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भाषाटीकासहिता।
(१७) अथ भौमस्य विशषदृष्टिमाहपञ्चेन्दुयुक्ताः खलु सार्द्धभागा द्विभेडगभे षष्टिकलास्तथैव । भागोनषष्टिर्भवतीह दृष्टिलिभेऽद्रिभे भूमिसुतो न दृश्ये ॥ १३ ॥
अब मंगलकी विशेष दृष्टि कहते हैं-मंगलको हीन करे दृश्यमेंसे और यदि दो२ राशि शेष बचे तो राशि विना अंशोंको डेढे ( अंशादिकके २ का भाग देके जो आवे वह उन्ही अंशांदिमें युक्त करना) करना और १५ पंदर युक्त करना कलादिक दृष्टि हो और छः राशि शेष बचे तो ६० साठ कला दृष्टि जानना वैसे ही यदि वीन राशि ७ सात राशि शेष बचे तो राशि विना अंशादिकोंको ६० साठमेंसे शोधना सो कलादिक भौमकी विशेष दृष्टि होवे उक्तराशियोंके अतिरिक्त राशि शेष बचे उसकी श्लोक ११ । १२ के अनुसार दृष्टि करना ॥१३॥
अथ जीवस्य विशेषदृष्टिमाहजीवोनदृश्यस्य तु वेदभे स्याद्विघ्नांशकोना खलु षष्टिरेव ॥ साांशकोना गजभे तु षष्टिस्त्रिभेऽष्टिभेशाधयुतेषुवेदाः ॥१४॥
अब गुरुकी विशेष दृष्टि कहते हैं-गुरुको हीन करे दृश्योंसे और यदि ४ चार राशि शेष बचे तो राशि विना अंशादिकोंको २ द्विगुण करके ६० साठभेसे हीन करना दृष्टि होवे और ८ आठ राशि शेष बचे वो अंशोंको डेढे (अंशोंको आधे करके उन्ही अंशोंमें मिला ) करके साठ ६० मेंसे शोधना (हीन करना) शेष बचे वह दृष्टि जानना इसी प्रकार यदि तीन ३ राशि या सात ७ राशि शेष बचे वो अंशोंको अर्ध ( आधे ) करके ४५ पैंतालीस युक्त. करना सो कलादिक गुरुकी विशेष दृष्टि होवे ॥ १४ ॥
अथ मंदस्य विशेषदृष्टिमाहद्विनिघ्नभागा विधुभेन्तरे स्याद्धिभे तु भागाधविहीनषष्टिः॥ द्विघ्नांशकोना नवभे तु षष्टिस्त्रिंशद्युतातगजभेऽर्कजस्य ॥ १५॥
अब शनिकी विशेष दृष्टि कहते हैं:-शनिको हीन करे दृश्यमेंसे यदि एक राशि शेष बचें तो राशि विना अंशादिकको द्विगण करनेसे कलादिक
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