३५ घटी३४पल४२ विपलात्मक चार फल आये इनमें जन्म समयके भौमवारके ३ इष्टघटी:५६पल ४८ विपल १८ मिलाये ३९।११ । ३० । १८ हुए वार ७ सातसे अधिक है अतः वार ३९ में सावका भाग दिया शेष ४।११। ३० । १८ ये वर्षप्रवेशके वार घटी पल विपल हुए, तिथिसाधन । गताब्द२८को १३ गुणे किये ३०८ हुए इनको दो जगे लिखे ३०८ एक जगे १७० का भाग दिया लब्ध १ एक आया यह ३०८ में युक्त किया३०९ हुए इनमें कृष्णपक्षकी ४ चतुर्थीका जन्म है इससे शुक्ल प्रतिपदासे ४ पर्यंत गिननेसे जन्मतिथि १९ हुई ये मिलाये ३२८ हुए इनमें ३० वीसका भाग दिया शेष२८बचे यह वर्षप्रवेशकी तिथि हुई शुक्ल प्रतिपदाको आदि ले गिननेसे अहाइसवीं कृष्णपक्षकी १३त्रयोदशीके आयी परंतु त्रयोदशीके दिन वर्षप्रवेशका वार बुध नहीं मिलता है इस कारण इसमें १ एक तिथि युक्त करनसे १४ चतुदेशी हुई। एवं तिथि निश्चय होनेके अनन्तर जन्म समयके स्पष्ट सर्यकी राशि १ रविवारसे वार जाते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । ( १७ ) १६ अंशके समान अंश और वर्ष प्रवेशका वार बुध, अमांत माघकृष्ण १४ के दिन मिलता है, इसलिये संवत् १९५६ शके १८२१ प्रवर्तमानमें अमांत माघकृष्ण १४ चतुर्दशी बुधवार के दिन सूर्योदयसे इष्ट घटयादि ११ । ३० । १८ समय में वर्ष २९ प्रवेश हुआ, गताब्द २८ ॥ इति श्रीज्योतिर्विद्वरश्रीमन्महादेव कृतवर्ष प्रदीपिकाख्यताजिकग्रंथे तदङ्गजश्रीनिवासविरचितायां सोदाहरणभाषाव्याख्यायामन्दप्रवेशाध्यायः प्रथमः ॥ १ ॥ इष्टवारादिषु पातितगत पंक्तिवारादिषु शेषो दिनाद्यो धनम् ॥ १ ॥ अपने इष्ट वारादिकमेंसे पिछाड़ीकी गयी हुई समीपकी पंक्ति ( अवधि ) के वारादिक ( वार इष्ट घटी पल ) हीन करनेसे जो शेष बचे वह दिनादिक धन चालन होता है ॥ १ ॥ आगामिपंक्तिवारादिषु पातितेष्टवारादिषु शेषो दिनाद्यमृणम् ॥२॥ आगेकी पंक्तिके वारादिक (वार इष्ट घटी पल ) मेंसे पिछाडीके अपने इष्टवारादिक हीन करनेसे जो शेष बचे वह दिनादिक ऋण चालन होता है । अर्थात् अवधि के वारादिक मेंसे अपने वारादिक हीन करने से ऋण और अपने वारादिकर्मसे अवधिके वारादिक घटानेसे धन चालन होता है ॥ २ ॥ दिनाद्ये गतिने षष्टयाप्तेंऽशादिस्तेन पंक्तिस्थग्रहे संस्कृते स्पष्टः खगो वक्रे तु वैपरीत्यं संस्कृतौ ॥ ३ ॥ दिनादिक चालनको गतिसे गुणन करके ६० साठका भाग देना, जो अंशादिकफल ( अंश कला विकलात्मक ३ तीन फल ) आवे उनकी पंक्ति (अवधि) के ग्रहमें संस्कार करनेसे ( चालक धन हो तो युक्त और ऋण हो तो हीन करनेसे ) स्पष्ट ग्रह होता है और ग्रह वक्रगति हो तो उन्हीं अंशादिक फलोंका विपरीत संस्कार करना अर्थात् चालक धन हो तो ऋण और ऋण हो तो धन करना ॥ ३ ॥ गतर्क्षनाड्यः षष्टिशुद्धाः पृथक् स्थाप्याः ॥ ४ ॥ गत नक्षत्र ( जिस नक्षत्र में वर्षप्रवेश हो वह इष्ट नक्षत्र, उसके पहले बीते हुए नक्षत्र ) की घटी पलोंको साठमेंसे शोधकर दो जगे लिखना ॥ ४ ॥ १ साठका भाग देके अशादिक फल लानेकी रीति उदाहरणमें स्पष्ट लिखी है । ७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९८) वर्षपदीपकम् । एकत्रेष्टघट्याढया भयातम् ॥५॥ एक जगह इष्ट घटी पल युक्त करनेसे भयात होवा है ॥ ५॥ इतरत्रेष्टसंघटयाढ्या भभोगः ॥६॥ दूसरी जगे इष्टनक्षत्र (इष्ट समयमें वर्तमान नक्षत्र ) की घटी पल युक्त करनेसे भभोग होता है ॥ ६॥ पष्टिनं भयातं भभोगेनाप्तं स्पष्टं भयातम् ॥ ७ ॥ भयातको साठ६०से गुणा करना और भभोगका भाग देनेपर लब्ध घट्यादिक स्पष्ट भयात होता है । भयातको साठ गुणा करके भभोगका भाग देनेपर जो लब्ध घटी आवे, शेष बचे उसको६०गुणा करके फिर भभोगका भाग देना जो लब्ध पल आवे शेष बचे उनको साठगुणे करना, फिर भभोगका भाग देना लब्ध विपल आवे ऐसे घट्यादिक फल तीन आवा है उसे स्पष्ट भयात जानना चाहिये७ गतक्षसंख्याषष्टिना भयातान्विता द्विघ्ना नवाप्तांऽशादिरिंदोः॥ ८॥ साठगुणी की हुई गव नक्षत्रकी संख्यामें स्पष्ट भयाव युक्त करके द्विगुण ( दोगुणी) करना और नवका भाग देना, जो अंशादिक फल ३ लब्ध आवे वह अंशादिक स्पष्टचंद्र होता है । गत नक्षत्रकी संख्याको६०गुणी करके उसमें स्पष्ट भयात मिलाना और उसको दोगुणी करना, उसमें नव ९ का भाग देना, लब्ध अंश आवे शेष बचे उनको साठगुणे करना और नीचेकी पल मिलाना, फिर ९ नवका भाग देना, लब्ध कला होती है और जो शेष बचे उनको फिर साठगुणे करना, नीचे लिखी विपल मिलाना और नवका भाग देना लब्ध आवे वह विकला जानना, ऐसे अंश कला विकलात्मक फल तीन लावे वह स्पष्ट अंशादि चंद्र हो अंशमें वीसका भाग देना लब्ध राशि शेष अंश समझना ॥ ८ ॥ खखाष्टभभोगेन भक्ता अंशात्मिका गतिः ॥९॥ आठसौ ८०० के भभोगका भाग देना जो लब्ध आवे फल तीन वह अंशादिक चन्द्रकी स्पष्ट गति होती है (अंशको ६० गुणे करके कला मिलानेसे कलादिक गति होती है)॥९॥, १ अधिनीनक्षत्रको आदि ले गत नक्षत्रपर्यंत गिननेसे जो संख्या हो उसको । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । जनुरुदयमादिषु भांकमात्र गताब्दांकयोगेऽर्कभक्त मुन्था ॥१०॥ राश्यादिक (राशि अंश कला विकलात्मक ) जन्म लमको केवल राशिके अंकमें ही गताब्दसंख्याका अंक युक्त करके १२ बारहका भाग देना जो शेष बचे उसे मुन्था जानना ॥ १०॥ सूर्यैकांशभोगकाले मुन्था पंचकला भुनक्ति ॥ ११॥ सूर्यके एक अंशके भोगसमयमें मुन्था पांच कला भोगती है, अर्थात् प्रतिदिन मुन्था पांच कला चलती है ॥ ११ ॥ उदाहरण। अमांत माघ कृष्ण १४ चतुर्दशी बुधवारके दिन इष्ट ११॥३०॥१८ से वर्षप्रवेश हुआ, इसके समीपकी पंक्ति (अवधि) पंचागमें उमी दिन इष्ट२२॥१की है। यह वर्षप्रवेश समयसे आगेकी है, इसलिये सूत्रके अनुसार अवधिके वारादिक ४।२२।१मेसे वर्षप्रवेशके इष्ट वारादिक४।११॥३०घटाये शेष।१०।३१बचे यह दिनादिक ऋण चालक हुआ-इस दिनादिक चालक ०।१०।३१को सूर्यकी गति ६० | १९ ६० १९ से गोमूत्रिका लिखके गुणन किया तो ये अंक आये । नम्बर- ०नं०-४ इनमें नम्बर६के अंकमें६०साठका भाग देनेपर लब्ध९आये२-६०० | १९०-५ उनको नंबर पांचके अंकोंमें युक्त करके नम्बर पांचके ३--१८६० | ५८९-६ अंकोंको नम्बर ३तीनके अंकमें और नम्बर४चारके अोंको नम्बर २दोके ६० | १९ | अकोंमें मिलाये तो इस प्रकार हुए,फिर नम्बर ३तीनके अंकमें६० १--नम्बर० | साठका भाग दिया लब्ध ३४ आये, इनको नम्बर दोके अंकोंमें २-६० मिलाये वो ६३४ हुए इनमें साठका भाग दिया लब्ध १० ३-२०५९ / कला आयी, शेष ३४ विकलारही, फिर कला १० में ६०साठ का भाग दिया लब्ध० अंश-आया, ऐसे साठका भाग देनेसे अंशादिक०।१०। ३४ फल आये । इनको अवधिमें स्थित सूर्य १०।१७।४। ७ में ऋण किये १० । १६।५३ । ३३ शेष बचे यह स्पष्ट सूर्य हुआ । इसी प्रकार शे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) वर्षपदीपकम् । सर्व ग्रह किये परन्तु राहु वक्रगति है इस कारण राहुकी गति ३॥ ११ से चालक ० । १०।३१ को उक्त रीतिसे गुणन करके ६० साठका भाग देके आये हुए ० । ०। ३४ अंशादिक फलोंकी अवधिमें स्थित राहु ७ । २३ । ४० । ४०। में विपरीत संस्कार किया अर्थात् चालक ऋण है, इस कारण धन किया ७ । २३ । ४१ । १४ । राहु स्पष्ट हुआ। स्पष्ट चंद्र साधन । वर्षप्रवेशके दिन धनिष्ठा घट्यादिक ३७ । ५६ है, वर्षप्रवेश धनिष्ठा नक्षत्रमें हुआ है अतएव धनिष्ठा इष्ट नक्षत्र और श्रवण गतनक्षत्र हुआ।गतनक्षत्र श्रवणकी घटी ४१ पल ५१ को सूत्र ४ के अनुसार ६० साठ घटीमेंसे हीन किया १८।९ शेष बचे, इनको दो जगे लिखे १८।९ एक जगे इष्टघटी ११॥३० भया युक्त की२९ । ३९ | भयात हुआ, दूसरी जगे इष्ट | ९ | ३० घटी. | ३९ न. | नक्षत्र धनिष्ठाकी घटी ३७ पल ५६ मिलायीतो५६। १८ ३७इष्टनक्षत्र. ५६ भभो- ५भभोग हुआ। भयावको ६० साठ गुणा करके [९५६ घटी, | ५ ग. भभोगका भाग देना है, परंतु भयात भभोग दोनों घट्यादिक हैं, अतःप्रथम इनको सवर्णित किये भयाव १७७९ भभोग ३३६५ हुए, तदनंतर भयात १७७९को साठगुणा किया १०६७४० हुए। इनमें भभोग ३३६५ का भाग दिया लब्ध ३१ घटी आयी शेष २४२५ बचे, इनको साठ गुणे किये १४५५०० हुए, भभोग ३३६५ का भाग दिया,लब्ध ४३ पल हुए, शेष८०५ बचे उनको ६० गुणे किये तो ४८३०० हुए इनमें फिर ३३६५ का भाग दिया लब्ध १४ विपल आयी। ऐसे घटयादिक ३१ । ४३ । १४ स्पष्ट भयाव हुआ। तदनन्तर अश्विनीसे गत नक्षत्र श्रवण पर्यंत गिननेसे २२संख्या आयी यह गत नक्षत्रकी संख्या हुई, इसको ६० साठगुणी की वो १३२० हुई, इसमें स्पष्ट भयात ३१॥ ४३ ।.१४ युक्त किया १३५३ । ४३ । १४ हुए । इनको २ द्विगुण किये २७०३ । २६ । २८ हुए, इनमें ९ नवका भाग दिया लब्ध३०० अंश आये, शेष ३ बचे, इनको ६० गुणे किये १८० हुए इनमें नीचके पलके अंक २६ मिलाये २०६ हुए इनमें नवका भाग दिया लब्ध २२ कला आयी शेष ८ बचे इनको ६० साठगुणे किये तो ४८० हुए, विपलके अंक २८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीका सहितम् । ( १०१ ) मिलाये तो५०८हुए, फिर९का भाग दिया ५६ विकला हुई, शेष९ का भाग देकर उक्त रीति से अंशादिक फल ३लाये ३००।२२।५६यह अंशादिक स्पष्ट चन्द्र हुआ । अंश में ३० तीसका भाग दिया लब्ध १० राशि शेष अंश ० बचे इस प्रकार स्पष्टचन्द्र १० । ० । २२ । ५६ । राश्यादिक हुए । गतिसाधन । आठसौ ८०० । ० में भभोग ५६।५ का भाग दिया परन्तु दोनों घटयादिक हैं, इस लिये दोनोंको प्रथम सवर्णित किये भाज्य४८००० भाजक ३३६५हुए, भाज्यमें भाजकका भाग दिया लब्ध अंशादिक १४/१५/५२चन्द्रकी स्पष्टगति हुई अंश १४को ६० साठगुणे करके १५ मिलाने ते ८५५ । ५२ कलादिक गति हुई । मुंथासाधन । जन्मलग्न ९ । २३ । २८ । २९ की राशि ९ के अंक में गताब्द संख्या २८ युक्त किये तो ३७|२३|२८|२९ हुए, फिर १२ बारहका भाग दिया शेष १।२३।२८ २९ मुन्था हुई, गति ५ । ०॥ अथ स्पष्टाः ग्रहाः सजवाः । ७ सू. चं. मं. बु. गु. | शु. श. | रा. | के. | मुं. १० | १० | १० | ११ | ७ | ११ | ८ १ / १ १६ ० ७ १ १८ २५ ९ |५३ | २२ |३१ ३५ ५६ २ ४१ ४१ २८ ३९ ५६ ३६८ ५५ ४८ ५९ १३ १३ २९ २३ २३ २३ ५४ ६० ८५५ ४८ ७५ ५ १९५२ ५० | ३२ ३२ ७१ ४ | ३ | ३× | ५ ३२ | ९ ११ ११ ० नागक्षागोऽङ्कदस्रास्त्रिदन्ताः क्रमोत्क्रमा मेषादीनां लंकोदयापलानि१२ ॥ नाग ८ ऋक्ष २७ लिखने से २७८ हुए फिर गो ९ अंक ९ दख२ लिखने से २९९ हुए, पुनः 'त्रि' तीन ३, दन्त ३२ मिलाकर ३२३ हुए । इसप्रकार क्रम और उत्क्रम (उलटे) करनेसे मेषादिक राशियों के लंकोदय पल जानना ॥ १२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०२) वर्षपदीपकम् । स्वचरान युताः स्वदेशोदयाः ॥ १३ ॥ अपने गामके चरखंडा उक्त लंकोदय पलमें क्रमसे हीन और युक्त करनेसे लंकोदयाः चरखंडा स्वदेशोदया. स्वदेशोदय (अपने गामका उदय) | म. ! २७८ | मी.। ५१ २२७ होता है, जैसे रतलामके चरखंडा | वृ. | २९९। ५१ । ४१ । १७ है इनको | मि | ३.३ | म. | १७ | लंकोदयपलमें क्रमसे प्रथम हीन । क. | ३२३ | ध. | सिं. २९९ | किये, फिर युक्त किये वो नीचे वृ. ४१ ३२९ | कोष्ठकमें लिखे हुए स्वदेशोदय हुए ऐसे ही प्रत्येक अभीष्ट गामके स्वदेशोदय जानना चाहिये ॥ १३ ॥ उदयास्त्रिंशदुद्धता मेषादीनां पलाया गतयः ॥ १४॥ उदयों (लंकोदय और स्वदेशोदय )की संख्या वीस ३०का भाग देनेपर जो आवे वह मेषादिक, राशियोंकी पलादिक गति होती है,अर्थात् स्वदेशोदयकी संख्या ३० तीसका भाग देनेसे स्वदेशक लनोंकी पलादिक गति, एवं लकोदयकी संख्या ३० तीसका भाग देनेसे लंकाके उदयोंकी पलादिक गति होती है ॥ १४ ॥ उदाहरण । हीन किये । युक्त कि क. मेष राशिके स्वदेशोदय २२७ में ३० तीसका भाग दिया लब्ध ७, शेष १७ बचे, इनको ६० साठगुणे किये १०२० हुए फिर ३० का भाग दिया, लब्ध ३४ हुए । यह मेष राशिके स्वदेशोदयकी पलादिक गति ७३४ हुई। ऐसे ही बारह राशियोंमें जानना चाहिये ॥ १ गणेशदैवज्ञः 'मेषादिगे सायनभागसूर्ये दिनार्द्धजा मा पलमा भवेत्सा । त्रिष्ठा हताःस्युर्दशभिर्भुजंगैर्दिग्भिश्चरार्द्धानि गुणोद्धृतान्त्या ॥ १ ॥" अर्थात् सायन मेषार्कके आरम्भ दिनमें मध्याह समयमें शंकुकी जो छाया हो वह पलभा होती है। जिस गामके चरखंड करना हो उस गामकी पलभाको तीन जगे लिखना, एक जगे १० दशगुणी, दूसरी जगे आठगुणी, तीसरी जगे १० दशगुणी करना, फिर ३ तीनका भाग देनेपर उस गागका चरखण्ड होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । लंकोदयोंकी पलादिकगतिका चक्र. मे.वृ.१] मि.२ | क.३ | सिं.४ | क.६ | तु.६ | वृ.७ | ध.८ | म.९ क.१० मी.१२ १७१० २५५८ ४६ ५८ ४६ । ४६ रतलामशहरके स्वदेशोदयोंकी पलादिगतिका चक्र. मे.० ३.१| मि.२ | क.३ | सिं.४ क.५ | तु.६ | वृ.७ | ध.८ | म.९ कु.१० मी.११ ७८ १०, ११ । ११ । १० । १० ३४३६ | १२ | २० | २०५८ | ५८ | २० २० | १२ | ३६ ३४ शके वेदवेदाध्यूनेऽयनांशकलाः॥१५॥ शकमेंसे ४४४ चारसौ चौवालिस हीन करनेपर जो शेष बचे वह अयनांशकला होती हैं(कलाके६० साठका भाग देना लब्ध अंश शेष कलासमझना)१५ उदाहरण.. जैसे शके १८२१ का अयनांश करना है अतः शके १८२१ मेंसे ४४४ चारसो चौवालिस हीन किये तो१३७७हुए ये अयनांश कला हुई। इसमें ६० का भाग दिया लब्ध२२अंश शेष५७कला बची यह अंशादिक अयनांश हुआ। अयनांशहीने चक्रांशेऽवशिष्टांशाधस्ताच्छून्यत्रयं लेख्यम् ।। १६॥ अयनांशको चक्रांश ( ३६० अंशों ) मेंसे हीन करना, शेष बचे हुए अंशके नीचे तीन शून्य लिखना ॥ १६॥ ततस्त्रिंशत्रिंशदंशकोष्टकेषु मेषादिगतियोगे भावाङ्गपत्रे ॥१७॥ तदनन्तर तीस तीस अंकोंके कोष्ठकोंमें लंकोदय और स्वदेशोदयकी मेषादिक राशियोंकी पलादिक गतिक्रमसे प्रथम मेषकी, तदनन्तर वृषभकी, फिर मिथुन, कर्क सिंह इस क्रमसे बारहों राशियोंकी पलादिकगति युक्त करना, भावपत्र और लग्नपत्र हो अर्थात् लंकोदयोंकी मेषादिक राशियोंकी पलादिक गति युक्त करनेसे भावपत्र और स्वदेशोदयकी मेषादिक राशियोंकी गति क्रमसे युक्त करनेसे लग्नपत्र होता है ॥ १७ ॥ उदाहरण । प्रथम तीन सौ साठ ३६० कोष्ठकके दो चक्र बनाना, उनके दक्षिण तरफ मेषादि १२ बारह राशि लिखना । ऊपर • शून्यको आदि ले २९ उनतीसपर्यंत अंश लिखना,तदनन्तर अयनांश हीन करना३६० तीनसौ साठ अंशमैसे और जो शेष बचे उस कोष्ठकके अंकमें तीसका भाग देना, जो लब्धराशि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०४ ) वर्षप्रदीपकम् शेष अंश बचेंगे उस राशिके अंशके नीचे तीन तीन शून्य लिखना, जैसे- अयनांश २२ । ५७ हैं यह २३ तेईसके समीप है इससे ३६० मेंसे २३ हीन किये ३३७ शेष बचे, इसमें तीस ३० • का भाग दिया लब्ध ११ राशि शेष ७ अंश रहे। इससे बिना परिश्रम शीघ्र ज्ञात हो गया कि ११ मीनराशिके ७ अंशके नीचे तीन शून्य लिखना ऐसे तीन शून्य लिखके फिर क्रमसे मेषादिक राशियोंकी पलादिक गति मिलायी तो भावपत्र और लग्नपत्र हुए । .0 (Sw ३ | ३ | ३ | ३ | ४ ४ ४ ४ ४ ४ ५ ५ ५ ५ ५ ५ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ७ ७ ७ ७ ७ ७ ३३४२५१ ० १० १९ २८ ३८ ४७ ५७ ७ १७ २७ ३७ ४७ ५७ ७ १७ २७ ३७ ४७ ५७ ७ १७ २७ ३७ ५७ ५७ ७ १७ ८ २४, ४० ५६ १२ २८ ४४ ० ८ ८ ८ ९ ९ ९ ९ २७ ३७ ४७५७७ १७ २७ ३७ १४ १२ १० ८ | ६ ४ २ ० ५८ ५६ ९ ९ ५४ ५२ ५० ४८ ४६ ४४ ४२ ४० ३८ ३६३४५२३० २८२६ २४ २२ २० १८ १० १६ १० १० १० १० १० ११,११११११११99/9 १२ १२ १२ १२ १३ १३ १३ १३ ४७ ५८ ९ २० ३० ४१५२ ३ १३ २४३५ ४६५६ ७ १८ २९४० ५० १ १२२३ ३३९ ४६ ३२ १८ ४ ५० ३६ २२ ८ ५४ ४० २६ १२ ५८ ४४३० १६ २ ४८ ३४ २० ६ ५२ ५८ १ मि.. क. ३ ६. ५ how घृ. ७ ध. .८ सिं. २४ २४ २४ २४ २४ २५ २५ २५ २५ २५ २५ २५ २६ २६ २६ २६ २६ २६ २७ २७ २७ २७ २७ २७ २७ २८ २८ २८ २८ २८ ० ४ १२,२२३२ ४२ ५२ २ १२ २२ ३१ ४० ४९ ५९ ८ १७ २६ ३६ ४५ ५४ ३ १३ २२ ३१ ४१ ५० ५९ ८ १८ २७ ३६ ४५९ १४ १२ १० ८ ६ ४ २ ० १६ ३२ ४८ ४ २० ३६ ५२ ८ २४ ४० ५६ १२ २८ ४४ ० १६ ३२ ४८ ४ २० ३६ ५२ ५८ २८ २९ २९ २९ २९ २९ २९ ३० ३० ३०३०३०३०३०३१३१३१३१३१३१ ३२ ३२.३२३२३२३२३२३३३३३३ ० ५५ ४ १३ २२३२४१५००९ १८ २७ ३७ ४६ ५५ ४ १४ २३ ३२४१५१ ० ९ १९ २८ ३७ ४६ ५६ ५ १४ २३ ९ ८ २४ ४० ५६ १२ २८ ४४ ० १६३२ ४८ ४ २० ३६ ५२ ८ २४ ४० ५६ १२ २८ ४४ ० १६३२ ४८ ४ २० ३६५२ १६ १३३३३३ म. ९ • १ २ | ३ | ४ T. भावपत्रसर्वत्र अयनांश २३ | ० |० ५ ६ ७ ८ ९ मी. ११ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १९ २० २१ २२ २३ २४ २५ २६ २७ २८ २९ ग. | १३ १३ १४ ४ १४ १४ १५ १५ १५ १५ १५ १५ १६ १६ १६ १६ १६ १६ १७ १७ १७ १७ १७ १८ १८ १८ १८ १८ १८० ४४५५ ६ १६२७३८ ४९ ० १० २१३२ ४३ ५३ ४ १५ २६ ३६ ४७५८ ९ १९ ३० ४१ ५२ ३ १३ २४३५ ४६५६ ९० ३८ २४ १० ५६४२२८१४० ४६ ३२ १८४५० ३६ २२ ० ५४ ४० २६ १२ ५८ ४४ ३० १६ २ ४८ ३४ २० ६ ५२,४६ | १९ १९ १९ १९ १९ २०२० २०२० २०२० २१ २१ २१ २१ २१ २१ २२२२२२ २२ २२ २२ २३ २३ २३ २३ २३ २३ २४ ० ७ १८ २९ ३९५० १ १२ २३ ३२४२५२ २ १२ २२३२ ४२ ५२ ९ १२ २२ ३२ ४२ ५२२ १२ २२ ३२ ४२५२ २ १० ३८ २४ १० ५४ ४२ २८ १४ ० ५८ ५६ ५४ ५२ ५० ४८ ४६ ४४ ४२ ४० ३८ ३६ ३४३२३० २८ २६ २४ २२ २० १८ १०,४६ ३४३४३४३५३५३५३५३५३५३६३६ ३६३६३६ ३६३ १३७ ३७ ३७ ३७ ३८ ३८० ३३ ४२५१० १० १९ २८ ३८ ४७ ५७७ १७ २७ ३७ ४७ ५७ ७ १७ २७ ३७ ४७ ५७ ७ १७ २७ ३७ ४७ ५९७ १७ ९ | ८ २४ ४० ५६ १२ २८ ४४ ० ५८ ५६ ५४ ५२ ५० ४८ ४६ ४४ ४२ ४० ३८ ३६३४३२३० २८ २६ २४ २२ २० १८ १६ १६ | ३८ ३८ ३८३८३९३९ ३९३९ ३९ ३९ ४० ४० ४० ४० ४० ४१ ४१ ४१४१ ४१ ४१ ४२ ४२ ४२ ४२ ४२ ४३ ४३ ४३ ४३ ० २७ ३७ ४७ ५७ ७ १७ २७ ३७ ४७ ५८ ९ २० ३० ४१५२ ३ १३ २४३५ ४६ ५६ ७ १८ २९ ४० ५० १ १२ २३ ३३ ९ १४ १२ १० ८ ६ ४ २ ० ४६ ३२ १८ ४ ५० ३६ २२ ८ ५४ ४० २६ १२ ५८ ४४ ३० १६ २ ४८ ३४ २० ६ ५२५८ |૪|૧|૪૪ ૪૪ ૪૪૪૪ ૪૪ ૪ ૪ ૪૫ ૪.૦૬ ૪૪૬|૬|૪|૧|૪૬ ૪૬ ૪૭ ૪૭ ૪૭૪૭ ૪૭ ૪૮|૪૮ ૪૮ ૪૮ ૪૮|૪| ૦ ४४५५६१६२७३८ ४९० १० २१३२४३५३ ४ १५ २६ ३६ ४७५८ ९ १९३० ४१५२ ३ १३ २४ ३५ ४६५६ १० |३८|२४ १० ५६ ४२ २८ १४० ४६ ३२ १८ ४ ५० ३६ २२ ८ ५४ ४० २६ १२ ५८ ४४:३० १६ २ ४८ ३४ २० ६ ५२४६ ४९. ४९ ५० ५० ५० ५० ५० ५० ५१ ५१ ५१ ५१ ५१ ५१ ५२ ५२ ५२ ५२५२, ५२ ५३ ५३ ५३ ५३ ५३ ५३ ५४ ० ७ १८ २९ ३९५० १ १२ २३ ३२ ४२ ५२ २ १२ २२ ३२ ४२ ५२ २ १२ २२ ३२ ४२५२ २ १२ २२३२ ४२ ५२ २ १० ३८/२०१० ५६ ४२२८ १४० ५८ ५६ ५४ ५२ ५०१ ४८ ४६ ४४ ४२ ४०३८ ३६३४३२ २८ २६ २४ २२ २० १८ १६ ४६ १९५४ ५४ ५४ ५४ ५५ ५५ ५५ ५५ ५५ ५५ ५५ ५६ ५६ ५६ ५६ ५६ ५६ ५७ ५७ ५७ ५७, ५७ ५७ ५७ ५८ ५८ ५८ ५८५८० १२२२३२४२:५२ २ १२ २२ ३१ ४० ४९ ५९ ८ १७ २६ ३६ ४५ ५४ ३ १३ २२ ३१ ४१ ५० ५९ ८ १८ २७ ३६ ४५९ १४ १२ १० ८ ६ ४ २ ० १६ ३२ ४८ ४ २० ३६५२ ८ २४ ४० ५६ १२२८४४० १६३२ ४८ ४ २०३६५२५८ -- ५८ ५९ ५९ ५९ ५९ ५९५९ ० ० ० ० ० ० ० १ १ १ १ १ १ २ २ २ २ २ २ २ ३ ३ ३ ० २८ ३७ ४६ ५६ ५ १४ २३ ९ ५९ ४ १३ २२३२४१ ५० ० ९ १८ २७ ३७४६५५ ४ १४ २३३२४१५१ ० ९ १९ | ८ | २१४ ४० ५६ १२ २८ ४४ ० १६ ३२ ४८ ४ २० ३६ ५२ ८ २४ ४० ५६ १२ २८ ४४० १६३२ ४८ ४ २० २६ ५२ १६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । (૧૦૫). लग्नपत्रं रत्नपुरेपलभा५।८ अयूनांश२३।०।० घरखंड५११४१।१७ * * 10 - 9 ૨૦૦૪ ૩રરર રર૭ ૧૨૪૮૨ - ર૦ર૪ૉર ૦ | v * ૦ | = = ૦ | * | * * | ૧ળ૨૮ર૬° | ૦૪૪૬૬૬૦૫૫ ૦૬૬૬૬૬૧૭ ૪૧ર ૪૦ર૮૪ ૧૨૨૩૬૭ ૧૨૦ ૨૦૪૦ - ૨૦૪૦ - ૨૦૧૪ - ૨ || - ૨૦|-| - ૨૦ ૧૮૮૮૮૮ રરરરરર રરરરરર ૨૭ર૪૪,૫૬૬૮૬ ૧૫૨૬૨૫ ૨૪o ૦ ર૦૪૦ ૦ર૭૪o ૦ર૦૦ |૨૪૦ ૦ર-ર૦ ૨૨ ૨૩ ૨૪ ૨૪ર૪ર૪ર૪ર૪ રા. ર૬ર૩ર૬ર૬ર૬રર૭ર૧ર૭રરર૮ર૮ર૯) ૦ | 1983 ||૨ ૩ ૪ ૬૮૨૨૦૩૩૪ર૬ર ૪૦ર૬ર૩૪૮૪૧૦૨૦રર ૧૪૦ - ૧૮૬૫૪૨૫૦૪૮ ૪૪૨૪૦ ૩૮રરરરરર રરરરર૦૮૭૬૨૦) ૨૨૨ રરરર રરરર રરર રરરરર રરરર રરરરરરર રરરરરર ..., ૨૦૧૨| | રરર૪ર૬૪૧) | જ •| s - E | # જ છું” | જ | ઝ | 9 | | * ૦ | જ છે. ° | R. ૦ ૦ | * * ૦ | ! છે * | | R | ૨ | S = 1 કે * | | કીપર | ૧|રરરરરર રરર | |૨૦૧૦) ૦ ૨૮ ૧૨૨૪ર૬૪૮ ५०५०५१५१५१/५१५१५१ ૬૨ કરકરરરર રરરરરર પકકકકકકકકકકક vas) | | ઇઝ ૨૦૨૨-૨૮૬) ૨૨૨૩ ર૬૪૮૧૨૨૪૨૬૪૮ - ૨૬૩૨૪૮૨ - ૨૬૩૨૪૮૨ - ૨૬ ર૮ર ૧૬ ર૮ર ૧ ર૦ર ૨૬ ) કાપકપદી, ક પ <<<<<<<<• ૦૨૨-૨-૪૫ ર૬૪ર) ૧૪ર૭રર૧ ૪૮૨૪ ૬૨૨૪ ર૮રર૧ ૦૦૪-રરરરરર ૨૨૨)૨૨૦ ૦૪રરરરરર | રણકકર - રરરરકve| | |૬| | કolk) ૦૨૬)- ૮/૪૨૧૬/૦ર૮ર ૧૪૧૪૮૨૫ ૦ ૨૪૨૦) | જ ૨ ૧ ૧ : * *1૪ ૪ જે રે | ૦ [ $ = ૦ | • • • अथ लग्नस्पष्टरीतिः। भानुभांशजं लग्नपत्रकोष्ठकमिष्टान्वितं तन्न्यूनकोष्ठजं भांशं भानुकलाद्यन्वितं तत इष्टाल्पकोष्ठांतरेऽल्पैष्यकोष्ठांतरेणाप्तमंशादिफलं पूर्वत्र योजितं लग्नं भवेत् ॥ १८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०६) वर्षपदीपकम् । सूर्यकी राशि अंश प्रमाण लग्नपत्रके कोष्ठकमें इष्ट घटी पल विपल युक्त करना, उस ( इष्ट युक्त किये हुए कोष्ठक ) से अल्पकोष्ठकके राशि-अंश लेना, अर्थात् जिस कोष्ठकमें इष्ट युक्त किये हुए कोष्ठकसे किंचित् न्यून अंक मिले उसके सामने जो राशि और ऊपर जो अंश हो वह अंश लेना । राशि-अंशके नीचे स्पष्ट सूर्यकी कला विकला युक्त करना, तदनंतर इष्ट युक्त किये हुए कोष्ठक और अल्प कोष्ठकका अन्तर करना, जो शेष बचे उसमें अल्पकोष्ठक और उसके आगेका ऐष्य कोष्ठकका अन्तर करके भाग देना, जो अंशादिक फल ३ तीन लब्ध आवे वह प्रथम आये हुए राश्यादिकमें युक्त करे तो लग स्पष्ट होता है ॥ १८॥ लनपत्रस्थभानुभांशजकोष्ठं स्वाधःस्थितसप्तमकोष्ठकादीनं दिनमानम् ॥ १९॥ सूर्यकी राशि अंशप्रमाण लग्नपत्रमें जो कोष्ठक है उसको अपने नीचेके सातवें कोष्ठकमेंसे हीन करे, जो शेष बचे वह दिनमान जाने ॥ १९ ॥ तच्च षष्टिशुद्धं रात्रिमानम् ॥२०॥ दिनमानको ६० साठमेंसे शोधनेपर रात्रिमान होता है ॥ २० ॥ सूर्योदयादिष्टे राज्यर्द्धयुते तुर्यभावेष्टम् ॥ २१ ॥ सूर्योदयसे घट्यादिक इष्ट समयमें राज्यई ( रात्रिमानका अई) युक्त करे तो चतुर्थ भावका इष्ट होता है ॥ २१ ॥ एतदादाय भावपत्रतो लगवच्चतुर्थभावसाधनम् ॥२२॥ इस प्रकार चतुर्थ भावका इष्ट ले करके भावपत्रपर लनसाधनकी रीतिके अनुसार ( जैसे लग्न लाये हैं उसी तरहसे ) चतुर्थ भावका साधन करना चाहिये ॥ २२॥ लनशोधिततुर्यषष्ठांशो लग्ने पञ्चवारं योज्यस्ततस्स षष्ठांशोरूपाच्छुदस्तुर्ये पञ्चवारं योजितश्चेल्लमादयस्ससन्धयः षड्भावाः ॥२३॥ __ लग्न निकले हुए चतुर्थ भावके षष्ठांशको (चतुर्थ भावमेंसे लग्नको) हीन करना, जो राश्यादिक शेष बचे उसकी राशिके अंकमें ६ छःका भाग देना, जो लब्ध राशि आवे और शेष बचे उनको वीस ३० गुणे करके नीचेके अंश मिलाकर६छःकाभाग दे, फिर जो लब्ध अंश आव और शेष बचे उनको६०साठ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । (१०७) गुणे करके नीचेकी कला मिलाना, फिर६ छःका भाग देना, एवं जो लब्ध कला आवे और शेष बचे उनको ६० गुणे करके विकला मिलाना, फिर ६ छःका भाग देना, जो लब्ध विकला आवे तथा शेष बचे उनको फिर६०गुणे करके६ छःका भाग देनेपर जो लब्ध आवे वह प्रतिविकला जानना ऐसे ६ छःका भाग देनेसे जो राश्यादिक फल आवे वह षष्ठांश होता है, उस षष्ठांशको लग्नमें पांचवार युक्त करना, तदनंतर फिर उस षष्ठांशको एकराशिमेंसे (१1०1०1०10) शोधके चतुर्थ भावमें पांच वार मिलावे तो लग्नको आदि ले संधिसहित ६ छठा भाव होता है ॥ २३ ॥ एते षड्भोनाः शेषाः षड्भावाः॥२४॥ इन छहों भावों से छः छः राशि हीन करनेसे शेष रहे हुए छहों भाव होते हैं ॥ २४ ॥ ग्रहः स्वाधिष्ठितभावारम्भसंधितो न्यूनो गतभावोत्थं ताग्विरामसंध्यधिक उत्तरभावोत्थं फलं प्रयच्छति ॥ २५॥ ग्रह जिस भावमें स्थित हो उस भावकी आरंभ (पहलेकी ) संघिसे न्यून (कमती) हो तो गतभावजनित ( पीछके भावका) फल देता है। ऐसे ही विराम (आगेको ) सन्धिसे अधिक हो तो उत्तर ( आगेके ) भावजानित फलको देता है ॥२५॥ ग्रहसंध्यंतरं नखघ्नं भावसंध्यंतरेणाप्तं फलं विंशोपकाः ॥२६॥ ग्रहसन्धिके अन्तरको ग्रह जिस भावमें स्थित हो उस भावसे कमती हो तो आरम्भसन्धिके साथ और भावसे ग्रह अधिक हो तो विराम (आगेकी) सन्धिके साथ अन्तर करके बीसगुणा करना और भावसन्धिके अन्तरका जिस सन्धिके ग्रहका अन्तर किया है उसी सन्धिके भावके साथ अन्वर करके भाग देना, जो फल आवे वह विंशोपका जानना और यदि ग्रह आरम्भसन्धिसे न्यून हो वा विराम सन्धिसे अधिक हो तो जिस भाव और सन्धिके बीचमें ग्रह हो उस भाव और सन्धिका अन्तर करके यह सन्धिके अन्तरमें भाग देना, अर्थात् आरम्भ सन्धिसे ग्रह न्यून हो तो पहलेके भाव और सन्धिसे अन्तर करना और ग्रह आगेकी सन्धिसे अधिक हो तो आगेके भावसे सन्धिका अन्तर करके बीसगुणे किये हुए ग्रह सन्धिके अन्तरमें भाग देनेपर जो फल आवे वह विंशोपका होता है ॥ २६ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०८) वर्षपदीपकम् । उदाहरण। स्पष्टसूर्य १० । १६ । ५३ । ३९ है, इसकी राशि १० अंश १६ के प्रमाण लग्नपत्रमें कोष्ठक देखा ५७ । २१ । ६ है, इसमें इष्टपट्यादि ११ । ३० । १८ मिलाया तो ६८। ५१। २४ हुए । घटीका अंक ६० साठसे अधिक है, अतः साठका भाग दिया शेष ८। ५१ । २४ रहे, यह इष्ट युक्त किया हुआ लग्नपत्रका कोष्ठक हुआ । इस इष्टयुक्त कोष्ठकसे अल्पकोष्ठक लग्नपत्रमें ८।४५॥ ४८ एक १ राशि ११ ग्यारह अंशके कोष्ठकमें मिलता है, इसकारण १ वृषराशि ११ अंश लिये इसके नीचे सूर्यकी कला ५३ विकला ३९ युक्त किया तो १ । ११ । ५३ । ३९ हुआ, तदनन्तर इष्टयुक्त कोष्ठक ८।५१ । २४ और अल्पकोष्ठक ८।४५ । ४८ का अन्तर किया तो ० । ५। ३६ हुआ, इसमें अल्म कोष्ठक ८।४५। ४८ । और ऐष्य कोष्ठक ८ । ५६ । ० के अन्तर० । १० । १२ का भाग दिया परन्तु भाज्य भाजक दोनों कलादिक हैं अतएव इनको सवर्णित किये तो भाज्य३३६ भाजक ६१२ हुए, भाज्यमें भाजकका भाग दिया लब्ध • शून्य अंश आया शेष बचे ३३६ को ६०. साठगुणे किये २०१६० हुए । इनमें फिर ६१२ भाजकका भाग दिया लब्ध ३२ कला आयी, शेष ५७६ बचे उनको ६० साठगुणे किये तो ३४५६० हुए। इनमें भाजक (६१२) का भाग दिया लब्ध ५६ विकला आयी। ऐसे अंशादिक । ३२ । ५६ फल तीन आये इनको प्रथम आये हुए राश्यादिक १ । ११ । ५३ । ३९ में युक्त किये तो १ । १२ । २६ । ३५ । हुए यह राश्यादिक लग्न हुआ। दिनमानसाधन। सूर्यकी राशि १० अंश १६ प्रमाण लगपत्रका कोष्ठक ५७ । २१ । ६ को अपने नीचेके सातवे कोष्ठक २६ । ९ । ४२ मेंसे हीन किया तो २८ । ४८। ३६ इतना दिनमान हुआ। रात्रिमानसाधन। दिनमान २८ । ४८।३६ को ६० साठमसे शोधन किया तो ३१ ॥११॥ २४ रात्रिमान हुआ, इसको आधा किया तो १५॥३५ । ४२ रायई हुआ। चतुर्थभाव इएसाधन । सूर्योदयसे इष्ट ११ । ३० । १८ । में रात्र्यई १५। ३५।४२ युक्त किया तो २७ । ६ । ० इतना चतुर्थ भावका इष्ट हुआ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम्। (१०९) चतुर्थभावसाधन। स्पष्टसूर्य १०॥१६॥५३॥३९ की राशि १० अंश १६ प्रमाण भावपत्रका कोष्ठक ५६।४५।२४ में चतुर्थभावका इष्ट २७।६।० मिलाया ८३१५१।२४ हुए, घटी ६० साठसे अधिक है ६० साठका भाग दिया शेष २३॥५१।२४ बचे, यह इष्टयुक्त कोष्ठक हुआ, इससे न्यून कोष्ठक भावपत्रमें २३॥ ४२। २० तीन राशि २७ अंशमें मिलता है, इसलिये राशि ३ अंश २७ लिये इसके नीचे कला विकलाके स्थानमें सूर्यकी कला ५३ विकला ३९ युक्त की तो ३।२७।५३।३९ हुए, फिर इष्टयुक्त कोष्ठक २३॥५१।२४। और अल्प कोष्ठक २३१४२।२० का अंतर किया ०।२।४ हुआ, इसमें अल्पकोष्ठक २३१४२।२० और उसके आगेका ऐष्य कोष्ठक २३॥ ५२।१८ का अंतर ०९।५८ का भाग दिया, परन्तु भाज्य भाजक दोनों कलादिक हैं अतएव दोनोंको प्रथम सवर्णित किये भाज्य ५४४ भाजक ५९८ हुआ, भाज्य ५४४ में भाजक ५९८ का भाग दिया तो लब्ध ० अंश आया, शेष ५४४ को ६० साठगुणे किये ३२५४० हुए। इनमें भाजक ५९८ का भाग दिया, लब्ध ५४ कला आयी, शेष ३४८ बचे इनको ६० साठगुणे किये तो२०८८० हुए, इनमें भाजक ५९८ का भाग दिया, लब्ध ३४ विकलां आयी ऐसे अंशादिक ०५४। ३४ फल तीन आये इनको प्रथम आये हुए राश्यादिक ३॥२७॥५३॥ ३९ में युक्त किये तो ३३२८॥४८॥१३ हुए इस प्रकार चतुर्थ भाव स्पष्ट हुआ। भावसाधनका-उदाहरण । लग्नस्पष्ट १।१२।२६।३५ को चतुर्थ भाव ३।२८१४८1१३ मेसे शोधा तो २।१६।२११३८ हुए, शेष बचे इसकी राशिके २ अंक ६ छःका भाग दिया लब्ध ० राशि शेष २ को ३० तीस गुणे किये ६० हुए । इनमें नीचेके १६ अंश मिलाये तो ७६ हुए। इनमें ६ छःका भाग दिया लब्ध १२ अंश आये, शेष ४ बचे। इनको ६० साठगुणे किये तो २४० हुए फिर कलाके अंक २१ युक्त किये तो २६१ हुए, फिर ६ का भाग दिया लब्ध ४३ फला आयी, शेष ३ बचे, उनको ६० साठगुणे किये तो १८० हुए। इनमें विकलाके अंक ३८ मिलाये२१८ हुए फिर ६ का छका भाग दिया लब्ध३६ विकला आयी। शेष २ बचे, इनको फिर ६० साठगुणे किये तो १२० हुए Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११०) वर्षपदीपकम् । फिर ६ छका भाग दिया लब्ध २० प्रतिविकला आयी। ऐसे छःका भाग देके ०।१२।४३३३६।२० फल पांच लाये वो षष्ठांश हुआ, इसको लग्न ॥१२॥ २६।३५ में युक्त किये तो १।२५।१०।११।२० द्वितीय भावकी आरंभ संधि हुई । इसमें षष्ठांश०।१२।४३३३६।२०। युक्त किया तो २१७५३।४७।४० द्वितीय भाव हुआ। द्वितीय भावमें फिर षष्ठांश ०।१२।४३३३६।२० मिलाया तो २।२०३७।२४।० तृतीय भावकी आरम्भ और द्वितीय भावकी विराम संधि हुई । इसमें फिर षष्ठांश युक्त किया तो ३।३।२१।०१२० तृतीय भाव हुआ। इसमें फिर षष्ठांश०१२॥४३॥३६।२० युक्त किया ३।१६।४।३६१४० तृतीय भावकी विराम और चतुर्थ भावकी आरम्भ संधि हुई, ऐसे लग्नमें षष्ठांश पांचवार युक्त किया, फिर षष्ठांश ०।१२।४३३३६।२०को एक राशि०००। 010 मेंसे शोधा ०।१७।१६।२३।४० शेष बचे इनको चतुर्थ भावमें पांचवार युक्त किया तो लग्नादिक संधिसहित ६ छः भाव हुए, इन छः भावोंमेंसे ६ छः छः राशि घटायी तो शेषके ६ भाव हुए। ससंधयां द्वादशभावाः। | १ | सं. | २ | सं. | ३ | सं. । ४ । सं. | ५ | सं. ६ । पं. ८ س س پر २८ १६३ | २० wimmin | . .:. २०३।१६२८१६३ २०७। ३७२१ ४ । ४८४ | २१ | ४७ २४] . | १६ १३] १६] ० । वर्षाङ्गचक्रम्. चलितचक्रम्. भावमें जो जो राशि आवे वे चलितमें जार ३ शुरजालिखना फिर ग्रह लिखना । वहां सूर्य के मुंबुर वर्षकुंडली में १० दशम भावमें स्थित है। मं११चे || दशम भावकी विरामसंधिसे १०।१६।४ रा १०॥ से सूर्य अधिक है इसलिये यह | ९ | ११ ग्यारहवें भावका फल देगा। एवं श९ - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम्। (१११) शुक्र ११ वें भावमें स्थित है, ११ ग्यारहमें भावकी विरामसंधि ११ । २० से शुक्र ११ । २५ अधिक है, अतएव शुक्र १२ वें भावका फल देगा, ऐसे सर्वपहोंको जानने। विंशोपकानयन-उदाहरण। सूर्य १० । १६ ॥५३॥३९ और दशम भावकी विराम संधि १०।१६।४ । ३६ का अंतर किया तो ००।१९।३ हुआ, इसको बीस गुणा किया तो १६। २१०० हुए। इनमें सूर्य दशम भावकी विरामसंधि और ग्यारहवें भावके बीच है, इसलिये दशमभावकी विरामसंधि १०।१६।४। ३६ और ग्यारहवां भाव १३। ३।२१।० के अंतर १७।१६।२४ का भाग दिया-परंतु दोनों भाज्य भाजक अंशादिक हैं इसलिये इनको प्रथम सवर्णित किये. भाज्य ५८८६० भाजक ६२१८४ हुए । भाज्य ५८८६० में भाजक ६२१८४ का भाग दिया लब्ध • शून्य विश्वा आये, शेष ५८८६० को ६० साठगुणे किये तो ३५३ १६० हुए, भाजक भावसंध्यंतर ६२१८४ का भाग दिया तो लब्ध ५७ प्रतिविश्वाआये। यह सूर्यके विंशोपका हुए, इसी प्रकार सब ग्रहोंके विंशोपका जानना। विंशोपकाः। इति श्रीज्योतिर्विद्वरश्रीमन्महादेवकृतवर्षदीपकाख्यताजिकग्रन्थे तदात्मजश्रीनिवासविरचितायां सोदा. हरणभाषाव्याख्यायां ग्रहभावसाधनाध्यायो द्वितीयः ॥ २॥ वक्राच्छनचन्द्रार्कज्ञसितारेज्यर्किमन्देज्या मेषायधिपाः ॥१॥ वक (मंगल), अच्छ (शुक्र), ज्ञ (बुध ), चंद्र, अर्क (सूर्य) व (बुध ), सिव (शुक्र), आर (मंगल ), इज्य (गुरु), आर्कि (शनि), मंद (शनि), इज्य (गुरु), मेषादिक राशियोंके क्रमसे स्वामी जानना ॥१॥ । मेषादिराशियोंके स्वामी. मे. | वृ. | मि. क. | सिं. क. तु. कृ. | ध. 1 म. | कुं मी . १०११ राशी. म. शु. बु. | चं. सू. | बु. | शु. | मं. गु. | श. .. गु. स्वामी - - - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११२) वर्षप्रदीपकम् । मषगोनक्रकन्याकान्त्यतुला दिवाकराधुच्चा दशमतृतीयाष्टाविशपञ्चदशपञ्चमसप्तविंशविंशाः क्रमेण परमोच्चभागाः ॥२॥ मेष, गो (वृषभ ), नक ( मकर), कन्या, कर्क, अन्त्य (मीन ) और तुला ये सूर्यादिक ग्रहोंकी कमसे उच्चराशि होती हैं,अर्थात् मेषका सूर्य, वृषभका चन्द्र, मकरका मंगल, कन्याका बुध, कर्कका गुरु, मीनका शुक्र, तुलाका शनि उच्चका जानना और दशम, तृवीय, अष्टाविंश २८, पञ्चदश १५, पंचम ५, सप्तविंश २७, विंश २० क्रमसे परमउच्चके अंश जानना अर्थात् ऊपर कही हुई राशि और अंशोंके सूर्यादि ग्रह हों तो परम उच्चके जानना, जैसे-सूर्य मेषके दश अंशका है ये परम उच्चका हुआ । इसी प्रकार चंद्र वृषभके तीन अंशका परम उच्चका, मंगल मकरके २८ अढाईस अंशका, बुध कन्याके १५ पंद्रह अंशका, गुरु कर्कके पांच ५ अंशका, शुक्र मीनके २७ सत्ताईस अंशका और शनि तुलाके २० बीस अंशका परम उच्चका जानना ॥२॥ स्वोच्चसप्तमस्तिथांशाः क्रमशो नीचाः परमनीचभागाः॥३॥ सूर्यादिग्रहोंकी अपनी उच्चराशिसे सातवीं राशि और अंश क्रमसे नीच राशि और परमनीचके अंश होते हैं ॥ ३ ॥ उच्चनीचराशिचक्रम् । २ ५३२७६० उञ्चराशयः २०१७ ३. २५६ ५० नचिराशयः मेषेऽङ्गाङ्गाष्टपंचेषवो गुरुशुक्रज्ञारार्कजाना हद्दांशाः॥४॥ मेषराशिमें अंग ६, अंग ६, अष्ट ८, पंच ५, इषु ५, इन अंशोंके कमसे गुरु, शुक्र, बुध, मंगल और शनि हद्दाके स्वामी जानना । अर्थात् मेषराशिके ६ छः अंशपर्यत हद्दाका स्वामी गुरु होता है, उसके आगेके ६ छः अंशका स्वामी शुक्र, उसके आगेके ८ अंशका स्वामी बुध,उसके आगेके ५ पांच अंशका स्वामी मङ्गल, उसके आगेक ५ अंशका स्वामी शनि, इसी प्रकार बारहों राशियों के हदांशके स्वामी समझना चाहिये ॥ ४ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । ( ११३ ) वृषेऽष्टांगेभशराग्रयः सितज्ञेज्यमन्दाराणाम् ॥ ५ ॥ वृषभराशिमें अष्ट ८ अंग ६ इभ ८ शर ५ अग्नि ३ इन अंशों में यथाक्रम शुक्र, बुध, गुरु, शनि, मंगल हद्दाके स्वामी जानना ॥ ५ ॥ द्वंद्वेऽङ्गांगाशराद्रयङ्गांशा ज्ञशुक्रेन्यारमन्दानाम् ॥ ६ ॥ मिथुन राशिमें अंग ६ अंग ६ शर ५ अदि ७ अंग ६ इन अंशों के क्रमसे बुध, शुक्र, गुरु, मंगल, शनि हद्दाके स्वामी जानना ॥ ६ ॥ कर्केऽद्रयंगांगनगाब्ध्यंशा भौमाच्छज्ञेज्याकीणाम् ॥ ७ ॥ कर्कराशिमें अदि ७ अंग ६ अंग ६ नग ७ अब्धि ४ इन अंशोंके क्रमसे भौम, शुक्र, बुध, गुरु, शनि हद्दाके स्वामी जानना ॥ ७ ॥ सिंहेऽगेष्वद्रयंगांगांशा इज्यसितार्किज्ञाराणाम् ॥ ८ ॥ सिंहराशिमें अंग ६ इषु ५ अदि ७ अंग ६ अंग ६ इन अंशोंके क्रमसे गुरु, शुक्र, शनि, बुध, मंगल हद्दाके स्वामी जानना ॥ ८ ॥ कन्यायां नगाशाब्ध्यं गाक्ष्यंशा ज्ञाच्छेज्याराकणाम् ॥ ९ ॥ कन्याराशिमें नग ७ आशा १० अब्धि ४ अंग ६ अक्षि २ इन अंशोंके क्रमसे बुध, शुक्र, गुरु, मंगल, शनि हद्दा के स्वामी जानना ॥ ९ ॥ तुलेंऽगाष्टनगाद्रचक्ष्यंशा मन्दज्ञेज्य सिताराणाम् ॥ १० ॥ तुलाराशिमें अंग ६ अष्ट ८ नग ७ अधि ७ अक्षि २ इन अंशों के क्रमसे शनि, बुध, गुरु, शुक्र, मंगल हद्दा के स्वामी जानना ॥ १० ॥ कीटे सप्तान्ध्यष्टशरांगांशा वक्राच्छज्ञेज्याकीणाम् ॥ ११ ॥ वृश्चिक राशिमें सप्त ७ अब्धि ४ अष्ट ८ शर ५ अंग ६ इन अंशों में यथाक्रम मंगल, शुक्र, बुध, गुरु, शनि हद्दा के स्वामी जानना ॥ ११ ॥ चापेऽर्केष्वब्धिशराब्ध्यंशा इज्यसितज्ञारमन्दानाम् ॥ १२ ॥ धनराशि अर्क १२ इषु ५ अब्धि ४ र ५ अब्धि ४ इन अंशोंके क्रमसे गुरु, शुक्र, बुध, मंगल, शनि हद्दाके स्वामी जानना ॥ १२ ॥ नक्रे नगनगाब्ध्यष्टवेदांशा ज्ञेज्याच्छावित्राणाम् ॥ १३ ॥ मकरराशिमें नग ७ नग ७ अब्धि ४ अष्ट ८ वेद४इन अंशोंके क्रमसे बुध, गुरु, शुक्र, शनि, मंगल हद्दाके स्वामी जानना ॥ १३ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११४) वर्षदीपकम् । घटे नगांगादिपञ्चेषवः शुक्रज्ञेज्यारमन्दानाम् ॥ १४ ॥ कुम्भराशिमें नग ७ अंग ६ अदि ७ पंच ५.इषु ५ इन अंशोंमें यथाक्रम शुक्र, बुध, गुरु, मंगल, शनि हद्दाके स्वामी जानना ॥ १४॥ झषेऽब्ध्यिग्न्यंकाक्ष्यंशाः सितेज्यज्ञाराकीणाम् ॥ १५॥ मीनराशिमें अर्क १२ अब्धि ४ अग्नि ३ अंक ९ अक्षि २ इन अंशोंके क्रमसे शुक, गुरु, बुध, मंगल, शनि हहाके स्वामी जानना॥ १५॥ हहाचक्रम् । - ६ गु| 3 में ६ गु ज में १२गु| ७७ ७ १२७ अंवस्वामी । |६४गुमंशस्वामी. | २३ । १६ १२।१४।१२।१३।११।१७ ५ ५५ ७७गु ६७ ७म २५ | २७ । २४ | २६ । २४ | २८ | ५मा ९म । २५ | २८ अंशस्वामी. २८ ग्रहे प्रथमद्रेष्काणगे तदाशौ वहियोगे मध्यद्रेष्काणगे तद्राशौ सैकोऽन्त्यद्रेष्काणगे रसयोगे तद्राशौ मुनिभक्त शेषेऽर्काद्या पतयः॥१६॥ ग्रह प्रथमद्देष्काणमें हो वो उसकी राशिके अंकमे ३ वीन मिलाना और मध्यरेष्काणमें हो वो उसकी राशिमें (१) एक युक्त करना, एवं अन्त्य (वीसरे) देष्काणमें हो वो उसकी राशिमें ६ छः युक्त करना, अनन्तर उस राशिमें ७ सायका भाग देना, शेष १ बचे तो सूर्य, २ बचे वो चन्द्र, ३ तीन बचे वो मंगल, ४ बचे वो बुध, ५ बचे वो गुरु, ६ बचे दो शुक्र, ७ बचे वो शनि द्रेष्काणका स्वामी होवा है ॥ १६॥ द्रेष्काणचक्रम् । |मं. बु.गु. शु. श. र. | चं. मं. | बु. | गु. शु. श. १. अंश. ] |र. चं. | मं. | बु. | गु. शु. श. |र. . मं. | बु. गु. २० अंश । शु. ३.२.वं. मं..! गु. | शु. | शर. | चं. मं. १ द्रेष्काण १० अंशका होता है, १० अंशपर्यन्त प्रथम द्रेष्काण, १० से २० अंशपर्यंत मध्य द्रेष्काण, २.३० अंशपर्यंत मत्य प्रेमाण होता है। . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । ( ११५ ) मेषसिंहचापेषु मेषाद्या वृपकन्यानक' मृगाया युग्मतुलाकुम्भेषु तुलाद्याः कर्कालिनीनेषु कर्काद्या नवांशाः ॥ १७ ॥ मेष १ सिंह ५ धन ९ राशिमें मेषराशिको आदि ले, वृष २ कन्या ६ मकर १० राशिमें मकरराशिको आदि ले, मिथुन ३ तुला ७ कुम्भ ११ राशिमें तुला राशिको आदि ले और कर्क ४ वृश्चिक ८ मीन १२ राशिमें कर्कराशिको आदि ले नवांशविभागकी संख्यापर्यंत गिननेसे नवांश होता है, अर्थात् - जितनी संख्या नवांशविभागमें हो उतनी संख्यापर्यंत गिनने से जो राशि आवे उसका स्वामी नवांशका स्वामी होता है ॥ १७ ॥ ० १ २ ३ १ १०७ ४ 2 mm 20 3 ४० २ ३ ४ नवांशसारिणीचक्रम् | मे. | वृ. | मि. क. | सिं. | क. | तु. / वृ. | ध. | म. | कुं. मी. अंश. | कला. ७ ८ ९ १० ११ ४ ११ ८ ५ १२ / ९ १ ५ १० ११ १६ २० २३ २६ | ३० २० ४० • 20 or १०७ नवांशविभागचक्रम् । ४ * १ १०/७ २ ११ ८ ६ ३ १२ ९ ४ ५ ६ 20 19 १ २ १० ७ ४ ३ ११ ८ ५ ६ १२ ९ ६ १० १०/७ १३ ११ ८ ५ २ ११८ १६ १२ ९ ६ |३ | १२ / ९ २० ४ १ १० २३ १ १० ७ ११ ८ ५ २ ११ ८ ५ २ ११ २६ ४० १२/९ | ६ ३ १२/९ ६ ३ | १२ ३० 0 १८ ॥ नवांश वि. अंश. ४० 0 कला.. ३ १०७ ४ १ ८ ९ ५ २ ११ ८ २ ६ ३ १२/९ ३ ७ ४ १ १०७ ४ ८ ५३ / २ ९ ६ | ३ गृहोचहदाद्रेष्काणनवांशाः पञ्चवर्गाः ॥ २० ४० ० २० ४० 102 20 २० १ एक राशिके ९ नव भागको नवांश कहते हैं, एक नवांशविभाग ३ तीन अंश २० कलाका होता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११६) वर्षपदीपकम् । गृह (राशिके ) स्वामी, उच्च, हद्दा, द्रेष्काण और नवांश पंचवर्ग होते हैं ! अर्थात् प्रथम ग्रहोंकी राशिके स्वामी, फिर उच्च, वदनन्वर हद्दा, एवं द्रेष्काण नवांश लिखनेसे पंचवर्ग होता है ॥१८॥ यो ग्रहो यस्य ज्यायत्रिकोणान्यतमगः स सुहृत् ॥ १९ ॥ जो ग्रह जिस ग्रहसे तीसरे ३ ग्यारहमें ११ नवमें ९ पांचमें ५ स्थानों से किसी स्थानमें स्थित हो वह उस ग्रहके मित्र होता है ॥ १९ ॥ केंद्रगस्तथा शत्रुः ॥२०॥शेषस्थानस्थः समः ॥२१॥ और जो ग्रह जिस ग्रहसे केंद्र (१।४।७।१०) स्थानों से कोई भी स्थानमें स्थित हो वह उस ग्रहके शत्रु होता है ॥ २० ॥ शेष २।६।८। १२ दूसरे छठे आठवें बारहवें स्थानों से कोई भी स्थानमें जिस ग्रहसे जो यह स्थिव हो वह उसके सम होता है ॥ २१ ॥ स्वगृहे त्रिशल्लवाः सुहृद्भेसाईद्वाविंशतिः। समझे तिथयः शत्रुभे साईसप्तबलम् ॥ २२॥ इस प्रकार मैत्रीचक्र बनाके उस (मैत्रीचक्र) के अनुसार पंचवर्गमें आये हुए ग्रहोंके नीचे मित्र सम शत्रु लिखना, तदनन्तर बल लिखना,उसकी रीति कहते हैं। ग्रह स्वगृही (स्वराशिका ) हो तो ३० तीस अंश, मित्र राशिका हो तो २२।३० साढेबाईस अंश, समराशिमें १५ पन्दरह अंश, शत्रुराशिमें हो तो ७ । ३० साढ़ेसाव अंश बल जानना ॥ २२॥ यथा भवे षड्भाल्पं तथा नीचखेटांतरे द्भतागाभागस्स्वोच्चबलम्२३ ग्रह और उसके नीचका अन्तर जैसे हो सके वैसे छः राशिसे अल्प करना (ग्रहमें नीचको हीन करनेसे ६ छः राशिसे अल्प शेष बचे तो ग्रहमेसे नीचको हीन करना और अधिक बचते हों तो नीचसे ग्रहको हीन करना) शेष यदि अन्वरके अंश करके राशिको ३० गुणी करके अंश मिलाके उसमें ९ नवका भाग देना, लब्ध उच्चबल होता है ॥ २३ ॥ स्वहदायां तिथ्यंशा मित्रहदायां सपादैकादश समहदायां साईसप्त शत्रुहदायां पादोनवेदांशा बलम् ॥२४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । (११७) ग्रह स्वराशिकी हद्दामें हो तो १५ पंदरह अंश, मित्र ग्रहकी हद्दामें ११॥ १५ सवाग्यारह अंश, समग्रहकी हद्दा ७३० साढ़ेसात अंश, शत्रु ग्रहको हद्दामें हो तो ३।४५ (पौनेचार अंश ) बल जानना ॥ २४ ॥ स्वद्रेष्काणे दश मित्रद्रेष्काणे सार्द्धनगाः समद्रेष्काणे । पञ्च शत्रुद्रेष्काणे साईयमा अंशाबलम् ॥२५॥ ग्रह स्वराशिके द्रेष्काणमें हो तो १० अंश, मित्रग्रहके द्रेष्काणमें हो तो ७।३० साढ़ेसात अंश, समयहके द्रेष्काणमें ५ पांच अंश, शत्रुग्रहके द्रेष्काणमें हो तो २।३० अढ़ाई अंश बल जानना ॥ २५ ॥ स्वनवांश पञ्च मित्रांशे पादोनवेदाः समांशे सार्धयमा रिप्वंशे सपादैको बलम् ॥२६॥ ग्रह-स्वराशिके नवांशमें हो वो ५ पांच अंश, मित्रनवांशमें ॥४५ पौनेचार अंश, समनवांशमें हो तो २।३० ढाई अंश, शत्रुनवांशमें हो तो ११५ (सवा ) अंश बल जानना ॥ २६ ॥ पंचवर्गबलकोष्टकम् । स्व. मित्र | सम | शत्रु स्व. गृह हदा. द्रेष्का . द्रेष्काण नवां नवांश । ०४५/३० पंचवर्गलैपने वेदोद्धते लब्धं विंशोपकात्मकं बलम् ॥ २७॥ पंचवर्गके बलके ऐक्य (योग) में ४ चारका भाग देना जो लब्ध आवे उसे विश्वात्मक बल जानना चाहिये ॥ २७ ॥ षडल्पोऽल्पबली व्यधिकः पूर्णबली ॥२८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११८ ) वर्षप्रदीपकम् । आया हुआ विश्वात्मक बल ६ छः से अल्प हो तो अल्पबली और बारहसे अधिक हो तो पूर्णबली, ६ छः से अधिक बारहसे न्यून हो तो मध्यबली होता है ॥ २८ ॥ उदाहरण | सूर्य १०।१६।५३।३९ कुम्भराशिका है, इसका स्वामी शनि है, सो गृहका स्वामी हुआ । एवं सूर्यका उच्च ०।१० हद्दा - सूर्य कुम्भ राशिके ३ हांशर्मे ( प्रथम ७ अंश फिर ६ अंश मिलानेसे १३ होते हैं इससे अधिक अंश सूर्य है, इसलिये दो अंश गये और तीसरे ७ अंशमें हुआ ) है इसका स्वामी गुरु है वह सूर्य की हद्दाका स्वामी हुआ । द्रेष्काण - सूर्य मध्यद्रेष्काण में है इसकी राशिमें १० में १ एक युक्त किया ११ हुए, सातका भाग दिया ४ शेष बचे, तो सूर्यको आदि ले क्रमसे ४ बुध द्रेष्काणका स्वामी हुआ । नवांश सूर्य कुम्भराशि के छठे नवांशविभागमें है ( १६ । ४० से अधिक है अतएव तुलराशिसे नवांश विभागसंख्या ६ पर्यंत गिनने से मीन राशि हुई. इसका स्वामी गुरु है सो सूर्यके नवांशका स्वामी हुआ, ऐसे ही सर्वग्रहके पंचवर्ग जानना । इ • बु शु ་ शु चं मं र मं मं. Gajal बु र चं सू. चं. मं. ० १० श मि मि बु स गु श A AM AM - 9: 6.40 श 4265464 गु बु श स स र मं ३ शु शु स मैत्रीचक्रम्. मु. शु स बृहत्पंचवर्गचक्रम्. 604 श र चें श मि शु स गु श ९ २८ १५ ५ गु 69 र चं 1961 मता . गु. शु. मं श अ. घ. रं मं मं ! श मि A श्रश्र - D Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat च स ms 9 ME 2 R गु बु ३ मि गु स्व मित्र. गु सम. मि ११ २७ मं र मं श स उ श. गु 6 & A এে स २० हद्दा. द्वेष्काण नवांश मैत्रीसाधन -- उदाहरण । सूर्य से ११ स्थानमें शनि स्थित है वह सूर्यके मित्र हुआ, एवं सूर्यसे १ स्थानमें चन्द्र, मंगल १० स्थानमें गुरु स्थित है, ये सूर्यके शत्रु हुए और २ स्थानमें बुध, स बु श बु श स्वगृह. उच्च. श धनु. गु मु. श शुक्र स्थित है, वे सम हुए। इसी प्रकार सर्वग्रहोंके मित्र शत्रु समझना । www.umaragyanbhandar.com Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११९) भाषाटीकासहितम् । बलसाधन-उदाहरण । सूर्यके गृहका स्वामी शनि सूर्यका मित्र है, इसलिये गृहमें सूर्यके नीचे २२॥ ३० अंश बल लिखा. उच्चबल सूर्य १० । १६।५३।३९ नीच ६।१०।०।० सूर्यमेंसे नीच हीन किया ४।६।५३।३९ शेष बचे इसके अंश किये १२६ । ५३। ३९ हुए, नवका भाग दिया लब्ध १४ आये शेष शून्य बचा, इसको साठसे गुणा किया,इसमें ५३ कला मिलायी ५३ हुए और नवका भाग दिया, लब्ध ५ आये, सो सूर्यका उच्चबल १४, ५ हुआ। हद्दा-इदाका स्वामी गुरु सूर्यका शत्रु है, अतः हद्दाका शत्रु बल ३ । ४५ सूर्यके नीचे हवामें लिखाद्रेष्काण, सूर्यके द्रेष्काणका स्वामी बुध सूर्यके सम है इसलिये द्रेष्काणमें समका बल ५। • प्राप्त हुआ। ___ नवांश सूर्यके नवांशका स्वामी गुरु सर्यके शत्रु है, अतएव नवांशमें सूर्यके नीचे शत्रु नवांश बल १५ लिखा, यह पंचवर्ग बल हुआ। इन पांचोंका योग किया ४६।३५ पंचवर्ग बलैक्य हुआ, इसमें ४ चारका भाग दिया, लब्ध ११ ॥३८॥४५ आये, यह सूर्यका विंशोपकात्मक बल हुआ । ग्रहबल ६ से अधिक और १२ बारहसे न्यून है,अतः मध्यमबल जानना । एवं शेष चन्द्रादि सर्वग्रहोंका किया जाता है। पंचवर्गबलचक्रम् । र. | चं. | मं. बु. गु. | शु. | श. . 32 | FIRS 2013 Mrom Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२० ) वर्षप्रदीपकम् । विंशोपकात्मकबलम् । र. | चं. मं. बु. गु. शु. श. ११·११ | १३| ८ ७ १४ १० ३८४८ | ४७| ११ ५० 0 १० ४५० ४५० ३०|३०|३०| म. म. पू. म. म. पू. म. चन्द्रार्कारेज्याः परस्परं मित्राणि शेषाश्च ॥ अब अन्य आचार्यके मतकी स्थिरमैत्री लिखते हैं: - चन्द्र, सूर्य, मङ्गल, गुरु ये परस्पर मित्र जानना और शेष रहे बुध, शुक्र, शनि, ये परस्पर मित्र जानना ॥ २९ ॥ इतरथा रिपवः ॥ ३० ॥ ऊपर कहे हुए मित्रग्रहसे जो शेष रहे वे शत्रु होते हैं ॥ ३० ॥ ד स्थिरमैत्रीचक्रम् | र. चं. मं: चं. मं. र. मं. र. चं. ཀྱུ गु. गु. बु. शु. बु. शु. बु. शु. श. श. श. दु. शु. ET. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat गु. शु. र. चं. मं. २९ ॥ बु. श. श. शु. बु. र. चं. बु. शु. र. मं. र. चं. मं. गु. ST. चं. ग. मं. गु. मित्र. स्वस्वाधिकारबलार्द्ध मित्र बलं तदर्थं शत्रुभे शेषं प्राग्वदित्येके३१ ॥ इस स्थिरमैत्रीके मित्रशत्रुके अनुसार पञ्चवर्गबल लानेकी रीति कहते हैं:गृह ३० हदा १५ द्रेष्काण १० नवांश ५ के कहे हुए अपने अपने राशिके बलको स्वराशिगत ग्रहमें यथावास्थित ( गृहमें ३० हदामें १५ द्रेष्काणमें १० नवांश में ५ ) ही जानना और अपने अपने स्वका आधा आधा बल मित्रराशिगत ग्रहमें और मित्रराशिगत ग्रहका आधा आधा बल शत्रुराशिगत ग्रहमें जानना, अर्थात् स्वमें पूरा, मित्रमें स्वका आधा, शत्रुमें मित्रका आधा लिखना, जैसे- गृहमें स्वराशिका ३० अंश बल है, उसका आधा १५, मित्र www.umaragyanbhandar.com Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । ( १२१ ) राशिगतका बल और उसका आधा ७ । ३० शत्रुराशिगतका बल हुआ है शेष रीति प्रथम कहे समान करना । ऐसा अनेक आचार्यों का मत है ॥ ३१ ॥ उदाहरण | गृहमें-- सूर्यकी राशिका स्वामी शनि स्थिर मैत्रीमें सूर्य का शत्रु है इसकारण सूर्यके नीचे गृह में स्वगृहके बल ३० के आधेका आधा लिखा ७।३० उच्चबल पूर्वानीत लिखा १४ । ५. हद्दा - सूर्यकी हद्दाका स्वामी गुरु स्थिर मैत्री सूर्यके मित्र है, अतएव हद्दा के स्वराशिके बल १५ का आधा ७ । ३० लिखा । एवं सूर्य के द्रेष्काणका स्वामी स्व मित्र बलचक्रम्. हद्दा ग्रह ३० १५ ७ १५ ३० ७ ३ शत्रु ३० ४५ द्रेष्का | नवां. १० ० २ ३० सू. चं. मं. बु. गु. शु. श. । ७ ७ ७ ७ १५७ ७ ३० ३० ३० ३०० ३० ३० १४ ९ १८ १ ५ १९ १४ ५ ४२ ५६ २९ ७ ४७ २७ ७ ३ ३ ७ ३ ३ ३ |३०|४५ ४५३० ४५ ४५ ४५ हद्दा. २ २ २ ५ ५ २ ५ द्रेष्का. ३०३०३०० ० ३०० गृह. स्थिरमैत्री मित्रशत्रुवशेन | बुध स्थिरमैत्रीमें सूर्यके शत्रु हैं इसलिये पञ्चवर्गबलचक्रम्. काण स्वराशि बल १० का आधेका आधा २ । ३० द्रेष्काणमें सूर्यके नीचे लिखा । नवांश -- सूर्यके नवांशका स्वामी गुरु सूर्यके मित्र है, अतएव नवांशबल ५ । ० का आधा २ । ३० नवांश में सूर्यके नीचे लिखा । इन पांचोंका योग किया ३४ । ५ आया यहां ४ चारका भाग दिया, लब्ध ८ । ३१ । १५ विंशोपकात्मक बल हुआ, यह ६ छहसे अधिक है, इसवास्ते २ १ २ १ ५ २ २ १३० १५ ३० १५० ३० ३० ३४ २४ ३५ २२ ३३ ३६ ३३ ५ ४२ ११ ४४ ५२ २ १२ योग. ८ ६ ८ ५ ८ ९ ८ विशोप मध्यमबल हुआ । ऐसे ही शेष ग्रहों का ३१ १० ४७ ४१२८० १८ कात्मक१५३० ४५० ० ३०० बलम्. बले जानना । मं. म. म. म. म. म. म. बल. उच्च. ५ नवां. ३० १ १५ १ बलका योग करना उसको चारका भाग देना आदि रीति । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२२ ) वर्षप्रदीपकम् । भादयोऽकशांता द्वादश वर्गाः ॥ ३२ ॥ स्वगृहको आदिले द्वादशांशपर्यंत ( स्वगृह १ होरा २ द्रेष्काण ३ चतुर्थीश ४ पंचमांश ५ षष्ठांश ६ सप्तमांश ७ अष्टमांश ८ नवमांश ९ दशमांश १० एकादशांश ११ द्वादशांश १२ ) द्वादशवर्ग होता है ॥ ३२ ॥ भाद्यधिपाः प्राग्वत् ॥ ३३ ॥ राशियों के स्वामी प्रथम कहे समान जानना ॥ ३३ ॥ विषम सूर्यशशिनोः समर्क्षे व्यत्ययेन होरा ॥ ३४ ॥ विषमराशिमें प्रथम सूर्य, दूसरे चन्द्रकी होरा होती है और समराशिमें विपरीत अर्थात् प्रथम चन्द्र द्वितीय सूर्यकी होरा होती है ॥ ३४ ॥ स्वेषु नवशा द्रेष्काणपाः ॥ ३५ ॥ प्रथम द्रेष्काणमें अपनी राशिका स्वामी, दूसरे (मध्य) द्रेष्काण में अपनी राशिसे पांचमी राशिका स्वामी, तृतीय ( तीसरे ) द्रेष्काण में अपनी राशि से नवमी राशिका स्वामी, द्रेष्काणका स्वामी जानना ॥ ३५ ॥ केचित्प्राग्वत् ॥ ३६ ॥ कोई आचार्य जो पंचवर्गमें प्रथम द्रेष्काण कहा है वही करना ऐसा कहते हैं ॥ ३६ ॥ स्वक्षज केन्द्रेशा वेदांशपाः ॥ ३७ ॥ अपनी राशिसे प्रथम चतुर्थीशमें अपनी राशिका स्वामी, दूसरेमें ४ चौथी राशिका स्वामी, तीसरे में सातवीं राशिका स्वामी चौथेमें १० दशमी राशिका स्वामी चतुर्थांशका स्वामी होता है ॥ ३७ ॥ ओज भौमायज्ञसिताः समर्क्षे प्रतिलोमतः शशिपाः ॥ ३८ ॥ विषम (एक) राशिमें प्रथम पंचमांशमें भौम दुसरे में शनि तीसरे में १ पंदरह १५ अंशकी एक १ होरा होती है ( ० अंशसे १५ अशतक प्रथम होरा १ अंश से ३० अंशपर्यंत दूसरी होरा हो ) । २ दशअंशका ९ द्रेष्काण होता है । ३ एकराशिके ४ चार भागको कहते हैं, एक चतुर्थांश विभाग ७ अंश ३० कलाका होता, है 1 ४ एकराशिके ९ पांच में भागको कहते हैंएक पंचमांश ६छः अंशका होता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १ 60 ३० चतुर्थीशविभाग० । ३ ४ २ १५ ० २२ ३०. ३० अंश. ० कळा. www.umaragyanbhandar.com Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । (१२३ ) गुरु, चौथेमें बुध, पांचवेमें शुक्र, समरराशिमें विपरीत (१ शुक्र २ बुध, ३ गरु, ४ शनि, ५ मंगल ) पंचमांश के स्वामी होते हैं ॥ ३८ ॥ विषमः मेषाद्याः समभे तुलाद्याः षष्ठांशाः ॥३९॥ विषमराशिमें मेषराशिको आदि ले, समराशिमें तुलाराशिको आदि ले गिननेसे षष्ठांशके स्वामी होते हैं ॥ ३९ ॥ ओजभे स्वभाद्या युग्मः तत्सप्तमाद्याः सप्तमांशाः ॥४०॥ विषमराशिमें अपनी राशिको आदिले,समराशिमें अपनी राशिसे जो सातवीं राशि हो उसको आदि ले सप्तमांश विभागकी संख्यापर्यंत गिननेसे जो राशि आवे उसके स्वामी सप्तमांशका स्वामी होता है (यह जितनी संख्याके सप्तमांशविभागमें ही उतनी संख्यापर्यन्त विषमराशिमें अपनी राशिसे, सममें सातवीं राशिसे गिननसे सप्तमांश होता है ) ॥४०॥ चरमेऽजायाःस्थिरभे चापाद्या उभयभे सिंहाया अष्टमांशाः॥४॥ चर (१।४।७।१०) राशि मेषराशिको आदि ले, स्थिर (२। ५। ८।११) राशिमें धनराशिको आदि ले,द्विस्वभाव( ३ । ६ । ९।१२) राशिमें सिंहराशिको आदिले जितनी संख्याके अष्टमाँशविभागमें ग्रह हो उतनी संख्यापर्यंत गिननेसे जो राशि आवी है उसका स्वामी अष्टमांशका स्वामी होता है ॥४१॥ १ एक राशिके ६ छठे भागको कहते हैं-एक षष्ठांश ६ पांच अंशका होता है । २ एक राशिके ७ हिस्सेको कहते हैं-एक सप्तमांश विभाग ४ अंश १७ कलाका होता है। ३ एक राशिके ८ भागको कहते हैं-एक अष्टमांश विभाग ३ अंश ४५ कलाका होता है। अष्टमांशविभाग. सतमांशविभाग. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२४) वर्षपदीपकम् । नवांशाः प्राग्वत् ॥४२॥ नवांशके स्वामी प्रथम कह चुके हैं उसके समान करना ॥ ४२ ॥ यस्य ग्रहस्य दशांशैकादशांशो कर्तव्यौ तदीयभादौ दशैकादशगुणिते तदशांशादिभादिस्फुटः॥४३॥ जिस ग्रहके दशांश तथा एकादशांश करना हो उस (ग्रह) की राशि अंश कला विकलाको दशांशमै १० दशगुणा, एकादशांशमें ११ इग्यारह गुणा करना, क्रमसे कलामें ६० साठका भाग देना, लब्ध ऊपरके अंशमें युक्त करना, अंशमें ३० तीसका भाग देना और लब्ध राशिमे मिलाना फिर राशिमें १२ बारहका भाग देना जो शेष बचे वह दशांश एकादशांशके राश्यादि स्पष्ट होता है, इस स्पष्टको राशिके स्वामी दशांश एकादशांशके स्वामी होते हैं। ४३॥ स्वभादकांशाः॥४४॥ अपनी राशिसे जितनी संख्याके द्वादशांशमें ग्रह हो उतनी संख्यापर्यन्त गिननेसे जो राशि आवे उसका स्वामी द्वादशांशका स्वामी होता है ॥ ४४ ॥ स्वमित्रोच्चशुभवर्गाः शुभा अन्येऽधमाः ॥ ४५ ॥ स्व, मित्र, उच्च और शुभग्रहके वर्ग शुभ अन्य ( शत्रु सम) नीच और पाप आदिकके वर्ग अधम (नेष्ट ) होते हैं-अर्थात् जिस ग्रहके द्वादशवर्गमें शुभ ग्रहोंका स्वराशिस्थ, मित्रराशिस्थ उच्चराशिस्थ ग्रहोंका वर्ग अधिक हो वह ग्रह शुभफल देगा और जिसके द्वादशवर्गमें पापग्रहोंका शत्रुराशिस्थ ग्रहोंका नीचगवग्रहोंका वर्ग अधिक हो वह ग्रह श्रेष्ठ हो तो भी नेष्ट फल देगा ॥ ४५ ॥ १ एक राशिके १२ भागको कहते हैं-एक द्वादशांश २ अंश ३० कला ( ढाई अंशका होता है । द्वादशांशविभाग. विभागसंख्या. अंश. कळा. . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । (१२५) वर्गेशे स्वसंगे विंशतिर्मित्रर्थी तिथयः समझे दश रिपुभे पंच बलम् ॥ ४६॥ द्वादशवर्गके वर्गका स्वामी स्वराशिका हो तो बीस २० अंश, मित्रराशिका हो वो १५ पन्दरह अंश, समराशिका हो तो १० दश अंश, शत्रुराशिका हो वो ५पांच अंश बल जानना ॥ ४६ ॥ स्व. मि. स. शन द्वादशवर्गजबलैक्येऽर्कभक्ते विंशोपकाः॥४७॥ द्वादशवर्गके बलके योगमें बारह १२ का भाग देना जो लब्ध आवे वह विंशोपकात्मक बल होता है ।। ४७ ॥ उदाहरण । सूर्य १० । १६ । ५३ ॥३९ । की राशि कुंभका स्वामी शनि सूर्यके गृहका स्वामी हुआ।होरा सूर्य विषमराशिकी दूसरी होरामें है, इसका स्वामी चन्द्र होराका स्वामी हुआ। द्रेष्काण-सूर्य मध्यद्रेष्काणमें है,इस कारण अपनी राशि ११ कुंभसे पांचवीं राशि मिथुनका स्वामी बुध द्रेष्काणका स्वामी आया । एवं सूर्य तृतीय चतुर्थांश विभागमें है, इसलिये अपनी राशि ११ से सातवीं राशि ५ सिंहका स्वामी सूर्य, सूर्यके चतुर्थाशका स्वामी हुआ । पंचमांश-विषमराशिस्थित सूर्य तीसरे पंचमांशविभागमें है, अतएव विषमराशिमें तीसरे पंचमांशका स्वामी गुरु सूर्यके पंचमांशका स्वामी हुआ । एवं सूर्य ४ चौथे षष्ठांशमें है और विषमराशिका है, इसलिये मेषराशिसे षष्ठांशविभागकी संख्या ४ चार पर्यंत गिना तो कर्कराशि हुई, इसका स्वामी चन्द्र सूर्यके षष्ठांशका स्वामी हुआ, एवं सप्तमांशविभागमें सूर्य४चतुर्थ संख्याक विभागमें स्थित है यह विषमराशिगत है इसवास्ते अपनी राशि ३१ कुम्भसे ४ चार पर्यंत गिननेसे ४ चौथी वृषभ राशि हुई, इसका स्वामी शुक्र सूर्यके सप्तमांशका स्वामी हुआ, ऐसे ही अष्टमांश विभागमें सूर्य ५ पांचवे अष्टमांशमें स्थित है और स्थिर राशि ११का है, अतः धनराशिको आदि ले ५ पांच संख्यापर्यन्व गिननेसे मेष राशि हुई, इसका स्वामी भौम सूर्यके अष्टमांशका स्वामी हुआ। नवांशके स्वामी लानेकी युक्ति प्रथम कही है, उसी रीतिके समान नवांश विभाग ६ छठे नवांशमें सूर्य स्थित है, इस कारण तुलाराशि (३ । ७ । १३के नवांश ७ तुलासे गिनना) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२६) . वर्षभदीपकम् । से ६ संख्यापर्यन्त गिननेसें १२ मीनराशि हुई, इसका स्वामी गुरु सूर्यके नवांशका स्वामी हुआ, सूर्य १० । १६ । ५३ । ३९ को दशांश करना है, इस कारण १० दशगुणा किया १०० । १६० । ५३० । ३९० हुआ-विकला कला साठसे अधिक है इससे विकला ( ३९.) में साठका भाग दिया लब्ध ६ कलामें मिलाके (५३६) साठका भाग दे लब्ध ८ अंशमें युक्त किये, अंश तीससे अधिक हैं इस लिये अंश ( १६८) में ३० वीसका भाग दिया लब्ध ५ पांच राशिके अंक १०० में युक्त किया १०५ हुए राशि (१०५) में१२ बारहका भाग दिया, शेष ९।१८।५६ । ३० राश्यादिक बचा, यह सूर्यका दशांश हुआ। इसकी राशि १० का स्वामी शनि सूर्यके दशांशका स्वामी हुआ। एवं एकादशांशमें सूर्य १० । १६ । ५३ । ३९ को ११ ग्यारहसे गुणा किया ११०। १७६ । ५८३ । ४२९ हुआ । विकलाकलामें साठके अंशमें वीसकी राशिमें १२ बारहको क्रमसे भाग देनेसे शेष बचे ८।५। ५०९ यह सूर्यका एकादशांश स्पष्ट हुआ । इसकी राशि ९ धनका स्वामी गुरु सूर्यके एकादशांशका स्वामी हुआ-एवं अपनी राशि ११ कुम्भसे सूर्य ७ सातवें वादशांशमें है, इसलिये ७ संख्यापर्यन्त गिननेसे ५ सिंह राशि हुई, इसका स्वामी सूर्य सूर्यके द्वादशांशका स्वामी हुआ । इस प्रकार सूर्यके द्वादशवर्ग हुए ऐसे ही शेष ग्रहोंके वथा भावोंके और सहमादिकोंके द्वादशवर्ग जानना । सूर्यके द्वादश वर्गमें स्वराशिके वर्ग २ मित्रके २ शुभग्रहके ७ वर्ग हैं इनका योग किया ११ ग्यारह हुए, इस कारण सूर्य शुभफल देगा। ऐसे ही सर्वग्रहोंके शुभाशुभफल समझना चाहिये। द्वादशवर्गवलउदाहरण । सूर्यके-गृह (राशि) का स्वामी शनि सूर्यके मित्र है, इस कारण १५० पन्दरहका बल गृहमें प्राप्त हुआ। एवं होरामें सूर्यकी होराका स्वामी चन्द्रसूर्यका शत्रु है, अवः५० बल प्राप्त हुआ एवं द्रेष्काणमें द्रेष्काणपति बुधका समराशिका बल १०० चतुर्थांशमें चतुर्थाशपति सूर्यका स्वका २०१०बल पंचमांशमें पंचमांशके स्वामी गुरुका शत्रुका ५०बल षष्ठांशमें षष्ठांशके स्वामी चन्द्रका शत्रु राशिका बल ५० सप्तमांश, सप्वमांराके वामी शुक्रका समराशिका २०१० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम्। (१२७ ) बल अष्टमांशमें अष्टमांशपति भौमका शत्रुराशिका ५। • बल नवांशमें नवांशका स्वामी गुरुका शत्रुका ५। • बल--दशांशमें दशांशके स्वामी शनिका मित्र बल १५। ० एकादशांशमें एकादशांशके स्वामी गुरुका शत्रुका बल ५० द्वादशांशमें द्वादशांशका स्वामी सूर्य स्वराशिका है, इसलिये स्वका २७ । . बल प्राप्त हुआ, यह सूर्यके द्वादशवर्गका बल हुआ, इसका योग किया १२०० आया इसमें १२ बारहका भाग दिया, लब्ध १० । • सूर्यका विंशोपकात्मक द्वादश वर्ग बल हुआ। ऐसे ही शेष ग्रहोंका जानना ॥ प्रहाणांद्वादशवर्गचक्रम. द्वादशवर्गबलचक्रम्. |१५ 1 . 1. श११ ११ १२गु ८ मं १२ गु९ गु | मि | मि | मि | मिमि | स गृह. २ स १२ १२ गु६ बु ६ बु ११ श ११२ मि | श स्व मि | स २० ५२° सघमांश. ८ ग३ बु ५ र २ शु १२ गु ११ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२८)..' वर्षपदीपकम् । स्वभे शतं कलानां मित्रमे पंचाशत् शत्रुभे पञ्चविंशतिः॥४८॥ स्वराशिमें १०० सौ कला, मित्रराशिमें ५० कला, शत्रुराशिमें २५ पच्चीस कला, स्थिर-मैत्रीके मित्र शत्रुवशसे द्वादशवर्ग बल जानना ॥४८॥ स्व. । मि. श. १००/५० २५ ० ० | ०कला. तदैक्ये षष्टिभक्ते विंशोपका इत्येके ॥४९॥ स्थिरमैत्रीके मित्रशत्रुवशसे लाये हुए द्वादशवर्गके बलके ऐक्य (योग) में ६० साठका भाग देना, जो लब्ध आता है वह विंशोपकात्मक बल होता है, ऐसा अनेक आचार्योंका मत है ॥ ४९ ॥ उदाहरण । द्वादशवर्गमें सूर्यकी राशिका स्वामी शनि स्थिर मैत्रीमें सूर्यका शत्रु है, इसलिये सूर्यके गृहमें नीचे २५० कला बल लिखा, एवं होराका स्वामी चन्द्र मित्र है सूर्य के इस कारण ५० कला बल होरामें लिखा, द्रेष्काणका स्वामी बुध शत्रु है इससे शत्रुका२५ कला बल द्रेष्काणमें, चतुर्थांशमें सूर्य स्वराशिका है, अतः स्वका १०० कला बल, एवं पंचमांशमें-पंचमांशका स्वामी गुरु मित्र है, अतएव मित्रका ५० कला बल और षष्ठांशका स्वामी चन्द्र भी मित्र है, इसलिये षष्ठांशमें भी५० कला बल लिखा और सप्तमांशका स्वामी शत्रु है अतः सप्तमांशमें शत्रुका भी२५ कला बल, अष्टमांशका स्वामी भौम मित्र है इसलिये अष्टमांशमें मित्रका ५० कला बल । नवांशका स्वामी गुरु मित्र है इससे नवांशमें मित्रका बल५०कला और दशांशका स्वामी शनि सूर्यके शत्रु है इसवास्ते दशांशमें शत्रुका २५कला बल लिखा और एकादशांशका स्वामी गुरु मित्र तथा द्वादशांशका स्वामी सूर्य स्वका है, इसलिये एकादशांशमें मित्रका ५० कला बल और द्वादशांशमें स्वका १०० कला बल लिखा । यह द्वादशवर्ग बल हुआ,इसका योग किया ६०० आये ६० साठका भाग दिया लब्ध १०१० विशीपकात्मक सूर्यका द्वादशवर्ग बल हुआ। ऐसे ही शेष चन्द्रादिग्रहोंका द्वादशवर्गबल जानना ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । (१२९) o n .. . - * स्थिरमैत्रीवशात् द्वादशवर्गबलचक्रम्. र. चं. | मं. । बु. | गु. । सु. | . ५ देष्काण. || २ || २ | 3:13. | ४ ४ चतुर्थीक. । ५ . पंचमांच. पष्ठांश. | २४ २:: ||२४| • सप्तमांच. २५। :: :: २०१० पत्रांचा. : : एकादवांच. || २१|२४|| २ | बाकांव. एकादशांचा. योग, विंशोपकात्मकचलम्. ४५ म. म. म. म. म. म. म. बल. | स्वभस्वोच्चान्यतरस्थितौ ग्रहस्य प्रथम हर्षपदम् ॥ ५॥ स्वराशि वा अपनी उच्चराशिमेसे कोई भी राशिका जो यह हो (ग्रह स्वराशिका हो वा अपनी उच्चराशिका हो)वो उस ग्रहका प्रथम हर्ष-पद होता है ॥ ५० ॥ गोत्रिषटक्वीशबाणांत्यगेषु सूर्यादिषु द्वितीयम् ॥५१॥ सूर्यको आदि ले गो ९, त्रि ३, षट् ६, कु १, ईश ११, बाण ५ अन्त्य १२ बारहवें स्थानमें यथाक्रम ग्रह स्थित हो तो द्वितीय हर्षपद होता है, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३०) वर्षपदीपकम् । अर्थात् सूर्य ९, चन्द्र ३, मङ्गल ६, बुध १, गुरु ११,शुक्र ५, शनि १२ में स्थानमें हो तो दूसरा हर्षपद होता है ॥ ५ ॥ सूर्यारेज्या नराः शेषाः स्त्रियः ॥५२॥ सूर्य, मङ्गल, गुरु पुरुषग्रह, शेष (चन्द्र, बुध, शुक्र, शनि) स्त्रीयह जानना ॥ ५२॥ दिने पुमान रात्रौ स्त्री तृतीयम् ॥५३॥ दिनमें वर्ष प्रवेश हो वो पुरुषग्रह, रात्रिमें स्त्रीग्रह बलवान् जानना और तृवीय (वीसरा) हर्षपद होता है ॥ ५३॥ .... तुर्यभतस्त्रिषु त्रिषु नृस्त्रियौ तुर्यम् ॥ ५४॥ चतुर्थभावसे तीन तीन स्थानमें पुरुषग्रह और स्वीग्रह स्थित हो तो चतुर्थ हर्षपद होता है, अर्थात् ४।५।६। पुरुषग्रह, ७ । ८। ९ स्त्रीग्रह, १० । ११ । १२ पुरुषग्रह, १ । २।३ स्त्रीग्रह स्थित हो तो ४ हर्षपद जानना चाहिये ॥ ५४॥ चतुर्वेषु प्रत्येकं पंचविंशोपका बलम् ॥५५॥ इति बलाध्यायस्तृतीयः॥ ३ ॥ इन चार ही हर्षपदोंमें प्रत्येक (एक एकके प्रति) के पांच पांच विंशोपका बल जानना चाहिये ॥ ५५॥ ____ हर्षपदचक्रम्. । 10. प्रथम. . . . . द्वितीय. ५० ५० ५०० तृतीय. ५.० ५००० ५ चतुर्थः । १०/ १०/० ५ ५ ५ । योग.] उदाहरण । यहां शुक्र उच्चराशिका है, इसलिये प्रथम हर्षपदमें यह बलवान् हुआ। सूर्यको आदि ले कोई ग्रह द्वितीय हर्षपद स्थानोंमें नहीं है, अतः द्वितीय हर्षपद किसीका नहीं आया । दिनमें वर्षप्रवेश हुआ है इससे पुरुषग्रह (सूर्य मंगल गुरु) तूंतीयहर्ष बलदावा हुए । एवं चतुर्थस्थानसे वीन वीनमें पुरुष स्त्री यह देखनेसे ८ आठमें शनि स्त्री ग्रह और१०।११ में सूर्य मंगल पुरुषग्रह स्थित हैं, ये चतुर्थ हर्षपदमें बली हुए ॥ । इति श्रीज्योतिर्विद्वरश्रीमन्महादेवकृतवर्षप्रदीपिकाख्यताजिकग्रन्ये तदङ्गजश्रीनिवासविरचितायां सोदाहरणमाषाग्याल्पायां बलसाधनाध्यापस्वतीपः ॥३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । (१३१) अथ दृष्टिसाधनमाह। पश्योनदृश्ये द्विदिग्भशेषे तद्विनांशा अर्धास्तिथिशुद्धास्तथा व्यंकशेषे भोग्यांशा एव वेदाष्टशेषे च सार्दा अंशाः पञ्च वेदतः शुद्धास्तथैव तकधिशेषेऽशा द्विनाः षष्टिशुद्धाः कलाद्या दृष्टिरन्यः तदभावः ॥१॥ पश्यग्रहको हीन करना, दृश्यग्रहमेंसे दो २ राशि १० दशराशि शेष बचे तो राशिके विना अंशोंको आधे करना और १५ पंदरहमेंसे शोधना । ऐसे ही तीन ३ राशि,९नवराशि शेष बचे तो अंशाको तीस से शोधना, एवं ४ राशि, ८ आठराशि शेष बचे तो राशि विना अंशोंको ड्योढ़ा ( अंशोंको आधे करके उन्हीं अंशोंमें मिलाना ) करना और ४५ पैंतालीसमेंसे शोधना। इसी प्रकार ६ छः राशि अथवा शून्यराशि शेष बचे तो राशि विना अंशोंको दोगुणे कर ६० साठमेंसे शोधनेसे कलादिक दृष्टि होती है और इन उक्त राशियोंसे अन्य राशि शेष बचे तो दृष्टिका अभाव ( दृष्टि नहीं ) जानना ॥ १ ॥ ३ १० दृष्टिचक्रम् । । ९ । ४ । ८ ० । ६ अंशा- | अंशा- | अंशा- | अंशा- | अंशा- अंशा- | अंशा- अशाऽर्धा | | ३०/ ३० । डेढा | डेढा दिगुणा दिगुणा १५ शु. | १५शु. | शु. | शु. ४५ शु/४५ शु. | ६० शु. ६०शु. ! --- -- १ जिस ग्रहपर दृष्टि करना हो वह दृश्य, जो देखता हो वह पश्य कहलाता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IN०० ...| | 2 (३२) वर्षप्रदीपकम् । उदाहरण । । ग्रहोपरिग्रहाणां दृष्टिचक्रम् ।। दृश्य सूर्य १० । १६ । ५३ । र । चं! मं । बु । गु शु | स ३९ मेंसे पश्य चन्द्र १०।। २२ । ५६ को हीन किया, शेष ० । १६ । ३० । ४३ बचे, इसके राशि विवा अंशादिक १६ । ३० । ४३ को द्विगुण किये वो . ३३।१।२६ हुए, इनको ६० मेंसे सोधे तो २६ । ५९ कलादिक ३० सूर्यपर चन्द्रकी दृष्टि हुई । इसी वरह कमसे सर्व ग्रहोंपर ग्रहोंकी दृष्टि जानना और भावपर दृष्टि करना हो वो भावदृश्य ग्रहपश्य: समझके दृष्टि करे वो भावोपरि . ग्रहोंकी दृष्टि होती है। ४८ ४१ इति दृष्टिसाधनाध्यायश्चतुर्थः ॥४॥ अथ सहमाऽध्यायः। सर्वत्र सहमसाधने शुद्ध्याश्रयतः शोध्यहीने क्षेपकयुक्त सहमसिद्धिः ॥१॥ सर्व सहमसाधनेमें शुद्ध्याश्रयमेंसे शोध्यको हीन करके क्षेपक युक्त करे वो सहम सिद्ध होता है ॥ १ ॥ शोध्यभादेरारभ्य शुद्धयाश्रयभादितोऽर्वाक् क्षेपाभावे सिद्धसहमभं सैकं कार्यम् ॥२॥ शोध्यकी राशि अंशको आदिले शुझ्याश्रयकी राशि-अंशके पहले क्षेपककी १ जिसमें से हीन करना कहा हो वह शुद्धयाश्रय और जिसको हीन करनेको कहा है वह शोध । |• • • • गु | Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मापाटीकासहितम् । (१३३) राशि नहीं आवे तो सिद्धसहमकी राशिमें एक युक्त करना, अर्थात् शुद्ध्याश्रय और शोध्यके बीचमें क्षेपक नहीं आवे तो एक मिलाना ॥२॥ क्षेपकानुक्तौ लग्नं योज्यम् ॥ ३॥ जिस सहमसाधनमें क्षेपक नहीं कहा हो उसमें लग्न युक्त करना ( लमको क्षेपक समझना) ॥ ३॥ समयानुक्तौ रात्रौ शोध्यशोधको व्यस्तो कायौँ ॥४॥ जिस सहमसाधनमें समय नहीं कहा हो उस सहमके साधनमें रात्रि वर्षप्रवेश हो तो शोध्यशोधकको व्यस्त ( उलटे ) करना अर्थात् शोध्यको शुद्ध्याश्रय और शुद्धयाश्रयको शोध्य मानके सहम करना ॥ ४॥ सूर्योने चन्द्रे पुण्यसहमः॥५॥ चन्द्रमेंसे सूर्यको हीन करनेसे पुण्यसहम होता है ॥ ५॥ चन्द्रोनार्के गुरुज्ञानज्ञातिसहमानि ॥६॥ चंद्रमाको सूर्यमेंसे हीन करनेसे गुरु, ज्ञान, ज्ञाति सहम होते हैं ॥ ६॥ पुण्योनेज्ये यशोदेहसैन्यघातम् ॥७॥ गुरुमेंसे पुण्यसहमको हीन करनेसे यश, देह, सैन्य और घातसहम होते हैं ॥ ७॥ पुण्योनज्ञाने शुक्रान्विते मित्रम् ॥ ८॥ पुण्यसहमको ज्ञानसहममेंसे हीन करके शुक्र मिलानेसे मित्र सहम होवा है ॥ ८॥ कुजोनपुण्ये माहात्म्यधैर्यशौर्यम् ॥ ९ ॥ पुण्यसहममेंसे मंगलको हीन करनेसे माहात्म्य, धैर्य, शौर्य सहम होते हैं ॥ ९ ॥ शुक्रोनमन्दे इच्छा ॥ १०॥ शुक्रको शनिमेंसे हीन करनेसे इच्छा सहम होता है ॥ १० ॥ लग्नशोनारे सामर्थ्य चेदंगेशो भौमस्तदा जीवाच्छोधनीयः ॥११॥ लग्न के स्वामीको भौममें से हीन करनेसे सामर्थ्य सहम होता है,यदि लग्नेश्वर भौम ही हो तो गुरुमेंसे लग्नेश्वरको हीन करना चाहिये ॥ ११ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३४) वर्षप्रदीपकम् । सदा मंदोनजीवे भ्राता ॥ १२॥ सदा अर्थात् दिनरात्रिमें गुरुमेंसे शनिको हीन करना भाता सहम होवा है ॥ १२॥ दिने चन्द्रोनेज्ये सार्के रात्रावर्कोनजीवे सेन्दौ गौरवम् ॥१३॥ दिनका इष्ट हो तो गुरुमेंसे चन्द्रको हीन करना और सूर्ययुक्त करना, रात्रिका इष्ट हो तो गुरुमेंसे सूर्यको हीन करना और चन्द्र युक्त करनेसे गौरवसहम होता है ॥ १३ ॥ भानूनार्कजे राजतातौ ॥ १४ ॥ ‘शनिमेंसे सूर्यको हीन करने ( निकालने ) से राज और वात (पिता) सहम होते हैं ॥ १४ ॥ शुक्रोनेन्दौ माता कान्तिश्च ॥ १५॥ चन्द्रमेंसे शुकको निकालनेसे मावा और कान्ति सहम होते हैं ॥ १५ ॥ इज्योनमन्दे जीवितोपायौ ॥१६॥ शनिमेंसे गुरुको हीन करनेसे जीवित और उपाय सहम होते हैं ॥ १६॥ ज्ञोनारे कर्म ॥१७॥ भौममेंसे बुधको घटानेसे कर्मसहम होता है ॥ १७ ॥ सदा चन्द्रोनांगे रोगः ॥ १८॥ दिनका इष्ट हो वा रात्रिका सदा ही लग्नमेंसे चन्द्रको हीन करनेसे रोगसहम होता है ॥ ३८॥ लग्रेपोनेन्दौ कामः काँगे तु सदा लग्नेशोनार्के ॥ १९॥ चन्द्रमेंसे लग्नके स्वामीको हीन करनेसे कामसहम होता है और कर्क लग्न हो तो सदा ( दिन रात्रिमें ) सूर्यमेंसे लग्नेशको हीन करनेसे कामसहम होता है ॥ १९॥ वक्रोनेज्ये कलिक्षमे ॥२०॥ गुरुमेंसे मंगलको हीन करनेसे कलि और क्षमा सहम होते हैं ॥२०॥ ... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । (१३५) मन्दोनेज्ये ज्ञान्विते शास्त्रम् ॥२१॥ गुरुमेंसे शनिको हीन करना बुध मिलानेसे शास्त्रसहम होता है ॥२१ ॥ सदा चन्द्रोनशे बंधुः ॥२२॥ दिनका इष्ट हो वा रात्रिका सदा ही बुधर्मेसे चन्द्रको हीन करे वो बन्धु सहम होता है ॥ २२ ॥ ज्ञोनेन्दौ पराश्रयः ॥२३॥ चन्द्रमेंसे बुधको हीन करनेपर पराश्रय सहम होता है ॥ २३ ॥ सदा चन्द्रोनाष्टमे मन्दान्विते मृतिः ॥२४॥ दिनका इष्ट हो वा रात्रिका सदा चन्द्रको हीन करना और अष्टम भावमेंसे शनियुक्त करनेपर मृत्यु सहम होता है ॥ २४ ॥ सदा धर्मेशोनधर्मे धनेशोनधने लाभेशोनलाभे देशान्तरधनलाभाः २५ दिनका इष्ट हो वा रात्रिका सदा ही नवम भावमेंसे नवम भावके स्वामीको हीन करना, धनभावमेंसे धन भावके स्वामीको हीन करना, लाभभावमेंसे लाभभावके स्वामीको हीन करना देशान्तर १ धन २ लाभ ३ सहम होते हैं ॥ २५॥ सदा सूर्योनभृगौ परांगना ॥२६॥ दिनका इष्ट हो वा रात्रिका सदा ही शुक्रमेंसे सूर्यको हीन करनेसे परांगना (परस्त्री) सहम होता है ॥ २६ ॥ मन्दोनेन्दौं दास्यम् ॥२७॥ चन्द्रमेंसे शनिको हीन करना दास्य सहम होता है ॥ २७ ॥ सदा बुधोनचन्द्रे वाणिज्यम् ॥२८॥ सदा (दिनरात्रमें)चन्द्र से बुधको हीन करना वाणिज्यसहम होता है ॥२८॥ दिवार्कोनमन्दे सूर्यभपयोगे रात्री चन्द्रोनमन्दे चन्द्रःशयोगे कार्यसिद्धिः॥२९॥ दिनका इष्ट हो तो शनिमेंसे सूर्यको हीन करना और उसमें सूर्यकी राशिका स्वामी मिलाना, रात्रिसमयका इष्ट हो तो शनिमेसे चन्द्रको हीन करना और उसमें चन्द्रकी राशिका स्वामी मिलानेपर कार्यसिद्धि सहम होता है ॥ २९ ॥ १ जिस राशिमें स्थित हो उस राशिका स्वामी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्षप्रदीपकम् । कोणोनशुके विवाहभायें ॥३०॥ शुक्रमेंसे शनिको हीन करनेपर विवाह और भार्या (स्त्री ) सहम होवे हैं ॥ ३०॥ ज्ञोनेज्य आधानम् ॥३१॥ गुरुमेंसे बुधको हीन करनेसे आधान ( गर्भ ) सहम होता है ॥ ३१ ॥ सदा चन्दोनमन्दे षष्ठान्विते सन्तापः ॥३२॥ दिनका इष्ट हो वा रात्रिका सदा शनिमेंसे चन्द्रको हीन करना और उनमें ६ छठा भाव मिलानेसे सन्ताप सहम होता है ॥ ३२ ॥ सदा भौमोनसिते श्रद्धा ॥ ३३ ॥ दिनका इष्ट हो वा रात्रिका सदा शुक्रमेंसे भौमको हीन करनेसे श्रद्धासहम होवा है ॥३३॥ सदा पुण्योनज्ञाने प्रीतिः ॥ ३४॥ सदा दिनका इष्ट हो वा रात्रिका ज्ञान सहमोमेंसे पुण्य सहमको हीन करना प्रीति सहम होता है ॥ ३४॥ मन्दोनारे ज्ञान्विते जाज्यम् ॥३५॥ . मंगलमेंसे शनिको हीन करना और उसमें बुध युक्त करे तो जाड्य सहम होता है ॥ ३५॥ शश्वज्ज्ञोनारे व्यापारः ॥ ३६॥ सदा (दिनरात्रिके इष्टमें) भौममेंसे बुधको हीन करे तो व्यापार सहम होता है ॥ ३६॥ चन्द्रोनार्कजे जलपातः॥३७॥ शनिमेंसे चन्द्रको हीन करे तो जलपाव सहम होता है ॥ ३७॥ अर्कजोनभौमे शत्रुः ॥३८॥ भौममेंसे शनिको हीन करे तो शत्रु सहम होता है ॥ ३८॥ बुधोनपुण्ये ज्ञान्विते दारिद्रयम् ॥३९॥ पुण्य सहममेसे बुधको निकालने और उसमें बुध युक्त करनेपर दारिद्रय सहम होता है ॥ ३९ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३७) भाषाटीकासहितम् । शश्वञ्चन्द्रोनजीवशुक्रयोः पुत्रौ ॥१०॥ दिनका इष्ट हो वा रात्रिका सदा चन्द्रको हीन करना, गुरु और शुक्रमेंसे पुत्र पुत्री सहम होते हैं अर्थात् गुरुमेंसे चन्द्रको हीन करे तो पुत्रसहम और शुक्रमेंसे चन्द्रको घटावे तो पुत्रीसहम होता है ॥ ४० ॥ दिनेऽर्कोनस्वोच्चे रात्री चन्द्रोनस्वोच्चे मंडलेशः॥४१॥ दिनका इष्ट हो तो सूर्यको हीन करना अपने उच्च ( ० रा. १० अं० ) में से रात्रिसमयका इष्ट हो वो चन्द्रको हीन करना अपने उच्च (१ रा०३ अं०) मेंसे मंडलेशसहम होता है ॥ ४१॥ मन्दोनसाईत्रिमे जलपथः॥४२॥ शनिको हीन करना साढे तीन राशि ( ३ राशि १५ अंश) मेंसे जबपथसहम होता है ॥४२॥ मन्दोनपुण्ये बन्धनम् ॥ ४३॥ पुण्यसहममेंसे शनिको हीन करे वो बन्धन सहम होता है ॥ ४३ ॥ अर्कोनपुण्ये लाभान्वितेश्वः ॥४४॥ पुण्यसहममेंसे सूर्यको हीन करने और उसमें लाभ ११ वां भाव मिलाना अश्वसहम होगा ॥४४॥ सदा जीवोनेन्दौ गजः॥४५॥ सदा (दिनका इष्ट हो वा रात्रिका) चन्द्रमेंसे गुरुको हीन करे तो गजसहम होता है ॥ ४५॥ रिपुसहमोनांत्ये पशुः॥४६॥ १२ बारहवें भावमेंसे शत्रुसहमको हीन करे तो पशुसहम होता है ॥४६॥ शश्वत्कोणोनाङ्गारयोर्व्यसनकृषी ॥४७॥ दिनका इष्ट हो वा रात्रिका सदा शनिको लग्न और मंगलमेंसे हीन करनेसे व्यसन और कृषिसहम होता है अर्थात् लग्नमेंसे शनि हीन करनेसे व्यसन और भौममें से शनि हीन करनेसे कृषिसहम होता है ॥ ४७ ॥ सदा पुण्योनार्कजे मंदयुते बन्धमोक्षः ॥४८॥ सदा (दिनरात्रिमें ) पुण्य सहमको शनिमेसे हीन करना और उसमें शनि युक्त करनेसे बन्ध और मोक्ष सहम होता है ॥४८॥ सदेज्योनपुण्ये सारे दुःखम् ॥१९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३८) वर्षपदीपकम् । सदा ( दिनरात्रिके इष्टमें) पुण्यसहममेंसे गुरुको हीन करने और भौम मिलानेसे दुःख सहम होता है ॥ ४९ ॥ कुजोनमंदे उष्ट्रः ॥५॥ शनिमेंसे मंगलको निकालनेसे उष्ट्रसहम होता है ॥ ५० ॥ मंदोनार्के पितृव्यः॥५१॥ सूर्यमेंसे शनिको हीन करनेसे पितृव्यसहम होता है ॥ ५१ ॥ षष्ठेशोनषष्ठे सान्त्ये आखेटः ॥५२॥ छठे भावमेंसे छठे भावके स्वामीको हीन करके बारहवां भाव मिलानेसे आखेट (शिकार) सहम होता है ॥ ५२ ॥ ज्ञानेन्दौ भृत्यः ॥५३॥ बुधको चन्द्रमेंसे हीन करनेसे भृत्य सहम होता है ॥ ५३ ॥ अर्कोनेज्ये बुद्धिः॥५४॥ सूर्यको गुरुमेंसे हीन करनेसे बुद्धिसहम होता है ॥ ५४ ॥ सदा तुर्येशोनलग्ने निधिः॥५५॥ दिनका इष्ट हो वा रात्रिका सदा चतुर्थ भावके स्वामीको लग्नमेंसे हीन करनेसे निधि सहम होता है ॥ ५५ ॥ सदा शुकोनकोणे ऋणम् ॥५६॥ सदा दिनरातके इष्टमें शनी से शुक्रको हीन करनेसे ऋणसहम होता है ॥ ५६ ॥ सदा बुधोनेन्दौ सत्यम् ॥ १७ ॥ सदा (दिनरात्रिमें) बुधको चन्द्रमेंसे हीन करनेसे सत्यसहम होता है ॥५७॥ स्वेशेन शुभेन वाऽब्देशन वा युतं दृष्ट वा सहम स्वेशपाके वृद्धिमन्यथा विपरीतम् ॥१८॥ जो सहम अपने स्वामीसे अथवा शुभग्रहसे वा वर्षेश्वरसे युक्त हो वा दृष्ट हो तो वह अपने स्वामीकी दशामें फलवृद्धि करता है और विपरीत हो तो विपरीत फलकी वृद्धि करता है, अर्थात् अपने स्वामीसे शुभयहसे वा वर्षेश्वरसे युक्तका दृष्ट नहीं हो तो वह विपरीत ( उलटा ) फलकी वृद्धि अपने स्वामीकी दशामें करता है ॥ ५८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । (१३९ ) प्रथमं जन्मकालिकं सद्मबलाबलं जानीयात् ॥ ५९॥ प्रथम जन्मसमयमें सहमोंका बल निर्बल जानना ( जन्मसमयमें सब सहम करना, अनंतर जन्मकुंडलीमें देखना जो सहम अपने स्वामीसे, लग्नेश्वरसे और शुभग्रहसे युक्त हो वा दृष्ट हो ६। ८ । १२ वांआदि दुष्टस्थानके सिवाय शुभस्थानमें स्थित हो वह बलवान् जानना और इससे विपरीत ही वह निर्बल जानना)॥ ५९॥ तत्र यानि बलीयांसि तेषामेव संभवाः॥६०॥ जन्मसमयमें जो जो सहम बलवान हों उन्हीं सहमोंका संभव जानना ॥६०॥ प्रतिवर्ष सम्भवतापनान्येव कार्याणि नेतराणि, नैष्फल्यात् ॥६॥ प्रतिवर्ष ( हरवर्ष ) जिन जिन सहमका जन्म समयमें सम्भव आया हो वे ही सहम करना, जिनका सम्भव नहीं है वे सहम निष्फलदाता हैं इसलिये नहीं करना ॥ ६१॥ प्रश्ने प्रच्छकेष्टकार्यसहम कार्यम् ॥ ६२॥ इति सहमाऽध्यायः पंचमः ॥ ५ ॥ प्रश्नसमयमें पूछनेवालेका जो अभीष्टकार्य हो वह सहम करना ॥ ६२॥ उदाहरण। यहां दिनमें वर्षप्रवेश हुआ है इस कारण सूत्रमें कहे हुए शोध्य सूर्य १० । १६ । ५३ । ३९ को शुद्ध्याश्रय चन्द्र १० । ० । २२ । ५६ मैसे घटाया तो ११ । १३ । २९ । १७ शेष बचे, इसमें क्षेपक नहीं कहा है इसलिये लग्न १ । १२।२६ । ३५ युक्त किया तो • । २५ । ५५ । ५२ यह पुण्य सहम सिद्ध हुआ। शोध्य सूर्यकी राशि १० अंश १६ को आदि ले शुद्ध्याश्रय चन्द्रकी राशि १० अंश • पर्यंत गिननेसे क्षेपक ( लग्न ) की राशि १ वृषभ बीचमें आ गयी है इसलिये सिद्ध सहमकी राशिमें १ एक युक्त नहीं किया,इसी प्रकार शेष सहम जानना. अथ कतिचित्सहमाः इच्छा पुत्र राज्य धन लाभ शत्रु | रोग जीवि २८ | ५७।१८ १८ । २७ १० | २४ २ ४५ ५० ३ । ३० ३ १८.४६ | ३४ । ५५ । १४ । ४०१२ । १४। ३९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com १ गुरु यश देपुण्य ज्ञान इ सैन्य ज्ञाति घात चं पुण्य सू चं चं 24 स ल २ ३ ४ २२ सू सू चं ल धन लाभ. ल. पुण्य ज्ञान ग गु पुण्य परान ङ्गना. २ प. ११५. सु. २ मा. ११ भा. ए. २ प. ११५. सू. २ भा. ११ भा.सु. ल मिश्र ल. सू श श गु सू सु. दि. च. ए. + लग्नेशचंद्र होतो सदा गुरुमेंसे हीन करना. २३ २४ २५ २६ २७ २८ २९ ३० ३१ वाणि ज्य पुण्य ज्ञान पुण्य शुक्र दास्य. श. ... ཐ घ. पुण्य D-3D ल. ५ माहा त्म्यधैर्य, इच्छा सामर्थ्य भ्राता गौरव शौर्य मं ल चं.. 9. ६ 19 चं मं शु (a) ka ल. घु श स. ल. प. ल ल W चं मं x 1 म ल. प. .प. रा. ८ कार्य विवाह आधा सिद्धि. भार्या. न. श. उ. 4. प. ल. श गु श गु ९ ल अथ सहमसारणीकोष्टकम् | ?? १२ १३ १४ माता जीवित कर्म रोग कांति उपाय चं गु १० राज तात श. संताप श्रद्धा. ल. ६ भा. ल খেএ बु. चं. गु. श. शु. ज्ञान. Custome गु. चं. मं शु. शु च चं श अ ग ल ल. मं. पुण्य. ३२ ३३ गु श प्रीति, जाङय. ल. पुण्य. मं. ཐ ज्ञान श मं ४. बुध. चं मं चं अ मं. 118 श. पु. च. मं. मं. अ ल ल ३४ ३५ व्य:- जलपार, पात. श. ལ ། ཟ १५ ल. काभ ल. प. चं * घ ल.प. १६ कलि क्षमा म गु गु मं ल ल + कर्कलग्नहोतो सदा लग्नेशको सूर्यमेंसे हीन करना. ३८ ३९ ४० ४१ मंड छ. ३७ दात्रु शरिय श. दु. म. पुण्य. मं. पुण्य. श. बु. १७ १८ १९ २० २१ संख्य देशां- सहमनाम. तर नामतुल्यफलम् शास्त्र बंधु पराश्रय मृति चं श गु गु श बुध चं चं. बु ल पुत्र पुत्री. चं. शु. छं गु. चं. . गु. बुध. 6. छ. थ नु ཐ चं चं दु ल लेश. १ रा. चं अष्टम. चं अष्टम शनि सू. ० रा. ३रा. १० भं. १५अं. चं. ३ अं. छ. ९.१ शोध्य ९ मा शुध्याश्रय ९ प शोध्य ९ मा शुध्याश्रय क्षेपक जल पथ. ! ३ रा. १५ अं. ल ४२ बंधन. शोध्य. शुध्याश्रय. पुण्य. पुण्य.! शोध्य. छ. छ. श. . संख्या. सहमनाम वुल्य फलम्. शुध्याश्रय. दिवा क्षेपक. रात्री दिवा. रात्रौ | सदा. (१४०) वर्षप्रदीपकम् । Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । (१४१) अथ सहमसारणीकोष्टकाः ४९ /५० | ५१ / ५२ | ५३/५४ ५५/५६/५७ / संख्या मृत्य बुद्धि निधि ऋण. सत्य सहमनाम तुल्यफलं गु-पत्रुस श. अ. मा। ४स्वा दिवा इति श्रीज्योतिर्विद्वरश्रीमन्महादेवकृतवर्षदीपकाख्यताजिकग्रन्थे .तदात्मजश्रीनिवासविरचितायां सौदा हरणभाषाव्याख्यायां सहमसाधनाध्यायः पञ्चमः ॥५॥ अथाब्देशनिर्णयः। दिनेऽर्कशुक्रार्किसितेज्यचन्द्रज्ञारार्किभौमेज्यचन्द्रा रात्रौ जीवेन्दुज्ञाराकसितार्किशुक्रमन्दारेन्यचन्द्रा मेषादित्रिराशिपाः॥३॥ अब वर्षेश्वरका निर्णय कहते हैं-दिनमें सूर्य, शुक्र, शनि, शुक्र, गुरु, चन्द्र, बुध, मंगल, शनि, मंगल, गुरु, चन्द्र, रात्रिमें गुरु, चन्द्र, बुध, मंगल, सूर्य, शुक्र, शनि, शुक्र, शनि, मंगल, गुरु, चन्द्र, मेषराशिको आदि ले क्रमसे त्रिराशिपति जानना ॥१॥ अथ विराशिपतिचक्रम्. मे.. | मि. क. सि.क.उ..घ.म..मी. २३/४/५/६/-0 .. LA जन्मांगेशो वर्षांगेशस्तत्रिराशिपो मुन्थेशो दिनेऽभेशो निशीन्दुभेशश्चेति पंचाधिकारिणः ॥२॥ जन्मलनका स्वामी १, वर्षलनका स्वामी २, वर्षलयका त्रिराशिपवि ३, मुंथाका स्वामी ४, दिनमें सूर्यकी राशिका स्वामी और रात्रिमें चन्द्रकी राशिका स्वामी ५ ये पांच अधिकारी जानना ॥२॥ १ वर्षलग्न जिस राशिका हो उसका दिनमें वर्ष-प्रवेश हो तो दिनका, गनिमें रात्रिका :निपतिपति देखना। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४२) .. वर्षप्रदीपकम् । एषां बलाधिकोऽङ्गद्रष्टा वर्षेशः॥३॥ इन पञ्चाधिकारियोंमें जो ग्रह अधिक बलवान होके वर्षलगको देखता हो वह वर्षेश्वर होवा है ॥ ३ ॥ बलसाम्ये तु दृष्टयाधिकः॥४॥ अनेक ग्रहका बल समान (बरोबर ) हो तो जिसकी लमपर दृष्टि अधिक हो वही वर्षेश्वर होगा ॥ ४॥ उभयसाम्येऽधिकाधिकारी ॥५॥ अनेक ग्रहोंका बल और लमपर दृष्टि दोनों समान ( बरोबर ) हो तो जिस ग्रहका अधिकार ज्यादा आया हो वह वर्षेश्वर होगा ॥५॥ त्रितयसाम्ये मुन्थेशः॥६॥ बल दृष्टि अधिकार यह तीनों समान हों तो मुन्थेश ही वर्षेश होगा ॥६॥ पञ्चानामपि मध्ये कोऽपि नांगं पश्येत्तदा मुन्थेशवर्षलग्नेशौ यश्चोक्ताधिकार्यतःपाती तदितरोऽपि जनुस्समये वर्षागराशिद्रष्टा भवेत्तदैतेषां योऽधिकबलः स वर्षेशः॥७॥ पांचों अधिकारियोंमेंसे कोई भी वर्षलग्नको नहीं देखते हों वो मुन्थेश, वर्षलग्नेश और दोनोंसे अन्यग्रह जो वर्षमें अधिकारी होकर जन्मकुंडलीमें वर्षलग्नकी राशिको देखता हो तो इन तीनों से जो अधिक बली हो वही वर्षेश होगा ॥ ७ ॥ त्रयाणां बलसाम्ये मुन्थेशः ॥ ८॥ तीनों अधिकारियोंका बल समान ( बरोबर ) हो तो मुन्थेश ही वर्षेश होगा ॥ ८॥ उक्तरीत्या चन्द्रस्याब्दपतित्वप्राप्तौ तदित्थशालिनोऽब्दपत्वमन्यथा तद्भेशस्येत्येके ॥९॥ उक्त रीविसे चन्द्रको वर्षेशत्व प्राप्त हो वो (चन्द्र वर्षेश होवा हो तो) चन्द्रसे जो ग्रह इत्थशाल करवा हो वो वही वर्षेश होगा, और कोई ग्रह इत्थशाल नहीं करता हो तो चन्द्रकी राशिका स्वामी वर्षेश होगा, यह किन्हीं भाचााँका मत है ॥९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । ( १४३ ) वर्षांगेशो राजा समयेशः सेनापतिर्मुन्थेशो मन्त्री जन्मांगेशः पुरेशस्त्रिराशिपो रससस्यधात्वधिप इत्येके ॥ १० ॥ इत्यब्देशनिर्णय|ऽध्यायः ॥ ६ ॥ वर्षलश राजा समयपति सेनाधिप मुन्थेश मन्त्री जन्मलग्नेश पुराधिप त्रिराशिपति रस धान्य धातु इनका अधिपति होता है यह किन्हीं आचार्योंका मत है ॥ १० ॥ उदाहरण | इन पांचों अधिकारियोंमें शुक्र अधिक बली है और वर्षलनको मित्रदृष्टिसे देखता है, इसलिये वर्षेश्वर शुक्र पूर्ण बली हुआ. इति श्रीज्योतिर्विद्वर- श्रीमन्महादेवकृतवर्षदीपके तदंगजश्रीनिवासविरचितायां सोदाहरणभाषाव्याख्यायामब्देशनिर्णयाध्यायः षष्ठः ॥ ६ ॥ पंचाधिकारी. जन्मल. रा. प. श. वर्षल रा.प. शु. त्रि. रा. प. शु. भुन्या. रा.प. शुः सूर्य रा.प. श. ८ म. ११ पू. ११ पू. ११ पू. अथ दशाविचारः । पू. सलग्नखेटानां मध्ये यो न्यूनांशो भवेत्तस्यांशादयः प्रथमं लेख्याः १ अब दशाविचार कहते हैं: -- लग्नसहित सूर्यादि सात ही ग्रहोंमें जो ग्रह न्यून (अल्प) अंशका हो उसके अंशादि (अंश कला विकला ) प्रथम लिखना ॥ १ ॥ ततस्तदधिकांशानामंशादयः क्रमशो लेख्याः ॥ २॥ फिर उस ( अल्प अंश ) के ग्रहसे अधिक अधिक अंशके ग्रहोंके अंशादिक क्रमसे लिखना (अल्प अंशके ग्रहसे अधिक अंशके ग्रहोंके अंशादिक लिखना, तदनंतर उससे अधिक अंशके ग्रहके अंशादिक, फिर उससे अधिक के अंशादिक लिखना, इस क्रम से सबसे अधिक अंशके ग्रहके अंशपर्यंत लिखना चाहिये ) ॥ २ ॥ इमे हीनांशसंज्ञकाः ॥३॥ उक्त प्रकार लिखे हुए ग्रहोंके जो अंशादिक हैं उनको हीनांशसंज्ञक जानना चाहिये ॥ ३ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४४) वर्षपदीपकम् । द्वयोरंशादिसाम्ये बलाधिकस्य पूर्वा दशा ॥४॥ दो ग्रहोंके अंशादिक (अंश कला विकला ) समान ( बरोबर ) हो तो उनमें से जो अधिक बलवान हो उसकी प्रथम दशा जाननी चाहिये (प्रथम उसके अंशादिक लिखना)॥४॥ बलसाम्येऽल्पगतिकस्य ॥६॥ दो ग्रहोंका बछ समान हो वो जो अल्पगविवाला ग्रह हो उसकी प्रथम दशा जानना ॥५॥ उदाहरण । यहां उनसहित सूर्यादि ग्रहोंमें सर्वसे न्यून अंश चन्द्र के हैं, अतएव चन्द्रके अंश कला २२ विकला ५६ पहले लिखे । चन्द्रसे अधिक अंशका बुध है इसलिये चन्द्रके अनंवर बुधके अंशादिक । ३५। ८ लिखे, एवं बुधसे अधिक भौम, भौमसे अधिक अंशादि शनिके इस क्रमसे अधिक अधिक अंशके ग्रह क्रमसे सर्वाधिकांश ग्रहपर्यंत लिखनेसे इस प्रकार हीनांश हुए। हीनांशाः। 2014 ३५३१५४ | ૧૬/૨૬ પરિક पात्यकृतौ प्रथमखेटस्य यथास्थितांशाः॥६॥ पात्यांश करनेके समय प्रथम ग्रहके (जो सर्व ग्रहसे अल्प अंशादिकका ग्रह हीनांशमें प्रथम लिखा है उसके) अंशादिक यथा स्थित (नो अंशादिक हो वे ही प्रथम ) लिखना ॥ ६॥ ततः प्रथम द्वितीयाद् द्वितीयं च तृतीयादित्यादि क्रमेण शोधयेत् ॥ ७॥ इमे पात्याः ॥८॥ तदनंतर प्रथम लिखे ग्रहके अंशादिकको दूसरे ग्रहके अंशादिकमेंसे, दूसरेके अंशादिकको वीसरे से, तीसरेके अंशादिकको चौथेमसे इस क्रमसे शोषवे जाना ॥ ७ ॥ ये पात्यांश कहलाते हैं ॥ ८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । (१४५) उदाहरण । हीनांशमें सबसे न्यून अंशका चन्द्र प्रथम लिखा है उसके अंशादि प्रथम वे ही ० । २२ । ५६ लिखे इनको आगे जो दूसरा ग्रह बुधके अंशादिक १ । ३५। ८ हैं उनमें से हीन किये तो १ । १२ । १२ शेष बचे, यह बुधक अंशादि हुए । तदनन्तर बुधके अंशादिक १ । ३५। ८ को तीसरे भौमके अंशादिक ७ । ३१ । ३६ मेंसे घटाये तो ५। ५६ । २८ शेष बचे, ये मंगलके हुए, फिर भौमके अंशादिकको चौथे शनिके अंशादिकमें से घटाय, एसे क्रमसे घटानेसे ये पात्यांश हुए, पात्यांशका ऐक्य सबसे अधिक अंश के ग्रहके अंशके समान आता है। पत्यांशाः। २५१२५६२३३१२७३/५/२] १६.१२/०८.२३३६ ४ १६५३४० वर्षदिनानि पात्यैक्येन भजेल्लब्धं दिनाचं ध्रुवम् ॥ ९॥ वर्षके दिनोंको ( ३६० को वा ३६५।१५। ३१ । ३० को) पात्यांशके ऐक्य (योग)का भाग देना जो लब्ध आवे वह दिनादिक ध्रव जानना॥९॥ उदाहरण। वर्षदिनादि ३६० । । • के पात्यांशयोग २५ । २। ४८ का भाग दिया परन्तु भाज्य भाजक दोनों दिनादिक हैं, इस कारण इनको सवर्णित किये भाज्य १२९६००० में भाजक पात्यांश योग ९०१६८ का भाग दिया लब्ध १४ दिन आये, शेष ३३६४८ बचे, इनको ६० साठ गुणे किये तो २०१८ ८८० हुए । इनमें ९०१६८ का भाग दिया लब्ध २२ घटी हुई, शेष ३५ २०४ बचे, इनको ६० साठ गुणे किये तो २११२२४० हुए, इनमें भाग ९०१६८ का दिया लब्ध २३ पल आये शेष ३८३७६ बचे, इनको ६० साठ गुणे किये तो २३०२५६० हुए इनमें ९०१६८ का भाग दिया लब्ध २५ विपल आया, इस प्रकार पात्यैक्यका भाग देनेसे दिनादिक १४ । २२ २३ । २५ ध्रुव आया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४६) वर्षप्रदीपकम् । ध्रुवेण स्वस्वपात्यांशा हता दिनाया दशा ॥ १०॥ दिनादिक ध्रुवसे अपने अपने पात्यांशको गुणन करनेसे दिनादिक दशा होती है ।। १० ॥ उदाहरण । जैसे-दिनादिका ध्रुव १४ । २२। २३ । २५ से चन्द्रकी पात्यांश ०।२२ । ५६ को गुणन किये तो ५। २९ । ३७ । हुए, यह दिनादिक चन्द्रकी दशा हुई । इसी प्रकार सब ग्रहोंके पात्यांशको गुणन करके लानेपर नीचे चक्रके अनुसार दिनादिक दशा आयीं । इसका योग वर्षदिनके समान (बरोबर ) ३६० । । ० आया है, इसलिये दशा शुद्ध समझना। दिनादिदशा स्पष्टाः। बु. | मैं. श. | ल. र. | गु. | शु. मास २७ - ३८ ५८ ५४ १९५६१९५६/१९५७१९५७१९५७/१९५७/१९५७१९५७ १९५७ संवत ५३ | २३ यस्य दशामानं पात्यांशैक्येन भक्तं तल्लब्धदिनायेन स्वस्वपात्यांशा हताः पाकेशतोऽन्तर्दशा दिनाद्याः॥ ११ ॥ जिस ग्रहमें अन्तर्दशा करना हो उसके दशामानमें (जितने दिनकी दशा हो उतने दिनकी संख्याको दशामान कहते हैं ) पात्यांशके ऐक्यका भाग देना, जो दिनादिक ध्रुव लब्ध आवे उसमे अपने अपने पात्यांशको गुणन करना । दशाके स्वामीको आदि ले (जिसमें अन्तर्दशा करना हो उस ग्रहकी प्रथम दशा उसके आगे जो ग्रह हो उसकी दूसरी दशा इस रीतिसे क्रमसे ) दिनादिक अन्तर्दशा जाननी चाहिये ॥११॥ मासष्ट करने के उदाहरण, जो गोमुनिका पुगाली गति लिली है उस तिते । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । (१४७) उदाहरण। यहां मंगलकी दशामें अन्तर्दशा करना है-मंगलकी दशा ८५दिन २३घटी ३३ पलकी है यह दशाका मान है, इसमें पात्यांशके ऐक्य २५ । २ । ४८ का भाग दिया, भाज्य भाजक सवर्णित किये और भाज्य ३०७४१३ में भाजक ९०१६८ का भाग देनेसे लब्ध दिनादिक ३ । २४ । ३३ ध्रुव हुआ, इससे प्रथम मंगलका पात्यांशगुणन किया तो २०१५।१५ आये, यह मंगल में मंगलकी दिनादिक अन्तर्दशा हुई । इसी प्रकार फिर क्रमसे शनि लन रवि गुरु आदिकरके पात्यांश गुणे किये भौममें अन्तर्दशा हुई। - भौममध्येऽतर्दशा। mia दिन घाट ३० २६ पल १९५६/१९५६,१९५७१९५७/१९५७/१९५७१९५७१९५७ १९५७ संवत २९ | ४. ५८ ४ ४४ १० । २२ । उत्ती-1 मार्क १८९ ५९ | २९ - -- अथ मुग्धादशामाह। जन्मभसंख्यायां गताब्दान्योजयेत् द्वरना नवोद्धताः शेषे सूर्येद्वारराह्विज्यमन्दज्ञकेतुशुकाणामेकादिक्रमतो दशायाः॥ १२॥ अब मुग्धा दशा कहते हैं-जन्मनक्षत्रकी संख्या में गताब्द संख्या मिलाना और उसमें २ दो घटाकर नवका भाग देना, जो शेष बचे मो क्रमसे १ सूर्य । २ चन्द्र ३ भौम ४ राहु ५ गुरु ६ शनि ७ बुध ८ केतु ९ शुक्रकी आय दशा जानना, अर्थात् एक बचे तो सूर्यकी, २ बचे तो चन्द्रकी, ३ वीन पचे दो भौमकी, इत्यादि कमसे आप दशा जानना ॥ १२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४८ ) वर्ष प्रदीपकम् | धृतित्रिंशदेकविंशति चतुःपञ्चाशदष्टचत्वारिंशत्र्यूनषष्टयेक पंचाशदेकविंशतिषष्टिसंख्यातानि सूर्यादीनां मुग्धादशादिनानि ॥ १३ ॥ धृति कहिये १८, त्रिंशत् ३०, एकविंशति २१, चतुःपञ्चाशत् ५४, अष्टचत्वारिंशत् ४८, त्र्यूनषष्टि ५७, एकपंचाशत् ५१, एकविंशति २१, षष्टि ६० संख्या दिन सूर्यादिग्रहों के मुग्धादशा के दिन जानना अर्थात् सूर्य १८, चन्द्रके ३०, मंगलके २१, राहुके ५४, गुरुके ४८, शनि के ५७, बुधके ५१, केतुके २१, शुक्र के ६० दिन मुग्धा दशाके दिन जानना ॥ १३ ॥ उदाहरण | जन्मनक्षत्र चित्राकी संख्या १४ में गताब्दसंख्या २८ युक्त किये तो ४२ हुए, इनमें से २ दो हीन किये शेष ४० बचे इनमें ९ नवका भाग दिया शेष ४ बचे एकको आदि ले क्रमसे गिननेसे ४ चौथी राहुकी ५४ दिनकी आय दशा हुई, अर्थात् राहुदशामें वर्षप्रवेश हुआ || भगणोनजन्मेन्दुलिप्ताः खखाष्टशेषिता आद्यदशा दिनहताः खाने भाता दिनादिभोग्यदशा ॥ १४ ॥ बारह १२ राशिमें से हीन किये हुए जन्मके चन्द्रकी कलोको ८०० आठसौका भाग देना, शेष बचे कलाको आद्य दशा ( सूत्र १२ के अनुसार आयी हुई दशा ) के दिनोंसे गुणन करना और ८०० आठसौका भाग देना लब्ध फल ४ आवे वह दिनादिक भोग्यदशा जानना ॥ १४ ॥ दशा दशाहताः षष्ट्यधिकत्रिंशतेनाप्ता अन्तर्दशा दिनाद्या मुग्धायाम् ॥ १५ ॥ इति दशाध्यायः । दशा दिनको दशा के दिन से गुणन करना और तीन सौ साठ ३६० का भाग देना, जो लब्ध आवे वह मुग्धादशामें दिनादिक अन्तर्दशा होती है ॥ १५ ॥ उदाहरण | जन्म समयका चन्द्रस्पष्ट ५ । २९ । १९ । ४९ इसको बारह राशि ' १ राशिको ३० गुणी करके अंश मिलानेसे अंश होता है और अंशको साठ गुणे करके कला मिलानेसे कळा होती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीका सहितम् । (989) मेंसे हीन किया तो ६ । ० । ४० । ११ हुए इसको कला १०८४० | ११ की, फिर इसमें ८०० आठसौका भाग दिया, शेष ४४० । ११ बचे । इससे आय दशा राहुकी आयी । उसके दिन ५४ से गुणे किये तो २३७६९/५४ हुए इनमें ८०० आठसौका भाग दिया लब्ध २९ दिन आये । शेष ५६९ । ५४ को ६० साठ गुणे किये तो ३४२९४ हुए फिर ८०० का भाग दिया, लब्ध घटी ४२ आयी, शेष ५९४ को फिर साठ ६० गुणे किये तो ३५६४० हुए ८०० का भाग दिया, लब्ध ४४ पल आया । शेष ४४० को फिर ६० साठ गुणे किये तो २६४०० हुए, ८०० का भाग दिया, लब्ध ३३ विपल आयी । ऐसे फल चार २९ । ४२ । ४४ । ३३ आये ये दिनादिक राहुकी स्पष्ट भोग्य दशा हुई । मास दिन रा.भो. गु. ० १ १८ ० २९ ४२ पल. ४४ ० विपल ३३ ० घाट. अथ मुग्वादशाचक्रम् । बु. के. १ २१ ० १० ११ १ १६ १६ ४ ५३ ३६ ३६ ३९ २३ २३ ३३ श. २७ ० ० ३६ २३ ३३ 0 • 0 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat २१ ० • ० शु. २ ० • ० र. ७ १३ ३६ २३ ३३ ३३ ० १८ चं. ● ० ० ० २१ - १९५६ १९५६ १९५७ १९५७ १९५७ १९५७ १९५७ १९५७ १९५७ १९५७ १९५७ ४ ८ ९ ९ १० २२ १३ १ १ २२ १६. ३६ ३६ ३६ ३६ ३६ २३ २३ २३ २३ २३ ३३ ३३ ० | रा.भु. १७. १५ २७ ३९ इति श्रीज्योतिर्विद्वरश्रीमन्महादेवकृतवर्षदीप काख्यताजिकग्रन्थे तदात्मजश्रीनिवासविरचितायां सोदा - हरणभाषाव्याख्यायां दशासाधनाध्यायः सप्तमः ॥ ७ ॥ अथ मासादिः । गतमाससंमितराशियुक्त जन्मार्क तुल्यार्के मासप्रवेशः ॥ १ ॥ अब मासादिसाधन लिखते हैं: - गतमास की संख्या के समान राशियुक्त किये www.umaragyanbhandar.com Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५० ) वर्षप्रदीपकम् । हुए जन्मसमयके सूर्य के समान ( बराबर ) सूर्य जिस दिन आवे उस दिन मास - प्रवेश होता है ॥ १ ॥ गत दिनसम्मितांशा मासाकें युतास्तत्सदृशेऽर्के दिनप्रवेशः ॥ २ ॥ गत दिनकी संख्या के समान ( बराबर ) अंशमास के सूर्यमें युक्त करनेसे जो सूर्य हो उसके समान सूर्य जिस दिन आवे उस दिन दिनप्रवेश होता है, अर्थात् जिस मासमें जितनी संख्याका दिन प्रवेश करना हो उसके गत दिनकी जो संख्या हो उतने ही अंश उस मासके सूर्य में मिलाना, उसके समान सूर्य जिस दिन आवे उस दिन दिनप्रवेश होगा || २ || उदाहरण | जैसे -- दूसरा मासप्रवेश करना है इसके पिछाड़ी गत मास १ एक हुआ । इस लिये जन्मके १० । १६ । ५३ । ३९ सूर्यकी राशिके अंकमें १ एक किया ११ । १६ । ५३ । ३९ यह २ द्वितीयमासप्रवेशका सूर्य हुआ । इस सूर्य के बराबर सूर्यके दिन दूसरा मासप्रवेश होगा । इसी प्रकार जितने गतमास हो उतनी हीं राशि जन्मार्क में मिलाते जाना और १२ ही मासके सूर्य लाना । दिनप्रवेश | दूसरे मासका ११ ग्यारहवां दिन प्रवेश करना है, ग्यारह दिनप्रवेशमें १० दश दिन गत हुए हैं, इसलिये १० दश अंश मासके ११ । १६ । ५३ । ३९ सूर्यमें मिलाये ११ । २६ । ५३ । ३९ यह दिन ११ के प्रवेशका सूर्य हुआ, इस सूर्य के समान सूर्य आवेगा उस दिन ११ ग्यारहवां दिन प्रवेश होगा ॥ मासार्कासन्नपंक्त्यर्कयोरंतरस्य कलाः कृत्वार्कभुक्तिभक्ताप्त दिनादिपंक्तिवारादिमध्ये पङ्क्तयर्कादधिकेऽर्के युक्तेऽन्यथा हीने मासप्रवेशकालः ॥ ३ ॥ मासप्रवेश सूर्य और उसके समीपकी पंक्तिका ( अवधि ) सूर्य इन दोनों के अन्तरकी कलो करना, सूर्यकी गतिका ( पंक्तिक सूर्यको गतिका ) भाग देना, जो लब्ध आवे दिन घटी पलत्मक तीन फल, उनको पंक्तिके वारादिक १- अंशको ६० साउगुणा करके कला मिलानेसे होती है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । (१५१) ( वार इष्ट घटी पल) में पंक्ति ( अवधि ) के सूर्य से मासप्रवेशका सूर्य अधिक हो तो युक्त करना और अवधिक सूर्यसे मासप्रवेशका सूर्य न्यून हो तो आये हुए दिनादि फलपंक्तिके वारादिकमेंसे हीन करनेपर सो मासप्रवेशका वारादिक समय होता है ॥ ३ ॥ उदाहरण । द्वितीय मासप्रवेशका सूर्य ११ । १६ । ५३ । ३९ इसके समीपकी पंक्ति (अवधि ) का सूर्य ११ । १४ । ५९ । ३० इनका अन्तर किया १ । ५४ ९ हुए इसकी कला ११४ । ९ के अवधिक सूर्यकी गति ५९ । २३ का भाग दिया-भाज्यभाजक कलादिक हैं, अतः इनको सवर्णित किये भाज्यपिंड ६८४९ भाजकपिंड ३५६३ हुआ । भाज्यमें भाजकका भाग दिया लब्ध १ दिन आया-शेष ३२८६ बचे इनको ६० साठ गुणे किये १९७१६० हुए, इनमें ३५६३ का भाग दिया लब्ध ५५ घटी आयी शेष ११९५ को ६० साठगुणे किये ७१७०० हुए, इनमें फिर ३५६३ का भाग दिया लब्ध २० पल आये । ऐसे दिन,घटी,पलादिक फल १॥ ५५ । २० लब्ध आये, इनको पंक्तिके सूर्यसे मासप्रवेशका सूर्य अधिक है इसलिये अवधिके वार इष्टघटी पल ४ । २२ । १ में युक्त किये तो ६ । १७। २१ हुए, यह द्वितीय मासप्रवेशका इष्टसमय हुआ-अर्थात् पूर्णिमांत चैत्रकृष्ण ३० अमावास्या शुक्रवारके दिन इष्टघटी १७ पल २१ से मास द्वितीय प्रवेश होगा। ऐसे ही दिनप्रवेशका उदाहरण समझना। एवं दिनप्रवेशकालः ॥४॥ मासप्रवेशकालकी जो रीति कही है उसी प्रकार दिनप्रवेशकाल लाना अर्थात् दिनप्रवेशका सूर्य और उसकी समीपकी पंक्तिका सूर्य इन दोनोंके अन्तरकी कला करना पंक्ति के सूर्यको गतिका भाग देके दिनादिक फल ३ लाना उनको पंक्तिके वारादिकमें पंक्तिके सूर्यसे दिनप्रवेशका सूर्य अधिक हो तो मिलाना, न्यून हो तो हीन करना, तब दिनप्रवेशकाल होगा ॥ ४ ॥ उभयत्र स्पष्टाः खगा भावादयश्च कार्याः ॥५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्षपदीपकम् । मासप्रवेशसमयमें और दिनप्रवेशसमयमें स्पष्टयह भाव, आदि शब्दसे चलित पंचवर्गीबल द्वादश पडेशा सप्तेशा आदिक करना ॥ ५ ॥ पात्यैक्येन मासदिनानि भजेल्लब्धेन स्वस्वपात्यांशा हता दिनाद्या मासदशाः॥६॥ पात्यांशके ऐक्यका मासके दिन ३० में भाग देना, जो लब्ध आवे ध्रुव, उससे अपने अपने पात्यांश गुणे करे तो दिनादिक मासदशा होती है ॥ ६ ॥ मासप्रवेशः सप्तयुतेऽङ्कहते एकादिशेषे आचंभौराजीशबुकेशुनामाद्या दशा॥७॥ मासप्रवेशनक्षत्र (जिस नक्षत्रमें मासप्रवेश हो उसकी ) संख्यामें साव मिलाकर ९ नवका भाग देना, एकको आदि ले जो शेष बचे सो क्रमसे आ (सूर्य), चं (चंद्र), भौ ( भौम ), रा ( राहु ), जी (गुरु), श (शनि ) बु (बुध ), के (केतु ), शु (शुक्र ) की आद्य (प्रथम) दशा जानना ॥७॥ मुग्धार्कभागमिता दिनाद्या मासदशा ॥ ८॥ मुग्धा दशाके १२ बारहवें भागके समान दिनादिक मासदशा जाननाअर्थात् मुग्धादशाके दिनमें १२ का भाग देने से जो दिनादिक आवे उन्हें मासदशाके दिनादिक जानना चाहिये ॥ ८ ॥ उदाहरण । जैसे-सूर्यकी मुग्धादशाके दिन १८ हैं, इसमें १२ का भाग देनेसे लब्ध दिन १ घटी ३० आयी, यह मासदशामें सूर्यके दिन हुए । इसी प्रकार सर्वग्रहके समझना चाहिये। १ मासप्रवेशमें षडशा-जन्म लग्नपति १, वर्षलग्नपति २,मासलग्नपति ३,मुंथापति ४,त्रिराशिपति ५, समयपति ।। २ दिनप्रवेशमें सप्तेशा-जन्मपति १, वर्षपति २, मासलग्नपति ३, दिनलग्नपति ४, मुंथापति ६, त्रिराशिपति ६, समयपति ७ । ३ मासमें भी प्रथम कही रीतिके अनुसार हीनांश पात्यांश करके ऐक्य करना चाहिये। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । (१५३) दिनादिक मुग्धा मासदशा. उदाहरण। जैसे-द्वितीय मासप्रवेश उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्रमें हुआ है, इसकी संख्या २६ में ७ मिलाये तो ३३ हुए, ९ नवका भाग दिया शेष ६ बचे, १ एकको आदि ले क्रमसे आचंभौराजी आदि दशा गिननेसे ६ छठी शनि दशामें मासप्रवेश हुआ । यह आय (प्रथमदशा ) हुई । इसके आगे क्रमसे ग्रहोंकी मासदशा आती है। मासदशा. PIASECATHLOCIALES दिनप्रवेशस्पटलननक्षत्रे सप्तयुतेऽङ्कहते एकादिशेष प्रागुक्तानामाया दिनदशा ॥ ९॥ दिनप्रवेशसमयके स्पष्टलग्न और नक्षत्रकी संख्या ७ सात मिलाना ९ नवका भाग देना, एकको आदि ले शेष बचे वह प्रथम कहे हुए नाम र. १, चं. २, मं. ३, रा. ४, गु. ५, श. ६, बु. ७, के. ८, शु. ९ की आय दिन दशा होती है ॥ ९॥ मुग्धांगभागमिता घट्यादयः ॥१०॥ मुग्धा दशाके दिनके ६ छठे भागके समान (बराबर ) घट्यादिक मुग्धा दिनदशा जानना-जैसे सूर्यकी दिन १८ की दशा है इसमें ६ का भाग दिया लब्ध ३ घटी आयी, यह सूर्यकी दिनदशा हुई । ऐसे ही सर्व ग्रहोंकी जाननी चाहिये ॥ १० ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५४) वर्षप्रदीपकम् । मुग्धा दिनदशा घट्यादि. प्रश्नांगस्य भं विना लिप्ताः कृत्वा खतिथ्युद्धता लब्धो भादिमध्येऽङ्गर्भयुता मुंथार्थे स्पष्टं लग्नम् ॥ ११॥ प्रश्नलमकी राशि विना अंशादिककी कला करना ख ( ० ) तिथि (१५) ऐसे १५० डेडसौका भाग देना, लब्ध राश्यादिफल ( राशि-अंश-कलाविकला ) चार आवे उसकी राशिके अंकमें प्रश्नलनकी राशि अंक मिलानेसे मुंथाके वास्ते स्पष्ट लम होती है ॥ ११ ॥ प्रश्नांगातुर्येशो जन्मेशो ज्ञेयः ॥ १२ ॥ प्रश्नलनसे चतुर्थराशिका स्वामी जन्मेश जानना-अर्थात् पंचाधिकारीमें जन्मलमपातके स्थानमें प्रश्नलमसे चतुर्थराशिका स्वामी जो हो वह लिखना१२ प्रश्नपत्रतो वर्षकरणे इयान्विशेषः ॥ १३ ॥ प्रश्नपत्रपर वर्ष बनाने में इतना ही विशेष जानना ( और सर्व रीतिमें कुछ न्यूनाधिक नहीं है ) ॥ १३ ॥ पाराशरकुलोत्पन्नो महादेव उदुबरः। पाठकाख्याचणो रत्नललामपुटभेदने ॥१॥ रेवाशंकरसंभूतिः कृतवान्वर्षदीपकम् । व्यङ्कादीन्दुमिते शाके कन्यार्कप्रथमे दिने ॥२॥ इति मासाद्यध्यायः ॥ ८॥ इति महादेवकृतवर्षप्रदीपकं समाप्तम् ॥ रतलाम शहरमें पाठक ऐसे उपनामसे प्रसिद्ध पराशर कुलमें उत्पन्न (पाराशरगोत्र ) उदुंबरज्ञातीय रेवाशंकरजीके पुत्र महादेव ज्योतिर्वित्ने शालिवाहन १७९३ सत्रहसौ तिरानवेके शकमें कन्यासंक्रांतिके प्रवेशके प्रथम दिनमें वर्षदीपक बनाया ॥१॥२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितम् । (१५५) मासप्रवेशपत्रम् । 1५।६।०/१२20122,२३,२४३५।२६ २७ २८/१२/२०/२१/२२/२३,२४२५/२६ २७ २८/२१ ૨૨||૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨૨ ૨૨૨૩૨૨ ३४३५३६३०३९/४०४१४२ ४५/४६/४७/४८/४९/५०५२ २०३०५१/४/१६२०/४० २ M-220 54 १०१११२ १३ १४ १५ २२२३२११९१५.१०३५६१८ १९२०२१ १७५५४४१२ - -- - રરર રર૮રર૩ ५३६/१०५३/०८/५८३ ३१३१३२/३२३३३३३४३४३५३५३५१६३६ १८५१२२५१२१/४९११४४५३३५५/१७३६ / Papcarac३७३७३७३०३७३३६३६३६३५ 4000५४/४७/४०३२२२८५२३२१३५१२७२३४ mm ३३ ૨ ૨ २१२०१९/१८१८१७१६/१५/१४/१३/१२/११/१० २०३५/४६५७/८१९२६३३३९४४/४८/५२/५६/५७५७५०५७ ૨] ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ५१५०/४९४८/४६/४५/४४४३ ४२४१ २३३२३१३०२९२७ ३७२९/१९ ८५५४४ જરૂર જas واواوو ५९५८५७५६५५ १७६५/४४ 9900 ४३/३/४२४१/४०३९३३ ५४४१४३४३७५०३/१८३४५०/६/२३१/१२२४३५] 1790१४/१७ |M:18. 04.192 | 1. રર રરરર રર૦ ११३८७३७३११०४२१५/४८/२२५७१३२/१७,४९/२०१८४९१५४५०/४४/१०/०८/५९/५३४५) ||30.09.1999999 १९१९१९/१९१९१९/१९१९ ર૦ર૦ર૭રર રરરર રરરર રરરર રરરરરર ३६३५३१३१३२/३४/४०/४६५४/२/१२/२४३६४९ ४ २०३८/५७१७३९२२६/५०/१५/४०५१२५९२७/५७/ -- - ------ - - - --- - - -- ११.१99999000 २८२९/२९३०/३०३१३०३२/३३३३३४३५३५३६३७३८३३९४०४१४१/४२/४/४४४५/४६/४७/४७ २७५८३०३३७१०४६२१५६३३/१०४९ રર ૨૦૧૪ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨| |૨|| | ४८४९५०५१५२५३/५४५५/५६/५७५८५९ ०/|२३||६| ५८५९.१२३४६७/८/९/१०/११,१२/१३/१५१4,3929 १५१/४६४२३९३६३३३३३३३३५३७ ३९१४५/४९५३/५८' ४ /१०/१७.२४३२/४०/४०/५०/७१७२८३/५. । -| | 6.| : او او او او او او او و او او او او वर्षप्रवेशके वारादिकमें अग्रिमसूर्यके राशि अंशके कोष्ठोंके वारादिक मिलाना और अग्रिमकोष्ठकके साथ अन्तर करके सूर्यकी कला विकलाको गुणन करना, जो फल आवे यह वर्षप्रवेशके वारादिक मिलाये हुए कोष्ठकमें अग्रिम कोष्ठक अधिक हो तो मिलाना, न्यून हो तो पलमेंसे हीन करनेसे द्वितीय मास प्रवेश वारादिक होगा, एवं उसके आगेके सूर्यके राशि अंशज कोष्ठमें द्वितीयमासके वारादि मिलानेसे तृतीयादिक मास होगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat स्थिरखलचक्राणि। मेष.. वृषभ. १ मिथुन.२ -- अंशाः |र.चं. १२||2000 ना | ८|| वर्षपदीपकम् । १०. ८१०० Ale|Salalalalala - १६||४||3|| | ३२०८८॥ ६१०७/२७ ८॥ १०३२.८८॥६|१४| ९| |८|| १२ | ११॥ १५||४॥२॥ ७॥ ६४०८८॥ ६ ॥ ८/१७/८॥ ११॥ ८ ॥६॥ १४॥ १० ॥9॥ २०॥ ॥ १० १४॥ ५॥ ८॥ ८॥६॥९॥८६॥ ७॥११॥६४०८ ८॥६॥ १२॥१०॥११॥७॥ १२ |१३|१०॥ १४॥ ६॥ १३॥ ५॥ | ८६॥ १२॥१०1०1८ ८10/६ | १२॥10॥२१॥७॥ ८॥ १२.२॥ ११॥ १५॥ ५॥ ९॥२॥ १३१२० ८॥०॥ ७॥ ७ . १ १२१०७॥ ७|| ७ | १३ |८॥29॥ RAN II ४०० ६॥ १०॥६८१५/७॥ ७॥ १२॥ ९॥ ७॥ १२॥ ११॥ ८॥ २०॥ १३ ७॥ ९॥ ९५॥८१६४०|||११|| ७०||१४|६॥२०॥ १६॥४८॥ २७॥ १२॥ २॥ ८॥ ८ | १०॥ २०१० २ ८ ॥ ५॥ २० ॥11 ॥ १३॥ ६॥ १०॥ ७९ ॥ ९॥ ८.१२ १२॥ ८॥ १०॥ २६१२०| ११||१४||५||९॥ ८ .६ | ८१०॥॥१३॥८॥|११|२००८॥ ९॥ ॥ १९॥ १२/११/ ८| 10१३ ॥ १५॥५७/९॥ ४॥ २४ ॥ १४|११||१२ /२३२०९॥ ९|| ९ | १२ |१०|1| 01/९॥ 1४०/३०॥20॥ १२॥५॥ २६॥४०॥an६९ ४ १२/२४१२०९॥ |10|10| ९|| ९011 २०० ६ || २ | ||२०|||||२७ | |५|| २०७४ ॥११॥१२॥ २६४० | 01 ५॥ १०॥ ७॥१४॥११॥१२॥२६।४०८॥| ८ | ५||१३॥ | I| १० १०॥ १०॥ ८1९ ८ ९|| १३॥ ९ ११॥ ३०||८||७|| ५|| १४|| ९॥| ९||१०|| १२ । ९॥ ४॥॥८॥॥ २२० www.umaragyanbhandar.com Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहत्पंचवर्गी बलग्रहकी राशि अंशके समान कोष्ठकम जोहो वह लिखना पांचसे अल्प हीनबली होता है. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat कर्क.३ सिंह. ४ कन्या .५ | र. | च. म बु. | गु.] | श. रा. र. चं. में. | बु. | गु. श. श. रा. .. र भाषाटीकासहितम् । ८ 1970|||9||9||5|| PEE | |IFFEजानाजानाज ३१२० ९॥ १४॥ ९॥ ६॥ ६॥ ३॥२०१५||९| ६४०११॥ १३॥ ९॥ ७॥ ११॥ ७॥ ६॥ ८॥६० ७० ९।।१३॥|९| ११॥ ८॥ ६॥ ८॥६४० १०० ८। ९॥ १०॥। ११ । । १३०० ||६|१०॥ १२॥ १।। १६२०८ १२॥ ६, १२ । १०।।१८।। १६।४०८ ।१२॥ ७/११॥ | १०।। ७ । ७॥ | ९ १६. ४ १३ || १७/१०८ १३॥६] १२ ११ २००९ । ९।१३। ६ ।६॥ | ८ २३१० ९ | १५ (७) । ७॥१३॥ ५ill | ७ ७॥ २१३०१२ । २६०८।१४७७१३॥ ५॥ ७ । ७॥२४॥ १२॥ १०॥ ८॥२६०१२॥ ९॥ ०:० ८॥ । ८।३००/१२॥ ९॥ WRESISEA || اسهام و امام امام اس اس ام اس اس ||||FITTFTEETHBIFI FIFI|||||बजानाजाना -- -||-EIError जाBEEFIFFERE 51जनाFFIFIE|जनन |१३| ५ ८। ३२०६॥ |१७ ॥७॥ १२॥ ६॥ ९॥ | १७ ॥ ११॥ ।। ९॥ |९|| 1॥ ७/०६|| |९||॥ ९॥ ८॥ १०1०६॥ ५ || ||||१०॥ ।। १५॥ ७॥ ७||७||१३॥२० ॥ |११॥ ६ । ९॥ १६१४० १६॥ ६॥६॥ १२॥ ९॥ ९ ११॥ ५॥ ९॥ ७॥ १७०४ १६॥mam| ११ ।। ६ । १० २०१०५ १५॥ ९॥ ९॥ १०॥ | ८ ॥२श०५ 4mm६॥ १६ Aneml Rom AALAABIAllIPIBEIA|2| A 01- www.umaragyanbhandar.com २८/०५५॥ १६॥७॥ ३०.०४mle१७॥६७॥ । (१५७) Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५८) पांचसे अधिक मध्यमवली. दशसे अधिक पूर्णवली होता है. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat तुला.६ वृश्चिक.. धन.. . मं.बु. गु. शु.| श. रा. र. चं. में. . . वर्षप्रदीपकम् । १।२०॥ ६॥ ६||११| ६॥ १२ ॥ १३॥ ८॥ | ३२.1 1 १७ ॥ ५॥ ॥ ३२० ॥ १३॥ T॥ ६॥ ७॥ ११ ॥ १०॥ १३॥ ८६४०८॥ ७॥ १७ ७. १ m a४॥ ६।४० ८1७॥|१०|| ७॥ १३ ॥ ८॥ ८॥ 41४.४॥ ६॥ | ७|१२॥ ७॥ १०॥ १८७०८७॥ ६॥ 4 ॥ ४ 1॥ ॥ १०॥ १२॥ 1 ॥४॥ १०.४॥ ६॥ ॥ In 201॥ ११॥ 6000६॥ १४ ९ | sin६९॥ ५॥ १२011 ११॥ 111 १३॥२०|३||||१४||६ ॥१४॥ ८॥ १ ८॥ ६॥ १६॥ ८॥ ८॥ ९॥ ५॥ ३२०८९॥ ०1 1 | ८॥ ८५] १४||३|| ४ ६ ११॥ १४॥ ८॥ १३॥२०८॥ ६॥ १३ | १०|| ७॥ ७ ॥ ५॥ १६।४०११/२ १०॥ ७॥ ३०॥ ८॥ ॥ ५) १६२०|५||१४|| SI 2010१३॥ ७॥ १६॥४०॥ ८॥ ९ १२॥||९|८|६||५ |८८॥१०॥ १०॥ ९ | ८॥ ५. २०० ५। ५ ९ ॥ २०॥१२॥ ७॥ १ ७ १३॥ ९॥ ८॥६ ॥ २० ॥ ९॥ २०॥ ७॥ ५॥ to 100 1000६॥ २००९८१४९|११ | ||||| |९| ८||१| | २३॥२० ॥ १०॥ ८ | १३|११॥६॥ २३॥ ७॥ ७ १३॥ ९॥ | ॥४॥ २३॥२०/८॥ १२॥ ७ ॥ ॥ ९ ॥ २६४० ॥ ॥ mp•| ॥ १४ ॥ ६॥ २४|० ७॥ १३॥ ७॥ ९॥ ५ ॥ २६ ॥ ८1१३॥ ६॥ ॥ ६॥ ८॥ ५॥ १८. ४॥ moi ॥ 1॥ ६॥ २६४०/ ७ २ ॥ ८॥ ६॥ | 91 १२॥ ४॥॥२६।४०८७॥ ॥ ७॥ ९॥ ||१| | rul rn kinroll clip on io ilpmel ॥ ॥ ५॥ ७॥ १७॥ ७॥ १०॥ ८ ॥११॥| ६ | = www.umaragyanbhandar.com Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थिरमैत्रीतः पंचवर्गबलचक्रम्। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat मकर मीन ११. कुंभ १०. 5161| २०६॥ | |५॥ ९॥ १४॥ ॥ ३२०1 ८॥१०॥४॥|४१५ | RT I SI | | १२॥७॥ हा-m i n | ९॥ १४॥ ॥॥ ४॥१२ 10॥ १०॥ ५॥ १०॥ १२/9000 | | ५॥ ॥६॥ १३॥ ८ | |६॥८१०||||R M | | |१३| १२|८| ६॥ १०॥ ७॥ ८॥ ८॥ १३॥ 10॥ ६॥ ५॥४३॥| |NIRO HI R 1 ॥ भाषाटीकासहितम् । १३१२. ०८1७॥ ११७ ७ ॥८॥१२ ॥१३. |७||६||८ | 10991120101..४ |४| ||८1१ ११N: 1 १४ ॥ ७॥ ९॥ १२॥ १३॥२० ॥ ७॥ | PROP Im६॥ १६॥ ४in १६॥४० ॥ ॥४॥१२॥ १३॥ १६ Ran R ai | |५॥७॥ u tons In I २०१०॥॥ Tom Hinimum २१.९॥ ९॥||2|| २२३RNA R Mm २॥4॥९॥ ॥ १४॥ १४२५ ॥२१॥EMAImpanM RARIMARI |१७| o aIMBATulssuns lau2 |12|12 Jastruatus/15/2/ins Ins/as Im [10/IFSati Man outsuranobaby , 12|12|12| artaulas S i DNADIANT aant Ind www.umaragyanbhandar.com ranAmlali - moon |३|| (१५९) Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्षप्रदीपकम् । उच्चबलसारणीचक्रम् | शा. |०|१|२| ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १९ २० २१ २२ २३ २४ २५ २६ २७ २८ २९ १ १ १ १ १ १ १ १ १ २ २ २ २ २ २ २ २ ३ ३ ६ १३ २० २६३३४० ४६ ५३ ० ६ १३ ० ६ १३ २० २६ ३३ ४० ४६ ५३ ० ६ १३ २० २६ ३३ ४० ४६ ५३ ० ०४० २०० ४० २० ० ४० २००४० २०० ४० २००४० २०० ४० २० ० ४० २०००० २०० ४०२० ( १६० ) रा. ० १ N ? ० 。。。。。 ५ २ ३ ० ४ ०० ६ ६ ६ ७ ७ ७ ७ ७ ७ ७ ७ ७ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८९ ९ ९ ९ ९ ९ ९ ९ ९ ४० ४६ ५३ ० ६ १३ २० २६ ३३ ४० ४६ ५३ ० ६ १३ २० २६ ३३ ४० ४६ ५२ ० ६ १३२०२६३३ ४० ४६ ५३ ० ४० २० ० ४० २००४० २००४० २०० ४० २००४० २००४० २०० ४०२० ० ४०२० ० ४०२० 9090909090 90 90 90 90 99 9999 9999 9999 9999 92 १२१२१२१२१२१२१२ १३ १३ १३ ३ ० ६ १३ २० २६ ३३ ४० ४६ ५३ ० ६ १३ २० २६३३ ४० ४६ ५२ ० ६ १३ २० २६३३ ४० ४६ ५३ ० ६ १३.३ • ४० २०४० २० ० ४० २० ० ४० २०० ४० २०० २०२० ०४० २००४० २००४० २०० ४०२० ३ ३ ३ ३ २० २६ ३३ ४० ४६ ५३ ० ६ १३ २० २६ ३३ ४० ४६ ५३ ० ६ १३ २० २६ ३३ ४० ४६५३० • ४० २०० ४० २००४० २००४० २००४० २००४० २००४० २०० ४०२००४० २००४० २० ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ५ ५ ५ ५ ५ ५ ५ ५ ५ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ८ १३२०२६३३ १ १३ १३ १३ १३ १३ १३ १४ १४ १४ १४ १४ १४ १४ १४ १४ १५ १५-१५ १५ १५ १५,१५ १५ १५ १६ १६ १६ १६ १६ १६ २० २१ २२ ४० ४६ ५३ ० ६ १३ २० २६ ३३ ४० ४६ ५३ ० ६ १३ २० २६ ३३ ४० ४६ ५३ ० ६ १३ २० २६३३ ४ ० ४० २०० ४० २०० ४०२००४० २००४० २० ० ४० २००४० २००४० २००४०२०० ४०२० १६ १६ १६ १७ १७ १७ १७ १७ १७ १७ १७ १७ १८ १८ १८ १८ १८ १८ १८ १८ १८ १९ १९ १९ १९ १९ १९ १९ १९ १९ ४० ४६ ५३ ० ६ १३ २० २६ ३३ ४० ४६ ५३ ० ६ १३ २० २६ ३३ ४० ४६ ५३ ० ६ १३ २० २६ ३३ ४० ४६ ५१ ० |४० | २०| ० |४०|२००४० २०० २० / २०० ४० २००४० २००४० २० ० ४०२०० ४० २०० ४०.५० ग्रह नीचके अंतरकि राशि अंगके कोष्टकमें उच्चबल स्पष्ट जानना. आसीद्रत्नपुरे पराशरकुलोत्पन्नो द्विजोदुम्बरः ख्यातः पाठकनामतो गुणनिधिः श्रीनन्दरामाभिधः । तत्सूनुर्गणितागमज्ञतिलकः श्रीमोतिरामाह्नपो रेवाशंकर आगमेषु निपुणस्वस्मादभूद्धार्मिकः ॥ १ ॥ तदात्मज उदारधीर्गणकमौलिचडामणिरभूद्धरणिमण्डले गुणनिधिर्महादेववित् । तदंगजनुषा त्विदं विवरणं सतां प्रीतये सहस्यशुचिपक्षतौ कठजटोन्मितोऽगाच्छके ॥ २ ॥ इति श्रीज्योतिर्विद्वरश्रीमन्महादेव कृतवर्ष प्रदीप काख्यताजिकग्रंथे तदंगजश्रीनिवासविरचिता सोदाहरण भाषाव्याख्या समाप्ता । समाप्तश्वायं ग्रन्थः । पुस्तक मिलनेका ठिकाना खेमराज श्रीकृष्णदास, "श्रीवेङ्कटेश्वर " स्टीम - प्रेस, पंबई. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat गङ्गाविष्णु श्रीकृष्णदास, "लक्ष्मीवेङ्कटेश्वर" प्रेस- कल्याण, मंबई. www.umaragyanbhandar.com Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का AP जवान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com